Children must read this inspirational story about wisdom : Bal Kahani Buddhi Ki Talaash
ज्ञान कहानियाँ बच्चों के लिए बाल कहानी बुद्धि की तलाश : किसी भी विपरित या अनुकूल परिस्थिति में अगर बुद्धि से काम लेंगे तो जरूर सफल रहेंगे। इसी बात को एक कहानी के माध्यम से बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा ने अपनी बालकथा संग्रह हवा का इंतजाम में बुद्धि की तलाश बाल कहानी के द्वारा समझा चुके हैं, बच्चों की कहानियां हिन्दी में बहुत प्रचलित विधा है। बुद्धि की तलाश कहानी में बुद्धि का उपयोग कैसे करें इस बात को सुंदर ढंग से बताया गया है। तो पढ़िए किड्स स्टोरी हिन्दी में बुद्धि की तलाश, बाल कहानी में शिक्षाप्रद और रोचक कहानी बुद्धि की तलाश है।
Inspirational Kids Story in Hindi ; Preranadayak Bal Kahani
बुद्धि की तलाश
राजा और मंत्री दोनों बाग में अकेले धूम रहे थे। राजा ने पूछ लिया-मंत्री जी यह बताओ कि सबसे ज्यादा बुद्धिमान किस वर्ग के लोग होते हैं? कर्मचारी, योद्धा या व्यापारी?
मंत्री ने कहा-एक किस्सा सुनाता हूँ। आप इसे सुनकर स्वयं ही समझ जायेंगे कि किस वर्ग के लोग ज्यादा बुद्धिमान होते हैं। एक बार बादशाह अकबर ने भी बीरबल से यही सवाल पूछा था। बीरबल ने जवाब दिया-व्यापारी। अकबर ने कहा-मैं परीक्षा लूँगा। अकबर ने बारी-बारी से एक कर्मचारी, एक योद्धा और एक व्यापारी को बुलाया। कर्मचारी से कहा- मुझे तुम्हारी दाढ़ी चाहिए। बताओ, कितने में दोगे?
कर्मचारी ने देखा, वहाँ अपने औजारों के साथ एक नाई बैठा है। वह तत्परता से नाई के पास गया और बोला-जल्दी से मेरी दाढ़ी काट कर बादशाह सलामत के कदमों में रख दो।
नहीं, पहले हमें तुम्हारी दाढ़ी की कीमत बताओ। बादशाह ने कहा। हुजूर, आपसे कीमत लूँगा? फिर भी आप कह रहे हैं, इसलिये दो पैसे दे देना। दो पैसों में क्या खरीदोगे?
उन दो पैसों से कुछ नहीं खरीदूँगा। उन्हें तो घर में रख कर रोजाना उनकी पूजा करूँगा।
अकबर ने दो पैसे देकर उसकी दाढ़ी खरीद ली। फिर योद्धा को बुलाया और दाढ़ी की माँग करते हुए उसकी कीमत पूछी।
योद्धा ने कहा- हुजूर, मैं आपका, मेरी दाढ़ी आपकी। आपसे कीमत कैसे ले सकता हूँ। फिर भी, आप चाहें तो मुझे एक तलवार दे देना और युद्ध करने का मौका भी। मुझे तो मारना-मरना ही पसंद है।
अब एक व्यापारी को बुलाया गया। उससे उसकी दाढ़ी की कीमत पूछी तो बोला-बहुत कीमती है, श्रीमान यह। इसे मैं किसी खास मौके पर ही कटवाता हूँ। वह मौका ऐसा होता है कि उस समय मुझे अपने रिश्तेदारों, परिचितों को दावत भी देनी पड़ती हैं, उस पर हजारों रुपये खर्च होते हैं। अब भी यदि मुझे यह दाढ़ी आपको देनी पड़ी तो दावत देनी होगी। मैं दाढ़ी की कोई कीमत नहीं लूँगा, बस आप दावत के नाम के दस हजार रुपये दे देवें।
अकबर ने दस हजार रुपये दे दिये। बीरबल अकबर के कान में फुसफुसाया-देखो हुजूर, व्यापारी की अक्लमंदी। बैठे-बैठे दस हजार रुपये कमा लिये। दाढ़ी तो कुछ दिन बाद फिर वैसी हो जायेगी।
बीरबल, यह अक्लमंदी नहीं, लालच है।
हुजूर, देखिये, आगे-आगे होता है क्या......।
अकबर, बीरबल के सामने ही नाई उस व्यापारी की दाढ़ी काटने लगा। जैसे ही उसने व्यापारी की दाढ़ी अपने हाथ में पकड़ी, व्यापारी ने नाई के गाल पर थप्पड़ लगाते हुए कहा-मूर्ख, हिन्दुस्तान के शहन्शाह अकबर की है यह दाढ़ी। बादशाह की दाढ़ी को ऐसे काटते हैं। तमीज से पकड़ो इस शाही दाढ़ी को।
इतना सुनते ही अकबर को गुस्सा आगया। मैंने इसे खरीद लिया तो यह दाढ़ी शहन्शाह की दाढ़ी हो गई?
