अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता

Dr. Mulla Adam Ali
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Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya's Experimentation

Agyeya's Experimentation

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की प्रयोगधर्मिता

"पहले मैं एक सन्नाटा बुनता हूँ

उसी के लिए स्वर-तार चुनता हूँ"

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार हैं। 'सच्चिदानंद' मुख्यतः बहिर्मुखी व्यक्तित्व हैं, जब कि कवि अज्ञेय अंतर्मुखी कलाकार हैं। उनके जीवन का उनके साहित्य से विशेष संबंध है। वस्तुतः अज्ञेय का व्यक्तित्व उनके रचनाओं की मूल शक्ति है और शायद सीमा भी।

अज्ञेय हिन्दी साहित्य में प्रयोगत्मकता एवं नवीनता को लेकर आए। वे प्रयोगवाद के प्रवर्तक माने जाते हैं। 'सप्तक' की भूमिका में उन्होंने लिखा है- "प्रयोगवाद कोई वाद नहीं है। हम वादी नहीं रहे, नहीं है। न प्रयोग अपने आप में इष्ट या साध्य है ! ठीक उसी तरह कविता भी कोई वाद नहीं है; कविता भी अपने आप में इष्ट वा साध्य नहीं है। अतः हमें प्रयोगवादी कहना इतना ही सार्थक या निरर्थक है जितना हमें कवितावादी कहना !"

बीसवी सदी की कविता को पूर्णरुपेण आधुनिक बनाने का श्रेय अज्ञेय को दिया जाता है। केवल कविता ही नहीं अपितु आधुनिक साहित्य की हर एक विधा को अज्ञेय ने आधुनिकता प्रदान की है। अपने आप में एक समर्थ कलाकार होने के साथ-साथ वे हिन्दी साहित्य के संदर्भ में एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व भी है। अज्ञेय ने विविध कोटि के बहुत से ग्रंथों की रचना की है और साहित्य का संपादन भी किया है। कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, यात्रा वृतांत, संपादित ग्रंथ, समीक्षा, आलोचना, नाटक, अंग्रेजी में लिखा गया उनका साहित्य यह सारी बातें इस तथ्य को उजागर करती हैं। अज्ञेय का रचना संसार काफी विशाल और विस्तृत फैला हुआ है। 'नाचत हैं भूमिरी' से उनकी काव्य यात्रा का आरंभ होता है और 'असाध्य वीणा' में उसका विकास चरमसीमा पर जा पहुँचा है।

अज्ञेय जी ने अपनी साहित्यिक जीवन में कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं। अज्ञेय को "आंगन के पार द्वार" पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। अज्ञेय को "कितनी नावों में कितनी बार" के लिए भारत का सर्वोच्च ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ! 'भारतभारती' एवं 'कविश्री' पुरस्कार से अज्ञेय सम्मानित हो गए हैं।

अज्ञेय का काव्य विकास चार सोपानों पर हुआ है। 'भग्नदूत' 'चिंता' तथा 'इत्यलम' की कुछ कविताएँ छायावादी रचनाएँ हैं। 'हरी घास पर क्षणभर' और 'बावरा अहेरी' की रचनाएँ नई कविता की प्रयोगकालीन या प्रारंभिक रचनाएँ हैं। 'इंद्रधनुष रौदे हुए ये' तथा 'अरी ओ करुणा प्रभामय' की कविताएँ नई कविता के प्रौढ काल की रचनाएँ हैं।

अज्ञेय का अन्वेषण 'इत्यलम' से प्रारंभ हो जाता है। 'हरी घास पर क्षणभर' तथा 'बावरा अहेरी' में कवि साधन खोजता हुआ विकास की ओर अग्रसर हो जाता है। 'इंद्रधनु रौदे हुए ये', 'अरी ओ करुणा प्रभामय' तथा 'आंगन के पार द्वार' में आकर कवि उपलब्धि की सीमा पर आ जाता है और चौथे में 'क्योंकि उसे मैं जानता हूँ', 'सागर मुद्रा' तथा 'पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ !' यह उनका काव्यप्रवास है। अज्ञेय के चार काव्य चरणों में विकसित है - पहला है विद्रोह और हताशा का, दूसरा है अपने भीतर शक्ति संचय का और तीसरा है बिना किसी आशा के आत्मदान में सार्थकता पाने का और चौथा है मानवीय दायित्व बोध के साथ-साथ भारतीय अस्मिता की पहचान का। अतः अज्ञेय का काव्य छायावादी रचनाओं से प्रारंभ होता है और आज वह उत्तर छायावादी काव्य की विशिष्ट काव्यधारा नई कविता की राहपर अग्रसर है।

अज्ञेय के काव्य का अनुशीलन करने के बाद एक बात स्पष्ट रुप से सामने आती है वह यह की अज्ञेय जी मूलतः प्रेम और प्रकृति के कवि हैं। अज्ञेय की कविता व्यक्तिनिष्ठ कवि की कविता है। उनकी कविता में अकेलेपन का वैभव तथा रोमांटिक व्यक्तिवादी विद्रोह मिलता है।

'कन्हाई ने प्यार किया' का उदाहरण अज्ञेय की प्रेम विषयक धारणा को स्पष्ट करता है। कवि प्रेम के बारे में कहता है -

"कवि ने गीत लिखे नये-नये बार-बार / पर उसी एक विषय को देता रहा विस्तार

जिसे कभी पूरा पकड़ पाया नहीं / किसी एक गीत में वह अहं गया दिखाता

तो कवि दूसरा गीत ही क्यों लिखता ?"

