Govind Sharma 3 Short Stories in Hindi : Best Laghu-Katha
हिन्दी की तीन लघुकथाएँ : रामदीन का चिराग, एक वह कोना, खेल नंबरों का ये तीन लघुकथा संग्रह अब से पहले प्रकाशित हो चुके हैं गोविंद शर्मा का चौथा लघु कहानी संग्रह खाली चम्मच में 121 लघु-कथाएं हैं। आपके लिए लेकर आए हैं तीन लघु कथाएं 1. गिफ्ट 2. स्वर्ग-नरक 3. अंधेर। डॉ. मुल्ला आदम अली हिंदी भाषा और साहित्यिक ब्लॉग पर सभी प्रकार के लघुकथाएं हिन्दी में प्रकाशित है, आप सभी कहानियां पढ़े और शेयर करें। ये लघुकथाएं प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद रोचक तथ्य से भरे हुए हैं, जरूर पाठकों को पसंद आयेंगे।
Hindi Laghukatha Lekhan : Famous Short Stories
Gift Short Story : गिफ्ट लघुकथा हिंदी में
1. गिफ्ट
हर वर्ष की तरह राखी का त्योहार आ गया। अब यह आई. ए. एस. है। राखी के दिन पहुँच गया अपनी बड़ी बहन के पास। बहन उसे देखते ही खुश हो गई। बोली- मैंने सोचा, तुम नहीं आ सकोगे। बड़े अफसर बन गये हो। वैसे मैं तुम्हारे लिये राखी अपने हाथ से बना चुकी हूँ। बांधने से पहले दिखाऊँ?
नहीं दीदी, मैं राखी बंधवाने नहीं आया हूँ। क्यों? क्या इतना बड़ा हो गया कि बहन की राखी की तुम्हें जरूरत नहीं? क्या देने के लिये तुम्हारे पास गिफ्ट नहीं है। मैंने तो किसी अच्छे तोहफे की उम्मीद की थी. बडा अफसर जो बन गया है तू...।
दीदी, मुझे सब याद है। यादें बुरी तरह से मेरे चिपकी हैं। मैं जब सात साल का था, तब हादसे में अपने माता-पिता छोडकर चले गये थे। आपने ही पालन-पोषण किया। मुझे पढ़ाया, इस योग्य बनाया कि आज मैं अफसर हूँ। एक ऐसा अफसर जिस पर लाखों लोगों की देखभाल की जिम्मेदारी है। दीदी, मैं यह सोचकर ही कॉप जाता हूँ कि यदि आपका संरक्षण, स्नेह मुझे नहीं मिलता तो मेरा क्या होता। मैं अपने को आपसे बहुत छोटा और कमजोर महसूस कर रहा हूँ। इसलिये सदा की तरह आपसे राखी बंधवाकर गिफ्ट देने की औपचारिकता नहीं निभाऊँगा। आज मैं आपके हाथ पर राखी बांधूंगा। आपके हाथ मेरे हाथों से ज्यादा मजबूत और रक्षा करने में सक्षम है। मैं आपसे गिफ्ट लूँगा। वादा कि आपका हाथ सदा-सदा मेरे सिर पर रहेगा, आप उसी तरह मेरी रक्षा करती रहेंगी जैसे आप पहले से एक अनाथ बच्चे की करती रही हैं।
उसने अपनी जेब से एक राखी निकाल ली थी। पर बहन की आँख आँसुओं की घारा थी। उसे हाथ आगे करने का होश नहीं था।
लघु कहानी स्वर्ग-नरक : Short Story Heaven-Hell
2. स्वर्ग-नरक (Heaven-Hell)
वे दोनों बंदर मर गये। दोनों की आत्माओं को निर्णायक के समक्ष पेश किया गया कि इन्हें स्वर्ग भेजा जाए या नर्क?
एक बंदर की आत्मा बोली, स्वर्ग का अधिकार तो मुझे है। मैंने युद्धभूमि में शत्रुओं को पराजित करते हुए प्राणोत्सर्ग किया था।
किस लिये किया युद्ध? खाने के लिये या रहने के स्थान के लिये?
