Seven Real Life Inspiring Short Stories that Touched Heart : Hindi Laghukatha by Govind Sharma
सात लघु कहानियाँ हिन्दी में : 1. लघुकथा कर्ज उतारना 2. लघुकहानी अंधेरगर्दी 3. हिन्दी लघुकथा परंपरा प्रिय हम 4. छोटी सी लघुकथा गाय-माता 5. लघु कथाएं भुक्खड़ 6. कहानी छोटी सी वसीयत 7. लघुकथा अपराध बोध। खली चम्मच लघुकथा संग्रह से 121 लघुकहानियों का संकलन गोविंद शर्मा द्वारा लिखा गया है, जिसमें गाय माता कहानी खासकर आपके मन को झकझोर कर देती है, हम गाय को माता कहते हैं। एक दिन आता है जब गाय दूध देना बंद कर देती है। उस दिन हम गाय को घर से निकाल देते है। बूढ़ी होने पर माँ को भी - 'गायमाता' में गाय और माता की यही व्यथा है। अन्य 6 लघुकथाएं भी अपको इसी तरह सोचने को मजबूर करेंगे, तो चलिए आजके इस आर्टिकल में एक से बढ़कर एक सुंदर और रोचक लघुकथाएं पढ़ते हैं।
Heart touching Hindi Short Stories : Hindi Laghu Kahaniyan
लघु-कहानी कर्ज उतारना : कर्ज के विषय पर छोटी सी कहानी हिंदी में शॉर्ट स्टोरी
1. कर्ज उतारना (Paying off the debt)
नेता जी जीत कर राजधानी चले गये। भूल गये उन वादों-आश्वासनों को जो उन्होंने जनता के वोट लेने के लिये, खर्च किये थे। उन्हें याद दिलाने के लिये मतदाताओं का समूह पहुँच गया उनके पास। याद दिलाया कि उन दिनों आप कहते थे कि आपका वोट मिलना मेरे ऊपर आपका कर्ज होगा, जिसे मैं ब्याज सहित उतारूँगा।
"अच्छा? ऐसा कहा था मैंने? ठीक है मौका आया तो मैं भी आपको, एक नहीं, दो वोट देकर यह कर्ज उतार दूँगा।"
"नेताजी, आप तो मजाक कर रहे हैं।"
"मजाक शुरू तो तुम लोगों ने किया था जो मुझे पिछले जन्म की बातें याद दिला रहे हो?"
"भूल गये आप कि उन दिनों हमारे वोट लेने के लिये कैसे आंसू बहाते थे?"
"ओह! आँसू। ठीक है, उन दिनों तुम लोगों ने मेरे से आँसू निकलवाये, मैं उससे दो गुना आँसू तुम्हारे से निकलवा कर यह कर्ज उतार दूँगा।"
लघुकथा अंधेरगर्दी : Short Story Indifference
2. अंधेरगर्दी (Indifference)
अधिकारी ने देखा दिन में गली की सारी लाइटें जल रही हैं। उन्होंने बिजली प्रभारी को बुलाकर पूछा तो जवाब मिला- सर रात में गली की लाइटें खराब होने के कारण जली नहीं थीं, अब ठीक करवाई हैं। जलती लाइटें इसलिये छोड़ रखी हैं ताकि लोग देखलें कि हम अपनी ड्यूटी के कितने पाबंद हैं।
लेकिन मैंने पहले भी कई बार देखा है कि गलियों की लाइटें जलती रहती हैं। तुम उन्हें दिन निकलने पर बंद क्यों नहीं करवाते?
सर, जनता की आदत शिकायतें करने की होती हैं। गली के लोग डरते हुए रात में घर से बाहर नहीं निकलते हैं, पर शिकायत करते हैं कि गली में स्ट्रीट लाइट नहीं है। उन लोगों को जवाब देने के लिये कि देखो रात में लाइटें जलती हैं, दिन में भी लाइटें जलती छोड़ देते हैं।
अधिकारी ने उसके जवाब सुनकर मन ही मन कहा- बंदा काम का है। मुझे कभी किसी मामले में अपने उच्चाधिकारियों को जवाब देना पड़ा तो इसकी मदद मिल जायेगी।
गोविंद शर्मा की लघुकथा परंपरा प्रिय हम : Laghukatha Parampara
3. परंपरा प्रिय हम (Tradition-loving We)
सरकार से मिले अनुदान से कस्बे में शौचालय बनाया गया ताकि लोग खुले में दीवारों का उपयोग कर उन्हें खराब न करें। जाँच के लिये स्वच्छता टीम आई। इस निर्माण की भव्यता से प्रभावित हुए टीम सदस्य। बाहर निकल कर देखा, पास में ही कुछ लंबी एक दीवार बनी हुई है। एक सदस्य ने पूछ लिया- समझ में नहीं आता यहाँ अकेली दीवार क्यों बनाई गई है।
कस्बे के अधिकारी ने स्पष्टीकरण दिया- सर, इस शौचालय के निर्माण से कुछ धन बचाकर यह दीवार बनाई गई है। इस कस्बे के निवासी परंपराप्रिय हैं। वे शौचालय के भीतर जाकर लघुशंका-निवृत्त होने की बजाय दीवार के पास खड़े होकर...। दूसरे लोगों की दीवारें बचाने के लिये यह विशेष दीवार ऐसे ही परंपराप्रिय लोगों के लिये बनाई गई है। दीवार है तो इस पर पोस्टर भी चिपकाये जायेंगे, नारे भी लिखे जायेंगे। इन्हें देखने- पढ़ने का काम भी वे साथ-साथ कर लेंगे। इस तरह लोगों का समय भी बचेगा, शौचालय भी भीतर से साफ रहेगा।
सुनकर टीम सदस्य लड़खड़ाए थे। पता नहीं बेहोश होकर गिरे या नहीं।
गाय माता पर दिल को छू लेने वाली लघु कहानी : Heart touching story The Cow
4. गाय-माता
वह अपनी वृद्ध माता के पास बैठा था। उसे चिंतित देख, माता ने पूछ लिया-क्या बात है बेटा, आज तुम कुछ उदास लग रहे हो।
हाँ, माँ, मुझे घर के आर्थिक हालत की चिंता है। देखो, यह गाय, चारा अब भी उतना ही खाती है, पर बड़ी उम्र की होने के कारण दूध देना बंद कर चुकी है।
क्या सोच रहे हो?
