Yeh Basti Yeh Log Novel by Dr. BalShauri Reddy
हिन्दी और तेलुगू के यशस्वी साहित्यकार डॉ॰ बालशौरि रेड्डी 'चंदामामा' के पूर्व सम्पादक, हिन्दी साहित्य साधक और प्रसिद्ध बालसाहित्य सर्जक है। तेलुगू मातृभाषा होते हुए भी इनका जीवन हिन्दी लेखन के लिए समर्पित रहा है, आज डॉ॰ बालशौरि रेड्डी जी का उपन्यास "यह बस्ती : ये लोग" में नगरीकरण के बारे में जानेंगे।
Table of Contents;
• डॉ॰ बालशौरि रेड्डी
• डॉ॰ बालशौरि रेड्डी व्यक्तित्व एवं कृतित्व
• डॉ॰ बालशौरि रेड्डी का लेखन कार्य
• यह बस्ती : ये लोग उपन्यास समीक्षा
• निष्कर्ष
• FAQ (frequently asked questions)
ये भी पढ़ें;
• बालशौरि रेड्डी : व्यक्तित्व और कृतित्व
• सुप्रसिद्ध हिन्दी सेवी डॉ. भोगाराजू पट्टाभि सीतारमैया
पिछले कुछ दशकों से नगरीकरण की प्रक्रिया में काफी बदलाव आया है। नगर और महानगरों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है, यही नगरीकरण ने विविध सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक समस्याओं का जन्म दिया है इन्हीं समस्याओं को लेकर डॉ॰ बालशौरि रेड्डी जी द्वारा लिखा गया उपन्यास "यह बस्ती : ये लोग" है, इस उपन्यास में शहरी जीवन के खोखलेपन के निरूपण का प्रयास उपन्यासकार ने किया है तो चलिए पढ़ते हैं यह बस्ती - ये लोग उपन्यास का सारांश क्या है।
डॉ. बालशौरि रेड्डी कृत उपन्यास यह बस्ती : ये लोग में महानगरीय बोध
हिंदी में अपनी मातृभाषा के साथ सर्जनात्मक कार्य करने वाले दक्षिणात्य लेखक डॉ. बालशौरि रेड्डी किसी परिचय के मोहताज नहीं। हिंदी विश्व साहित्य में डॉ. बालशौरि रेड्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना लोकप्रिय है क उन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। आंध्र प्रदेश के कड़पा जिले में जन्में सुविख्यात मनीषी, विद्वान साहित्यकार, चिंतक रेड्डी जी ने साहित्य की समस्य विधाओं को अपनी उर्वरा लेखनी से समृद्ध किया है। उनका अध्ययन, अनुशीलन सुविस्तृत एवं विशद् है। उनकी आत्मा ने हमेशा एक जीवट की ओर प्रस्थान किया है। रेड्डी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। वे उत्तर दक्षिण की सभ्यता, संस्कृति, साहित्य व भाषा को जोड़ने वाले एवं संवाद स्थापित करने वाले सेतु सदृश्य है।
बालशौरि रेड्डी जी युग परिवर्तन के लिए परम्परा का मूल्यांकन करते हुए लकीर के फकीर नहीं बने । समकालीन समस्याओं पर उनकी पैनी नज़र रही है। साहित्य समाज और रचना, भारतीय जीवन मूल्य, संस्कृति का अपहरण, कला संस्कृति और मूल्य जैसी रचनाएँ उनके चिंतक रूप से रूबरू करवाती हैं। डॉ. बालशौरि रेड्डी कुशल संपादक, सुलझे हुए वार्ताकार, अनुवादक, प्रभावी वक्ता, पत्र-लेखन में दक्ष और साक्षात्कार में पारंगत तो है ही साथ ही बेजोड़ नाटककार, कथाकार और निबंधकार भी है।
बालशौरि रेड्डी जी सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध साहित्यकार हैं। उनका औपन्यासिक साहित्य एक व्यापक फलक को समेटे हुए हैं। इन्होंने अपने उपन्यासों में जीवन में घटने वाली प्रत्येक छोटी-बड़ी घटना को यथार्थ ढंग से प्रस्तुत किया है। उनकी समस्त रचनाओं में लेखक के सामाजिक, नैतिक, राजनीतिक बोध की गहनता और अपने परिवेश को जानने परखने और समझने की पैनी दृष्टि का आभास मिलता है।
समय परिवर्तनशील है। समय के साथ प्रतिमानों में भी परिवर्तन होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि, काल परिवर्तन के साथ मानवीय इच्छाएँ मानव की प्रकृति का भी संदर्भ परिवर्तनशील है। समय और परिस्थितियाँ भी परिवर्तनशील होती है। इसके साथ ही मानव जीवन की मान्यताएँ, अपेक्षाएँ आस्थाएँ भी परिवर्तित होती रहती है। इन परिवर्तित परिस्थितियों का प्रभाव समाज, गाँव, नगर, देश सभी पर दृष्टिगोचर होता है।
