Reasons for family disintegration in the stories of Ravindra Kalia
रविन्द्र कालिया के कहानियों में पारिवारिक विघटन के कारण
मानव समुदाय में कई लोगों का जन्म होता है और चले भी जाते हैं। यह सामान्य विषय है लेकिन उनमें कलाकार ही उत्तम जीवन बिताते हैं। कला व्यक्तिगत होते हुए भी समाज का है क्योंकि कला विकास समाज से ही है। इसलिए कलाकारों की कला द्वारा हर कला उसके रहते समय तथा कलाकार के मरने के बाद भी जीवंत बना रहता है। ऐसे 64 कलाओं में साहित्य भी एक कला है। ऐसी साहित्य सेवा को अपना कर उत्तम रचनाकारों में से रवीन्द्र कालिया जी भी एक हैं। आप अपनी आदर्शमय व्यक्तित्व द्वारा अति उत्तम रचना कृतियों का सृजन किया है। उसी के बारे में प्रस्तुत विवरण।
रवीन्द्र कालिया जी आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रतिभा-संपन्न श्रेष्ठ साहित्यकार हैं। आप बहु भाषा प्रवीण हैं और आधुनिक युग के उत्तम कहानिकार हैं, इसके अतिरिक्त कई भाषाओं में प्रवीण भी हैं। साथ ही साथ आप एक उत्तम सम्पादक हैं। हिन्दी भाषा में अधिक अभिरुचि रहने के कारण अध्यापक के रूप में काम किये। आप अपनी रचनाओं में भारतीय (संस्कृति) पारिवारिक संबंध, पति-पत्नी के संबंधों की चर्चा की है।
रवीन्द्र कालिया जी का जन्म परंपरा से पोषित साधारण मध्यवर्गीय परिवार में 22 नवंबर 1938 को पंजाब प्राँत के जालन्धर शहर में हुआ था।
आपकी माता का नाम विद्यावती, माता अपनी संतान पर प्रेम करनेवाली और भारतीय संस्कारों से परिचालित सर्वसामान्य, सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करने वाली सामान्य गृहिणी थी।
उनके वात्सल्य में रवीन्द्र कालिया के बालमन की जिज्ञासाएँ जहाँ पूर्ण होती थी, पिता के कठोर अनुशासन में वे इच्छाएँ उनके युवा हृदय में स्थितियों प्रति अवज्ञा का भाव जगा देती।
पिता का नाम रघुनाथ सहाय कालिया, पिता किसान परिवार में जन्मे थे। रघुनाथ सहाय ने एक किसान परिवार में जन्म लेने पर भी ग्रेजुएशन किया था। ग्रेजुएशन करने के पश्चात् उन्होंने आजन्म अध्यापन कार्य करने का व्रत संपूर्ण निष्ठा एवं अनुशासन के साथ निभाया। रवीन्द्र कालिया के पिता जालन्धर शहर में बहुत सम्मानित और लोकप्रिय व्यक्ति थे।
वर्तमान परम्परागत पारिवारिक मूल्यों के विघटन का ज्वलन्त प्रतीक संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन है। यद्यपि विघटन की यह स्थिति स्वतंत्रता से पूर्व ही उत्पन्न हो गयी थी, किन्तु उसमें स्वतंत्रता के बाद अधिक तीव्रता और व्यापकता आई है। संयुक्त परिवार प्रणाली भारतीय समाज और संस्कृति की रीढ़ रही है। सांस्कृतिक उन्नथन के लिए अपेक्षित प्रेम, दया, सहानुभूति, सहयोग आदि उच्चकोटि की संवेदनाओं का विकास संयुक्त परिवार में ही माना जाता है। पुष्पलाल सिंह जी ने विघटन के बारे में इस प्रकार बताया है।
