बच्चों की मजेदार हास्य हिन्दी बाल कथा : चूहागढ़ में चुनाव

Dr. Mulla Adam Ali
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Funny and Interesting Kids Stories in Hindi : Hasya Bal Katha in Hindi

Chuhaghad mein chunav bal kahani

प्रेरणादायक हास्य कहानी चूहागढ़ में चुनाव : कथा संग्रह हवा का इंतजाम से बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा की कहानी आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। चूहागढ़ में चुनाव बच्चों के लिए मजेदार कहानी और साथ ही शिक्षाप्रद भी है। छोटे बच्चों के लिए ये कहानी बहुत ही अच्छी लगती है, पढ़े कहानी और शेयर करें अपनों के साथ।

हास्य व्यंग्य बाल कहानी : हिंदी बाल कहानी संग्रह

चूहागढ़ में चुनाव

चूहागढ़। हमारे यहाँ के सरकारी गोदाम को यही नाम मिला। सरकारी गोदाम वही, जिसमें सरकार द्वारा खरीदा गया अनाज संग्रह किया जाता है। यहाँ बड़ी-बड़ी बोरियों में भर कर रखा जाता है। फिर जरूरत के अनुसार राशन की दुकानों पर या दूसरी जगह भेजा जाता है।

चूहागढ़ इसलिये कहा जाता है कि वहाँ असंख्य चूहे होते हैं। उनकी गिनती नहीं हो सकती है। कुछ चूहों ने भी इसे स्वीकार कर लिया।

चूहागढ़ में एक चूहे ने दूसरों की तरफ जोरो से चीं चीं की अर्थात् भाषण दिया-अब सब जगह चुनाव होने लगा है, अब हमें भी अपने यहाँ चुनाव करना चाहिए।

एक और चूहा बोला-लगता है, तुम्हें हमारा नेता होने का शौक हो रहा है। तुम चुनाव में खड़ा होना चाहते हो न?

अभी वह पहला चूहा कोई जवाब दे, उससे पहले ही एक और चूहा बोला, अभी से अपने आपको हमारा नेता मत मान लेना। यदि तुम चुनाव में खड़े हुए तो मैं तुम्हारे विरोध में चुनाव लडूंगा।

काफी देर तक चखचख हुई। फिर यह फैसला हुआ कि इन दोनों के बीच ही मुकाबला होने दिया जाए। पहले चूहे को नाम मिल गया-उल्टा । दूसरे को नाम मिला-पुल्टा।

एक दिन उल्टा-पुल्टा के बीच बहस हो गई। उल्टा ने कहा- मैं चुनाव इसलिए जीतना चाहता हूँ कि अपने चूहागढ़ में सुधार की लहर चलाऊँ। देखो, हम क्या करते हैं। जब-जब भी नये थैले अनाज के यहाँ आते हैं, इंसान से पहले हम अपने तीखे दाँतों से थैले को, बोरे को काटते हैं। उसमें से थोड़ा-सा अनाज खाते हैं, बहुत-सा खराब करते हैं। थैले को काटने से कितना ही अनाज नीचे गिर जाता है। यह नुकसान हम क्यों करते हैं? क्या मिलता है हमें इससे? इसलिए मैं यह सुधार अभियान चलाऊँगा कि हम थैले बोरे को न काटें।

फिर हम खाएँगे क्या?

जब ये थैले यहाँ रखे जाते हैं, तब इनमें से कितना ही अनाज निकल कर नीचे गिर जाता है। यह अनाज हमें खाना चाहिए। फिजूल में ही थैलों को काट कर उनका वजन कम न करें।

नीचे गिरा अनाज खाएँ? कभी इंसानों के घर में रहे हो क्या? उनसे कुछ सीखा है क्या? वे कभी भी नीचे गिरा खाने-पीने का समान नहीं खाते हैं। बासी भोजन भी नहीं खाते हैं। हम क्यों खाएँ नीचे गिरा अनाज ? उसे गिरा और बासी दोनों कह सकते हैं।

