5+ Short Stories in Hindi : Govind Sharma Ki Laghu Kathayen
पाँच बेहतरीन छोटी सी कहानियाँ : लघुकथा संग्रह खाली चम्मच से पाँच बेहतरीन लघुकथाएं 1. भूत लघुकथा 2. लघुकथा संपत्ति-दान 3. स्वागत छोटी कथा 4. मनहूस छोटी सी लघुकथा 5. अन्याय प्रेरक लघुकहानी। गोविंद शर्मा की 5 लघुकथाओं द्वारा जीवन के हर पक्ष की खबर की है। शिक्षा, संस्कार सम्मान, समानता सभी क्षेत्र में हो रहे भेदभाव का जिक्र लघुकथा भूत, तकाजा, भूख आदि में है। प्रस्तुत है आपके लिए हिन्दी के लघुकथाएं पढ़े और साझा करें।
हिंदी की 5+ प्रतिनिधि लघुकथाएँ : लघुकथा संकलन खाली चम्मच से पाँच कहानियाँ
हिन्दी लघुकथा भूत : Bhoot Laghu Kahani in Hindi - Short Story Ghost
1. भूत (Ghost)
एक स्टेशन के प्लेटफार्म पर। जैसा कि होता है, किस्म-किस्म के लोग। कुछ लड़के थे। पढ़े-लिखे, खाते-पीते घर के पास में ही बैठा एक वृद्ध गांव का लगता था। उसका शरीर कपड़े सब कह रहे थे, बिना खाते-पीते घर का है। लडकों ने नमकीन के पाउच खोल रखें थे और हँसते हुए, बातें करते हुए खा रहे थे। वह बसी हसरत से उन्हें देख रहा था। एक ने पूछ लिया तुम भी खाओगे?
हाँ
भूख है ?
हाँ, मुझे....।
इसके आगे जो कहा, उसे सुनकर लड़कों की हँसी छूट गई। एक ने पूछ लिया- लगता है तुम्हारे मुँह में एक भी दाँत नहीं है। नकली दाँतों का सेट क्यों नहीं लगवाते?
क्या काम आयेंगे वे दाँत ?
खाने के काम आयेंगे।
खाना कहाँ है?
चलो छोड़ो, मुँह में दाँत होंगे तो मुँह से आवाज सही निकलेगी। अभी तुमने कहा था- भूख है। मुँह से निकला भूत है।
लड़के एक बार फिर हँसे।
वह बोला- तो क्या गलत निकला। जाने कब से भूख भी भूत की तरह मुझसे चिपकी हुई है। इससे पीछा छूट ही नहीं रहा।
ट्रेन आ गई थी। लड़के उस 'प्रगति एक्सप्रेस' में चढ़कर चले गये? वह अब भी वहीं खड़ा था।
शिक्षाप्रद लघुकथा संपत्ति-दान : Motivational Short Story Donation of property
2. संपत्ति-दान (Donation of property)
यह वृद्ध बहुत धीरे धीरे चल रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह बहुत दूर से आ रहा है और बुरी तरह थक गया है। एक कार वाले को उस पर रहम आ गया। अपनी कार उसके पास रोकी और रौब से बोला- तुम से चला नहीं जा रहा है। मेरी कार में बैठ जाओ। अपने धूल भरे पैर सीट पर मत रख देना। वृद्ध कार में बैठ गया। कुछ दूर जाने पर वृद्ध ने उतरने के लिये कार को रुकवाया। कार रुकी। वृद्ध उत्तरते वक्त लड़खड़ा गया और गिरने को हुआ था कि पास से गुजर रहे एक साधारण से व्यक्ति ने संभाल लिया। अपने दोनों हाथों में उठाकर उसे सडक किनारे के पत्थर पर बैठा दिया। पत्थर पर बैठते ही वृद्ध ने उस साधारण व्यक्ति के लिये धन्यवाद, आभार, आशीर्वचनों की झड़ी लगा दी।
यह देखकर कार वाले को बड़ी हैरानी हुई। कुछ नाराजगी भी हुई। बोला- मैं इतनी कीमती कार में बैठा कर लाया, मेरा अहसान बिल्कुल नहीं माना और उस साधारण आदमी को इतने धन्यवाद !
वृद्ध ने पूछा- तुमने मेरे लिये कार रोकी, यहाँ तक लेकर आये। तुम्हारा कितना नुक्सान हुआ? तुमने मुझे क्या दे दिया?
