Scientific and technical literature and translation process
वैज्ञानिक एवं तकनीकी साहित्य और अनुवाद प्रक्रिया
आधुनिक युग में अनुवाद मनुष्य की सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जरुरत के साथ ही कार्यालयीन कामकाज की अत्यावश्यक शर्त भी बन गया है। देश-विदेश के विभिन्न क्षेत्रों में फैले मनुष्य के साथ जीवन के अनेकविध धरातल पर वह एक दूसरे से सतत् संपर्क बनाकर व्यक्तिगत तथा सामूहिक संबंधों की कड़ी को मजबूती से जोड़ना चाहता है। अतः भाषाई स्तर पर सम्प्रेषण व्यापार हेतु अनुवाद एक अहम् आवश्यकता के रुप में उभरकर सामने आया है। अनुवाद का प्रयोजन संकुचित कटघरे से हटकर इस वैज्ञानिक युग में बहुआयामी परिप्रेक्ष्य में उजागर हो रहा है। विश्वपटल पर दो विभिन्न भाषा-भाषी व्यक्तियों की संस्कृतियों से संपर्क की लालसा रखनेवाले व्यक्तियों अथवा समुदायों की संपर्क तथा सम्प्रेषण व्यवस्था के बीच में अनुवाद मध्यस्थता का महत्वपूर्ण कार्य करता है।
ज्ञान-विज्ञान के नए-नए क्षेत्र आधुनिक युग में जहाँ खुल रहे हैं वहाँ अनुवाद विज्ञान की महत्ता भी स्वयंसिद्ध होने लगी है। अनुवाद केवल एक प्रक्रिया अथवा रुपांतरण का माध्यम ही नहीं बल्कि एक अर्जित कला है। एजरा पाउण्ड ने अनुवाद को साहित्यिक पुनर्जीवन माना है। नाईड़ा अनुवाद को विज्ञान के रुप में प्रतिष्ठित करने के पक्ष में हैं। इस प्रकार कुछ विद्वान अनुवाद को कला मानते हैं तो कुछ विज्ञान। अन्य कुछ अनुवाद को शिल्प की श्रेणी में रखते हुए इसे सिर्फ कौशल ही मानते हैं। जो साधन देश विदेशों की क्रियाओं को विपरित दिशाओं में खड़ा करके उनकी भाषा, संस्कृति तथा समाज में अलगाव की स्थितियाँ पैदा करते हैं उन्हें अनुवाद विज्ञान आपस में जोड़कर प्रगति की दिशा की ओर मोड़ देता है। अतः अनुवाद समन्वय की कला है। उसी प्रकार अनुवाद विज्ञान अलगाव या विध्वंस का विज्ञान नहीं बल्कि एकता और नवनिर्माण का विज्ञान है।
यह अनुवाद प्रक्रिया वह है जो स्त्रोत भाषा में व्यक्त वैज्ञानिक एवं तकनीकी सामग्री को लक्ष्य भाषा में इस तरह ढालता है कि मूल की सूचनाएँ सुरक्षित रहें। साहित्यिक अनुवाद में भाव प्रमुख होते हैं किंतु वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद में विचार। साहित्यिक अनुवाद में प्रायः 'क्या' से ज्यादा 'कैसे' का महत्व है तो वैज्ञानिक में 'कैसे' से ज्यादा महत्व 'क्या' को दिया जाता है। अर्थात वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद में विषय मुख्य है और शैली गौण। वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद में अनुवादक विषय का सम्यक जानकर होना चाहिए तभी इस प्रकार का अनुवाद का कार्य सफल हो जायेगा। इस प्रकार के अनुवाद में सूचना, संकल्पना तथा तथ्य महत्वपूर्ण होता है। अतः इसके लिए विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अनुवादकों की आवश्यकता होती है। हमारे देश में दिल्ली में स्थित वैज्ञानिक अनुवादकों का संगठन (ISTA) और यूरोप में भी ऐसे संगठन हैं जो अपने पास इस प्रकार के विशेषज्ञ अनुवादकों की सूची रखते हैं, तत्सम्बन्धी अधिक जानकारी रखते हैं।
भारत देश में वैज्ञानिक एवं तकनीकी अनुवाद की परंपरा बहुत पुरानी नहीं है। इस दिशा में स्वतंत्रता के बाद ही गंभीर प्रयास किए गए हैं। इन विषयों के लिए शब्दावली निर्माण का कार्य अत्यंत अनिवार्य तथा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैज्ञानिक, तकनीकी शब्दावली निर्माण में लगी कई संस्थाएँ विशेष सराहनीय भूमिका निभाती रही है, फिर भी अभी इस क्षेत्र में बहुत संभावनाएँ शेष हैं। शब्दकोष, शब्दसूची तथा व्याकरण की दिशा में जो भी उपयोगी कार्य होगा, वह इन विषयों के अनुवाद में सहायक सिद्ध होगा।
