दो लघुकथाएँ : आग और इंसानियत

Dr. Mulla Adam Ali
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Humanity and Fire 2 Short Stories by Govind Sharma

Humanity and Fire 2 Short Stories

गोविंद शर्मा की दो लघुकथाएँ : Khali Chammach 121 Short Story Collection से आपके लिए प्रस्तुत है दो लघु-कहानियां 1. इंसानियत 2. आग। गोविंद शर्मा बाल साहित्यकार होने के साथ-साथ लघुकथाकार और व्यंग्यकार भी है, उनके अनेक व्यंग्य आलेख, कविताएं, लघु कथाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं और पाठक उनके रचनाओं को पसंद किया है। आज उनके लघुकथा संकलन खाली चम्मच से बेहतरीन दो लघु-कथाएं लेकर आए हैं, पढ़े और शेयर करें।

Hindi Short Stories : Laghu-Katha Lekhan

Hindi Laghukatha Insaniyat : Short Story Humanity - लघुकहानी इंसानियत

1. इंसानियत (Humanity)

सर्दी की रात में प्लेटफार्म पर मिलने वाली चाय कितनी स्वाद होती है। हम उसी की चुस्की ले रहे थे कि कुत्तों के भौंकने की तेज आवाजें आने लगीं। वैसे तो यह कोई नई बात नहीं थी। हमारे देश में शायद ही किसी रेलवे स्टेशन पर आवारा पशु और कुत्ते न हों। फिर भी हमने देखा, एक छोटे से कुत्ते पर कई कुत्ते भाँक रहे थे। उस पर हमला करने पर उत्तारू थे। वह कुत्ता डरा हुआ था। शायद पहली बार प्लेटफार्म पर आया होगा। कुत्ते तो अपनी गली में पहली बार आने वाले कुत्ते से पासपोर्ट, वीजा, प्रवेश पत्र दिखाने को कहते ही हैं। आने वाला कमजोर होता है तो उसे भगाकर दम लेते हैं। ताकतवर हो तो अपनी पूँछ टांगों के बीच दबाकर उसे प्रवेशानुमति दे देते हैं। यहाँ उस नये कुत्ते को टिकट दिखाने के लिये कह रहे होंगे। हम सब हँस पड़े। कुत्तों पर बनी कहावतें सुनाकर मजे लेने लगे। इस समय सबको एक ही मौजूं लगी- कुत्ते का कुत्ता बैरी।

अचानक कुत्ते चुप हो गये। फिर प्लेट फार्म से नीचे पटरियों की तरफ देखकर जोर-जोर से भौंकने लगे। बीच-बीच में चुप होकर एक तरफ देखते भी। वे जिधर देख रहे थे, उधर दूर एक इंजन की लाइट दिख रही थी। कोई गाड़ी आ रही थी या वहाँ रुकी खड़ी थी। हम में से किसी को यह समझ में नहीं आ रहा था कि मामला क्या है। यही समझ कर चाय की चुस्कियाँ लेते रहे कि उस अनजान कुत्ते पर भौंक रहे होंगे।

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पर जैसे-जैसे वह इंजन की लाइट नजदीक आने लगी, कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगे। अचानक एक बड़ा कुत्ता प्लेटफार्म से नीचे पटरियों पर कूदा। उस अनजान कुत्ते को वहाँ से उठाया और प्लेटफार्म पर फेंक कर खुद भी उचक कर प्लेटफार्म पर चढ़ गया। अचानक तेजी से एक रेलगाडी वहाँ से निकल गई। अब सारे कुत्ते चुप थे। उस अनजान कुत्ते को घेर कर खड़े थे। सब कुत्तों की आँखों में नये कुत्ते के लिये हमदर्दी थी, जैसे कह रहे हों- शुक्र है तुम्हारी जान बच गई। हम? हमें आदमियों में इंसानियत होने की कई कहानियाँ, कई कहावतें तो याद थीं, पर ऐसी नहीं जो यह कहे कि कुत्तों में भी अनुकरणीय इंसानियत होती है। इसलिये हम चुप थे।