यही कि इस गाय को अब घर से निकाल दूँ।
नहीं-नहीं, माँ ने काँपते हुए कहा।
माँ, तुम चिंता मत करो। माना कि यह बूढ़ी और नाकारा हो गई है, पर है तो गाय-माता ही। मैं इसे किसी कसाई को नहीं बेचूँगा। मैं इसे घर से बाहर निकाल दूँगा। गली-मुहल्लों में इधर-उधर घूम कर, यहाँ- वहाँ मुँह मारकर अपना पेट भर लेगी।
बूढ़ी और नाकारा - शब्द माँ को तीर की तरह लगे। माँ ने विरोध किया तो माँ बेटे में बहस हो गई। बहू तो पहले से ही अपनी सास से नाराज चल रही थी, अब बेटा भी कुपित हो गया।
बेटे ने एक दिन अपनी कही बात का अक्षरशः पालन किया। उसने गाय को घर से निकाल दिया और माता को भी।
Laghukatha Bhukkad : लघुकथा हिन्दी में भुक्खड़
5. भुक्खड़ (The glutton)
जैसे ही वह उस देश के हवाई अड्डे पर उतर कर बाहर जाने लगा, एक ने पूछ लिया- भाई साहब, कितने का घोटाला करके आये हो? मेरा मतलब है किस बैंक के कितने अरब-खरब डकार कर हमारे देश में आये हो?
क्या बात कर रहे हो? मैंने तो यहाँ तक आने की टिकट का इंतजाम भी दोस्तों से उधार लेकर किया है।
उसने साथ खड़े अपने साथी से पूछ लिया- यार, नीरव, माल्या, चौकसे के देश में ऐसे भुक्खड़ पैदा होने लगे या उस देश की विदेशों में छवि बिगाड़ने के लिये आया वहां का कोई देशद्रोही है यह?
Hindi Laghukatha Vasiyat : लघुकहानी हिन्दी में वसीयत
6. वसीयत (Will)
क्या तुमने अपनी वसीयत लिखदी है?
हाँ, दोस्त मैंने अपने चारों बेटों को कुछ न कुछ दिया है। बड़े बेटे को सारी कृषि भूमि दे दी, दूसरे नंबर वाले को व्यापार और तीसरे को सारी जमा पूँजी..।
अरे, फिर चौथे को सौंपने के लिये तुम्हारे पास क्या बचा?
लोकतंत्र। मैंने उसे लोकतंत्र या कहो लोकतंत्र को उसे सौंप दिया है। लोकतंत्र की शान-पहचान आंदोलन ही होते हैं। राजनीतिक दलों को आंदोलन के लिये किसान, व्यापारी, बेरोजगार युवाओं की जरूरत रहती है। वह इन सबकी भूमिका निभा सकता है। हो सकता है वह आंदोलनों के जरिये कुछ कमा ले।
हो सकता है वह आंदोलनों में सफल न हो तब अपना पेट कैसे भरेगा?
इस प्रकार के चौथे भाइयों का पेट पहली प्रकार के तीन भाई ही भरते हैं।
जैसे अब तक होता आया है।
Laghukatha Sangrah Khali Chammach Se Laghu Kahani Aparadh Bodh : लघुकथा अपराध बोध
7. अपराध बोध (Guilt)
बस एक स्टॉप पर रुकी तो एक नेत्रहीन व्यक्ति बस में चढ़ा। बैठने के लिये दिव्यांगों के लिये आरक्षित सीट के पास गया तो जाना कि कोई वहाँ पहले से ही बैठा है। पता नहीं कौन है, फिर भी नेत्रहीन ने उससे कह दिया-यह सीट तो हम लोगों के लिये आरक्षित है। मुझे बैठने दीजिए।
वह व्यक्ति कड़क कर बोला- दिख नहीं रहा क्या? मेरी एक टांग है ही नहीं।
नेत्रहीन ने नम्रता से कहा- माफ करें, मुझे दिखता नहीं है। आपकी एक टांग नहीं है तो आप बस में खड़े नहीं रह सकते। मैं खड़ा रह सकता हूँ। मेरे आँखें ही नहीं है, बाकी शरीर तो सही-सलामत है। आप बैठे रहें।
नेत्रहीन दूर खिसक कर खड़ा हो गया। पर जो व्यक्ति सीट पर बैठा था, उसकी हालत अजीब हो गई। उसे लगने लगा, जैसे उसकी एक टांग सुन्न हो रही है। उसने टांग पर कई बार चिकोटी काटी, वह ठीक थी। फिर भी अपनी एक टांग को लेकर वह ज्यादा परेशान होने लगा। एक बार उसे लगा, जैसे पैर में लकवा आने वाला है। क्या करूँ- क्या करूँ सोचते-सोचते वह खड़ा हो गया और जहाँ उसे उतरना था, वहां से एक दो स्टाप पहले ही उतर गया।
- गोविंद शर्मा
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