Republic Day and Independence Day Special Children's Story : A children's story of serving the country and patriotism
स्वतंत्रता दिवस पर देश प्रेम की कहानी देश की सेवा : देश प्रेम पर गोविंद शर्मा राजस्थान के बाल साहित्यकार की हवा का इंतजाम बालकथा संग्रह से बच्चों के लिए गणतंत्र दिवस पर विशेष बाल कहानी देश की सेवा। देश की सेवा और रक्षा हर सुनागरिक का कर्तव्य है, देश के लिए चाहे अपने प्राणों को भी देना पड़े वह खुशी से खुरबान करना चाहिए, देश प्रेम को बच्चों में जागती है ये बाल कथा, बच्चों के मन में देश के प्रति समर्पित भाव को उत्पन्न करनेवाली रोचक, प्रेरणादायक कहानी देश की सेवा। पढ़े कहानी देश की सेवा और शेयर करें देशभक्ति पर विशेष कहानी।
Desh Bhakti Par Hindi Bal Kahaniyan
देश की सेवा
सत्तर वर्ष के रामधन को काफी समय से महसूस हो रहा था कि उसके और बेटों-पोतों के बीच तनाव उभर रहा है। एक दिन घर के सभी लोग एक जगह बैठे थे। कोई बात नहीं हो रही थी। अचानक रामधन का बड़ा बेटा बोल पड़ा-पिताजी, आपने हमारे भविष्य का सही समय पर कोई ध्यान नहीं रखा। बस, अपनी मर्जी चलाई।
रामधन को आश्चर्य हुआ। बड़ी मुश्किल से मुँह से निकला-मैंने क्या किया?
आपने वह किया, जो नहीं करना चाहिए था। उस समय हम सब छोटे थे, समझ भी कम थी। वरना आपको रोक देते। आपको यह सोचना चाहिए था कि कभी हम भी बड़े होंगे। हमारी भी कुछ जरूरतें होंगी। पर आपने हमारे लिये कुछ नहीं सोचा, बस अपनी सत्ता का प्रदर्शन किया। वरना उस समय आप बार्डर वाला मकान कभी नहीं बेचते। बेचना होता तो अब बेचते । अब उसकी कीमत पचास गुणा हो गई है। सोचिए हमें लाखों रुपये मिलते और सब जरूरतें पूरी हो जाती।
तो, यह बात है। रामधन को याद आई बीस-पच्चीस साल पहले की बात। उसे बाप-दादा से एक मकान मिला था। चौड़ा कम, लंबा ज्यादा। उसका एक दरवाजा पूर्व की तरफ खुलता था तो दूसरा पश्चिम की तरफ । प्रदेश का विभाजन हुआ। एक प्रदेश के दो प्रदेश बन गये। विभाजन की रेखा रामधन के कस्बे के बीचोबीच खिंची। वह भी इस तरह कि उसके मकान का पूर्व वाला दरवाजा इस प्रदेश में खुलने लगा तो पश्चिम वाला उस प्रदेश में। कुछ दिन तो रामधन ने इस हालत को सहा, फिर उसका मन उचाट हो गया। उसने यह मकान बेच कर कोई नया घर खरीदने की सोची। मकान अजीब स्थिति में होने के कारण बहुत ही कम मूल्य पर बिका। नया घर खरीदने में रामधन को पसीना आ गया। उतने रुपयों में उसे काफी छोटा मकान मिला। पर उसमें भी वह संतोष के साथ रहने लगा। बच्चे बड़े हुए। बच्चों के बच्चे भी हुए। सब उस मकान में मिलजुल कर रह रहे थे। अब बेटों के मन में इस बात ने घर कर लिया था कि उस समय पचास हजार में बिका यह मकान अब लाखों में बिकता। हो सकता है करोड़ों में बिकता।
पिता जी, अब आपको भी अफसोस हो रहा होगा कि वह मकान उस समय क्यों बेचा। यह आज बेचा जाता तो उस समय से पचास-साठ गुणा कीमत मिलती। हो सकता कल को कीमत सौ गुणा बढ़ जाए।
रामधन ने शांत स्वर में पूछा क्यों बेटे, इत्तनी कीमत क्यों हो गई उस मकान की? क्या उसके पास कोई बड़ा स्कूल-कालेज या अस्पताल खुल गया है? क्या कोई बाजार बन गया है वहाँ?
इससे हमें क्या मतलब है। यदि वह मकान हमारे पास होता तो खूब पैसे मिलते। पर मुझे मतलब था। मैं जानता हूँ कि उस समय वह मकान बेचकर और नया खरीदकर मैंने घाटा उठाया था। पर एक लाभ भी हुआ। वह मेरा व्यक्तिगत लाभ तो था हीं, देश, प्रदेश और समाज की सेवा भी थी।
पिताजी, आप तो नेताओं की तरह भाषण दे रहे हो। हमें तो कहीं कोई लाभ या सेवा नजर नहीं आ रहे।
बेटा, उस समय की और उस जैसे उसके पास के दूसरे मकानों की कीमत इसलिए बढ़ी है या बढ़ रही है कि उनकी स्थिति का दुरुपयोग हो रहा है। ये मकान अपराध के अड्डे बन गये हैं। पुलिस से बचने के लिये अपराधी इस दरवाजे से घुसते हैं और दूसरे दरवाजे से उस प्रदेश में निकल जाते हैं। कुछ लोग टैक्स चोरी करने के लिये इधर का माल उधर और उधर का इधर लाने में इस मकान का उपयोग करते हैं। इसीलिये इनकी कीमत बढ़ी है। हो सकता है, उस मकान में रहते हुए दूसरों के देखा-देखी मैं भी ऐसे काम करने लग जाता। लालच के जाल में फैस जाता। मैं नही तो मेरे बेटे यह काम करने लगते। हम अपराध, तस्करी, टैक्स चोरी के चंगुल में फँस जाते। इसलिये मैं सदा के लिये उस जाल, उस लालच से दूर हो गया। निसंदेह मैंने अपनी जिंदगी संघर्ष और गरीबी में बिताई है, पर मुझे कोई अफसोस नहीं है। मेरे मन में तो तसल्ली है कि मैंने अपने और तुम्हारे ऊपर से सुनागरिक का तमगा उतरने नहीं दिया। मैं बंदूक लेकर देश की रक्षा के लिये कभी अंतर्राष्ट्रीय बार्डर पर तो नहीं गया, पर यहाँ प्रदेशों की बार्डर पर रहकर देश, प्रदेश, समाज को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। अब बताओ, क्या मैंने गलत किया?
बेटे बोले नहीं। उनके हाथ पिता के पैरों पर थे और सिर झुके हुए थे।
- गोविंद शर्मा
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