नुक्सान ? दे दिया? अरे मेरे पास इतनी संपत्ति है कि ऐसी दस कारें भी किसी को दे दूँ तो वह शून्य के बराबर होगी।
मैं भी यही समझा हूँ। उस साधारण आदमी की इतनी भी हैसियत नहीं है कि मुझे किसी गधे, घोडे या रिक्शे पर बैठा कर कहीं ले जा सके। फिर भी उसने अपनी सारी संपत्ति मेरे हवाले कर दी... उसकी संपत्ति... उसके दो हाथ और प्यार भरा दिल है। जिन्हें वह बिना तरस खाये अनजान की मदद के लिये सौंप देता है। इसलिये......।
उसके बाद वहाँ कार के स्टार्ट होकर दूर जाने की ध्वनि ही सुनाई दी।
नैतिक शिक्षाप्रद लघु-कथा स्वागत : Moral Short Story in Hindi Welcome
3. स्वागत (Welcome)
उनके पार्टी दफ्तर में एक दिव्य आत्मा ने प्रवेश किया तर मैं आपकी पार्टी में शामिल होने के लिये आया हूँ।
कहाँ से आये हो?
जी, अपने घर से। पहले पढ़ा, फिर नौकरी की। अब सिर्फ जनसेवा करने का इरादा है।
ठीक है, उधर कोने में बैठ जाओ, बेरुखी से जवाब मिला।
उसके बाद एक और दिव्य आत्मा ने प्रवेश किया सर, मैं आपकी पार्टी में ....।
कहाँ से आये हो?
सर, कई वर्ष तक आपकी घोर विरोधी पार्टी में रहा। अब वह सत्ता से बाहर है। उम्मीद भी नहीं कि वह अब दोबारा सत्ता में आयेगी। इसलिये उसे छोड़कर आपके पास आया हूँ।
वाह, वाह, स्वागत है। अरे, इनके लिये फूलमाला लाओ, बैंड वालो को बाजे बजाने के लिए कहो, गीत गाओ, अखबार वालों, चैनल वालों को बुलाओ, कैमरे ऑन करो। एक भला आदमी चोरों को छोड़कर हमारे पास आया है...।
यह देखकर पहले वाली दिव्य आत्मा बड़बड़ाई - काश, मैं भी किसी दूसरी पार्टी से होता हुआ आता।
प्रेरक एवं शिक्षाप्रद लघु कहानी मनहूस : Short Story unlucky in Hindi
4. मनहूस (Unlucky)
हमारे सामने वाला मकान हमारी मजाक का केन्द्र बन गया। क्योंकि उसमें कोई भी किरायेदार पाँच छह महीने से ज्यादा ठहरता ही नहीं। कारण यही सुनने को मिलता कि मकान मालिक और किराएदार में ठन गई। कभी किराएदार को तो कभी मकान मालिक को दोषी बताया जाता। अभी-अभी उसमें नये किरायेदार आए है। एक पुरुष और एक महिला। महिला को देखकर तसल्ली हुई। चलो, अब सुबह एक सुंदर चेहरा तो देखने को मिलेगा।
पर अगली सुबह-सुबह पुरुष का चेहरा देखने को मिला। उससे अगले दिन भी ऐसा ही हुआ। इन दो दिनों में मेरे सामने कई झंझट आए। कार्यालय देर से पहुँचा तो बॉस से डाँट खानी पड़ी। घर पर बीवी ने मुँह फुलाए रखा। बच्चों की स्कूल फीस जमा करवाने में विलंब हो गया तो अर्थदंड देना पड़ा। घर की बिजली खराब हो गई। अखबार में भेजी रचना बिना छपे वापस आ गई तो संपादक मित्र को दुआ की बजाय गाली देनी पड़ी।
यह सब क्यों हुआ? मुझे विश्वास हो गया कि सामने वाला पुरुष मनहूस है। उसका मुँह सुबह सवेरे दिखने से ये सब मुसीबतें आई हैं। अब मैं सुबह-सुबह उसके सामने पड़ने से बचने लगा। लेकिन जिस दिन उसके दर्शन हो जाते, डरता रहता कि कोई न कोई संकट जरूर आएगा।
एक दिन पता चला कि किरायेदार मकान छोड़कर जा रहा है। उसका मकान मालिक से या किसी और से भी कोई विवाद नहीं सुना गया। मुझे चिंता हो गई। मैंने एक दो मित्रों को उसे मनहूस बता दिया था। हो सकता है किसी ने उसे बता दिया हो और वह नाराज होकर जा रहा हो। मैंने अपने एक दोस्त को यह बताया और पता लगाने को कहा कि वह क्यों जा रहा है?
