Poetry Born Of Struggle : Orangutans Were Better Ancestors
कविता वन-मानुष थे बेहतर पूर्वज : हिन्दी कविता कोश में प्रस्तुत है डॉ. शशिकांत की कविता वनमानुष थे बेहतर पूर्वज। जिंदगी पर कविता खूबसूरत सुंदर सगरगर्भित शब्दों के साथ पूर्वजों के साथ आज हमारी जीवन का तुलना के साथ पेश की गई कविता, आज मानव जीवन दुख से भरा हुआ है, सभी समाधान होते हुए भी वह खुशी से अपना जीवन बिता नहीं रहा है, हमेशा पैसों के पीछे भागते अपने जीवन को और भी दुर्भर बनाते जा रहा है, हमारे पूर्वज किसी भी प्रकार के सुख साधन न होते बिना भी बहुत खुशी से अपना जीवन बिताते थे, लेकिन।अजाका मानव हर क्षेत्र में उन्नति प्राप्त कर भी अपने जिंदगी को हमेशा दुखमयी बनाया हुआ है। जिंदगी पर बेहतरीन संघर्ष से जन्मी कविता पढ़े और साझा करें।
Vanamanush the Behtar Purvaja
वनमानुष थे बेहतर पूर्वज
क्या लिखें हम नाकामियों के सिलसिले पर
बता, ऐ जिन्दगी, तू चली किस फलसफे पर।
गिला तकदीर से नहीं, शिकवा तदबीर से है
हैरत में हैं हम, अपने ही कारनामे पर।
अब तो सीधी हो जा, ऐ जिन्दगानी तू
टूटने पर जलेबी भी टेढ़ी नहीं रहती।
गुलों का हम्र है खिलकर मुरझा जाना
पर उसका फर्ज भी है, चमन को महका जाना।
कर न सके हम जो करना था, किया वह जो न करना था
क्यूँ हुआ न जाने ऐसा, शायद हुआ वही जो होना था।
न चाँद, न चिराग, तीसरा पहर, न कोई रहबर
जिन्दगी गुजरी इस कदर कि हम हो गए बेखबर।
अच्छा किया किसका? भला कितनों का? हमको नहीं पता
झंझट कब? क्यों हुई गलतियाँ? जमाने को है सब पता।
सब आंख मूंदकर बढ़ते हैं औरों का गला दबाने को
पैसों की खातिर हिंस्र बने, आदमी सभ्य कहाने को।
जंगल छोड़ आदम बने, छाल छोड़ कपड़े पहने
पर आया नहीं जीना हमको, वन-मानुष थे बेहतर पूर्वज ।
- डॉ. शशिकांत
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