नासिरा शर्मा के कथा साहित्य में सामाजिक चेतना

Dr. Mulla Adam Ali
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Social consciousness in the fiction of Nasira Sharma

Social consciousness in the fiction of Nasira Sharma

नासिरा शर्मा के कथा साहित्य में सामाजिक चेतना

नासिरा शर्मा जी के जीवन में उनकी चेतना को जगाने और विचारों को दूर तक ले जाकर कई तरह के जीवन रसों का आस्वाद करवाने में उनके वैवाहिक जीवन का योग रहा है। आपका विवाह ब्राह्मण कुल में हुआ। एक मुस्लिम लड़की से ब्राह्मण का विवाह उन्हें एक और जातिगत संकीर्णताओं और भेदभाव से परे जीवन और जगत की विराट भावधारा से जोड़ता है। तो वहीं दूसरी ओर कट्टरपंथियों द्वारा खींची गई सीमित परिधि और बंधन के भेदभाव से संघर्ष क्षमता को भी विकसित करता है। "राष्ट्र और मुसलमान" पुस्तक का "जायजा तीसरी आँख से सरहद के आर पार का" संस्मरण इन के जीवन की खट्टी-मीठी, तीखी, नमकीन यादों की झलकिया है।

कथा साहित्य के परिवेश में नासिरा जी सामाजिक विषयों को मुख्य आधार बनाकर समाज के मूल्यों रीति रिवाजों, अंधविश्वासों, स्त्री शोषण, धार्मिक, राजनीतिक आदि समस्याओं पर चेतना प्रधान की है। नासिरा जी ने "ठीकरे की मंगनी" में महरुख के माध्यम से जहाँ बाल विवाह और धर्म रुढियों के संबन्ध में सार्थक दिशा निर्देश है, वहीं दूसरी ओर जीवन के व्यावहारिक एवं सशक्त रुप को भी सम्मुख रख जारी का स्वयं का समाज सापेक्षता में देखते का समर्थन किया गया है और साथ ही मुस्लिम समाज के दकियानूसी तौर तरीके धर्म की बेड़ियाँ, रीति रिवाज और अंधविश्वास नारी के जीवन को कितना गहरा प्रभावित करता है, इसे "ठीकरे की मंगनी" में नायिका महरुख के जरिए सम्प्रेषित किया गया है उसी प्रकार नासिरा जी मानव को आदर्श और मूल्यों के पथ पर चलने का संदेश देती है, और अपने इस मंतव्य को "अक्षयवट" के कथा नायक जहीर के चरित्र के रुप में प्रतिबिंबित किया है। उपन्यास के अन्त में जहीर का अनाथ बच्चों की शिक्षा और संरक्षण के लिए संतान की परवरिश की जिम्मेदारी स्वीकार करना, विवाह न करके समाज सेवा का संकल्प लेना सामाजिक स्थिति को चेतना प्रधान करती है।

भौतिकवादी सुख समृद्धि की चाह में आज युवा पीढी प्रस्त है। इस मुद्दे पर भी नासिरा जी अपनी रचना "जीरो रोड" में ईयाज और पुल्लन मियाँ के माध्यम से अभिव्यक्त की है। गाँव के टूटे घर की मरम्मत में अपने पुत्र की राह जोहते बूढे पुल्लन मियाँ आज के अभिभावकों और वृद्धों का यथार्थ है। अभिभावकों को परित्याग करके महानगरीय सुख सुविधाओं को भोगने में लीन नवयुवकों को अपने उत्तरदायित्वों को जगाकर उन्हें चेतना दी है। नैतिक और आदर्श सामाजिक संरचना के निर्माण में परिवार के बुजुर्गों की भूमिका को "अक्षयवट" में सांकेतिक किया गया है। बालक के सामाजिक गुणों का विकास करके उदारता, सेवा, आज्ञाकारिता, प्रेम, सद्भावना का पाठ पढाकर समाज की चुनौतियों के लिए तैयार करना आदि बातों को "अक्षयवट" के किरदार दादी फिरोज जहाँ पोते जहीर के व्यक्तित्व का एक दृढता और संघर्ष क्षमता को चेतना दी है।

नासिरा शर्मा जी "शाल्मली" उपन्यास की नायिका शाल्मली के द्वारा नारी जाति की सामाजिक समस्याओं को केन्द्रित किया। आधुनिक युग की नयी चेतना की प्रतीक शाल्मली एक ओर शांति संयम, धैर्य और समझदारी से पारिवारिक विसंगतियों के मध्य तटस्थ रहकर समस्या समाधान का उपक्रम करती है। नासिरा जी - स्त्री मुक्ति की भावभूमि तैयार करती है जिसमें स्त्रियों का - संघर्ष पुरुषों के प्रति नहीं उसके मर्दवादी वर्चस्व और अन्याय के खिलाफ है। पुरुषवादी सोच और मर्दाना वर्चस्वाद की सत्ता को तोड़ने के लिए स्त्रियों के संगठित प्रयास की जबरदस्त कथा है दूसरा कबूतर। जिस में "शहाब" का धोखे से दो विवाह करना, सबिया और रुकड्या दो पत्नियों पर उसका सच खुल जाना, दोनों बीबियो का एकजुट होकर तलाक लेना, सबिया द्वारा अपने दूसरे विवाह का निमंत्रण शहाब को भेजना, मर्दवादी सोच के विरुद्ध आधुनिक नारी का युद्ध है। साथ ही मुस्लिम महिलाओं में जागती चेतना है इन के सभी लेख औरतों पर ढ़ाये जाने वाले जुल्मों और नारी विषयक पीड़ा, लाचारी, कुंठा और निरुपायता का अंकन कर रचना को मार्मिक बनाती है वही वे पुरुष सोच को भी समाजहित में अनुकूलित करने को चेतना देती है।

समाजिक वातावरण के परिवेश में नासिरा जी जीवन में पानी के महत्व बताते हुए पानी की समस्या पर 'कुइयाँजान' के उपन्यास के नायक डाक्टर कमाल द्वारा गावों का भ्रमण, जल की समस्या और जल से होनेवाले रोगों के बारे में लोगों को जागरुक करना, साथ ही जल से मानव के संबन्ध को दर्शाया है, उसी प्रकार खुदा की वापसी, 'इब्ने मरियम', 'शामी कागज', 'संगसार', 'इन्सानी नस्ल' आदि कथा संग्रहों में उन्होंने मानविय अनुभूतियों और प्रवृत्तियों के प्रकटीकरण में सामाजिक समस्याओं का अंकन किया है जिस में भूखमरी, निर्धनता, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, शराबखोरी, कालाबाजारी आदि दुर्दमनीय समस्याओं को अपने रचनाओं के पात्राओं द्वारा चेतना देने की स्पष्ट भूमिका निभाई है।

- शेक सादिख पाशा

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