हिंदी उपन्यास और भारतीय ग्रामीण किसान जीवन

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi novels and Indian rural farmer life

Hindi novels and Indian rural farmer life

हिंदी उपन्यास और भारतीय ग्रामीण किसान जीवन

भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि है। भारत कृषि प्रधान देश है। वास्तविक भारत वर्ष गाँवों में बसा है। कुछ लोग कृषि को अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्डी मानते है तो कुछ लोग भारत के दो तिहाई नागरिकों के लिए जीविकोपार्जन का साधन मानते है। वास्तव में कृषि का महत्त्व इससे भी अधिक है। इतना अधिक है कि इसे शब्दों के आवरण में लपेटना मुश्किल है। कृषि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के भाग्य का निर्धारण करती है। दो तिहाई लोगों के लिए जीविकोपार्जन का साधन हीं है बल्कि जीवन का तरीका है। इतिहास हमें बतलाता है कि जो राष्ट्र अपनी खेती के प्रति उदासीन हो जाता है उसकी जीवन-शक्ति क्षीण हो जाती है। विश्व के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात के अनुसर "जब खेती फलती-फूलती है तब धंधे पनपते है किन्तु जब भूमि को बंजर छोड़ देना पड़ता है तब सब धंधे शीघ्र नष्ट हो जाते है।"¹ अर्थात् खेती हमारे जीवन का सबसे महत्त्व पूर्ण अंग है। कृषि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्राणवायु देती है। कृषि करने वाले ग्रामीण कृषक कहलाते है जो कि ग्राम्य- जीवन का एक मुख्य अंग है। भारत वर्ष गाँवों से बना है गाँवों में रहने वाले अधिकतर लोग कृषि से सम्बन्ध रखते है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत वर्ष कृषकों का देश है।

भारतीय कृषक श्रम करता है पसीना बहाता है फिर भी उसे (दो टूक अन्न) दोनों शाम भरपेट भोजन नहीं मिलता। भारतीय कृषक का जीवन दरिद्रता, शोषण और निरक्षरता आदि का शिकार हो गया है, इस कारण वह दिन-ब-दिन गरीब होता जा रहा है। इस का कारण है आर्थिक असमानता, जमींदारों सेठ-सहकारों के शोषण के परिणाम स्वरुप कृषक वर्ग दयनीय हो गया है। आरम्भ से ही ग्रामीण किसान जमींदारों के शोषण चक्र में पिसने लगा। स्वातंत्योत्तर काल में भी जमींदारों का शोषण कही-कही परिलक्षित होता है।

कृषि सम्बन्धी साधनों में कृषक के लिए हल, दो बैल आदि का होना बहुत ही महत्त्व पूर्ण है क्योंकि बिना हल-बैल की खेती नहीं हो सकती। वर्तमान किसान कृषि के लिए ट्रैक्टर, प्रोक्लैनर और अन्य यंत्रों का प्रयोग करने लगे हैं। भारतीय ग्रामीण किसान को गाय तथा बैल के प्रति अधिक प्रेम रहता है। अशिक्षा तथा अज्ञानता के कारण कृषक की अन्ध श्रद्धा तथा अन्य मान्यताओं में आस्था होती है, आस्तिकता के कारण वह किसी प्रकार की बीमारी आदि को ईश्वर की देन मानता है तथा उसे दूर करने के लिए देवी-देवताओं की पूजा करता है। मनौतियाँ रखता है। भारतीय कृषक खेती के लिए अधिकतर वर्षा पर आधारित रहता है। वह कृषि सम्बन्धी किसी भी कार्य को प्रारम्भ करते समय भूमि पूजा करता है। हल-बैल को भी परम्परानुसार टीका लगाकर तथा श्रीफल फोड़कर पूजा करता है। वह ऐसा इसलिए करता है कि जिससे धरती अच्छा धान्य दे। कृषकों की अपनी कुछ विशिष्ट प्रकार की आदतें होती है। कृषि-कार्य करते समय ताम्बाकू, चबाना, बीडी पीना तथा हुक्के को गुडगुडाना उनकी मुख्य आदतें है। भारतीय कृषकों में उदारता, नैतिकता, बंधुत्व और धर्म में आस्था आदि गुण देखने को मिलते है। भारतीय कृषक नीति पर विश्वास रखता है। वर्तमान किसानों में राजनीतिक चेतना विद्यमान है। आज कृषक भी अपने अधिकारों को जानते है, तथा उनके प्रति जागरूक है। डॉ. ज्ञानचंद्र गुप्ता का मत है कि "वास्तव में ग्रामीण कृषकों के मध्य उत्पन्न राजनीतिक जागरूकता ओर उनके दिनोदिन बढते हुए राजनीतिक क्रिया-कलाप आज के मानवीय राजनीतिक जीवन के पहलू है।"²

