श्रद्धेय डॉ. बालशौरि रेड्डी जी को श्रद्धांजलि

Dr. Mulla Adam Ali
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जाने-माने रचनाकार हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक और बाल साहित्यकार बाल शौरि रेड्डी जी मासिक बाल पत्रिका चंदामामा के संपादक भी रहे है। मूल रूप से तेलुगु भाषी बाल शौरि रेड्डी जी ने दक्षिण भारत की हिन्दी प्रचार सभा, चेन्नई में लेखन एवं संपादन कार्य किया, आज 15 सितंबर उनकी पुण्यतिथि है।

Humble tribute to Balshauri Reddy on his Death Anniversary

Humble tribute to Balshauri Reddy

हिन्दी लेखन के प्रति समर्पित डॉ. बाल शौरि रेड्डी जी का निधन 15 सितंबर को हुआ, आज उनके पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए बाल शौरि रेड्डी जी का जीवन और लेखन कार्य के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।

श्रद्धेय डॉ. बालशौरि रेड्डी जी पुण्यतिथि पर विशेष

Table of Contents;

• डॉ. बालशौरि रेड्डी जी का जीवन परिचय

• डॉ. बालशौरि रेड्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व

• डॉ. बालशौरि रेड्डी जी के उपन्यास

• डॉ. बालशौरि रेड्डी जी का बाल साहित्य

• डॉ. बालशौरि रेड्डी जी के तेलुगू से संबंधित हिन्दी में साहित्य

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डॉ. बालशौरि रेड्डी अब हमारे बीच नहीं है, याह विश्वास करना बहुत ही कठिन है। 15 सितम्बर को सुबह आठ बजकर पैंतालीस मिनट पर उनका हृदय-गति रुकने के कारण देहावसान हो गया, उस समय उनकी आयु सत्तासी वर्ष की थी। उनका जन्म आंध्रा प्रदेश के कड़पा जिले के गुडूरु के मध्यवर्गीय प्रतिष्ठित परिवार में 1 जुलाई सन् 1928 को हुआ। पिछले 63 वर्षों से उन्होने मद्रास महानगर को अपनी कर्मभूमि बनाकर रखी थी।

डॉ. बालशौरि रेड्डी जी की प्रारंभिक शिक्षा नेल्लूर, कड़पा, विजयवाड़ा आदि आंध्रप्रदेश के विद्यालयों में हुई। मैट्रिक उत्तीर्ण होकर शिक्षण प्रशिक्षण में भर्ती हुए। उच्चवर्गीय परिवार की सुभद्रा देवी जी से, जो स्वयं भी तेलुगू और हिन्दी की अच्छी ज्ञाता हैं, 18 जून 1949 में विवाह हुआ।

उनकी शिक्षा इलाहाबाद और वाराणसी में हुई। लगभग दस वर्षों तक हिन्दी प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्राध्यापक और फिर प्रिंसिपल बने। दक्षिण भारत की प्रचार सभा के प्रकाशन और साहित्यिक विभाग में छः वर्षों तक संपादन का कार्यभार संभाला। उसी समय श्री नागिरेड्डी ने 'चंदामामा' के हिन्दी संस्करण का संपादन का भार सौंपा। वे लगभग 24 वर्षों तक उसका दायित्व निभाते रहे, इसके बाद उन्होंने आंध्रप्रदेश हिंदी अकादमी के अध्यक्ष के रूप में उल्लेखनीय सेवाएँ कीं।

'चमकता सितारा' दैनिक के संपादक बने। 13 वर्ष तक दैनिक 'आज' प्रतिनिधि के रूप में समाचार लिखते रहे।

डॉ. बालशौरि रेड्डी हिन्दीतर भाषी हिन्दी साहित्यकारों में सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित हैं। सन् 1948 में लिखना प्रारंभ करनेवाले डॉ. रेडी मात्र देश भर में ही लोकप्रिय नहीं परन्तु विदेशों में भी उन्हें अच्छी ख्याति मिली। ह्युस्टन (अमेरिका) के बाद मारिशस से लौटने पर वहाँ मिले राजकीय सम्मान, वहाँ के राष्ट्रपति द्वारा दिये गये आतिथ्य हिन्दी के प्रति उनकी समर्पित निष्ठा का ही प्रतिफल है।

