अमेरिकी कवयित्री माया एंजेलो का जन्म 4 अप्रैल 1928 को अमेरिका में हुआ। कविताओं तथा लेखन के लिए 'पुलित्ज़र पुरस्कार' से सम्मानित। वे नागरिक अधिकारों के लिए आजन्म लड़ती रहीं।
Maya Angelou American Poetry in Hindi
Table of Contents;
अनिल गंगल द्वारा अनूदित
• मैं उठ खड़ी होती हूँ / अनिल गंगल / माया एंजेलो
• एक देवदूत का स्पर्श / अनिल गंगल / माया एंजेलो
• अपूर्व औरत / अनिल गंगल / माया एंजेलो
• स्मृति / अनिल गंगल / माया एंजेलो
• मैं जानती हूँ कि पिंजड़े में कैद चिड़िया क्यों गाती है / अनिल गंगल / माया एंजेलो
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माया एंजेलो की ब्लैक अमेरिकी कविताएं हिन्दी में
माया एंजेलो की कविता : मैं उठ खड़ी होती हूँ
1. मैं उठ खड़ी होती हूँ
अपने कड़वे और तोड़े-मरोड़े गये झूठों के साथ
दर्ज कर सकते हो तुम मुझे इतिहास के पन्नों में
लथपथ छोड़ सकते हो तुम मुझे बेहिसाब गन्दगी में
मगर इसके बावजूद
मैं उठ खड़ी होऊँगी धूल की तरह
क्या मेरा बेढंगापन तुम्हें परेशान करता है?
उदासी तुम्हें क्यों घेरे रहती है?
वजह मैं चलती हूँ जैसेकि मेरे रहने के
कमरे में तेल के कुएँ तेल उगल रहे हों
ठीक चन्द्रमाओं और सूर्यो की मानिन्द
लहरों की निश्चितता के साथ
ऊँची उछलती आशाओं की तरह
मैं उठ खड़ी होऊँगी
क्या चाहते थे तुम मुझे देखना टूटते हुए?
मेरा झुका हुआ मस्तक और गिरी हुई आँखें?
आँसुओं की बूँदों की तरह लटके हुए कन्धे?
मर्मांतक विलाप से कमजोर पड़ती मैं
क्या मेरा स्वाभिमान तुम्हें आहत करता है?
क्या तुम मुश्किल से इसे स्वीकार कर पाते हो?
वजह मैं हँसती हूँ जैसेकि मेरे घर के पिछवाड़े
खोदते हुए मुझे सोने की खानें मिल गयी हों
अपने शब्दों से तुम मुझे जख्मी कर सकते हो
अपनी आँखों से तुम मुझे काट सकते हो
अपनी नफ़रत से तुम मेरा कत्ल कर सकते हो
मगर तब भी
मैं उठ खड़ी होऊँगी हवा की तरह
क्या मेरी कामुकता तुम्हें विपदा में डाल देती है?
क्या यह तुम्हें विस्मित करता है
कि मैं नाचती हूँ जैसे कि मेरी जाँघों के संधिस्थल पर
हीरे जड़े हों
इतिहास की शर्म की झोंपड़ियों से निकलकर
मैं उठ खड़ी होती हूँ
उस अतीत से ऊपर जिसकी जड़ें दर्द में जमी हैं मैं
उठ खड़ी होती हूँ
मैं एक उत्ताल और विशालकाय महासागर हूँ
उमड़ते और घुमड़ते हुए मैं लहरों से एकाकार होती हूँ
आतंक और भय की रातों को पीछे छोड़ते हुए
मैं उठ खड़ी होती हूँ
एक सूर्योदय में जो आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट है
मैं उठ खड़ी होती हूँ
उन उपहारों को लाते हुए
जो मेरे पुरखों ने मुझे सौंपे हैं
मैं एक गुलाम का स्वप्न और आशा हूँ
मैं उठती हूँ
मैं खड़ी होती हूँ
मैं उठ खड़ी होती हूँ।
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माया एंजेलो की अमेरिकी ब्लैक कविता : एक देवदूत का स्पर्श
2. एक देवदूत का स्पर्श
हम जो साहस से विहीन
और प्रसन्नता से निर्वासित हैं,
अकेलेपन की केंचुल में कुंडली मारे रहते हैं
जब तक कि प्रेम अपना उच्च पवित्र मन्दिर छोड़े
और हमें जीवन में मुक्त करने
हमारी निगाह में आए
प्रेम का आगमन होता है
इसकी ट्रेन में आते हैं उल्लास के पल
सुखों की प्राचीन स्मृतियाँ
और दर्द के पुराकालीन इतिहास
इसके बावजूद यदि हम निर्भीक हैं
तो प्रेम हमारी आत्माओं से
भय की जंजीरों को नेस्तनाबूद कर देता है
प्रेम के आलोक के प्रवाह में
हम मुक्त होते हैं अपनी कायरता से
हम साहसी हो पाने की जुर्रत करते हैं
और यक-ब-यक हम देखते हैं
कि प्रेम का लागत मूल्य हमारे होने
और जो हम कभी होंगे के तुल्य है
तथापि यह सिर्फ प्रेम ही है
जो हमें मुक्त करता है।
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माया एंजेलो की अमेरिकी ब्लैक कविता : अपूर्व औरत
3. अपूर्व औरत
खूबसूरत स्त्रियाँ अचरज करती हैं
कि मेरा रहस्य कहाँ छिपा है
एक फ़ैशन मॉडल के रूपाकार के लिहाज से
मैं उतनी खूबसूरत तो नहीं
मगर जब मैं उन्हें बताना शुरू करती हूँ
तो वे सोचती हैं कि मैं झूठ बोल रही हूँ
