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कितना आसान है साहब से मिलना
कहते है कि कही-कहायी बात पर नहीं बल्कि अपनी आँखों देखी बात पर यकीन करना चाहिए। यह सच नहीं है। बहुत-सी चीजें ऐसी है जिन्हें हम न छू सकते है न ही देख सकते है। तो क्या वे नहीं है ? हैं। हमारे बीच मुक्कमल हैं। भगवान को ही ले लीजिए। क्या किसी ने भगवान को देखा है। फिर भी वह है। नास्तिक विचारधारा के लोग हँसेंगे। कहेंगे ईश्वर है तो दिखता क्यों नहीं। अपने ईश्वर से भेंट कराइए। अरे भाई । भगवान हमारे आप जैसा इंसान तो है नहीं। उसके अधीन सारी प्रकृति है। आप ही नहीं वह चौरासी लाख योनियों का अकेले मालिक है। उसके पास ढेर सारे कार्य है। उसे सबका ख्याल रखना पड़ता है। उससे मिलना आसान है क्या। भगवान को छोड़िये। अपने बीच के किसी अधिकारी से ही मिल लीजिए। आपको अंदाजा हो जाएगा कि भगवान से मिलना कितना कठिन है।
ईश्वर और साहब दोनों से मिलने की प्रक्रिया, व्यवस्था और बाधायें कमोबेश एक सी होती है। साहब से मिलने जाइए। ऑफिस के बाहर ही सुरक्षा कर्मी जाति का भयंकर जीव आपके सामने चट्टान की तरह खड़ा हो जाएगा। अपराधियों की तरह आपकी पूरी 'इन्क्वायरी' करेगा। कोशिश करेगा कि आप आगे न बढे वहीं से वापस हो जाएं। अगर हिम्मती निकले। डिगे नहीं तो अगले पड़ाव पर कौवे की तरह चालाक चपरासी नामक व्यक्ति से आपका पाला पड़ेगा। वह आपको देखते ही काँव- काँव करना शुरू कर देगा। कई तरह से बरगलायेगा, भड़कायेगा। आज साहब का मूड ठीक नहीं है। बहुत गुस्से में हैं। होने वाला काम भी बिगड़ जाएगा। अपनी बातों में फसाने का प्रयत्न करेगा। फँस गए तो वहीं से वापस । नहीं फँसे तो आखिरी मंजिल पर गिद्ध दृष्टि पी.ए. से भेंट होगी। आँखों ही आँखों में वह पहले आपको तौलेगा। वजन के अनुसार प्रश्नों की बोछार करेगा। आप कौन हैं ? कहाँ से आये हैं? काम क्या है ? पहले किससे मिले थे ? मिले थे तो यहाँ क्यूँ आये ? नहीं मिले तो क्यूँ नहीं मिले ? यहाँ किसने भेजा ? इसमें साहब क्या कर सकते हैं ? यह साहब का काम नहीं है ? ऐसा करिये आप फलाँ फलों के यहाँ जाइये। येन-केन प्रकारेण पहली बार यूँ हीं आपको टरका दिया जायेगा। अनुशासन तोड़ कर नहीं सकते। ऑफिस का दस्तूर तोड़ने का ख्याल भी आपके दिमाग में आया तो सुरक्षा कर्मी आपकी क्या गति बनायेगा। वक़्त ही बतायेगा। आप मजबूरन फलाँ फलाँ के यहाँ जायेंगे। पता चला कि फलाँ फलाँ है ही नहीं। है भी तो कहेंगे। अरे । यहाँ क्यों आयें। साहब के पास जाइये। आप हेंगे साहब के ही पी.ए. ने भेजा है। ओफ-ओफ बाबा आप हमारा सर क्यूँ खा रहे हैं। पी.ए. ने आपकी बात नहीं समझी होगी। यह काम तो साहब का ही है। जो कुछ करेंगे वही करेंगे। आप फिर पी.ए. के पास जाइए और अपनी बात ढंग से समझाइये।
इस बार आप चाहेंगे कि वह आपको पहचान जाय किन्तु वह पहचान कर भी नहीं पहचानेगा। एक बार पुनः आपको साक्षात्कार से गुजरना पड़ेगा। साक्षात्कार में सफल होने पर पी.ए. का जवाब होगा- आज साहब का मूड ठीक नहीं है। अभी-अभी छोटे साहब आए थे (जब कि आपको पता है कि कोई नहीं आया था) साहब का मूड देख कर वापस चले गए। इस समय काम का बहुत टेंशन चल रहा है। नेक्स्ट वीक में आइए। तब तक सब कुछ ठीक हो जाएगा। अगले हफ्ते फिर वही । साहब बहुत व्यस्त हैं। सुबह से ही लोगों से मिलत-मिलते पस्त हैं। बाहर बैठ जाइए। थोड़ा 'रिलेक्स' होने दीजिए। फिर आपको बुलवाते हैं।
