बाल कहानी के विषय पर मजेदार बाल कहानी : बब्बू जी और मोबाइल

Dr. Mulla Adam Ali
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Babbu ji and mobile : Funny children's story on the topic of children's story

Babbuji aur mobile bal kahani in hindi

बच्चों में बढ़ती मोबाइल की लत पर बाल कहानी बब्बू जी और मोबाइल : मोबाइल फोन में उलझा बच्चों का भविष्य इसी विषय पर आधारित बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा का बालकथा संग्रह हवा का इंतजाम से बाल कहानी बब्बू जी और मोबाइल, बच्चों के हाथ का खिलौना बन गया है मोबाइल, फोन के बिना आज बच्चे नहीं रह सकते हैं, दो साल की उमर से ही बच्चे अपने हाथों में मोबाइल लेकर दिखाई देते हैं। मोबाइल फोन की आदत बच्चों में ज्यादा बढ़ रही है ऐसी ही एक कहानी बब्बू जी की जो मोबाइल फोन से आकर्षित बच्चे की बाल कहानी, पढ़े मजेदार कहानी बच्चों के लिए लिखी बब्बू जी और मोबाइल और शेयर करें।

Babbu Ji aur Mobile Bal Kahani in Hindi

बब्बू जी और मोबाइल

वैसे रूठने की कोई उम्र नहीं होती, पर बब्बू जी की तो है ही। घर में सबके लाडले हैं। इसलिये उन्होंने समझ लिया कि कभी-कभी रूठना जरूरी भी है।

उस दिन हमारे दादाजी के छोटे भाई कई महीनों के बाद मिलने आए थे। फोन पर तो बात होती रहती है पर पास-पास बैठ कर बात करने का तो कुछ और ही मजा होता है। दोनों भाई बातों में मस्त हो गये। अचानक छोटे दादाजी को अपने मोबाइल का ध्यान आगया। क्योंकि काफी देर से उन्होंने रिंग नहीं सुनी थी। इधर-उधर देखा, कहीं नजर नहीं आया। शोर आगे से आगे चलता गया। घर के सभी वहाँ इक्ट्ठे हो गये। दूसरी सब बातें खत्म हो गई। हर कोई मोबाइल-मोबाइल करने लगा। चाचा बोले, वैसे तो मोबाइल का मतलब चल होता है पर वह अपने आप चल कर तो कहीं नहीं जाता। कोई तो उसे लेकर ही गया हैं। ऐसा करते हैं, आपके नंबर पर कॉल करते हैं, कहीं इधर-उधर हुआ तो घंटी सुनाई दे जायेगी ।

ऐसा किया गया, घंटी तो बजी पर काल करने वाले के अलावा किसी को सुनाई नहीं दी। कैसे सुनाई दे? उसकी आवाज छोटे दादा जी ने पहले ही बंद कर रखी थी।

दादाजी ने गंभीर होकर मोबाइल की कीमत बताई तो चाचा रकम जोड़ने में लग गये-इतने में तो मेरा, भाई का, भाभी का... सबका मोबाइल आ गया था।

क्या आपका कोई नौकर तो नहीं उठा ले गया?

नहीं, हमारा तो नौकर ही गुम है। काम पर आ ही नही रहा।

अचानक ध्यान आया-बब्बू जी कहाँ हैं?

हाँ, वही बब्बूजी, जो सबके लाडले हैं उनकी तलाश शुरू हो गई। घर के भीतर कहीं नजर नही आये। सब बाहर आये। लॉन में फूलों की एक झाड़ी के पीछे कुछ नीला सा दिखाई दिया, जबकि उस झाड़ी पर तो सफेद रंग के फूल लगते रहे हैं।

सब वहाँ गये तो देखा नीली शर्ट में बब्बू जी ही हैं मोबाइल पर मस्त हैं।

दादाजी ने नाराजगी दिखाई-बब्बू, आपको पता है छोटे दादाजी का मोबाइल न मिलने पर हम सब कितने परेशान हुए? इतने महंगे मोबाइल के लिये पूरा घर छान मारा हमने। आप हैं कि....।

बब्बू जी ने चुपके से मोबाइल पकड़ा दिया और शक्ल वैसी ही बनाली, जैसी वे रूठने पर बनाते हैं।

वाह, मोबाइल के लिये परेशान तो हम हों और रूठो तुम ? तुम्हें तो सॉरी बोलना चाहिए।

बब्बू जी गंभीरता से बोले-आपकी बात का मतलब हुआ, मोबाइल मुझसे ज्यादा प्यारा है आपको। इस घर में मेरी कोई कीमत नहीं। यदि आप मुझे प्यार करते हो तो मोबाइल की बजाय मेरी तलाश करते। मैं मिलता तो मोबाइल भी मिल जाता। रखो, अपने मोबाइल को अपने पास। मुझे नहीं बोलना किसी से।

बब्बू जी इतना कह कर दीवार की तरफ मुँह करके खड़े हो गये, आँखें बंद करके।

छोटे दादाजी ने प्यार से कहा- नहीं, बेटे तुम मोबाइल से कहीं अधिक प्यारे हो। देखो, मैं तुम्हारे लिये चॉकलेट लाया हूँ।

बब्बू जी ने आँख को थोड़ा सा खोलकर चॉकलेट को देखा और फिर बोले-हुंह, इतनी छोटी चॉकलेट तो आजकल बच्चे भी नहीं लेते।

क्या तुम बच्चे नहीं हो?

मेरा मतलब है, आप तो बच्चे नहीं हैं, फिर आपने इसे कैसे खरीद लिया?

फिर छोटे दादाजी ने कहा-चलो, तुम्हें बढ़िया-सा खिलौना दिलवाता हूँ। बब्बू जी ने न बोलते हुए यानी रूठे-रूठे ही कहा- मुझे मेरे दादाजी ने सिखाया है, लालच में आकर किसी की बात नहीं माननी चाहिए।

कोई किसी तरह तो कोई किसी तरह उन्हें मनाने लगा। पर उन्होंने न मानने की ठान ली थी।

अचानक छोटे दादाजी को एक उपाय सूझा। उन्होंने वही मोबाइल बब्बू जी की ओर बढ़ाते हुए कहा-लो, इसे ले लो और जितनी देर चाहो रख लो, जब मन भर जाये तो मुझे दे देना।

बब्बू जी ज्यादा जिद्दी नहीं है। उसी वक्त मान गये छोटे दादा जी की बात। सब हँसे। हँसते रहे, उन्हें क्या? उन्हें तो मोबाइल मिल ही गया...।

- गोविंद शर्मा

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