अकबर ने गुस्से में कहा-बदतमीज व्यापारी, भागो यहाँ से, वरना कैद में डाल दूँगा।
व्यापारी ने हाथ जोड़े और भाग लिया। कुछ देर में अकबर का गुस्सा शांत हो गया तो बीरबल बोला- हुजूर, देखी आपने व्यापारी की अक्लमंदी, दसहजार रुपये ले गया और दाढ़ी भी।
राजा ने यह कहानी सुनी और बोले- मैं भी परीक्षा लूँगा। कल एक कर्मचारी, एक योद्धा और एक व्यापारी को दरबार में बुलाया जाए।
वही हुजा। कर्मचारी और योद्धा ने बहुत कम पैसों में अपनी दाढ़ी बेच दी। अब व्यापारी की बारी आई, उसने अपना हिसाब लगाकर कहा- हुजूर, सिर्फ एक लाख रुपये दे दीजिए।
राजा ने कहा-ठीक है, एक लाख रुपये दे दूँगा पर किसी ने तुम्हें रोक दिया या किसी कारण से तुमने खुद ही दाढ़ी देने से मना कर दिया तो? नहीं हुजूर, ऐसा नहीं होगा। यदि मैं आपको दाढ़ी नहीं दे सका तो दो लाख रुपए वापस करूँगा।
राजा ने तुरंत ही उसे खजाने से एक लाख रुपये दिलवा दिये। नाई को बुलाया गया। नाई दाढ़ी काटने लगा तो व्यापारी ने वही चाल चली। नाई को थप्पड़ लगाते हुए कहा-राजा साहब की दाढ़ी को इस तरह काटते हैं? इसे पकड़ने से पहले राज-दाढ़ी वाली इज्जत दो।
थप्पड़ खाकर नाई घबरा गया। इस घबराहट में वह एक गलती कर बैठा। इस पर व्यापारी उसे थप्पड़ मारने को हुआ कि राजा ने तुरंत हस्तक्षेप किया। व्यापारी को रोक दिया और नाई से बोले-नाई महाशय, तुम्हें पता ही है कि यह दाढ़ी अब मेरी है, इसे मैंने एक लाख रुपये में खरीद लिया है। इसे कैसे काटना है, यह तुम्हें मुझ से पूछना चाहिए। सुनो, तुम किसी कैंची-उस्तरे से यह दाढ़ी नहीं काटोगे। तुम इसे एक एक कर या दो-चार बाल एक साथ अपने हाथ से उखाड़ोगे। व्यापारी, तुम इस बारे में अब नाई से कुछ नहीं कहोगे, दाढ़ी मेरी है। अब इसके बारे में आदेश मेरा ही चलेगा।
नाई ने पहले दो बाल, फिर तीन-चार एक साथ उखाड़े तो व्यापारी दर्द के मारे बिलबिला उठा। राजा बोले-नाई महाशय, यह तुम क्या एक-एक, दो-दो बाल उखाड़ रहे हो? देख नहीं रहे कि व्यापारी को कितनी पीड़ा हो रही है। एक बार में कम से कम दस बाल उखाड़ो।
एक साथ दस बाल उखड़े तो व्यापारी मारे दर्द के चिल्लाने लगा।
नहीं हुजूर, नहीं। मुझे माफ कर दो। मेरी दाढ़ी मैं आपको नहीं दे रहा....
दाढ़ी न देने पर तुम्हें.....
हाँ-हाँ हुजूर, मैं दो लाख रुपये दूँगा।
राजा के खजाने से एक लाख रुपये निकले थे। अब वहाँ दो लाख रुपये वापस आगये।
बाद में मंत्री ने कहा-वाह, राजा साहब आपने प्रमाणित कर दिया कि बुद्धि किसी अन्य वर्ग में नहीं, केवल हमारे राजा साहब में है।
नहीं, मंत्री जी, साबित यह नहीं हुआ है। बुद्धि किसी वर्ग में नहीं, किसी जाति में नहीं, आदमी के स्वभाव में होती है।
इस मामले में मेरी बुद्धि इसलिये जीती कि मैं आखिर तक शांत रहा। एक बार भी गुस्सा नहीं हुआ। जबकि अकबर ने गुस्से में व्यापारी को भगाकर अपना ही नुकसान किया। बुद्धि सबके पास होती है, पर दिखाई उसी को देती है जो शांत रहकर उसका इस्तेमाल करता है।
- गोविंद शर्मा
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