अन्या से अनन्या : भारतीय नारी की संघर्ष गाथा

Dr. Mulla Adam Ali
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Anya Se Ananya : The struggle story of an Indian woman

अन्या से अनन्या आत्मकथा प्रभा खेतान जी की सबसे पहले धारावाहिका के रूप में 'हंस' पत्रिका में छपी, फिर 2007 में जिसका पुस्तक रूप में प्रकाशन हुआ। अन्या से अनन्या आत्मकथा नारी जीवन संघर्ष का प्रामाणिक दस्तावेज है, इस आत्मकथा में जीवन यथार्थ, जीवन की यादें तथा सच्चाई को अभिव्यक्त किया गया है।
Anya Se Ananya The struggle story of an Indian woman

Table of Contents;

• अन्या से अनन्या : एक परिचय
• प्रभा खेतान : जीवन परिचय
• अन्या से अनन्या आत्मकथा के 
• अन्या से अनन्या आत्मकथा की समीक्षा
• अन्या से अनन्या की मूल संवेदना
• अन्या से अनन्या का सारांश
• निष्कर्ष (Conclusion)
• संदर्भ ग्रंथ सूची (References)
• FAQ (frequently asked questions)

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"अन्से अनन्या" आत्मकथा के माध्यम से नारी जीवन की संघर्ष गाथा एवं त्रासदी को प्रभा खेतान जी ने पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। सामाजिक दृष्टि से यह आत्मकथा महत्वपूर्ण है, तो चलिए जानते है अन्या से अनन्या आत्मकथा के बारे में और इसमें अभिव्यक्त नारी जीवन संघर्ष को।

अन्या से अनन्या : भारतीय नारी की संघर्ष गाथा

बीसवीं सदी के हिंदी महिला लेखिकाओं की सूची में मन्नू भंडारी, मैत्रेयी पुष्पा, कृष्णा सोबती, उषा प्रियवंदा, मृदुला गर्ग, कात्यायनी, नासिरा शर्मा, रमणिका गुप्ता, कौशल्या बैसंत्री आदि के साथ एक महत्वपूर्ण नाम जुड़ता है प्रभा खेतान का। पारिवारिक दबाव, संस्कार या समाज से लांछित होने के भय से हिंदी लेखिकाओं ने उतनी गंभीरता या यथार्थता से आत्मकथाएँ नहीं लिखी जितनी पश्चिम में सिमोन द बोउवा, केट मिलेट, जर्मेन ग्रेयर आदि लेखिकाओं ने लिखी है। लेकिन इसका अपवाद है प्रभा खेतान। इनके समान जोखिमपूर्ण साहित्य लिखने का साहस हिंदी की किसी लेखिका ने शायद नहीं किया है। डॉ. प्रभा खेतान बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी है, इनका व्यक्तित्व उनके कृतित्व में अन्तर्निहित है। लेखनी के माध्यम से अपने आप को पेश करने का काम प्रभा जी ने किया है।

प्रभा जी की आत्मकथा 'अन्या से अनन्या' सबसे पहले 'हंस' पत्रिका में धारावाहिक रूप में छपी, जिसका पुस्तक रूप में प्रकाशन 2007 में हुआ। यह आत्मकथा नारी संघर्ष का प्रामाणिक दस्तावेज है, इसमें प्रभा जी का जीवन यथार्थ, जीवन की यादें तथा सच्चाई को अभिव्यक्ति मिली है। प्रभा जी ने इस आत्मकथा में स्त्री की असुरक्षा को काफी संवेदनशीलता से उठाते हुए हिंदी महिला लेखिकाओं और संस्कृतिकर्मियों के लिए नई खिड़की खोल दी है। यह आत्मकथा लिखकर प्रभा जी ने स्त्री जीवन की दुर्बलताओं के प्रामाणिक ब्योरे पेश किए और समाज को स्त्री-पुरुष संबंधों पर फिर एक बार सोचने-विचार करने के लिए मजबूर किया है। उनके स्त्रीवाद का एकमात्र एजेन्डा स्त्रियों के स्वयम् निर्णय लेने का अधिकार दिलाना है। स्त्री को अपनी पहचान सुरक्षित रखने के लिए उसके अस्तित्व को बनाए रखने के साथ ही उसे पुरुषों के बराबर अधिकार मिलने चाहिए। स्त्री-पुरुष को एक दूसरे के वैयक्तिक जीवन के हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

