Hindi Day Special : Hindi's growing dominance in the world
राष्ट्रीय हिन्दी दिवस विशेष : हिन्दी का विश्व में बढ़ता वर्चस्व
विश्व भाषाओं के संबंध में समय-समय पर शोध एवं सर्वेक्षण होते रहते हैं। आरम्भ में चीनी अथवा मंदारिन भाषा को विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा के रूप में जाना जाता था। किंतु नवीन सर्वेक्षण रिपोर्ट में स्थिति इससे सर्वथा भिन्न मिली है। विश्व स्तर पर हिंदी की स्थिति के विषय में यह शोध कार्य सन् 1981 से आरंभ हुआ था तथा 1997 में इसकी शोध रिपोर्ट भारत सरकार राजभाषा विभाग की पत्रिका 'राजभाषा भारती' में "हिंदी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है" नामक शीर्षक से प्रकाशित हुई। इसके उपरांत 2005 में इसकी विस्तृत रिपोर्ट विश्वभर से अनेक समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट का संपूर्ण विश्व में स्वागत हुआ तथा इस शोध को सभी विद्वानों की मान्यता प्राप्त हुई। विश्व के अधिकांश विद्वानों तथा भाषाविदों ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया कि विश्व में हिंदी जानने वालों की संख्या सबसे अधिक है तथा मंदारिन दूसरे स्थान पर है। यह शोध कार्य भारत सरकार के अधिकारियों के पास पंजीकृत है।
विश्व के इंटरनेट आदि प्रचार माध्यमों से इस शोध के प्रकाशित होने पर अनेक विद्वानों ने इसकी सराहना की तथा इसकी प्रमाणिकता एवं मान्यता को स्वीकार करते हुए इसे अंगीकार किया। इस शोध ने यह सिद्ध कर दिया कि हिंदी अत्यंत व्यापक एवं लोकप्रिय है। हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोली व समझी जाने वाली भाषा है तथा यह विश्व की सबसे लोकप्रिय भाषा है। हिंदी विश्व के 40 से भी अधिक देशों में बोली तथा समझी जाती है। वस्तुतः इक्कीसवीं शताब्दी में हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। जहाँ एक ओर हिंदी को विज्ञान और प्रौद्योगिकी संबंधी कोषो से समृद्ध किया गया है, वहीं दूसरी ओर उसे सूचना और प्रौद्योगिकी के योग्य भी बनाया गया है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सूचना और प्रौद्योगिकी का शिक्षण प्रशिक्षण हिंदी तथा जनपदीय भाषाओं के माध्यम से दिया जाए जिससे कि लोकोन्मुखी प्रौद्योगिकी का विकास हो सके।
भारत के सभी प्राचीन ग्रंथ-वेद-पुराण, उपनिषद्, गीता, रामायण तथा महाभारत आदि ऐसे समृद्ध गंथ हैं जो सत्य और ईश्वर का आत्मा से साक्षात्कार कराते हैं तथा मानव में सद्गुणों की स्थापना करके उसे देवतुल्य बनाते हैं। हमारे पूर्वज राम, कृष्ण, बुद्ध, नानक आदि ऐसे महापुरुष हैं जो मानवता का संदेश देकर इस धरा को स्वर्ग बनाते हैं। उन्हीं के आदर्शों से अभिभूत होकर सूर, तुलसी, कबीर, रसखान तथा रहीम आदि कवियो ने मानवता, सद्भावना तथा एकता का संदेश हिंदी में दिया है।
हिंदी एक व्यापक भाषा है जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है। जिसमें संपूर्ण भारत की आत्मा बोलती है हिंदी ही भारतीय संस्कृति की पोषक तथा रक्षक है। उसी के माध्यम से काव्यानंद, ब्रह्मानंद, सहोदरम की उक्ति चरितार्थ होती हैं। संस्कृत की पुत्री होने के कारण हिंदी उक्त सभी गुणों से परिपूर्ण है जिनसे वह भारत की आत्मा का सफलतापूर्वक प्रतिनिधित्व करती है ओर भारत की अंतरभूत आत्मा बन कर विभिन्न मतभेदों के होते हुए भी उसे एकता के सूत्र में बाँधे हुए है। 'सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया' का भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र उद्घोषित करते हुए हिंदी उत्तर में धुर हिमालय से लेकर दक्षिण में हिंद महासागर तक तथा पूर्व में जगन्नाथ पुरी से लेकर पश्चिम में द्वारिका तक सबको एकता के सूत्र में पिरोए हुए है।
हिंदी सहज, सरल और अभिव्यक्ति की मधुर भाषा है इसमें हमारी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने की पूर्ण सामर्थ्य एवं लयबद्धता है। हिंदी ने अपनी मौलिकता एवं सुबोधता के बल पर ही राष्ट्र की संस्कृति और साहित्य को जीवंत बना रखा है। अपने इसी विशिष्ट गुण के कारण वह अनेकता के होते हुए भी राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधे हुए है। अनेकता में एकता भारत का आश्चर्यजनक सत्य है।
भारत एक बहुभाषी देश है। भारतीय संविधान के अनुसार यहाँ 22 भाषाएँ, 10 लिपियाँ तथा 165 बोलियाँ प्रचलित हैं। जिनमें हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। इसे देश के हर कोने में बोला तथा समझा जाता है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में "ये भाषाएँ शतदल कमल की पंखुडियों जैसी हैं ओर हिंदी इसकी मध्य मणि है जो अद्वितीय है।" प्राचीन काल में जिस प्रकार संस्कृत, पाली, प्राकृत सम्पर्क भाषा रही है आज उसी भूमिका में हिंदी है। केवल देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी हिंदी के प्रति ललक बढ़ रही है। मारीशस, फिजी, सूरीनाम, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा आदि तो वृहतर भारत के अंग हैं ही जहाँ हिंदी का व्यापक प्रचलन है। किंतु विश्व के 137 विश्वविद्यालयों में हिंदी का शिक्षण होता है। कनाड़ा से दो पत्र हिंदी में निकलते हैं तथा चीन से भी एक पत्र प्रकाशित होता है। विदेशों के बाजारों में हिंदी का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है। वहाँ हिंदी पुस्तकों की अच्छी बिक्री होती है। हिंदी पुस्तकों का मुद्रण प्रकाशन भी विश्व स्तर का हो रहा है। लंदन में हिंदी पुस्तकों की प्रदर्शनी ने हिंदी को और अधिक लोकप्रिय बना दिया है।
भारत के अतिरिक्त सीमा पर के अनेक देशों में हिंदी का अच्छा प्रचार-प्रसार है। मारीशस तथा नेपाल आदि देशों में प्रचुरता से हिंदी बोली तथा समझी जाती है।
अतः हिंदी अब केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य देशों में भी लोकप्रियता प्राप्त कर अपना वर्चस्व बढ़ा रही है।
- डॉ. मित्रेश कुमार गुप्त
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