Origin and Importance of Hindi Day: Analytical Study
हिंदी दिवस का उद्भव और महत्व विश्लेषणात्मक अध्ययन
भारत उत्सवप्रिय देश है। अनेक महान नेताओं के जन्मदिनों को उत्सव के रूप में मनाने की प्रथा भारत में है। जैसे "शिक्षक दिवस" श्री सर्वेपल्लि राधाकृष्ण के नाम और "बालदिवस" श्री जवाहरलाल नेहरू के नाम। कुछ विशिष्ठ दिनों को उत्सव के रूप में मनाने की प्रथा भी भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में चल रही है। जैसे 'स्वतंत्रता दिवस', 'संयुक्त राष्ट्र संघ अविर्भाव दिवस', 'विश्व पर्यावरण दिवस' आदि। इसी प्रकार भारत में अत्याधिक संख्या में बोली जाने वाली भाषा हिंदी को संविधान द्वारा राष्ट्रभाषा और राजभाषा के रूप में घोषणा किया गया। घोषणा करने वाला सुदिन सितंबर 14, 1949 है। इसी दिन को हर वर्ष 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है। हिंदी विश्व की अधिक संख्या में बोलने वाली भाषा है। महात्मा गांधी जी कहते थे कि हिंदी ही हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा बन सकती है। उन्होंने पूरे देश में हिंदी का प्रचार किया और हिंदी प्रचार सभाओं की स्थापना की। महान नेताओं के अंदोलनों के फलस्वरूप हिंदी की संविधान द्वारा राष्ट्रभाषा और राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। हिंदी हमेशा राष्ट्रीयता को प्रबल बनाने में सफल हुई है। इसलिए हर वर्ष हिंदी सीखने की आवश्यकता पर बल देने के लिए 14 सितंबर को भारत भर में हिंदी दिवस मनया जाता है।
भारत में प्रमुख रूप में आर्य परिवार एवं द्रविड परिवार की भाषाएँ बोली जाती है। आर्य भाषाओं में संस्कृत सबसे प्राचीन है। आर्य भाषाओं का विभक्त तीन कालखण्डों में किया गया है।
1. प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल (1500 ई. पू. से 500 ई. पू. तक)
2. मध्य भारतीय आर्यभाषा काल (500 ई. पू. से 1000 ई. पू. तक)
3. आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल (1000 ई. पू. से अब तक)
प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल में ऋग्वेद, रामायण, महाभारत आदि महाग्रंथ लिखे गये।
मध्य भारतीय आर्यभाषा काल में तीन भाषाएँ विकसित हुई।
1. पालि भाषा (ई. पू. से 1 ई. तक) पालि बौद्ध धर्म प्रचार की भाषा के रूप में प्रचलित थी।
2. प्राकृत भाषा (1 ई. से 500 ई. तक) प्राकृत में जैन साहित्य लिखा गया।
3. अपभ्रंश (500 ई. से 1000 ई. तक) अपभ्रंश अवहठ, अवहट्ट, अवहत्थ, देशभाषा, देशी भाषा आदि नामों से प्रचलित हुईं।
आधुनिक आर्यभाषाओं का विकास अपभ्रंश भाषा से हुआ। हिंदी भाषा का विकास भी अपभ्रंश से ही हुआ है। अतः हिंदी की जननी अपभ्रंश है। 1000 ई. तक आते-आते हिंदी बोलचाल की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गयी थी। स्पष्ट है कि हिंदी का आरंभ 1000 ई. से हुआ है। हिंदी भाषा का उद्भव और विकास का क्रम निम्न रूप में समझना आसान है।
वैदिक संस्कृत > संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश > हिंदी
आरंभिक हिंदी साहित्य रचनाएँ केवल काव्य रूप में लिखी गयी। इन रचनाओं की भाषा को अपभ्रंश कहा गया है तथा बोलचाल की तत्कालीन भाषा को 'देशभाषा' कहा गया है।
मध्यकाल में अवधी और ब्रजभाषा के रूप में विकसित हुई। अवधी और ब्रजभाषा हिंदी की उपभाषाओं के अंतर्गत आनेवाली बोलियाँ हैं।
'अवधि' में तुलसीदास जी ने महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की है।
सूफी कवियों द्वारा अवधी भाषा का प्रयोग अधिक किया गया है। ब्रजभाषा का प्रयोग काव्यभाषा के रूप में आरंभ हुआ जो दीर्घकाल तक हिंदी 'काव्यभाषा' के पद पर प्रतिष्ठित रही। सूरदास जैसे अष्टछाप कवियों ने अपनी रचनाएँ ब्रजभाषा में ही की।
