Paryavarn Bal Kahani
विश्व जल दिवस पर जल संरक्षण से जुड़ी बाल कहानी जल कंजूस : विश्व जल दिवस पर विशेष स्कूली बच्चों के लिए जल के महत्व को समझाती कहानी जल कंजूस। बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा द्वारा लिखी गई पर्यावरण केंद्रित बाल कहानी जल कंजूस पढ़े। गोविन्द शर्मा एक ऐसे अनुभवी बाल साहित्यकार है जो बाल मनोविज्ञान की गहरी और गूढ़ समझ रखते है। इसीलिए उनकी रचनाएं बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डालती रही है। गोविंद शर्मा की कहानी जल कंजूस भी बच्चों को जरूर पसंद आएंगी और वे इस कहानी के माध्यम से जल के महत्व को समझेंगे। कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध जल के लिए होगा, हालात को देखते हुए यह सही भी प्रतीत होता है। विश्व में बढ़ते जल संकट के प्रति मानव जाति यदि अभी भी नहीं चेती तो विस्फोटक स्थितियां पैदा होंगी। भविष्य की इस चिंता को लेखक ने 'जल कंजूस' कहानी में विद्यार्थियों और शिक्षक संवाद के माध्यम से बखूबी उकेरने का सफल प्रयास किया है।बच्चों में जल चेतना का बीजारोपण इस कहानी के जरिए जितना गहरा हो सकता है उतना असर जल बचत को लेकर दिए जाने वाले नारों का नहीं हो सकता।
जल ही जीवन हैं हिंदी बाल कहानी : जल के लिए समर्पित बाल कहानी : Bal Kahani Jal Kanjus
जल कंजूस
सर ने कक्षा में आते ही कहा-आज मेरा मूड पढ़ाने का नहीं है। आज हम सब इधर-उधर की बात करेंगे।
बच्चों ने ताली बजा दी। एक ने तो कह भी दिया- सर, आप बहुत अच्छे हैं। कई बार ऐसा होता है कि किसी सर या मैडम का पढ़ाने का मूड न हो तो वे हमसे बातें नहीं करते हैं, मोबाइल पर व्यस्त हो जाते हैं।
अच्छा बच्चो बताओ, कंजूस का मतलब क्या है?
सर, जो एक-एक पैसे को खर्च करने में संकोच करे।
क्या सिर्फ पैसों की ही कंजूसी होती है? क्या तुम्हारे घर में कोई ऐसा है जिसे कंजूस कहा जा सके ।
कोई नहीं बोला। राजू से नहीं रहा गया। वह बोला- सर मेरे....।
वह अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही कुछ बच्चे हँस पड़े। एक ने तो कह ही दिया- नहीं सर, न तो इसके पापा कंजूस हैं, न दादा। इसे जरूरत की हर चीज तुरंत दिलवा देते हैं। नई किताबें सबसे पहले इसके पास ही होती हैं।
सर, यह तो ठीक है पर मेरे दादा जल कंजूस हैं। पानी की एक-एक बूंद की परवाह करते हैं। हमारे घर के ऊपर बनी पानी की टंकी जब भर जाती है और ओवरफ्लो से पानी गिरने लगता है तो भागकर आते हैं और मोटर बंद कर देते हैं। गिरते पानी के नीचे कोई बड़ा बर्तन रख देते हैं। मैं ऐसा नहीं करता हूँ। क्योंकि मुझे यह गिरता पानी बड़ा अच्छा लगता है। कभी-कभी वहाँ चिड़िया आ जाती है और नहाने लग जाती है।. तब और भी मजा आता है। पर मुझे यूँ मजा लेते देखकर दादा जी डाँट लगाते हैं और कहते हैं- मोटर बंद करो। टंकी के भरते ही मोटर बंद कर दिया करो।
इसे तुम कंजूसी कहते हो? यह तो समझदारी है।
सर, इसका मतलब है मेरा पक्षियों को पानी पीते हुए देखना या उन्हें पानी में नहाते देखना गलत है।
बिल्कुल नहीं।
दोनों बात कैसे हो सकती है सर?
क्यों नहीं हो सकती। देखो, पानी को बचाना कभी भी कंजूसी नहीं कहलाता। पानी की सदा आवश्यकता रहती है। सभ्यताओं का विकास नदियों-झीलों के किनारे ही हुआ है। पानी के पास ही शहर बसते रहे हैं। पानी बनाया नहीं जा सकता, उसे बचाया जा सकता है। ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी पानी मिलता रहे।
ओवरफ्लो से या किसी और नल से बेकार बहते पानी को तुरंत रोक देना चाहिए। हाँ, पक्षियों को पानी पीते या उसमें नहाते देखना भी अच्छा खेल है। इसके लिये तुम अपनी छत्त पर किसी बड़े बर्तन में पानी भर कर रख दो। पेड़ की डाली पर पानी का बर्तन लटका दो। पक्षी वहाँ पानी पीने और पानी से खेलने जरूर आयेंगे। इसी तरह पक्षी और तुम्हारा दोनों का काम बन जायेगा। बेकार बहकर पानी का विनाश भी नहीं होगा। मैं खुद अपनी छत्त पर रोजाना एक बर्तन में पानी डालता हूँ, पक्षियों की खुशी देखकर खुश भी होता हूँ।
धन्यवाद सर, मैं फिजूल में ही अपने दादा जी को जल कंजूस कह रहा था। पर
क्या पक्षियों के लिये पानी रखने से वे मुझे रोकेंगे तो नहीं ?
सवाल ही पैदा नहीं होता। बल्कि खुश होंगे...। देख लेना।
सर की बातों में बच्चों को बड़ा मजा आ रहा था। अचानक एक बच्चा बोला- सर, आज तो आपने जो कहा था, उसका उल्टा किया है।
क्या ?
यही कि आपने पढ़ाने का मूड न होने का कह कर भी हमें पानी बचाने का पाठ पढ़ा ही दिया।
इस पर सर केवल मुस्कुराए और बच्चे हँसे।
- गोविन्द शर्मा
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