पिछले कुछ दशकों में नगरीकरण की प्रक्रिया में काफी परिवर्तन आया है। नगरों और महानगरों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस नगरीकरण की प्रक्रिया ने विविध सामाजिक, आर्थिक पारिवारिक समस्याओं को जन्म दिया है। फलस्वरूप नगरवासियों पर इसका प्रभाव किसी न किसी रूप में पड़ रहा है। इन परिस्थितियों ने उपन्यासकारों को अपनी ओर आकृष्ट किया तथा महानगरों में व्याप्त अनियमितता एवं समाज को भ्रष्ट करने वाली विद्रुपताओं को उपन्यासों में स्थान दिया हैं।
डॉ. रेड्डी ने मद्रास के जन-जीवन को अत्यधिक निकटता से देखा है। अतः उनके उपन्यास 'यह बस्ती : ये लोग' में उन्होंने महानगरों में व्याप्त अनियमितता एवं समाज को भ्रष्ट करने वाली विद्रुपताओं को उपन्यास में स्थान दिया है। यह अपेक्षाकृत एक छोटी रचना है, पर शहरी जीवन पर यह बड़ा व्यंग्य है। महानगरों की बाह्य प्रगति एवं जीवन की तेज रफ्तार अपने भीतर कितनी भाँति-भाँति की क्षुद्रता भरे हुए हैं, इसी तथ्य को इस कृति में प्रस्तुत किया गया है।
'यह बस्ती : ये लोग' में बालशौरि रेड्डी जी ने शहरी जीवन के खोखलेपन के निरूपण का प्रयास किया है। संपूर्ण कथानक चेन्नई महानगर के अनेक जीवन अंचल प्रस्तुत करता है। भारत गाँवों का देश है वर्तमान में प्रत्येक ग्रामीण गाँवों को छोड़कर शहरों की ओर जीविका और सुख की तलाश में पलायन कर रहा है। परन्तु इसके भयावह परिणाम दृष्टिगत हो रहे हैं। दिन दुगुनी रात चौगुनी बढ़ती नगरीय जनसंख्या ने विविध क्षेत्रों से संबंधी अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। प्रस्तुत घटना प्रधान उपन्यास में उपन्यासकार ने नगरीय जीवन में घटित होने वाली समस्याओं और संदर्भों को कुशलता के साथ वर्णित किया है यथा -
महानगरों की समस्याओं में कालाबाजारी भीषणतम समस्या के रूप में हमारे सम्मुख है। कालाबाजारी की समस्या देश को खोखला बना रही है। इसी महाबिमारी के कारण समाज का हर तबका भिन्न- भिन्न रोगों के जाल में फंसकर तड़प रहा है। इसी कारण मानव जीवन की अवधि सौ सालों से घटकर साठ साल रह गयी है। प्रस्तुत उपन्यास में दयानिधि के गोदाम में चीनी में बालू की मिलावट इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
कालाबाजारी की समस्या के साथ भ्रष्टाचार भी एक ऐसी गूढ़ समस्या है जो सुरसा के मुँह के समान बढ़ती जा रही है। देश का प्रत्येक जन इस रोग से ग्रसित है। सरकारी कार्यालयों, सामाजिक संगठनों, सर्वत्र यह समस्या अपने पैर जमाये हुए है। आलोच्य उपन्यास में 'समाज सेवा समिति' द्वारा योजनाओं का निर्माण होता है ओर धनराशि भी एकत्रित की जाती है परन्तु उसका सदुपयोग नहीं हो पाता है। यही नहीं उपन्यास में भ्रष्टलोगों व भ्रष्ट संस्थाओं का भी परिचय मिलता है। इन भ्रष्ट लोगों के कारण ही सुविधाएँ उन लोगों तक नहीं पहुँच पा रही है जो उसके वास्तविक हकदार है।
आधुनिक सुख-सुविधाओं और बेशुमार दौलत प्राप्त करने हेतु आज आदमी क्या-क्या हथकण्डे नहीं अपनाता। पैसे के लालच में आकर व्यक्ति गलत से गलत कार्य करने को भी उद्यत रहता है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण महानगरों में व्याप्त 'तस्करी' की समस्या है। उपन्यास में साधुओं का वेश धरकर कमण्डल में जल के स्थान पर अफीम की तस्करी करते हुए लोगों का वर्णन किया है। यही नहीं महानगरों में शराब की तस्करी व निर्माण कार्य भी धड़ल्ले से होता है। येन-केन-प्रकारेण लाखों, करोड़ों कमाने की जुगत में व्यक्ति अपने ईमान तक को बेच देता है। तभी तो यह समस्याएँ बढ़ती जा रही है।
