Environment Special Children Story on International Day of Forest : Trees and Stones : Vishva Van Divas Par Bal Kahani
विश्व वानिकी दिवस विशेष बाल कहानी पेड़ और पत्थर : विश्व वन दिवस 21 मार्च को प्रति वर्ष मनाया जाता है, पेड़ों के महत्व के बारे में, हमारे जीवन में वनों के महत्व बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 21 March International Forest Day मनाया जाता है। धरती पर जीवन चक्र को संतुलित करने के लिए वनों का होना आवश्यक है, वनों के महत्व को समझाने के लिए विश्व वन दिवस मनाया जाता है। बच्चों में वनों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए कहानी श्रेष्ठ मध्यम है, बाल साहित्यकार गोविंद शर्मा ने अपनी बालकथा संग्रह पेड़ और बादल में 10 पर्यावरण बाल कथाएं लिखी है जो बच्चों को प्रेरित करती है कि पर्यावरण संरक्षण करना क्यों जरूरी है। पर्यावरण संरक्षण और पेड़ों का महत्व को बताती पेड़ और पत्थर कहानी बच्चों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है। वैज्ञानिक ढंग से लिखी ये पर्यावरण बालकथाएँ बच्चों के मन में जगह बना लेती है। ये कहानियां मानव मूल्यों की नींव रखती हुई, बालक के मन को ही नहीं छूती बड़ों को भी प्रभावित करती हैं। पढ़े पर्यावरण पर रोचक बाल कहानी पेड़ और पत्थर।
पर्यावरण को समर्पित उत्कृष्ट बाल कथाएं अंतरराष्ट्रीय वन दिवस पर विशेष
पेड़ और पत्थर
सड़क के किनारे उसे एक खाली जगह मिल ही गई। उसने जगह को साफ किया और गड्डा खोदा। उसमें वृक्षारोपण कर दिया। नन्हें पौधे के चारों ओर ईन्टों से दीवार बना दी। इस तरह वह पशुओं से सुरक्षित हो गया। वह दूसरे-तीसरे दिन आता और अपने साथ लाए पानी से सिंचाई करता।
एक दिन उसने देखा ईन्टें गिरी हुई है। टायरों के निशान बता रहे थे कि किसी वाहन ने टक्कर मारी है। अच्छी बात यह रही कि पौधा टूटा नहीं। उसने दोबारा ईन्टों को पौधे के चारों तरफ लगाया। अब वह उस पौधे को सड़क से नीचे उतरकर चलने वाले वाहनों की टक्कर से बचाने की सोचने लगा। उसे कुछ ही दूर पड़ा एक बड़ा पत्थर दिखाई दिया। वह अकेला उस पत्थर को नहीं हिला सका। अगले दिन वह अपने कुछ साथियों को बुलाकर लाया। साथियों ने मिलकर पत्थर को खिसकाया और पौधे के पास ही सड़क की तरफ रख दिया। अब किसी वाहन की टक्कर से पौधे को नुकसान नहीं होगा। वाहन वाले स्वयं को बचाने के लिये पत्थर से दूर होकर जाएँगे।
कुछ ही समय में पौधा विकसित होकर पेड़ बन गया। चारों तरफ उसकी डालियाँ फैल गईं। पत्थर पूरी तरह से ढक गया। उसने पेड़ को देखा और सोचा- यह तो लम्बा ऊँचा वृक्ष बनना चाहिए। कल कुल्हाड़ी लेकर आऊँगा और इसकी फालतू टहनियाँ काट दूँगा।
रात में उसे सपना आया। पेड़ को काटने-छांटने के लिये उसने कुल्हाड़ी उठाई ही थी कि आवाज सुनाई दी.... "मत काटो, मत काटो।" उसने चारों तरफ देखा, उसे कोई नजर नहीं आया। वह हैरान हो गया। तभी आवाज सुनाई दी "मैं स्वयं पेड़ बोल रहा हूँ। मैं ही कह रहा हूँ कि मुझे मत काटो।"
