Greek Poetry Translated in Hindi : Helliniki Dimokratia, Hellenic Republic Poetry
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Table of Contents;
• ग्रीस कवयित्री जॉर्ज दुअत्जिस
• ग्रीस कविता "जंग"
• आख़िरी साँस ग्रीक कविता
• ग्रीक कविता "रुको"
पिछले आठ दस सालों से ग्रीस धीरे-धीरे जिस आर्थिक संकट में धँसता चला गया है, उसने वहाँ के नागरिकों का अपने आप पर से भरोसा तोड़ा है- कोई आश्चर्य नहीं कि ग्रीस दुनिया के सबसे अधिक आत्महत्या वाले देशों में शुमार होने लगा। एकदम दिवालिया हो जाने की कगार पर खड़े देश को पड़ोसी सम्पन्न यूरोपीय देशों की धौंस पट्टी कान में रुई डालकर सुननी पड़ रही है। ऐसे में साहित्य कला के इलाके से जो प्रतिनिधि स्वर उभरे उनमें मुखर रूप में यह सन्देश निहित है कि इस दीर्घकालीन संकट ने ग्रीक समाज की आन्तरिक बुनावट को उधेड़ दिया है।
Greek Poetry in Hindi : जॉर्ज दुअत्जिस की ग्रीस कविताएं
जंग (ग्रीस कविता हिन्दी में)
तुमको पता भी नहीं चला कि जंग चल रही है
ज़ाहिर है तुमको लहू नहीं दिखा, न दिखे जख्मी लोग
तुम्हारी नज़र पड़ी मुर्दा लोगों पर ... लाशों पर
जो कूड़ेदान पर औंधे पड़े हुए थे
शहर के बीचोबीच भरी दुपहर
शॉपिंग मॉल के कचरे में खड़े वकील
भूखे भीख माँगते सूदखोर
तुमने इन सबको देखा है।
जंग- हाँ मैं कहता हूँ, जंग
जिसमें गोला बारूद नहीं तोप नहीं
न ही कोई जेनरल....
ग्रे सूट और सफ़ेद कॉलर के साथ-साथ
नये पुराने कम्प्यूटर कर रहे हैं
भारी भरकम तोपों का काम
जंग
मेरा ठौर ठिकाना बिक गया
तुम्हारे हाथ बिक गये
यहाँ तक कि सारे सपने बिक गये
आवाजें... मुँह बिक गये
हमारा अस्तित्व तक बिक गया
इन हालात में हम कैसे देखें अपने बच्चों की
आँखों में आँखें डालकर?
और चाहे कुछ भूल जाओ
यह कभी मत भूलना कि
बर्दाश्त की आदत बना लेने से बड़ा नहीं है
और कोई पाप
क्या मालूम नहीं कि दुनिया बदल सकती है
बस थोड़े से प्रेम से ?
(2015 के यूरोविज़न मुकाबले में शामिल मारिया एलेना कैरियाकाऊ का गाया 'आख़िरी साँस' शीर्षक गीत आजकल खूब चर्चा में है- जिसे लिखा है वांगेलिस कॉन्स्टेंटिनिडिस और एवेलिन त्जिओरा ने)
आख़िरी साँस (ग्रीस से अनुदित हिन्दी गीत)
"मेरी आत्मा, लगता है मैं हूँ ही नहीं
तुमने मुझे मार डाला
और मैं निबट गयी, बगैर बन्दूक के
बुझ गयी मेरी चमक
धोखा हुआ मेरे साथ
अब साहस बटोरूँ भी तो कैसे,
भरोसे के बिना
जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ?
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रुको (ग्रीस कविता)
दुआ करती हूँ, रुक जाओ
मुझे भी अपने साथ ले जाओ
जहाँ चली गयी
हो लौट आओ वापिस ... और बचा लो मुझे
मुझे अकेला नहीं होना
मेरे पास अब कुछ नहीं बचा
सिवा मेरी आख़िरी साँस के...
मिन्नतें करती हूँ निकाल लो मुझे
इस धधकते नरक से
वापस लौट आओ... और बचा लो मुझे
जो हुआ वह सब सही नहीं था
मेरा कुछ भी मेरे पास नहीं बचा
अब सिर्फ आख़िरी साँस है
जो मेरी कुल जमा पूँजी है...
चुभती हुई टीस, दिखावे का प्यार और नशे में धुत्त झूठ
मैं लड़ रही हूँ कि जिन्दा बच जाऊँ ... अभी तक तो हूँ
आँसुओं से... और डर से दोनों से बारी बारी जूझ रही हूँ
अब भी पर अँधेरे का राज है, दिल में मेरे।
अनुवाद - यादवेंद्र
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