इन दिनों कविता : हिंदी कविता - कविता कोश

Dr. Mulla Adam Ali
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In Dino Kavita in Hindi : Poetry in Hindi

In Dino Kavita in Hindi

इन दिनों कविता

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इन दिनों


मैं सोने जाता हूँ

सुबह हो जाती है

मैं जागना चाहता हूँ

रात हो जाती है

इन दिनों ये क्या हो रहा है

कुछ होना होता है

कुछ हो जाता है

मैं चाहता हूँ कुछ

मिलता है कुछ और

मैं विस्मित हूँ

घटती घटनाओं पर

मैं चौकने लगा हूँ

हर आहट पर

द्वार पर खट-खट

धमाके सी लगती है

हर मुस्कराते चेहरे

पर सर्प की झपट

लगती है

कौंधते रहते है रात दिन

समाचारों की आवाज

किसी की पदचाप

जैसे कोई निकाल रहा हो हथियार

सब कुछ गड़बड़

और इसी हड़बड़ में

कोई काम ठीक से नहीं हो रहा है।

माहौल कहें समय कहें

या बदनसीबी

पुलिस और डकैतो में फर्क नजर

नहीं आ रहा है इन दिनों।

- देवेन्द्र कुमार मिश्रा

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