शोषित किसान : ग्रामीण हिंदी उपन्यासों में उपन्यासकार ने शोषित ग्रामीण किसान की दीन-स्थिति का चित्रण किया है। "वे पुनः समझाने लगे, राजकाज में तेजी लाना अपने हाथ की बात नहीं, वे लोग अपने तरीके से करते है हर काम। नौकरशाह और राजनेताओं के हाथ का खिलौना हो गया है, हमारा जीवन । यहाँ प्रजातंत्र नहीं शोषण तंत्र लागू है"।³ मैत्रेय पुष्पा के उपयुक्त उद्धरणों से जान पड़ता है कि किसान शोषित होता रहा है, उपन्यासकार का उद्देश्य इस वातावरण का वर्णन करके छोड़ देना नहीं है, वरन, स्वावलम्बी होने की ओर इशारा है किसानों को अपने पाँव पर खड़े रहने का धीरज देना है। ग्रामीण वातावरण का और शोषित किसानों की समस्या का विस्तृत वर्णन करने वाले उपन्यासकारों का उद्देश्य उनके जीवन को सुधारने का है।

ऋणग्रस्त किसान : उपन्यासकार डॉ. विवेकीराय के 'नमामि ग्रामम' उपन्यास में ऋणग्रस्त किसानों के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते है। "उसकी हँसी में फीकापन आ गया। दशा यहाँ तक गिरी की होली-दीपावली पर भी मेरा बेटा खुलकर हँस नहीं पाया। भंगर पर बरसाती घास की तरह बढता हुआ ऋण एवं ब्याज। ऋण की जगह 'लोन' शब्द ज्यादा चलने लगा। ट्रैक्टर का लोन खाद-बीज का लोन को- आपरेटिव सोसाइटी का लोन, बैंक का लोन, सरकार का लोन, पैदावार की बढ़ती के अनुपात में बढ़ता हुआ परिवार, बढ़ता खर्च मँहगाई की कठिन मार। मशीन के पुरजे, कपड़े-तेल साबुन और बरतन वगैरह के दाम को देखते अन्न तो सस्ते में जैसे लूट रहा है, जिस पर भी 'लड़कियों' की शादी वगैरह की व्यवस्था के बवंडर में उसका मन ऐसा उड़ा रहा है, कि हँसने की फुरसत ही नहीं मिलती है।"4 उपयुक्त उद्धरण से पता चलता है कि ऋण लेना किसानों के लिए आवश्यक हो गया है। आजकल ऋण बैंक, सहकारिता बैंक, लाइसेंस्ड बैंक और गैर लाइसेंस्ड बैंक भी देने लगे। ऋण का अर्थ है, 'लोन' वर्तमान ग्रामीण समाज में बैंकों से ऋण लेना एक फैशन बन गया है। जब किसान अकाल के कारण परेशान था फसल ठीक न होने के कारण बेचैन जब ऋण न चुकाकर वह कष्टों के बवंडर से घिर जाता है तब सहायता करने वाले बैंक भी किसान को सताते है। ऋण वसूल करने के लिए वे किसान को सताते है और अपमान करते है। घर के दरवाजे भी खींच ले जाते हैं। कोई इज्जतदार अपना सर्वस्व बेचकर ऋण चुकाता है। जब ऋण नहीं चुका सकता, तब वह बेइज्जती करने वालो को बर्दास्त करता है। आत्महत्या का भागी बन जाता है। उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों में इसका विस्तृत वर्णन किया है। जैसे आँखों देखा दर्दभरी ऋण की समस्या किसानों का जीवन दुभर बनाती है। यह एक जटिल समस्या है। ग्रामों के समस्याओं को सुधार करने वाले लोग ध्यान लगाकर इस समस्या पर जोर देकर इसे सुलझाये तो किसानों को सुविधा और सुख मिलेंगे।

संदर्भ सूची :

1. डॉ. विजय कुमार जाधव - विविध आयाम' पृ.सं. 13 'किसान जीवनः

2. डॉ. ज्ञान चंद्र गुप्त उपन्यास और ग्राम-चेतना' पृ.सं. 23 - 'स्वातंत्रयोत्तर हिंदी

3. मैत्रेयी पुष्प - 'इदन्नममः' पृ सं. 122-123

- एम. सदय्या

ये भी पढ़ें; हिंदी उपन्यास साहित्य में चित्रित किसान संघर्ष : संजीव कृत फाँस उपन्यास के संदर्भ में

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