लघु कथाएँ : जीवन के हर पक्ष की ख़बर रखती गोविंद शर्मा की ये चार लघुकथाएं

Dr. Mulla Adam Ali
0

Four Short Stories By Govind Sharma : Hindi LaghuKathayein

Real life short story with moral lesson

खाली चम्मच लघुकथा संकलन से 4 लघुकथाएं : लघुकथाकार श्री गोविंद शर्मा की लघुकथा संग्रह से आपके समक्ष प्रस्तुत है चार लघुकथाएं 1. झूठ का बोझ हिन्दी लघुकहानी 2. अभिनय लघुकथा 3. हार-जीत छोटी सी लघुकथा 4. डस्टबिन शॉर्ट स्टोरी हिन्दी में। दिल को छू लेने वाली लघुकहानियां उस समाजसेवी भाई के घर की एक दीवार धड़ाम से गिर गई। इतनी मजबूत दीवार बिना किसी बाढ़, तूफान के गिरी कैसे?, जाँच से पता चला कि दीवार पर टंगे सम्मान पत्र, प्रशंसा पत्र झूठे हैं। दीवार झूठ का बोझ सह नहीं सकने के कारण गिरी है। इसी तरह अन्य तीन लघुकथाएं अभिनय, हार-जीत, डस्टबिन भी अपको जरूर पसंद आयेंगे, पढ़े और साझा करें।


Real life short story with moral lesson : Hindi Short Stories

झूठ का बोझ हिन्दी लघुकथा : Short Story Burden of Lies

1. झूठ का बोझ (Burden of lies)

उनके बंगले की एक दीवार भरभरा कर गिर पड़ी। गनीमत यह हुई कि उस दीवार के गिरने से किसी कमरे की छत नहीं गिरी। पर यह तो उनकी प्रिय दीवार थी। एक इंजीनियर को बुलाया और लगे डॉटने-तुमने पन्द्रह दिन पहले ही इस दीवार की जाँच की थी और बताया था कि यह बहुत मजबूत है। देखो, आज यह गिर गई। क्यों?

यह तो मैं अब भी कहता हूँ कि इस दीवार की नींव बहुत मजबूत थी। इसमें पुराने जमाने का चूना, बढ़िया पत्थर लगा था। अब ऐसा मिलावट-रहित मसाला बनता ही नहीं, मैं हैरान हूँ कि यह गिरी क्यों?

कइयों से पूछा। किसी भी विशेषज्ञ ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। आखिर में एक मिल गया। उसने पूछा- आप इस दीवार का क्या उपयोग करते थे?

यह दीवार ऐसी थी कि घर में आने वाले सभी की निगाह इसी पर जाती थी। इसलिये मुझे मिलने वाले सम्मान पत्र, अभिनंदन पत्र, प्रशस्ति पत्र, मैं सुंदर से फेम में जड़वा कर इस पर लगवाता था।

सम्मान पत्र..?

हाँ हाँ, समाज सेवा, जनसेवा, भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति, आपदा में लोगों की सहायता, विभिन्न माँगों वाले आंदोलनों का नेतृत्व करने, धरने देने के बदले मुझे मिलते रहे हैं।

समझ गया मैं। यह दीवार किसी ईमानदार की बनवाई हुई थी। मजबूती के बावजूद झूठ का बोझ सहन नहीं कर सकी।


लघुकथा हिंदी में अभिनय : Laghukahani Abhinay in Hindi

2. अभिनय

उम्रदराज बाला जी बहुत दुखी थे। कई बीमारियों के कारण शरीर अशक्त हो गया था। खाना खाते वक्त हाथ का कौर मुँह तक जाने से पहले ही नीचे गिर जाता था। कई बार मुँह से भी नीचे गिर जाता। कपड़े खराब हो जाते। सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी सबसे मिलने वाली उपेक्षा। घर में बेटे-बहू, पोते-पोतियाँ सब थे। पर उनके लिये कोई नहीं था।

एक दिन नई बात हुई। एक बेटे ने आकर कहा- आज एक फिल्म निर्देशक आ रहे हैं। फिल्म बनेगी। आप वैसे ही करें, जैसे वे कहें।

कैमरा फिट हो गया। बेटा आया। उसने बालाजी का कुर्ता अपने हाथों से उतारा और साफ कुर्ता पहनाने लगा। बाला जी हैरान रह गये। निर्देशक कुछ परेशान हुए। रिकोर्डिंग बीच में रोक कर बोले- बाला जी, चेहरे पर से हैरानी के भाव हटाइये। ऐसा लगना चाहिए जैसे यह रोज होता है। सेवा भावी पुत्रों की सेवा पर फिल्म बन रही है।

बालाजी जी का ध्यान अपने पुत्र की तरफ गया। वह ऐसे कर रहा था, जैसे यह उसका रोजाना का काम है। कपड़े बदले, अपने हाथों से खाना खिलाया और मुंह पोंछा।

फिल्म बन गई तो निर्देशक उनके पास आकर बैठ गया और पूछा-क्यों बाबा, कैसा महसूस कर रहे हैं?

गर्व हो रहा है मुझे।

किस बात का?