बच्चों जैसा निर्दोष चेहरा और हमेशा मुस्कुराने वाले डॉ. रेड्डी पहली ही दृष्टि में मिलने वालों को प्रभावित कर देते थे। उन्होंने 14 उपन्यास हिन्दी में लिखीं और 32 से अधिक संस्थानों ने उन्हें पुरस्कृत किया। उनके साहित्य पर अब तक 21 पीएच.डी. और ग्यारह एम.फिल. हो चुके हैं।

उन्होंने अपनी लेखन यात्रा की शुरुआत पहले निबंधों 'से की। 'ग्राम संसार' नामक पत्रिका के लिए पहले बाल साहित्य से संबंधित रचनाएँ प्रकाशित की। 'पंचामृत' (1964) उनकी प्रथम प्रकाशित कृति है।

डॉ. बालशौरि रेड्डी जी के उपन्यास :

डॉ. बालशौरि रेड्डी जी के उपन्यास 'शबरी' केन्द्र तथा उ.प्र. संस्थान द्वारा पुरस्कृत है। 1. 'जिंदगी की राह', 3. 'यह बस्ती ये लोग', 4. 'भग्न सीमाएँ', 5. 'बैरिस्टर 6. 'स्वप्न और सत्य' 7. 'प्रकाश और परछाई, 8. 'लकुमा', 9. 'धरती मेरी माँ' 10. 'प्रोफेसर', 11. 'धरती का पुत्र' 12. 'दावानल', 13. 'कालचक्र', 14. 'शंखनाद'।

डॉ. बालशौरि रेड्डी जी का बाल साहित्य :

1. तेलुगू की लोक कथाएँ 2. आंध्र के महापुरुष, 3. सत्य की खोज, 4. तेनालीराम के लतीफे, 5. बुद्ध से बुद्धिमान, 6. न्याय की कहानियाँ, 7. आदर्श जीवनियाँ, 8. अमुक्तमाल्यद, 9. दक्षिण की लोक-कथाएँ, 10. तेनालीराम की कहानियाँ।

डॉ. बालशौरि रेड्डी जी के तेलुगू से संबंधित हिन्दी में साहित्य :

1. पंचामृत, 2. आंध्र भारती, ३. तेलुगू साहित्य का इतिहास, 4. वीरेश लिंगम पंतुलु, 5. तेलुगू साहित्य के निर्माता 6. स्वर्णकमल। डॉ. बालशौरि रेड्डी के व्यक्तित्व का एक अति महत्वपूर्ण पहलू है कि वे हिन्दीतर भाषा-भाषी उपन्यासकार, कथाकार, अनुवादक और पत्रकार के रूप में देश के प्रसिद्ध लेखकों में श्रेष्ठ थे।

तमिलनाडु में पहली बार तमिलनाडु हिन्दी अकादमी का गठन उनकी अध्यक्षता में हुआ। तमिलनाडु के हिन्दी लेखकों को राष्ट्रीय क्षितिज पर लाने, उन्हें प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत करने के उद्देश्य से गठित तमिलनाडु हिन्दी अकादमी के अग्रदूत के रूप में उन्होंने सार्थक योगदान दिया। उनकी सर्जनात्मक रचनाएँ विविध रूप में आई हैं जिनमें निबंध, उपन्यास, एकांकी, कहानी, साहित्य अनुवाद आदि मुख्य हैं।

डॉ. बालशौरि रेड्डी के अनुसार लेखक के लिए साहित्यिक ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है परन्तु जीवन से संबंधित सभी क्षेत्रों और विषयों का प्राथमिक ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है।

हिन्दी को अपने जीवन का पाथेय मान लेनेवाले इस महान व्यक्ति के लिए हिन्दी किसी एक प्रदेश विशेष की भाषा नहीं, वह समग्र देश की भाषा है। पहले हम भारतीय हैं, हमारा एक देश है, हमारा एक संविधान है, उसके बाद ही हम अपने राज्य, नगर एवं ग्राम के निवासी हैं।

दक्षिण में हिंदी प्रचार का बीड़ा महात्मा गाँधी ने उठाया था। उनके आह्वान पर जो व्यक्ति उनके साथ जुड़े उनमें बालशौरि रेड्डी का नाम बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उन जैसे निष्ठावान और समर्पित हिन्दी लेखकों की साधना के कारण ही दक्षिण के किसी भी कोने में चले जाएं तो राजनैतिक वाद- विवाद के रहते हुए भी किसी को हिन्दी में बात करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होगी। जब तक आकाश में सूर्य, चाँद चमकते रहेंगे तब तक उनका नाम हिन्दी साहित्य जगत में अमर रहेगा।

- राजलक्ष्मी कृष्णन

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