"नहीं नहीं, पेड़ महोदय, आप गलत समझ गये। मैं आपको काट नहीं रहा हूँ। मैं आपकी छंटाई कर रहा हूँ ताकि आपका स्वरूप सुंदर बन जाए और आपका कद भी ऊँचा हो जाए। आपकी जिन टहनियों ने बेकार में ही उस पत्थर को ढक रखा है या मिट्टी पर लोटपोट हो रही हैं, सिर्फ उन्हें ही काटूंगा।"
"किसी भी पेड़ में कुछ भी बेकार नहीं होता है। इस पत्थर को तो मैंने जानबूझ कर ढक रखा है। आप तो जानते ही हैं, जबसे मैं छोटा था, तब से यह मेरे पास हैं। इसने एक पित्ता की तरह मेरी रक्षा की है। टक्कर मारने वाले वाहनों का प्रहार इसने अपने ऊपर झेला है और मुझे बचाया है। अब मैं बड़ा हो गया हूँ इसलिये मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं इस पत्थर की सहायता करूँ। मैंने अपनी टहनियों की छतरी इसके ऊपर तान रखी है ताकि यह धूप और बरसात के कष्टों से बच सके। आप मुझे अपने पिता की सेवा करने से वंचित न करें।
पेड़ की बात सुनकर वह हैरान हो गया। वह पेड़ की छंटाई करना जरूरी समझता था। इसलिये पेड़ से बातें करता रहा। पेड़ था कि मान ही नहीं रहा था। पत्थर को हँसी आ गई। वह बोला- "युवक, क्या तुम पेड़ काटने के लिये कुछ काम कर सकते हो ?"
"हाँ हाँ, बताओ, मुझे क्या करना है?"
"देखो, चारों तरफ देखो। इस पेड़ के बीज गिरने से कितने नन्हें-नन्हें पौधे उग आए हैं। ये सब इस पेड़ के बच्चे हैं। यदि ये यूँ ही उगे. रहे तो नष्ट हो जाएँगे। तुम इन्हें किसी और जगह लगा दो। उनकी रक्षा के लिये मुझे उनके पास रख दो। मैं इनकी रक्षा करूंगा और इन्हें बड़ा होते देखता रहूँगा- मुझे इसी में सुख मिलता है। तुम यदि नये लगाए गए पौधों के पास मुझे रख दोगे तो इस पेड़ को कोई आपत्ति नहीं होगी। तब वह अपने को कटवाने-छंटवाने के लिये तैयार हो जाएगा।"
"हाँ हाँ, क्यों नहीं? मैं कल ही सही जगह देखकर ज्यादा से ज्यादा पौधों को वहाँ रोपित कर दूँगा। तुम्हें भी रक्षक बनाकर उनके पास रख दूँगा।"
यह सुनकर पेड़ की आँखों में आँसू आ गए। वह बोला- "पत्थर के यहाँ से हटने पर मुझे दुख तो होगा। पर खुशी यह रहेगी कि यह मेरे परिवार के पास ही रहेगा। मेरी तरह ही उनकी रक्षा करेगा। पत्थर पिता, तुम महान हो। अपना कर्त्तव्य पूरा कने के लिये सदा तैयार रहते हो। हवाओं के साथ मैं अपने समाचार तुम्हें भेजता रहूँगा।
"हाँ, हवा में तुम्हारी गंध को मैं पहचान लूँगा और पक्षियों के साथ अपनी और तुम्हारे बच्चों की कुशलता का समाचार भिजवाता रहूँगा।"
उसकी आँख खुल गई। सपना उसे पूरी तरह से याद था। आज उसने पेड़ काटने के लिये कुल्हाड़ी की बजाय कुछ खुरपियों का इंतजाम किया। पौधों को नई जगह लगाने और पत्थर को वहाँ तक ले जाने के लिये उसने अपने साथियों को बुला लिया।
- गोविंद शर्मा
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