अर्थात अज्ञेय की नजर से प्रेम एक ऐसा विषय है जिसे गीतों में नहीं बाँधा जा सकता। प्रेम शब्दातीत एवं वर्णनातीत हैं। प्रेम की व्याख्या या परिभाषा करना कवि के लिए मश्किल पैदा करता है यह अज्ञेय का कथन है।

अज्ञेय का भावजगत अत्यंत विस्तृत एवं व्यापक है। उसमें वैयक्तिक सुख, नारी प्रेम का रुप, प्रकृति के विविध दृष्य, आत्मा-परमात्मा परक रहस्यवादी कविता के साथ-साथ व्यंग्य और विरोध के स्वर भी उसमें विद्यमान हैं। अज्ञेय आरंभ से लेकर अंत तक प्रयोगशील कवि रहे हैं। यह प्रयोगशीलता उनके अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों स्तरों पर प्राप्त होती है। अनुभूति की दृष्टि से जहाँ उन्होंने अनेक भावों को प्रधानता दी वही हिन्दी की खड़ी बोली को नया संस्कार भी प्रदान किया। शब्दों को नई रोशनी प्रदान की तथा भाव के अनुकूल नई भाषा और नए शिल्प का प्रयोग भी अज्ञेय ने किया !

अज्ञेय की 'सौंप' कविता का उदाहरण व्यंग्यात्मक भाव के लिए दृष्टव्य है। कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -

"साँप ! तुम सभ्य तो हुए नहीं / नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।

एक बात पूहूँ-(उत्तर दोगे ?) तब कैसे सीखा डसना ? / विष कहाँ पाया।"

वास्तविकता तो यही है कि, अज्ञेय ने आधुनिक कविता के परंपरावादी रूप को नया रूप प्रदान किया। परंपरागत छंदों में नई लय फूंकने का कार्य किया और लोकगीत की शैली को स्वीकृत करने के लिए गीति शैली के लिए एक नवीन मार्ग खोलने का कार्य किया!

रहस्यात्मकता छायावाद के कारण अज्ञेय की कविता में परिलक्षित होती है। कवि में प्रायः सर्वत्र अपनी अनुभूति को प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। उदाहरण के लिए कवि की कविता 'अकेला दीप' का उदाहरण उल्लेखनीय है। यह कविता अज्ञेय के सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक मानी जाती है।

अज्ञेय की कविता में 'सीप', 'द्वीप' और 'दीप' इन प्रतीकों का प्रयोग उन्होंने कुशलता से किया है। कवि का व्यक्तित्त्व उसकी सीमा नहीं, सुंदर द्वारा श्रेष्ठ तक पहुँचने का साधन है-

"यह दीप, अकेला, स्नेह भरा !

है गर्वभरा मदमाता, पर इस को भी पंक्ति को दे दो! जिज्ञासु, प्रबुद्ध, सदा श्रद्धामय इसको भक्ति को दे दो !!"

बीसवी सदी की अनेक करुण कथाएँ आज भी हम - भूले नहीं हैं। अणुबम की त्रासदी मानव जीवन को पूर्णरुपेण अभिशप्त कर चुकी है। आज 21वीं सदी के प्रथम चरण से ही युद्ध का वातावरण फैला हुआ है। हिन्दुस्तान की सीमापर जंग के बादल छाए हैं। आधुनिक मानव की यह खोज मानव जीवन की इहलीला को समाप्त करनेवाला है जिसका संकेत अज्ञेय ने 'हिरोशिमा' इस कविता में दिया है-

"मानव का रचा हुआ सूरज / मानव को भाप बनाकर सोख गया

पत्थरपर लिखी हुई यह / जली हुई छाया / मानव की साखी है।"

'नदी के द्वीप' कविता में अज्ञेय ने व्यक्ति और समाज के अंतर्गत जो संबंध है उसका चित्रण किया है। नदी सामाजिक चेतना प्रवाह की प्रतीक है। भूखंड समाज का

द्वीप व्यक्ति चेतना का प्रतीक है - "नदी तुम बहती चलो ! / भूखण्ड से जो दाय हमको मिला है, मिलता रहा है, ।

माँजती, संस्कार देती चलो !"