जवानी में मेरी इच्छा थी कि नाटकों और फिल्मों में काम करूँ। वह कभी पूरी नहीं हुई। वह तो पूरी हुई ही, आज यह भी पता चला कि मेरा बेटा भी अभिनय कुशल है।


Inspirational Short Story Haar - Jeet : छोटी सी लघुकथा हार-जीत

3. हार-जीत

जैसे ही पता चला कि पिन्नर साहब ने नौकरी छोड़ दी है, कार्यालय में हलचल तेज हो गई थी। कुछ सोच रहे थे- कंपनी के मालिक यहाँ किसी की बाहर से नियुक्ति करेंगे या पहले से कार्यरत में से किसी को पदोन्नति होगी? कुछ मेरे जैसे सोच रहे थे कि पिन्नर साहब द्वारा खाली किया गया कंपनी का आवासगृह किसे मिलेगा। कुछ ही दिनों में आवासगृह के लिये मेरा और गुप्ता का नाम सबसे ऊपर हो गया। मैंने और गुप्ता ने उसे प्राप्त करने के लिये प्रयास तेज कर दिये। गुप्ता आगे निकल गया और मैं पिछड़ गया। उसे वह आवास गृह आवंटित हो गया। पिन्नर साहब ने अभी उसे खाली नहीं किया था। उनका कहना था कि कंपनी सारे ड्यूज दे देगी, तभी खाली करूँगा। अब जब भी कार्यालय में गुप्ता से सामना होता, वह मुझे विजयी भाव से देखता। मुझे अपनी इस हार का गहरा मलाल था।

एक दिन गुप्ता ने कार्यालय में सबसे कहा- कल शुक्रवार को पिन्नर साहब आवासगृह खाली कर देंगे। मैं शनिवार को उसमें अपना घर बसा लूँगा। आप सब लोग रविवार को मेरे घर पर आमंत्रित हैं। पार्टी करेंगे। सामान शिफ्ट करने के लिये मैं शनिवार को कार्यालय से छुट्टी पर रहूँगा। इसलिये यह निमंत्रण दोबारा नहीं दे सकूँगा। आप लोग याद से रविवार को आजाएँ।

जीत की पार्टी। उसका एक-एक शब्द मेरे दिमाग में हथौड़े सा बजता रहा। शनिवार को उस समय सभी आश्चर्यचकित रह गये, जब गुप्ता को बुझे चेहरे के साथ कार्यालय में मौजूद पाया। उसी ने बताया- पिन्नर साहब ने आवास गृह खाली करते समय उसे भुतहा खंडहर बना दिया है। कमरों के किवाड़ उतार कर ले गये। खिड़कियां, शीशा रहित कर दीं, यहाँ तक कि नलों की ट्रंटियाँ और गमले तक उठा ले गये। उनसे पूछा तो जवाब मिला- इन सबका मैंने बरसों तक इस्तेमाल किया है। इन सबसे मेरा मोह, लगाव, प्यार हो गया है। वैसे तो पूरा घर ही मुझे प्यारा है, पर उसे उठाकर दूसरी जगह नहीं ले जा सकता। जो ले जा सकता था, ले आया। मुझे मालूम है कंपनी तुम्हें अब यह सब नहीं देगी। अपने पास से खर्च कर लगाओ यह सब । जरा अच्छी किस्म का माल लगाना, वह घर मुझे अब भी प्यारा लगता है। इसलिए मैंने वह आवास गृह लेने का विचार छोड़ दिया है।

यह सुनकर सब स्तब्ध रह गये। फिर कोई पिन्नर साहब को चोर तो कोई बेशर्म कहने लगा। लेकिन मैं पिन्नर साहब के लिये ऐसा कोई शब्द इस्तेमाल नहीं कर सका। मेरी हार वाली फीलिंग अब समाप्त थी।


Rochak Laghukatha in Hindi Dustbin : लघुकथा छोटी सी कहानी डस्टबिन

4. डस्टबिन (Dustbin)

बरस बीत गये, उसे, ऐसा करते हुए। उसके इलाके की तरफ जब कभी कोई बड़ा अफसर, मंत्री, सांसद, विधायक आता, वह प्रार्थना-पत्र लेकर उसके दरबार में उपस्थित हो जाता। बरसों पहले दबंगों ने उसके मकान पर कब्जा कर लिया था। कचहरी के चक्कर भी उसको न्याय नहीं दिला सके थे। अब न्याय के लिये नेताओं के दरबार में हाजिर होने लगा।

आज फिर वह एक नेता के सामने उपस्थित था। न्याय की मौखिक पुकार के साथ ही लिखित में आवेदन भी पकड़ा दिया। नेता जी ने झट से पकड़ लिया। कागज पर नजर डाली और बोले- तुम्हें न्याय मिलेगा। नेताजी ने वह कागज पास खड़े एक छुट भैया को पकड़ा दिया। उसने आगे, आगे से आगे वह हवाई जाहज की तरह उड़ने लगा। उसका हाथ अभी भी उठा हुआ था। एक ने कह दिया- अबे, तेरा आवेदन नेताजी ने ले लिया है उस पर कारवाई शुरू हो गई है। हाथ नीचा करले।

आश्वासन को संभालने के लिये हाथ उठा रखा है, अब तक इतने

आश्वासन मिल चुके हैं कि जेब या थैले में रखने की जगह ही नहीं बची।

पता नहीं उसकी यह बात किसी के कान तक पहुँची या नहीं, पर नेता जी बहुत आगे निकल गये थे। उसके आवेदन का हवाई जहाज उड़ता-उड़ता उसके पास खड़े एक सफेद‌फोश के हाथ में आ गया। उसने वह आवेदन उसी को पकड़ा दिया तो वह हैरानी से बोला- मैं इसका क्या करूँ?

अबे, तेरे को इसलिए पकड़ाया है कि डस्टबिन तेरे पास ही रखा है। उसमें डाल दे।

उसने अपने आवेदन को मोड़कर अपनी जेब में रखते हुए कहा- इसका सही डस्टबिन यही है।

- गोविंद शर्मा

ये भी पढ़ें; 5 अनोखी हिंदी की लघु कथाएं : पाँच बेहतरीन लघु कहानियाँ

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top