मित्र ने जो बताया, उसे सुनकर मेरे पाँव के नीचे से जमीन निकल गई। वह इसलिए जा रहा था कि वह मुझे 'मनहूस' मानता है। जिस दिन भी सुबह सवेरे मेरा मुँह देख लेता है, उसे कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। मैं और मनहूस? कहीं ऐसा तो नहीं कि इससे पहले जो किराएदार छोड़कर गए, वे भी मुझे मनहूस मान कर ही यहाँ से गए हों?
मैं क्या करता? अब मैं सब जगह यही कहता हूँ कि मनहूस-वनहूस कोई नहीं होता है, बस मन का वहम है।
अन्याय के विषय पर बेहतरीन लघुकथा : Anyay Laghukatha - Short Story Injustice
5. अन्याय (Injustice)
उन्होंने स्कूल- प्रिंसीपल के कार्यालय को घेर रखा था। नारे लगा रहे थे- स्कूल में होने वाले अन्याय को नहीं सहेंगे, नहीं सहेंगे।
मैंने सोचा, जरूर किसी बच्चे के साथ कोई गलत हरकत हुई है। आजकल स्कूल वालों के पास चरित्र तो रहा ही नहीं। पर यह सोचना गलत निकला। पता लगा कि छात्रों की नये विचार की मांग पर प्रिंसीपल ने उनके बीच प्रतियोगिता रखी थी। पहले दस स्थान पर आने वालों के लिये इनाम की भी घोषणा की थी। प्रतियोगिता का विषय था- सबसे ज्यादा कौन मोबाइल पर नेट सर्च करने, वीडियों देखने, चैट करने पर समय लगाता है। भाग लेने वाले छात्र प्रविष्टि के साथ सबूत भी पेश करें। यथा माता-पिता की फटकार, उड़ी हुई नींद से सूजी हुई आँखों की फोटो, होमवर्क न करने की रिपोर्ट, परीक्षा में फेल होने या कम नंबर लेने का प्रमाण आदि आदि।
प्रिंसीपल को आशा थी कि छात्र शरमायेंगे और कम ही इस प्रतियोगिता में भाग लेंगे। मोबाइल पर समय नष्ट करने से बचेंगे भी। परन्तु लगभग सभी छात्रों ने प्रविष्टि प्रपत्र पेश किया। उनमें से अध्यापकों ने दस को प्रथम घोषित कर दिया। परिणाम की घोषणा के साथ ही विरोध शुरू हो गया। प्रिंसीपल के कार्यालय का घेराव हो गया। भीतर अकेले प्रिंसीपल और बाहर असंख्य प्रदर्शनकारी। उनमें छात्र एक भी नहीं, सबके सब स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक । उनका कहना यह था कि मेरा बच्चा सबसे ज्यादा समय देता है, हमने उसे हजारों रुपए का मोबाइल दिलवाया है। मेरा ही बच्चा प्रथम दस में होना चाहिए।
काफी संघर्ष के बाद समझौता हुआ कि परिणाम रद्द किया जायेगा और दोबारा नई चयन समिति से चयन करवाया जायेगा। नई चयन समिति में अभिभावकों के प्रतिनिधि भी होंगे।
अब तक गायब स्टाफ के सदस्य प्रकट हो गये और प्रिंसीपल को अपने घेरे में बाहर ले जाने लगे। एक ने रहम खाते हुए कहा- सर आपको भारी तकलीफ हुई। इन प्रदर्शनकारियों ने आप तक चाय, पानी, खाना, कुछ भी पहुँचने नहीं दिया। यहाँ तक कि आपके कार्यालय की बिजली भी काट दी। आपको भारी अन्याय सहना पड़ा।
प्रिंसीपल ने मुस्कुराते हुए कहा- नहीं, भारी अन्याय नहीं हुआ। क्योंकि मेरे पास मोबाइल था, उसकी बैटरी फुल थी और नेट भी बराबर उपलब्ध रहा।
- गोविंद शर्मा
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