मैं कहती हूँ
कि यह मेरी बाँहों की पहुँच
मेरी जाँघों के विस्तार
मेरे क़दमों के नाप
और मेरे होठों के घूँघर के भीतर है
मैं एक औरत हूँ
असाधारण
अपूर्व औरत
वही तो हूँ मैं
मैं एक कमरे में घुसती हूँ
जैसा तुम्हें भाता है, वैसी ही ठंडी
एक पुरुष की ओर उन्मुख
बन्दे खड़े होते हैं या फिर घुटनों के बल झुक जाते हैं
तब वे मेरे गिर्द भिनभिनाते हैं
मक्खियों के छत्ते की मानिन्द
मैं कहती हूँ
मेरी आँखों में आग सुलगती है
मेरे दाँत कान्ति से दमकते हैं
मेरी कमर में लचक की लय है
और मेरे पाँव प्रसन्नता से झूम रहे हैं
मैं एक औरत हूँ
असाधारण
अपूर्व औरत
वही तो हूँ मैं
पुरुष ख़ुद ही आश्चर्य में पड़ जाते हैं
कि मुझमें आख़िर वे क्या देखते हैं
वे बेहद कोशिश करते हैं
लेकिन मेरे अन्दरूनी रहस्य को वे छू तक नहीं पाते
जब मैं उन्हें दिखाने का प्रयास करती हूँ
तो वे कहते हैं कि अभी भी वे इसे देख नहीं पाते
मैं कहती हूँ
यह मेरी कमर की मेहराब में है
मेरी मुस्कराहट के सूर्य में
मेरे स्तनों की सवारी में
मेरी बनत की गरिमा में है
मैं एक औरत हूँ
अपूर्व औरत
अब तुम समझ सकते हो
कि मेरा मस्तक क्यों झुका हुआ नहीं है
मैं चीखती नहीं, न ही मचाती हूँ उछल-कूद
और न शोर मचाते हुए करती हूँ बातें
जब तुम मुझे गुज़रते हुए देखो
तो तुम्हें इस पर गर्व करना चाहिए
मैं कहती हूँ
यह मेरी एड़ियों की खटखट में है
मेरे बालों के घुमाव में
मेरे हाथों की हथेलियों में
मेरे द्वारा की जाने वाली देखभाल की जरूरत में
वजह कि मैं एक औरत हूँ
असाधारण
अपूर्व औरत
वही तो हूँ मैं।
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माया एंजेलो की अमेरिकी ब्लैक कविता : स्मृति
4. स्मृति
तुम्हारे हाथ हौले-हौले
मेरे बालों में बसेरा डाले मक्खियों को छेड़ते हैं
मेरे गालों की ढलान पर तुम्हारी मुस्कराहट फिसलती है
ऐसे मौक्रे पर, तुम मुझ पर बढ़ाते हो अपना दबाव
उद्दीप्त, झड़ने के लिए तत्पर
एक रहस्य बलात्कार करता है मेरे विवेक के साथ
जब खींच लेते हो बाहर अपना आत्म और जादू
जब मेरे स्तनों के बीचोबीच सिर्फ तुम्हारे प्रेम की गन्ध भटकती है
तभी, और केवल तभी
मैं एक भुक्खड़ की तरह तुम्हारी उपस्थिति महसूस करती हैं।
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माया एंजेलो की अमेरिकी ब्लैक कविता ; पिंजड़े में कैद चिड़िया
5. मैं जानती हूँ कि पिंजड़े में कैद चिड़िया क्यों गाती है
आज़ाद चिड़िया हवा को पीठ पर सवार होकर
उड़ान भरती है
और नीचे की ओर तैरते हुए
आती है प्रवाह के खत्म हो जाने तक
अपने पंखों को नारंगी सूर्य-रश्मियों में डुबोती हुई
आसमान पर फ़तह हासिल करने की जुर्रत करती है
मगर वह चिड़िया जो तंग पिंजड़े के भीतर
अकड़ कर रहती है
कदाचित ही अपने गुस्से को सलाखों के पार देख पाती है
उसके पंख कतर दिये गये हैं
और पंजे बाँधे हुए
अतः गाने के लिए वह अपना कंठ खोलती है
पिंजड़े में कैद चिड़िया गाती है
भयभीत स्वर-कम्पन के साथ
अज्ञात चीज़ों के बारे में
मगर खामोशी के लिए लालायित
और उसकी धुन सुनी जाती है किसी दूरस्थ पहाड़ी पर
क्योंकि पिंजड़े में कैद चिड़िया आज़ादी के गीत गाती है
आज़ाद चिड़िया एक और ठंडी बयार के बारे में सोचती है
और सोचती है सरगोशिया करते पेड़ों के बीच से गुज़रती तिजारती हवाओं
और सुबह के धुंधलके में दमकती घास पर रेंगते
मोटे-तगड़े केंचुओं के बारे में
और इस तरह आकाश को अपने नाम करती है
लेकिन पिंजड़े में कैद चिड़िया स्वप्नों की क़ब्र पर खड़ी होती है
उसकी परछाई जैसे एक दुःस्वप्न में चीखती है
उसके पंख कतर दिये गये हैं
और पंजे बाँधे हुए
अतः गाने के लिए वह अपना कंठ खोलती है
पिंजड़े में कैद चिड़िया गाती है
भयभीत स्वर-कम्पन के साथ
अज्ञात चीज़ों के बारे में
मगर ख़ामोशी के लिए लालायित
और उसकी धुन सुनी जाती है किसी दूरस्थ पहाड़ी पर
क्योंकि पिंजड़े में कैद चिड़िया आजादी के गीत गाती है।
अनु. / प्रस्तुति : अनिल गंगल
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