हिन्दी कहानी का उद्भव और विकास : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) नेट पेपर 2 हिन्दी साहित्य के अंतर्गत कहानी संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछे जाएंगे, तो आज हम इस आर्टिकल में हिन्दी कहानी की विकास यात्रा के बारे में संपूर्ण रूप से जानने की कोशिश करेंगे, हिन्दी कहानी का उद्भव, हिन्दी कहानी विकासक्रम, काल विभाजन, हिंदी के कहानीकार, हिन्दी कहानियां, प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी, प्रेमचंद युगीन हिन्दी कहानी, प्रेमचंदोत्तर हिन्दी कहानी, नई कहानी आदि सभी जानकारी इस लेख में अपको मिलेगी। तो चलिए शुरू करते हैं Hindi Kahani : Udbhav Evam Vikas.
हिन्दी कहानी के बारे पढ़कर आप –
हिन्दी कहानी का उद्भव को समझ सकेंगे।
हिन्दी कहानी विकासक्रम को समझ सकेंगे।
हिन्दी कहानी के काल विभाजन को जान सकेंगे।
Origin and Development of Hindi Story
हिन्दी कहानी की विकास यात्रा : आधुनिक हिंदी कहानी का जन्म सरस्वती पत्रिका से माना जाता है इसका मतलब हिन्दी कहानी का उद्भव आधुनिक काल से ही है, सिर्फ कहानी ही नहीं हिन्दी अन्य गद्य विधाओं का भी इसी काल में शुरुआत हुई है। हिन्दी कहानी विधा साहित्य की मुख्य विधा है और मुख्य विधा के रूप में स्थापित करने में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का बहुत बड़ा योगदान है उन्होंने अपनी लेखनी से कहानी शिखर तक पहुंचाया है। हिन्दी की आरंभिक कहानियों का विवरण आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कुछ इस प्रकार दिया है -
1. इंदुमती (कहानी) - किशोरी लाल गोस्वामी (कहानीकार) - 1900 ई. (रचनाकाल)
2. गुलाबहार (कहानी) - किशोरी लाल गोस्वामी (कहानीकार) - 1902 ई. (रचनाकाल)
3. प्लेग की चुड़ैल (कहानी) - मास्टर भगवान दास (कहानीकार) - 1903 ई. (रचनाकाल)
4. ग्यारह वर्ष का समय (कहानी) - रामचंद्र शुक्ल (कहानीकार) - 1903 ई. (रचनाकाल)
5. पण्डित और पण्डितानी (कहानी) - गिरिजादत्त बाजपेयी (कहानीकार) - 1903 ई. (रचनाकाल)
6. दुलाईवाली (कहानी) - बंग महिला (राजेन्द्र बाला घोष) (कहानीकार) - 1900 ई. (रचनाकाल)
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के इस विवरण से यह स्पष्ट है कि हिन्दी की प्रथम कहानी 'इन्दुमती' है और कहानीकार किशोरीलाल गोस्वामी।
हिंदी कहानी का विकास :
हिन्दी कहानी विधा को चार चरणों में विभक्त किया गया है मुंशी प्रेमचंद को केंद्र में रखकर। हिन्दी कहानी के विकासक्रम में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।
1. पूर्व प्रेमचन्द युगीन हिन्दी कहानी (1900 ई. - 1910 ई.)
2. प्रेमचन्द युगीन हिन्दी कहानी (1910 ई. - 1936 ई.)
3. प्रेमचन्दोत्तर युगीन हिन्दी कहानी (1936 ई. - 1950 ई.)
4. स्वतंत्रोत्तर हिन्दी कहानी (1950 ई. - के बाद)
प्रेमचन्द पूर्व हिन्दी कहानी : आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'इन्दुमती' को हिन्दी की पहली कहानी माना है। कहानी विकास के इस प्रथम चरण में हिन्दी कहानी घुटनों के बल पर चलना सीख रही थी यानी अपना स्वरूप ग्रहण कर रही थीं। इस काल की कहानियां आदर्शवादी थी, इनमें भावुकता और संयोग की प्रधानता रहती थीं। कहानी के विकास में सरस्वती और इन्दु पत्रिकाओं का विशेष योगदान रहा है। इस काल की कहानियों में विदेशी संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता था, कुछ अनुवाद कहानियां भी हमें देखने को मिलते हैं और कहानियां बहुत सी लंबी लिखी जाती थीं। इस युग की मौलिक और सराश्रेष्ठ कहानी चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' और इनकी अन्य दो कहानियां हैं सुखमय जीवन', 'बुद्ध का कांटा', 'उसने कहा था' कहानी का प्रकाशन 1915 में सरस्वती पत्रिका में हुआ था, यह कहानी त्याग और बलिदान के लिए प्रेरित करती है।
प्रेमचन्दयुगीन हिन्दी कहानी : प्रेमचंदयुगीन कहानिकारों में स्वयं प्रेमचंद शीर्ष स्थान पर है और इस काल को हिन्दी कहानी काल का उत्कर्ष युग माना जाता है। इस काल में समाज की विविध समस्याओं पर चित्रण किया गया है, शोषण की समस्या, सामाजिक बुराइयों, भ्रष्टाचार और अंधविश्वासों पर यथार्थ चित्रण इस काल की कहानियों में देखने को मिलती है। प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में लिखते थे, इनकी कहानियां 300 से अधिक 'मानसरोवर' नाम से आठ खंडों में संकलित हैं। 1907 में प्रकाशित स्वतंत्र भावना से ओतप्रेत उर्दू कहानी संग्रह 'सोजे वतन' को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। ऊर्दू में यह कहानी संग्रह नवाबराय के नाम से प्रेमचंद ने छपवाया था। प्रेमचंद युग के अन्य कहानीकार विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक, चतुरसेन शास्त्री, रायकृष्ण दास, जयशंकर प्रसाद, भगवती प्रसाद वाजपेई, पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र', राहुल सांकृत्यायन आदि।
प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी कहानी : प्रमचंदोत्तर युग कहानिकारों में प्रमुख है यशपाल, अज्ञेय, जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी, रांगेय राघव, नागार्जुन, अमृतराय, श्री कृष्णदस प्रभृति, चंद्रगुप्त विद्यालंकार आदि। यशपाल ने समाजवादी और साम्यवादी दृष्टिकोण से अपनी कहानियों में समाज की विषमताओं को उजागर किया है, जैनेंद्र, अज्ञेय, इलाचंद्र जोशी, भगवती चरण वर्मा ने मनोविश्लेषणवादी परंपरा को अपने कहानियों में स्थान दिया है। राष्ट्रीय और सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण चंद्रगुप्त विद्यालंकार की कहानियों में दिखाई पड़ता है।
स्वतंत्रोत्तर हिन्दी कहानी : 1947 भारत आजादी के बाद अनेक कहानी आंदोलन सामने आए हैं जैसे 1. नई कहानी 2. समांतर कहानी 3. समकालीन कहानी 4. अकहानी 5. समांतर कहानी। नई कहानी के प्रवर्तक मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव है तो सचेतन कहानी के प्रवर्तक महीप सिंह, समकालीन कहानी के प्रवर्तक गंगा प्रसाद विमल, अकहानी के प्रवर्तक निर्मल वर्मा, समांतर कहानी के प्रवर्तक कमलेश्वर है।
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