"आज व्यक्ति नयी परिस्थितियों में स्वयं टूटते हुए अपने परिवेश से जूझ रहा है। व्यक्ति का मन अकुलाहट, कुंठा और अकेलेपन को अभिव्यक्त करता है। आज का व्यक्ति नये मानवीय दृष्टिकोणों और आयामों की तलाश करता है। संयुक्त परिवार के विघटन तथा नयी पुरानी पीढ़ी के संघर्ष से बनती नयी मूल्य मर्यादा का संकेत समकालीन कहानी में है।''¹
हर विषय में कालानुसारण बदलाव का आना सहज है। उसी प्रकार परिवारों के रिश्तों में बदलाव सीमा पार करने के बाद विघटन की ओर जा रही है। दाम्पत्य जीवन में दरार पारिवारिक विघटन का कारण बनता है। पारिवारिक संबंधों की शिथिलावस्था का बाहरी रूप है पारिवारिक विघटन । परिवार अनेक कारणों से टूटते हैं। इन कारणों को सूक्ष्म और गम्भीर रूप से रवीन्द्र कालिया जी ने कहानियों में चित्रण किया है।
आदमी शादीशुदा होने पर भी पर पुरुष या पर स्त्री को अपनी वासना दृष्टि से चाहना समाज में एक मामूली विषय बन गया है। एक परिवार का पुरुष या स्त्री मान्य पारिवारिक व्यवस्था और कानून के विरुद्ध अन्य पुरुष या स्त्री से स्थापित यौन संबंध को अवैध संबंध कहते हैं। इसका प्रभाव परिवार की हर कोने पर पड़ती है। तदनुसार परिवार टूटने की हालत आसानी से उत्पन्न होती है। यौन कुंठा, ऐयाशी, स्वार्थपरता, सुख जीवन भोगने की लालसा आदि अवैध संबंध रखने का मूल कारण है।
रवीन्द्र कालिया जी ने 'सबसे छोटी तस्वीर' कहानी में आज का युवा वर्ग उस सामाजिकता को भी स्वीकार करना नहीं चाहता जो उसकी सहज संवेदनाओं के प्रकटीकरण में बाधा उत्पन्न करती है। यह पीढ़ी उस जीवन और जगत को प्रतिकलित करती है जिसमें वह साँस लेती हैं और पलती है। प्रस्तुत कहानी में प्रेमी-प्रेमीका अपने प्रेम के पहले दिनों में ही बिना एक दूसरे के बार में जानते हुए शारीरिक संबंध बनालेते हैं। क्यों कि दोनों कामुकता के भूखे थे। इसी कारण वे प्रेम और आकर्षण का अंतर न जाने ही एक दूसरे के नजदिक आजाते हैं। वे ये नहीं जान पाते हैं कि, वे दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं या नहीं। इस का वर्णन कहानीकार के शब्दों में
"इससे पहले उस लड़की को देखकर उस लड़के ने कभी नहीं सोचा था कि वे इस तरह अचानक एक दिन बगैर किसी लम्बी-चौडी भूमिका के, एक ही खाट पर इतने पास आजाएंगे। इस लड़की ने भी नहीं सोचा था। वह बात-बात पर शर्मानेवाली दुबली-सी लड़की थी। वे बसन्त के शुरु के दिन थे और बसन्त के शुरु के दिनों में प्रेम करना दोनों के लिए नया अनुभव था। उनका विश्वास था कि ऐसा केवल प्रेम के अंत में ही होता है मगर यह प्रेम की एक ऐसी शुरुआत थी, जो उन्हें अविश्वसनीय भी लगती थी और सहज भी। उन्होंने पाया, बाद में स्वीकार भी किया कि वे दोनों भूखे थे। लड़के ने तो जिज्ञासा में पूछ भी लिया 'डू वी लव ईच अदर"²
स्त्री-पुरुष विवाह से पूर्व संबंध बनाये रखना हमारी संस्कृति के विरुद्ध है। यह पाश्चात्य सभ्यता का अंधा अनुकरण है। इससे हमारा समाज विनाश की ओर जायेगा।
निष्कर्ष
