Children's story related to water problem: Water thief : Bal Kahani Jal Chor
पानी की समस्या पर आधारित बाल कहानी जल चोर : पर्यावरण पर छाए खतरों से परिचित कराती है ये बाल कहानी जल चोर, पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न पहलुओं पर पर्याप्त प्रकाश भी डालती है। श्री गोविंद शर्मा बाल साहित्य जगत के ख्यातनाम हस्ताक्षर है, बच्चों के लिए उनकी लगभग पैंतीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। जल के महत्व को बताते हुए बच्चों के लिए लिखी गई बाल कहानी जल चोर बच्चों पर गहरा प्रभाव डालती है। यह कहानी पर्यावरण बाल कथाएं पेड़ और बादल से ली गई है। जल संरक्षण के बारे में बच्चों को कहानी के माध्यम से समझाना उचित है क्योंकि बच्चे कहानी को अच्छी तरह समझ सकते हैं, कहानी सुनकर बच्चों पर जल संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और वे जल संसाधनों को बचाए रखने के लिए प्रेरित करती है जल चोर बाल कहानी। विश्व जल दिवस पर विशेष जल संरक्षण से जुड़ी बच्चों के लिए कहानी जल चोर। world water day special children's story water thief, vishwa jal diwas par bal kahani jal chor in Hindi...
पानी का महत्व को समझाती प्रेरणादायक बाल कहानी
जल चोर
कार्यालय में पीठ पीछे गुप्ताजी का सब मजाक उड़ाते थे। कुछ मित्र तो उनके मुँह पर ही उनकी एक विशेष आदत के कारण मजाक कर लेते थे। गुप्ताजी भी कह देते- मैं आप लोगों द्वारा मेरा मजाक उड़ाने से नाराज नहीं होता हूँ। एक न एक दिन आप सबके दिल में देश के लोगों का, सारी मानवता के हित का विचार जरूर आयेगा और आप भी मेरी आदत को अपनायेंगे।
उनकी आदत ? जी हाँ, उनकी आदत थी पानी बचाने की। वे पानी की एक बूंद भी व्यर्थ नहीं जाने देते थे, और अपने साथ काम करने वालों को भी टोकते रहते कि पानी को फिजूल मत बहाओ।
एक दिन कार्यालय में ही लंच टाइम में उनके सामने पानी बचाने की बात चल पड़ी। एक दोस्त ने मजाक में पूछा- क्या आप अपने मुहल्ले में भी पानी के साथ अच्छे बर्ताव का उपदेश देते हैं?
उपदेश ही नहीं देता, पानी बचाने के लिये मजबूर भी करता हूँ।
फिर तो आपके अड़ोसी-पड़ोसी आपको जलदेव, जलदाता या फिर जलकंजूस कहते होंगे ?