वैज्ञानिक तथा तकनीकी अनुवाद की उपादेयता इस बात में है कि विदेशी भाषाओं में लिखित अनुसंधानपरक तथा संदर्भ ग्रंथों के अनुवाद से भारतीय भाषाओं में विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक साहित्य की उपलब्धि होने से देश की वर्तमान तथा भावी पीढ़ी को विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकेगी। साधारण ज्ञान क्षेत्र के विषयों से भिन्न विशेष प्रकार का ज्ञान होने के कारण अनुवादक को जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, अन्य विज्ञानों तथा गणित विज्ञान आदि विषयों की सामग्री के अनुवाद के समय विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। विज्ञान विषयक सामग्री का अनुवाद करनेवाले अनुवादक को विशेष अध्ययन तथा परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। विज्ञान तथा तकनीकी के विभिन्न विषयों की अंग्रेजी में उपलब्ध विविध सामग्री का हिंदी में सही, सटीक सफल तथा सोद्देश्य अनुवाद की प्रक्रिया से गुजरने के लिए कुछ बिंदुओं का ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे -
1. अनुवादक को अंग्रेजी तथा हिंदी भाषा के प्रत्येक स्तर की संघटना के साथ-साथ दोनों भाषाओं की विज्ञान विषयक शब्दावली का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
2. अनुवादक के पास अनुवाद्य विषय से संबंधित दोनों भाषाओं के वैज्ञानिक और पारिभाषिक शब्दों की जानकारी और अच्छे अंग्रेजी हिंदी द्विविभाषिक शब्दकोश अवश्य होने चाहिए।
3. अनुवाद्य विषय वस्तु के साथ-साथ अनुवादक को यह ध्यान में रखना भी अत्यावश्यक है कि उस के अनुवाद का पाठक किस वर्ग का है। पाठक वर्ग के अनुरुप ही अनुवाद की भाषा तथा शैली का चयन किया जाना बहुत जरुरी है, क्योंकि मौलिक लेखन की भाँति ही अनुवाद में भी सहजता रहना चाहिए।
4. विज्ञान के विषयों से संबंधित विविध प्रकार की अनुदित तथा पुनरीक्षित सामग्री में एकरुपता, स्तरगत तथा शैलीगत समानता और समन्वय बनाए रखने के लिए कभी-कभी संपादक द्वारा भी उस अनुवादक का संपादन कराया जाता है।
5. अनुवादक को यह बात सदैव याद रखनी चाहिए कि वह स्वतंत्र लेखक नहीं है। अतः वह अनुवाद्य सामग्री में न तो कुछ जोड़ सकता है और न उसमें से कुछ छोड़ सकता है और न उपलब्ध सामग्री में किसी रुप में तोड़-मरोड़ कर सकता है। ऐसा करना असंगत तथा अनुचित जान पड़ता है।
6. विज्ञान सामग्री के अनुवादक को अपनी ज्ञान- वृद्धि हेतु अथवा अनुवाद कार्य में यश हासिल करने के लिए प्रतिदिन अंगरेजी तथा हिंदी में उपलब्ध विज्ञान साहित्य का अध्ययन अवश्य करते रहना चाहिए। ऐसा करने से उसे अनुवाद • कार्य में विभिन्न प्रकार की सहायता मिलेगी।
7. अनुवाद की भाषा शैली में यांत्रिकता के स्थान पर प्रवाहपूर्णता तथा सजीवता झलकनी चाहिए। भाषा की शुद्धता, शुद्ध वर्तनी तथा विराम चिह्नों का शुद्ध प्रयोग भी अनुवाद की परम् आवश्यकता है।
8. स्त्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की व्याकरणिक संरचनाओं की संपूर्ण जानकारी अनुवादक को होनी चाहिए।
इस प्रकार वैज्ञानिक तथा तकनीकी साहित्य का अनुवाद करते समय उपर्युक्त बिंदुओं को ध्यान में रखकर अनुवाद करना पड़ता है। इस अनुवाद में कलापरक नहीं बल्कि वस्तुपरक दृष्टि से कार्य अपेक्षित है। कलात्मकता के बदले वस्तुनिष्ठता अनिवार्य है। इसमें भावों की जगह तथ्यों तथा विचारों से लगाव अपेक्षित है। इसमें रसात्मकता के स्थान पर स्पष्टता तथा बोधगम्यता जरुरी है। अनुभूतिपरकता तथा वैयक्तिकता की अपेक्षा सूचनात्मकता तथा निर्वेयक्तिकता आवश्यक होती है। अलंकारिकता तथा रहस्यात्मकता की अपेक्षा अनालंकारिकता और निसंदिग्धता जरुरी है। इसमें भावानुवाद ताज्य है और शब्दानुवाद अपेक्षित है। इसमें पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग अपेक्षित है ध्वन्यात्मक या व्यंग्यात्मक शब्दावली का नहीं। हमारे देश में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली एवं पारिभाषिक शब्दावली निर्माण का प्रारंभिक कार्य तो पूरा हो चुका है। किंतु अब विज्ञान की भाषा अन्तर्राष्ट्रीय होती जा रही है। अतः इस दिशा में सभी देशों को पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण में उदार नीति अपनानी पड़ेगी तब जाकर वैज्ञानिक तथा तकनीकी अनुवाद कार्य में अधिक सुविधा होगी। परिणामस्वरुप अनुवाद प्रक्रिया अच्छी तरह से संपन्न हो जायेगी।
संदर्भ एवं आधार ग्रंथ सूची ;
1. प्रयोजनमूलक हिंदी डॉ. लक्ष्मीकांत पाण्डेय / डॉ. प्रमीला अवस्थी
2. प्रयोजनमूल हिंदी सिद्धांत और प्रयोग - डॉ. दंगल झाल्टे
3. प्रयोजनमूल हिंदी अधुनातन आयाम - डॉ. अंबादास देशमुख
4. प्रयोजनमूल हिंदी के आधुनिक आयाम - डॉ. महेंद्रसिंह राणा
- डॉ. नवनाथ गाड़ेकर
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