Chimpu Ban Gaya : A children's story that boosts children's confidence
सकारात्मक सोच पर आधारित बच्चों के लिए कहानी चिंपू बन गया : चिंपू बन गया छोटी सी कहानी से आप जानेंगे कि कितनी शक्ति होती है आत्मविश्वास में। चिंपू के माध्यम से बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा ने अपने बालकथा संग्रह हवा का इंतजाम में यह बात को स्पष्ट करते हैं कि बच्चों में अगर आत्मविश्वास होता है तो वह कुछ भी कर सकते हैं। आत्मविश्वास से बच्चे अपने आपको बेहतर बना सकते हैं वह जीवन को बेहतर बनाकर सफलता हासिल कर सकते हैं।
आत्मविश्वास का जादू बाल कहानी : Kids Stories
चिंपू बन गया
दस वर्ष का चिंपू स्कूल में पढ़ने के अलावा गली में, पार्क में फुटबाल खेलने लगा। पढ़ने में ठीक था। फुटबाल खेलने में वैसा नहीं हो सका, जैसे उसके दोस्त थे। उसके खराब खेल के कारण उसके दोस्त उसका मजाक भी उड़ाने लगे। उसे यह सब बहुत बुरा लगता।
फुटबाल खेलकर वह घर वापस आया। वह उदास था। क्योंकि गोल करते या बॉल को आगे ले जाते समय उसने कई गलतियाँ की थीं। उसके दोस्तों ने उसका खूब मजाक उड़ाया था।
माँ ने पूछा तो जैसे फट पड़ा। बोला, वहाँ सब मेरा मजाक उड़ाते हैं। पहले तो मुझे ही फिसड्डी वगैरह कहते थे। अब यदि कोई खिलाड़ी गलती करे तो कहते हैं - लो, यह भी चिंपू बन गया। आज तो हद हो गई। टीम के कैप्टन ने एक लड़के से कहा-अच्छा खेलना शुरू कर दो। तुम्हारी चिंपूगिरी ज्यादा दिन नहीं चलने वाली। यदि दुबारा चिंपू की तरह खेले तो टीम से निकाल दूँगा।
लगता है सारी खराबी इस चिंपू नाम में ही है। मेरा नाम ही खराब है। यदि चिंपू की जगह मेरा कोई और नाम होता तो मैं भी फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी बन जाता। किसने रखा मेरा यह नाम ?
चिंपू की माँ पहले तो हैरान रह गई। फिर संभल कर बोली-तुम्हारा यह नाम तो बहुत अच्छा है। तुम्हें फुटबाल अच्छी तरह आ सकता है यदि....। मुझे पता है। आप यही कहेंगी कि मैं खेल पर ध्यान दूँ। दूसरों का खेल देखकर कुछ सीखूँ। अभ्यास, अभ्यास और अभ्यास करूँ..... सब यही कहते हैं। खेलते सीखते मुझे कितने दिन हो गये, मुझे कुछ नहीं आता। बताइये, मेरा नाम चिंपू किसने रखा और क्यों रखा?
माँ बोली, ध्यान से सुनो। तुम्हारे नानाजी यहाँ आए थे। उस वक्त तुम बहुत छोटे थे। इतने छोटे कि तुम्हें बैठना भी नहीं आता था। लेटे रहते थे। एक दिन तुम्हारे नाना जी बोले-इसकी टांगें देखो, ऐसे चला रहा है, जैसे फुटबाल खेल रहा हो। जरूर यह बड़ा होकर फुटबाल का खिलाड़ी बनेगा। सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं, चैंपियन बनेगा।
उस दिन से सब तुम्हें प्यार से चैंपियन कहने लगे। सबको ही तुम्हारा चैंपियन नाम कुछ बड़ा लगने लगा। इसलिये उसे छोटा करके चिंपू कहने लगे। इसलिये मान लो, तुम्हारे नाम में कोई खराबी नहीं है।
उस दिन चिंपू अपने नाम के बारे में सोचता रहा। उसने फुटबाल खेलना नाहीं छोड़ा। धीरे-धीरे उसके खेल में निखार आता रहा। अब वह फुटबाल खेलकर सदा घर खुश-खुश आने लगा।
एक दिन वह कुछ ज्यादा ही खुश होकर घर आया। माँ ने पूछा तो बोला-अब
मुझे खूब अच्छी तरह से फुटबाल खेलना आ गया है। आज तो मेरा खेल देखकर हमारे एक सर ने कहा-वाह! चिंपू तो फुटबाल का चैंपियन है।
यह तो बहुत अच्छी बात है। अब किसी खिलाड़ी की गलती पर कोई यह तो नहीं कहता कि यह तो चिंपू बन गया?
कहते हैं, पर तब नहीं, जब कोई खिलाड़ी ठीक से खेल नहीं पाता। यह तब कहते हैं जब कोई बहुत अच्छी तरह खेलता है। गोल कोई करे मोनू, सोनू, हरि, अरि..... गोल होते ही दर्शक चिल्लाते हैं-वाह चिंपू, वाह चिंपू। फिर कहते हैं-अरे, यह तो चिंपू बन गया।
- गोविंद शर्मा
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