आप बाहर इंतजार करते-करते ऊबने लगेंगे। चाय- पानतक करने नहीं जायेंगे। इसलिए कि ना जाने कब बुलावा आ जाय। वह शुभ घड़ी आने के पहले ही साहब ऑफिस से निकल कर चलें जायेंगे। पी.ए. उल्टा हड़कायेगा। कहाँ चले गये थे ? कितना ढूँढवाया ? साहब से ऐसे लिया जाता है ? कितनी मुश्किल से आप के लिए समय लिया था और आप । साहब तो मुझ पर न फायर हुए। बोल रहे थे ऐसे लोगों को 'एप्वायमेंट' क्यों देते हो। निश्चित ही आप अपनी सफाई देंगे। मैं तो यहीं था। जोरों की प्यास लगी थी फिर भी कही नहीं गया। तो क्या हम झूठ बोल रहे हैं। आप जैसे ना जाने कितने लोग रोज यहाँ आते- जाते हैं (यही बात हर किसी से कही जाती है) लेकिन मेरी 'लाइफ' में आप पहले व्यक्ति हैं जो इतना घटिया 'ब्लेम' लगा रहे हैं। अगर आप के अन्दर जरा भी मान-सम्मान होगा तो साहब से मिलने का ख्याल छोड़ देंगे। नहीं ते आप को थेथरई पर उतरना पड़ेगा। ग़लत न होते हुए भी गलती स्वीकारनी पड़ेगी। गिड़गिड़ाना पड़ेगा। मनाना पड़ेगा। पहले वह खूब भाव बनायेगा फिर मान जायेगा। कहेगा ठीक है- इस 'मण्डे' को नहीं अगले 'मण्डे' को आइए। अगले 'मण्डे' को जवाब होगा-साहब दौरे से 'लेट नाइट' में लौटे हैं। सॉरी जैसे इतना दिन सब्र किये वैसे ही दो चार दिन और इन्तजार कर लीजिए। प्लीज अगले सटरडे को आ जाइये। सटरडे को आपको देखते ही ओफ वेरी-वेरी सॉरी । आज साहब जरूरी मीटिंग में हैं। कल फलाँ फलाँ कार्यक्रम का उद्घाटन है। परसों फलाँ फलाँ काम है। नरसों आइये। सबसे पहले आपको मिलवायेंगे। अगर आप अपना संयम और विवेक बनाये रह गये तो एक न एक दिन साहब से भेंट हो ही जाएगी। लेकिन तब तक आप इतना झेल गये होंगे कि साहब कि सूरत तक धुंधली-धुंधली नजर आयेगी। कंठ इतना सूख चुका होगा कि अपनी बात भी ढंग से न कह पायेंगे न ही साहब समझ पायेंगे। बुझे-बुझे मन से साहब की धुंधली तस्वीर आँखों में लिए वापस आ जायेंगे। चंद दिनों में ही साहब की सूरत तक भूल जायेंगे। रह जायेगा तो केवल अहसास कि किसी साहब से मिला था।
साहब से मिलने का एक सरल उपाय है। जैसे ईश्वर और भक्त के बीच में गुरु होता है। वैसे ही आपके ओर साहब के बीच में चमचा नाम का एक प्राणी होता है। वह चाहे तो आपको साहब से आराम से मिलवा सकता है। पता करिये कि साहब का चमचा नम्बर वन कौन है। उसे खिलाइये-पिलाइये, मक्खन लगाइये। चाहे जैसे भी उसे पटा लीजिए। आपका काम हो जायेगा। इसलिए आम आदमी साहब से मिलने की कौन कहे साहब से रास्ता बचाकर चलता है। उसके लिए तो इतनी ही अनुभूति काफी है कि साहब हैं। अब आप ही सोचिये । जब एक साहब से मिलने में इतनी जद्दोजहद है तो जो सबका साहब है। साहब का भी साहब है। उससे भला आप कैसे मिल पायेंगे।
- अजय चतुर्वेदी 'कक्का'
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