'नंदादेवी' इस रचना में कवि ने आज के सत्य को उ‌द्घाटित किया है। कवि बडे ही आत्मविश्वास के साथ सरकार, योजना, भूख, बेबसी, ठेकेदार से जुडे जीवन के नंगेपन को व्यंग्यभरी दृष्टि से देखता है। विकास की योजनाएँ बडे बडे महानगरों तक ही सीमित है। गाँव उपेक्षित है। लोक संस्कृति से हमारी विमुखता की ओर भी संकेत है-

"वहाँ दूर शहर में। बडी भारी सरकार है। कल की समृद्धि की योजना का। फैला कारोबार है । और यहाँ इस पर्वती गाँव में। छोटी से छोटी चीज की भी दरकार है।

आज की भूख बेबसी की। बेमुरवत मार है।"

अज्ञेय की और एक विशेषता यह है कि उन्होंने परंपरागत उपमानों को नकारा है और नए उपमानों की आवश्यकता का प्रतिपादन किया है। 'कलगी बाजरे की' यह उनकी कविता इस दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है-

"नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है । या कि मेरा प्यार मैला है।

बल्कि केवल यहीं ! / ये उपमान मैले हो गए हैं। देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच"

उनकी एक अंग्रेजी रचना देखिए -

"Here in the fog / All nameless aliens / Here all pathless feet / Here/All eyes sightless Here -for nowhere / Sing Rama, Kabir/"

चिंतनशील कविता के जन्म के पीछे यही हकीकत होती है -

"Every dawn / I live a little into the past / Because every evening I die a little into the future."

महान साहित्यकार अज्ञेय के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। प्रतिभा संपन्न कवि, शैलीकार, नई कहानी के सशक्त हस्ताक्षर, ललित निबंधकार, अच्छे संपादक, सफल उपन्यासकार, यात्री और महान अध्यापक ऐसे पहलुओं से अज्ञेय का व्यक्तित्व समृद्ध है। आज की हिन्दी कविता पर अज्ञेय की अद्वितीय काव्यप्रतिभा की गहरी और अमिट छाप है। अज्ञेय का काव्यसंसार ही इतना विस्तृत है जिसका परामर्श इस आलेख में लेना संभव नहीं है। कवि अज्ञेय का व्यक्तित्व ही इतना विशाल है जिसके पहलू उजागर करना समाचीन नहीं है।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन का व्यक्तित्व और कृतित्व काफी समृद्ध है जिसे एक प्रपत्र में समेटना काफी मुश्किल है। अज्ञेय ने जो भी कुछ लिखा है वह अपने ढंग का अनूठा है। अज्ञेय की रचनाएँ समकालीन साहित्य को प्रभावित करती हैं। एक महत्वपूर्ण साहित्यकार के साथ- साथ अज्ञेय जी एक अच्छे चित्रकार और सत्यान्वेशी पर्यटक भी हैं।

मानवीय व्यक्तित्व की समस्या अज्ञेय की काव्य का केंद्र बिंदु रहा है। समस्याओं की अभिव्यक्ति अज्ञेय ने अपनी कविता के माध्यम से की है।

डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने एक जगह लिखा है, "अज्ञेय की कविता उनकी तरह बोलती कम हैं और सोचती ज्यादा हैं। अज्ञेय एक ओर भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि हैं और दूसरी ओर उन्होंने वैश्विक चेतना के समावेश से हिन्दी को विश्व स्तर पर उठाने की कोशिशों को बल पहुँचाया है।"

निष्कर्ष : संक्षेप में अज्ञेय की कविता में मानव मन के कलात्मक विश्लेषण का जो सुंदर और सफल रुप मिलता है वह अन्यत्र दुर्लभ है। अज्ञेय जी मूलतः प्रेम और प्रकृति के कवि हैं। वे शब्दों के कुशल चितेरे एवं शिल्पी हैं और साथ-साथ गंभीर विचारक भी। हिन्दी कविता को उन्होंने अपने स्पर्श से नई दिशा-आयाम प्रदान किया है। अज्ञेय का कविता केवल हृदय को ही नहीं मस्तिष्क को भी छूती है और हमें कुछ सोचने पर मजबूर करती है। वे कल्पना के धनी सर्जक हैं। उनका संपूर्ण काव्य आधुनिक बोध, इतिहास बोध तथा काव्य बोध तीनों दृष्टियों से छायावादोत्तर काव्य में नए प्रतिमानों का दिशा निर्देशक रहा है। हमारे मत से यही अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता है और शायद यही नई कविता की विजय यात्रा भी है। निसंदेह कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' सहस्त्राब्दी के प्रतिनिधि कवि के रुप में अमिट, सशक्त हस्ताक्षर के रुप में अपनी पहचान बना चुके हैं।.

संदर्भ ग्रंथ सूची :

1. अज्ञेय प्रतिनिधि कविताएँ - सं. विद्यानिवास मिश्र

2. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कविता- सं. नरसिंह प्रसाद दूबे

3. समकालीन कवि और काव्य कल्याणचंद्र

4. नई रचना और रचनाकार डॉ. दयानंद शर्मा

5. Nilambari Agneya

- डॉ. विजय महादेव गाड़े

ये भी पढ़ें; दार्शनिकता के परिप्रेक्ष्य में अज्ञेय का उपन्यास साहित्य

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