रवीन्द्र कालिया का कथालेखन ई. सन् 1960 के दौर से प्रारंभ होकर आजतक अबाधित गति से अपनी अलग पहचान बनाने में सक्षम रहा है। युग की अनुभव परम्परा को प्रस्तुत करने के लिए रवीन्द्र कालिया ने अपनी कहानियों में कथानक और शिल्प की दृष्टि से भी अनेक प्रयोग किए हैं। रवीन्द्र कालिया 'अकहानी' आन्दोलन के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। अतः उनकी कहानियों में कथात्मकता की जगह कथात्मकता का आग्रह है। सामाजिक सन्दभों की समानता के अतिरिक्त उनकी कहानियों में मानसिक चेतना स्तर, रचना दृष्टि और रचना प्रक्रिया में अनेक रूपता है।
रवीन्द्र कालिया के कथा साहित्य की वास्तविक कलात्मकता उनके द्वारा चित्रित पात्रों की सामाजिक एवं आर्थिक दशा को निरूपित करती है।
रवीन्द्र कालिया की रचना प्रक्रिया ने हिन्दी साहित्य को एक नयी जीवन दृष्टि दी है। इनकी रचनाओं में समस्त युग अपनी विसंगत परिस्थितियों की झाँकी प्रस्तुत करता हुआ व्यवस्था और समाज की रूढ़ियों को तोड़कर कुछ नया संदेश देता है। साहित्य मानव जीवन के यथार्थ पर ही टिका रह सकता है। बशर्ते उसे नित-नए रूपों में विविध विधाओं के माध्यम से मानव के लिए कल्याणकारी सिद्ध किया जाए।
मानव जीवन के सन्दर्भ में मूल्य मनुष्य की वह सांस्कृतिक पूंजी है जिसके आधार पर समाज विशेष का स्तर जाना जा सकता है। ये मूल्य सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिए वैचारिक इकाई का निर्माण करते हैं। अतः मूल्य चेतना के अन्तर्गत रवीन्द्र कालिया की कहानियों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान पाया जा सकता है। रवीन्द्र कालिया के कथा साहित्य में नारी मन की रहस्यपूर्ण गुत्थियों को सुलझाने के लिए 'डरी हुई औरत', 'नौ साल छोटी पत्नी' एवं 'पत्नी' कहानियों का समावेश किया गया है। और 'रात के घेरे : नन्हें पाँव' कहानियों में बालक जितने की मानसिकता को व्यक्त किया गया है।
रवीन्द्र कालिया की कहानियों में पुरुष की आश्रिता नारी से लेकर स्वावलंबी एवं कामकाजी महिलाओं के व्यक्तित्व को स्थान दिया गया है। उन्होंने पाया कि कई समस्याएँ हल हो जाने के बाद और नारी सुधार आन्दोलनों के पश्चात भी नारी विषयक कुछ समस्याएँ हैं जो आज भी अनुत्तरित हैं। अतः नारी जीवन की विडम्बनाओं एवं आधुनिक नारी की परिवर्तित मानसिकता के सन्दर्भ में 'नौ साल छोटी पत्नी', 'पत्नी', 'डरी हुई औरत', 'कोजी कार्नर', 'चाल' एवं चकैया नीम जैसी कहानियों माध्यम से रवीन्द्र कालिया समाज के नारी विषयक दृष्टिकोण के प्रति बदलाव की अपेक्षा रखते हैं।
रवीन्द्र कालिया की कहानियाँ आधुनिक भारतीय समाज का सच्चा दर्पण है, जिसमें युगीन परिवेश की वास्तविकताओं को आम लोगों की जिन्दगी से जोड़कर देखा जा सकता है।
संदर्भ;
1. साठोत्तरी हिन्दी कहानी - के. एम. मालती - पृ. सं. 230
2. सत्ताईस साल की उमर तक सबसे छोटी तस्वीर - रविन्द्र कालिया
- पोरिका नागमणि
ये भी पढ़ें; आधुनिक समाज में नारी चेतना : कथा साहित्य के संदर्भ में