इंसान बासी किसे कहते हैं? पके हुए खाने को। कच्चे को नहीं कहते। उनके घरों में, दुकानों में दालें, चावल, गेहूँ आदि अनाज रहता है। कई-कई महीने तक रहता है। वे उसे धीरे-धीरे इस्तेमाल करते हैं। हम यहाँ अनाज ही खाते हैं। यह इधर-उधर बहुत पड़ा रहता है। हमने सुरंग यानी बिल भी ऐसे बना रखे हैं कि बाहर जाकर हरी पतियाँ, फलियाँ भी खाकर यहाँ वापस आ सकते हैं। फिर इंसानों को क्यों नुकसान पहुँचाएँ।

इंसान के बारे में कुछ जानते भी हो क्या? वह लोहे का पिंजरा रखता है। हमें घर, दुकान से पकड़ कर खुले में, झाड़ियों में या दूसरों के घरों में छोड़ देते हैं। हमें मरवाने के लिये बिल्लियाँ पालते हैं। बिल्लियाँ हमें छोड़ती है क्या?

अरे बिल्लियाँ कौनसी सुखी होती हैं। कुत्तों से अपनी जान मुश्किल से बचाती हैं। हमें तो अपना सोचना चाहिए। अपने से गलत काम क्यों हो, अपने विना मतलब किसी का नुकसान क्यों करें? इसलिये मैं तो चाहता हूँ कि बोरे-थैले न काटें। उन्हें बिना काटे ही हमें खाने के लिये बहुत अनाज मिल जाता है।

पुल्टा बोला-इंसान सदियों से हमारे खिलाफ रहा है। एक बार इन इंसानों में एक बीमारी फैल गई थी। उसे फैलाने के लिये हमें जिम्मेदार मान कर हमारे हजारों भाइयों की जान ले ली थी।

हाँ, यह एक बीमारी के कीटाणुओं की करतूत थी। हमसे इंसान को कोई बड़ा नुकसान होता है, तभी तो वह हमारी जान लेता है। इस धरती पर इन घरों, दुकानों, खेतों में रहने वाले यदि हम एक-दूसरे को कोई नुकसान न पहुँचाएँ तो कोई एक-दूसरे को मारने की सोचेगा भी नहीं।

पुल्टा बोला-वाह, इंसानों से उनकी तरह मौज मस्ती करना, अपने ही साम कर सोचना तो नहीं सीखा, कुछेक लोगों की तरह सोचना, बोलना सीख गया। देखना चुनाव में जीत मेरी होगी। क्योंकि मेरा तो नारा है-खूब खाओ, खूब बिखराजो। मैं ही जीतूंगा।

चुनाव हुआ। बहुत से चूहों ने अपना अपना वोट दिया। गिनती हुई तो पुल्टा हैरान रह गया। उसे सौ में से दस और उल्टा को नब्बे वोट मिले।

पुल्टा एक बार तो निराश हुआ। फिर मान गया कि ज्यादा वोटर अच्छा काम करना चाहते हैं, बस कोई करवाने वाला होना चाहिए।

पुल्टा ने कुछ सोचा और उल्टा के पास गया। उल्टा ने पूछा-बाह, बधाई देने जाये हो, धन्यवाद ।

ठीक है, अब मेरी बात सुनो। तुम्हें सी में से नब्बे ने सही माना है। अब में भी सही मान गया हूँ। जो नौ हैं उन्हें हम दोनों मिलकर मनायेंगे। तुमने बहुत अच्छी बातें कहीं हैं, अपने घोषणा-पत्र में लिखी है। एक मेरी तरफ से जोड़ लें कि हम चूहे अब यहाँ, वहाँ, खुले में शौच नहीं करेंगे। इसके लिये कुछ स्थान निश्चित करेंगे। हमारे शौच से ही अनाज दूषित होता है, जब हम किसी के लिये नुकसान पहुँचाने वाले नहीं होंगे तो वह हमें क्यों मारेंगे।

वाह, मैं तुमसे सहमत हूँ।

हम अपने चूहागढ़ में सुधार करेंगे। उसके बाद दूसरी जगह स्थित चूहागाँव चूहानगर, चूहापुर, चूहा कालोनी में हम अच्छी बातों के लिये काम करेंगे।

बस, ध्यान रखेंगे कि जब अच्छा काम करने जाएँ, तब कोई बिल्ली हमारा रास्ता न काटे।

- गोविंद शर्मा

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