जी नहीं, इनकी हमारे पास कोई कमी नहीं थी। हमने उन कमजोर बंदरों को गुलाम बनाने के लिये उन पर हमला किया था। इस हमले में ही दुश्मनों को मारते मारते मैं भी मर गया।
दूसरे बंदर से पूछा गया कि तुमने किस युद्ध मैदान में अपने प्राण गंवाए तो वह बोला-मैं किसी युद्ध में लड़ते हुए नहीं मरा। जिस शहर में रहता था, वहाँ के आदमियों में कोई गंभीर रोग फैल गया था। डॉक्टरों के पास उसका कोई इलाज नही था। इलाज खोजने के लिये डॉक्टर दिन रात प्रयास कर रहे थे। एक दिन मुझे पकड लिया गया। एक कमरे में मुझे ले जाया गया, उसे प्रयोगशाला कहा जाता था। मुझे दवाइयाँ दी गई, इंजेक्शन लगाये गये, एक दो जगह चीरा भी लगाया गया। मैं कई दिन तक मारे दर्द के बुरी तरह तड़पता रहा। किसी को भी मुझ पर दया नहीं आई। एक दिन फिर कई डॉक्टर मेरे पास आए। मेरी कई तरह से जांच की गई। अचानक सारे डॉक्टर खुश हो गये। एक दूसरे से हाथ मिलाकर बधाई देने लगे। हुआ यह कि मुझ पर किये गये पीड़ादायक प्रयोगों के फलस्वरूप इंसानों में फैली बीमारी का उन्हें इलाज मिल गया। पर मैं बचा नहीं। एक दिन प्रयोगशाला में ही अपने प्राण त्याग दिये।
निर्णायक कुछ बोले, इससे पहले ही पहले वाले बंदर की आत्मा हँसने लगी और बोली, यह तो साधारण मौत हुई। स्वर्ग जाने का अधिकार मेरा पक्का।
नहीं, निर्णायक ने कहा, यह साधारण नहीं असाधारण मौत है। तुम्हारी मौत अनावश्यक थी। स्वर्ग में मानवता का भला करने वाली आत्मा ही जायेगी।
अंधेर लघुकथा : Darkness Hindi Story Short
3. अंधेर (Darkness)
नेताजी ने अपने सहायकों से कहा- हम कई दिनों से अपने भाषण में कह रहे हैं कि हर जगह बिजली पहुँच गई है. सब जगह रोशनी ही रोशनी है। हम हमारे कथन की सच्चाई जानने के लिये रात में किसी गाँव में जाना चाहते हैं।
सर, किसी नेता के भाषण में कही गई बातों की सच्चाई जानने वाली मशीन अभी नहीं बनी है फिर आपकी तो क्या कहें..... कोई और भी आपकी बातों पर सवाल उठाने की हिम्मत नहीं दिखा सकता। फिर भी, आपको रोशन -रोशन गाँव दिखा देंगे।
एक रात में अचानक नेताजी अपने साथ कुछ नेता और कुछ अफसर लेकर गाँवों की तरफ निकल चले। किसी भी गाँव में रोशनी दिखाई नहीं दी। अंधेरा ही अंधेरा। नेताजी कुपित हुए तो ऑन द स्पाट सस्पेंड करने के लिये जिम्मेदार अधिकारी को बुलाया गया। पूछा गया तो जवाब मिला-सर, गांवों वाले रोशनी से उक्ता गये थे। अंधेरा-दर्शन चाहते थे। इसलिये हमने बिजली बंद कर दी।
मगर हमें तो यहाँ कोई तार, कोई खंबा, ट्रांसफार्मर.... कुछ भी दिखाई नहीं देता। सर, इसे ही अंधेरा कहते हैं। ज्यादा होने पर अंधेर कहलाता है।
तो, यह अंधेर कब मिटेगा?
सर, जब जनता समझ जायेगी कि अंधेर क्यों है?
नेता जी ने अफसरों की तरफ और अफसरों ने नेताओं की तरफ देखा और सभी वहाँ से चल दिये।
- गोविंद शर्मा
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