लघुकथा आग : Short Story Fire in Hindi

2. आग (Fire)

बिजनेस के सिलसिले में उस छोटे कस्बे में दो-चार दिन के लिये अक्सर जाया करता था। मैंने देखा, दस ग्यारह वर्ष का एक बच्चा कस्बे के बस स्टैंड पर भीख मांगता है। मेरा वहाँ दिन में कई बार जाना होता था। क्योंकि भोजनालय, चायवाला, घोबी, बूटपालिश और अखबारों की दुकानें वहीं थीं। उसने मुझ से कई बार भीख मांगी। मैंने कभी नहीं दी। एक दिन उसे दस रुपये का नोट दिया तो वह कभी नोट को कभी मुझे आँखें फाड़कर देखता रहा।

मैंने उससे कहा- यह भीख नहीं है। तुम इन पैसों से गुब्बारे खरीद लो और उन्हें बेचकर पैसे कमाओ, भीख मत मांगो। उसने ऐसा करना शुरू किया। पर एक दिन से ज्यादा समय नहीं कर पाया। जब भी गुब्बारे के लिये उसको पैसे देता, उसका पिता उसे डरा धमका कर पैसे छीन लेता और भीख मांगने के लिये कह देता।

मैंने ऐसा कई बार किया। एक दिन उसने कह ही दिया- मेरे पिता ने साफ कह दिया है कि व्यापारी बनने की जरूरत नहीं, भिखारी की औलाद है, भिखारी रह। इसलिये आप मुझे भीख ही दीजिए। रोज-रोज पिटना अब मुझे अच्छा नहीं लगता।

मुझे गुस्सा आ गया। गुस्से में उसे समझाने की कोशिश की। पर वह चिकना घड़ा बना रहा। मैंने भी गुस्से से उसे चपत लगाते हुए भाग जाने के लिये कहा। पहली बार मैंने उसकी आँखों में आँसू देखा। मैं नहीं पसीजा। वह चला गया।

कई महीने बाद फिर उसी कस्बे में मुझे जाना पड़ा। देखा, एक लड़का कुछ साफ कपड़ों में गुब्बारे बेच रहा था। मैंने गौर से देखा तो पहचान गया। यह तो वही था।

पहचान पुख्ता करने के लिये मैं बूट पालिश वाले के पास गया। उससे पूछा तो वह बोला- हाँ, बाबूजी यह वही बच्चा है जो पहले यहाँ भीख माँगा करता था। एक बार एक बाबूजी आये थे। उन्होंने इसे समझा दिया कि भीख मत मांग, गुब्बारे बेचकर पैसे कमा। इसके लिये इसे अपने बाप से, दूसरे घर वालों से कई बार मार खानी पड़ी। आखिर एक दिन इसका बाप मान गया। इसने भीख के पैसे से गुब्बारे खरीदे और बेचने शुरू किये। पहले इसके गुब्बारे कम बिके। क्योंकि मैले कपड़े वाले से गुब्बारे लेना कम पसंद था लोगों को। फिर इसने पुराने, मगर साफ कपड़े पहनने शुरू किये। अब तो यह गुब्बारे वाला के रूप में इस बस स्टैंड पर मशहूर है। इससे बात करो तो कहता है- एक अनजान बाबू जी ने मेरी काया पलट कर दी। बाबूजी, यह काया पलट क्या होती है?

क्या बताता मैं उसे? कैसे बताता कि तुम्हारे मुँह से यह सब सुनकर मेरी भी काया पलट हो रही है। एक सीख मिल रही है कि निराशा और गुस्से को दिमाग में जगह नहीं देनी चाहिए। चिंगारी को आग बनने में कुछ देर तो लगती ही है।

- गोविंद शर्मा

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