आधुनिकता की गतिशील प्रक्रिया एवं आधुनिकता ओढ़ने की प्रवृत्ति के कारण समाज में ऐसे असामाजिक तत्त्वों ने प्रवेश कर लिया है जिनसे उबर पाना आसान नहीं रहा। यथा-जुआ, शराबी प्रवृत्ति, खुलेआम व्याभिचार, कृत्रिम जीवन आदि इन समस्त असामाजिक तत्वों के कारण सम्पूर्ण सामाजिक तंत्र जड़ से हिल गया है। जुआ, शराबी प्रवृत्ति, व्यभिचार जीवन से जुड़े यथार्थ है। समाज की सच्चाई है, महानगरों की विसंगतियाँ हैं। इस कारण जीवन और समाज में जटिलताएँ उत्पन्न हुई है, जुआ, शराब आदि की बुरी लत व्यक्ति का सब कुछ स्वाहा कर देती है। परिवार में तनाव, मनमुटाव, पारिवारिक विघटन आदि का यह प्रभावी कारण रहा है। आलोच्य उपन्यास में एक ऐसे ही परिवार का चित्रण है। जिसमें शराब के नशे में धूत व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी व बच्चों के साथ मारपीट का वर्णन है।
यही कारण है कि आज महानगरों में हिंसा अपराध, यौन-दुर्व्यवहार की जैसी दुष्प्रवृत्तियों को आश्रय मिल रहा है और यह बहुतायत की घटनाएँ बढ़ती जा रही है। स्वावलम्बी स्त्री घर के बाहर नौकरी के लिए निकली है चाहे आत्मनिर्भरता के लिए उसे विभिन्न विपन्न परिस्थितियों को सामना करना पड़ता है। ऐसी महानगरीय विद्रूपता का वर्णन उपन्यासकार रेड्डी जी ने किया है। उपन्यास की पात्रा सरोजा की रिक्शेवाला अस्मत लूटने का प्रयास करता है। यही नहीं समाज सेवा समिति के अध्यक्ष राधाकृष्णन के द्वारा किये गये घोटाले की जानकारी जब सरोजा देना चाहती है तो राधाकृष्णन द्वारा उससे विवाह करने तथा नहीं मानने पर उसके साथ जबरदस्ती का प्रयास किया जाता है।
ये समस्त घटनाएँ मिलकर मद्रास महानगर की बहुमुखी विद्रूपता को प्रकट करती है। यह भी सिद्ध करती है कि 'अतिनिर्धन से अतिधनवान तक सभी अपने- अपने ढंग से चतुर, चुस्त, चालाक, धूर्त और अवसरवादी तथा मुनाफाखोर बने हुए है। दर्जी, धोबी, तेली, ग्वाला, कुली, रिक्शेवाला, छोटा पंसारी अपने काम में मिलावट और मक्कारी करते हैं तो नेता, वकील, डॉक्टर, सेठ तथा व्यापारी अपने ढंग से ऊँचे पैमाने पर बेईमान हैं। पुलिस और अध्यापक भी इसी गिरफ्त हैं।
निष्कर्ष ; निष्कर्ष यह है कि उपन्यासकार ने युगीन वास्तविकता को बखूबी उपन्यास में हमारे समक्ष रखा है। महानगरीय जीवन की विसंगतियों का जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया है। महानगर के दूषित वातावरण में होनहार युवक-युवतियों का शोषण हो रहा है। पूँजीपति वर्ग समाज के निर्धन लोगों से अपना काम निकाल रहे हैं फलस्वरूप समाज की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है। महानगरों की बाह्य प्रगति और जीवन की तेज रफ्तार भीतर से कितनी क्षुद्रता से भरी हुई है, इस तथ्य का मार्मिक चित्रण इस कृति में प्रस्तुत किया है।
- तरूणा दाधीच
FAQ;
Q. यह बस्ती : ये लोग उपन्यास के उपन्यासकार कौन है?
Ans. डॉ. बालशौरि रेड्डी "यह बस्ती - ये लोग" उपन्यास के उपन्यासकार है।
Q. डॉ. बालशौरि रेड्डी कौन है?
Ans. हिन्दी और तेलुगू के यशस्वी साहित्यकार डॉ॰ बालशौरि रेड्डी 'चंदामामा' के पूर्व सम्पादक, हिन्दी साहित्य साधक और प्रसिद्ध बालसाहित्य सर्जक है।
Q. यह बस्ती : ये लोग उपन्यास में किसका निरूपण किया गया है?
Ans. डॉ. बालशौरि रेड्डी का उपन्यास यह बस्ती : ये लोग में शहरी जीवन के खोखलेपन के निरूपण किया गया है।
Q. डॉ॰ बालशौरि रेड्डी का जन्म कब और कहा हुआ?
Ans. आंध्र प्रदेश के कड़पा जिले में डॉ॰ बालशौरि रेड्डी का जन्म 1 जुलाई, 1928 को हुआ।
Q. डॉ॰ बालशौरि रेड्डी किस बाल पत्रिका के संपादक थे?
Ans. डॉ॰ बालशौरि रेड्डी मासिक बाल पत्रिका "चंदामामा" के संपादक रहे।
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