खड़ी बोली हिंदी का मूलनाम 'कौरवी' है जो पश्चिम हिंदी के अंतर्गत आती है। साहित्यिक भाषा बनने के बाद 'खड़ीबोली' नाम से प्रचलित हुई।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषा के रूप में खड़ीबोली हिंदी का प्रयोग हिंदी साहित्य में पहले पहल भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा माना जाता है। इससे पहले भी रचनाएँ की गयी हैं। पर 'हिंदी गद्य के जनक' भारतेंदु जी को ही मानने में कोई संदेह नहीं है। इस प्रकार हिंदी भाषा का उद्भव और विकास प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल से आधुनिक भारतीय आर्यभाषा काल तक बदलते - बदलते अपना स्थान सुस्थिर कर लिया है।
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सक्रिय योगदान देने वालों में पण्डित मदन मोहन मालवीय, बालगंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, राजा राममोहनराय, लाला लजपतराय, बाबू राजेंद्रप्रसाद और काका कालेलकर जी के नाम प्रमुख हैं। विद्यालयों में हिंदी भाषा का प्रवेश कराने वाले व्यक्ति 'राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद' है। हिंदी के प्रचार व प्रसार में आर्य समाज और ईसाई मिशनरियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
1949 सितंबर 14 को भारत के संविधान में हिंदी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है। किन्तु बाधा का विषय ये है कि संविधान में ऐसा प्रवधान किया गया है कि अंग्रेजी भाषा में भी केंद्र सरकार अपना कामकाज कर सकती है। इस सुविधा के कारण सरकारी कार्यों में अब तक अंग्रेजी का ही प्रयोग किया जा रहा है।
संविधान में राजभाषा संबंधी अनुच्छेद भाग सत्रह के अध्याय एक में धारा 343 से 351 तक है।
भारत के अट्ठाईस राज्यों में से दस राज्यों में हिंदी ही राजभाषा बनी हुई है। वे इस प्रकार है - उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तरांचल। इनके अतिरिक्त अट्ठारङ्ग अन्य राज्यों में भी हिंदी भाषा को वहाँ के लोग समझ सकते हैं और बोल भी सकते हैं। इन राज्यों में भी हिंदी दूसरी भाषा के रूप में विद्यालय में पढ़ाया जाता है।
हिंदी भारत में बहुसंख्यक लोगों द्वारा प्रयोग की जा रही हैं। हिंदी में उच्चकोटि साहित्यिक रचनाएँ की गयी हैं और की जा रही हैं। हिंदी की लिपि देवनागरी है। देवनागरी लिपि सुस्पष्ठ और वैज्ञानिक है। एकता में वरिष्ट योगदान हिंदी का ही है। इसीलिए हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर विराजमान है। हिंदी भाषा का प्रयोग जनसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी में भी अधिकाधिक किया जा रहा है। निश्चित है कि हिंदी का भविष्य उज्जवल होगा।
हिंदी भाषा का विस्तार केवल भारत में नही बल्कि विश्वभर में हो गयी है। हिंदी की माँग भी बढ़ती जा रही है। इसी कारण हर वर्ष जनवरी 10 को 'विश्व हिंदी दिवस' मनाया जा रहा है। हिंदी की मान्यता को नजर में रखते हुए विद्यार्थियों को हिंदी सीखने के प्रति प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
पाठशालाओं में छात्रों को हिंदी के उपयोग और महत्व की जानकारी देना अध्यापकों का कर्तव्य है। छात्रों में हिंदी के प्रति रूचि उत्पन्न करना और हिंदी साहित्य की विशेषताओं से परिचित करवाना भी अध्यापकों का धर्म है।
भारत के कई विद्यालय, विश्वविद्यालय और हिंदी प्रचार सभा केंद्रों में 'हिंदी दिवस' का आयोजन हर वर्ष किया जाता है। कवि सम्मेलन व सेमिनार के द्वारा हिंदी प्रेमियों को प्रोत्साहन भी दिया जाता है।
हिंदी को राजभाषा के रूप में अमल में लाने के लिए और हर एक के दिल में हिंदी को बसाने के लिए हिंदी भाषियों एवं हिंदी प्रेमिकों का कर्तव्य बनता है कि हर वर्ष 'हिंदी दिवस' के कार्यक्रम आयोजन करें तथा हिंदी विकास में भाग लें।
हिंदी भाषा सीखें।.....
राष्ट्रीय भावना बढाएँ।
संदर्भ सूची:
1. भाषा विज्ञान - डॉ. भोलानाथ तिवारी
2. हिंदी भाषा उद्भव और विकास - प्रेम प्रकाश रस्तोगी
3. प्राकृत भाषाओं का उद्भव और विकास - नरेन्द्रनाथ
4. भारतीय आर्यभाषा और हिंदी - सुनीति कुमार चटर्जी
5. हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास - बाबू गुलाबराय।
- वै. शारदा
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