गुप्ता जी हँसे और बोले- नहीं, वे तो मुझे 'जलचोर' कहते हैं।
अरे, ? क्या आपको अपने लिये ऐसा सुनना बुरा नहीं लगता? हमें तो कोई चोर कहदे तो हम उसी समय उनका गला पकड़ लें।
मैं समझ गया... मैं समझ गया, कहते हुए एक मित्र ने कहा, मैं रोज देखता हूँ कि इनकी कार धुलो हुई चकाचक होती है। ऐसा होता होगा कि गुप्ता जी, अपने घर का पानी तो बचा लेते होंगे, पर दूसरों का पानी चुरा कर अपनी कार, अपने घर के आगे की सड़क धो लेते होंगे।
उसकी बात सुन कर गुप्ता जी को हँसी आगई। बोले, हाँ, यह सही है कि मेरी कार रोजाना धुलती है, कभी-कभी घर के आगे की सड़क भी। पर इसके लिये पानी कहाँ से आता है, कैसे आता है, यह जानना है तो कभी सुबह साढ़े चार-पाँच बजे मेरे घर आकर देखें।
दोस्तों की उत्सुकता बढ़ गई। कई एक साथ बोले-नहीं, नहीं, हम उस समय जागें और आपके घर तक आएँ, हमारे लिये बहुत मुश्किल है। आप अभी यहीं बता दें कि आपके पास इन कामों के लिये पानी कहाँ से आता है। आप जो कहेंगे, हम मान लेंगे। क्योंकि हम जानते हैं कि आप झूठ नहीं बोलते हैं और चोर तो बिल्कुल नहीं हैं।
गुप्ता जी हँसे और बोले- जब कोई मुहल्ले वाला मुझे जलचोर कहता है तो वह भी हँसता है और मुझे भी हँसी आ जाती है।
हमारे मुहल्ले में सभी घरों के ऊपर पानी का स्टोर करने के लिये टंकी बनी हुई है। उसे रोजाना भरा जाता है और फिर दरियादिली से उसका पानी सारा दिन इस्तेमाल किया जाता है। उसे भरने के लिये सभी ने मोटरें लगा रखी है। उसे चलाने के लिये घर के लोग किसी तरह सुबह चार बजे उठ जाते हैं। उसको चालू करते है और फिर सो जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं चलता कि ऊपर की टंकी कब भर गई और पानी ओवरफ्लो होकर घर के बाहर सड़क पर फैल रहा है।
इस तरह फिजूल बहते पानी को रुकवाने के लिये मैं घर-घर जाकर यह कहने लगा कि टंकी के भरते ही मोटर बंद कर दिया करें। आपके आलस के कारण पानी और ब्रिजली फिजूल ही खर्च हो रहे हैं। अपने देश में दिन-ब-दिन बिजली-पानी की जरूरत बढ़ रही है। यदि हम ऐसी फिजूल खर्ची करेंगे तो कहाँ से आयेगा पानी ? कहाँ से मिलेगी बिजली?
कुछ लोगों पर मेरी बात का असर हुआ और वे अपनी मोटरें समय पर बंद करने लगे। पर बहुत समझाने पर भी कुछ अभी भी नहीं मान रहे हैं। तब उस फिजूल बहते पानी का उपयोग करने की ठानी। आप लोग जानते ही हैं कि मेरे घर के आगे एक छोटा सा किचन गार्डन है। पौधों के कई गमले हैं। मैं उस फिजूल बहते पानी को अपनी बाल्टियों में भर कर लाता हूँ और किचन गार्डन तथा गमलों में लगे पौधों की सिंचाई करता हूँ।
घर से दूर बह रहे फिजूल पानी का उपयोग कार धोने में करता हूँ। कार चलाकर वहाँ ले जाता हूँ जहाँ पानी ओवर फ्लो हो रहा होता है। इस तरह उन घरों के लोगों को पता ही नहीं चलता और उनके फिजूल बहते पानी का उपयोग मुफ्त में कर लेता हूँ।
हाँ, कुछ मुहल्लावासी जो सुबह की सैर पर निकलते हैं, वे मुझे मजाक में जलचोर जरूर कहते हैं। मेरी इस 'जल चोरी' की कहानी मुहल्ले में फैली तो कुछ और लोग भी समय पर जाग कर अपनी मोटरें बंद करने लगे। पर मुझे अब भी कभी-कभी, कहीं- कहीं जलचोरी का मौका मिल जाता है। सुबह की सैर हो जाती है, कसरत हो जाती है और पानी फिजूल बह जाने से बच जाता है। ऐसे में "जलचोर" कहलाना मुझे बुरा क्यों लगे?
अब कोई मित्र कुछ नहीं बोला। वैसे दिन-ब-दिन गुप्ता जी खुश हो रहे हैं। क्योंकि वे देख रहे हैं कि अब कोई उनका मजाक नहीं उड़ाता है। कुछ तो पानी के बारे में उनकी आदतें अपनाने भी लगे हैं।
- गोविंद शर्मा
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