'अन्या से अनन्या' आत्मकथा के माध्यम से प्रभा खेतान ने नारी जीवन की संघर्षगाथा एवं त्रासदी को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है। यह आत्मकथा सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। प्रभाजी का जन्म कोलकत्ता के एक धनाढ्य मारवाड़ी व्यापारी परिवार में हुआ। जिसमें लड़की का जन्म लेना पाप समझा जाता था। यह बेहद संकीर्णतावादी, सनातनी हिंदू परिवार था, जिसमें कई लड़कियों के बाद पुत्र की अभिलाषा करनेवाले माता-पिता की पाँचवी संतान के रूप में प्रभाजी का जन्म हुआ। पिता लादूरामजी सुधारवादी, गाँधीवादी सोच रखनेवाले इन्सान होने से अपनी बेटियों को पढ़ाने की इच्छा रखते थे, लेकिन माँ पुरनी देवी पारम्पारिक विचारों की होने के कारण प्रभा को जन्म से ही नफरत करती थी तथा अपनी बिमारी की जिम्मेदार भी उसे ही मानती थी। माँ का प्यार न मिलने से प्रभा अपने आप को उपेक्षित, असहाय, अनाथ महसूस करती है। प्रभा काली और मोटी होने से उसे ना ही माँ का आँचल मिला, ना प्यार, इतना ही नहीं भाई-बहनों द्वारा भी उसे अपमानित होना पड़ा। इसलिए वे इनसे अलग रहती, अपने-आप से सवाल पूछा करती और खुद ही उसका जवाब देती। घण्टों बरामदे में बैठकर चिड़ियों से संवाद करती। इन हरकतों को देखकर भाई-बहन उन्हें पागल कहते थे।

घर में बाबूजी और दाई माँ के अलावा सभी से प्रभा की उपेक्षा हुई। साढ़े नौ साल की उम्र में पिताजी के निधन से वह अनाथ हो गई। इस अकेलेपन में उसे प्रेम करनेवाली केवल दाई माँ थी। दाई माँ ही उसका सहारा और आश्रय थी, सगी माँ से भी बढ़कर प्यार प्रभा को दाई माँ से मिला। उन्हें जीवन में दुःख, नफ़रत, घृणा के आघात निरन्तर होते हैं। अकेलापन हमेशा उसके साथ रहा, लेकिन इसी अकेलेपन ने उसे जीवन का अर्थ भी समझाया। मारवाड़ी समाज की रूढ़ियाँ, कायदे-कानून, माँ की हुकूमत, भाई-बहनों का रौब, हर एक चीज़ के लिए तरसना, खाने-पीने में भेदभाव, शिक्षा से नफ़रत, पिरियड़ के वक्त अछूत की तरह व्यवहार इस प्रकार की कई मरणप्रायः यातनाओं से उन्हें गुजरना पड़ा। बचपन से ही प्रभा प्यार की प्यासी थी जैसे ही वह डॉक्टर सर्राफ के संपर्क में आई तो उनके मीठे बोल एवं प्रेमभाव ने उसे आकर्षित किया। प्रभा बाईस साल की उम्र में सरदर्द के कारण आँखों का चेकअप कराने डॉक्टर सर्राफ के क्लीनिक गयी। डॉक्टर साहब ने प्रभा की आँखों में झाँककर कहा कि- 'इतनी सुन्दर आँखें मैंने आज तक नहीं देखी' और दोनों में प्यार हो गया। प्रभा को पहली बार किसी पुरुष ने प्यार से अपनी हथेलियों में भरा था, पहली बार कोई पुरुष उससे कह रहा था कि तुम कितनी आकर्षक हो, और पहली बार किसी की बाँहों में उसने खुद को सुरक्षित महसूस किया था। प्रभा ने अपने आपको उन्हें समर्पित कर दिया।

प्रभा ने उस डॉक्टर से प्रेम किया था जो शादी- शुदा होकर, पाँच बच्चों के बाप थे जिनकी उम्र चालीस से ऊपर थी। डॉक्टर प्रभा को अपने जिन्दगी की सच्चाई बताकर दोनों के सम्बन्धों की सीमा से अवगत कराते हैं, लेकिन प्रभा पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थी। वह डॉक्टर साहब को अपनी जिन्दगी से भी ज्यादा प्यार करती है। प्रभाजी सार्त्र के 'अस्तित्ववादी दर्शन' पर शोध-कार्य करते समय सार्ज और सिमोन द बोडवा के आत्मीय सम्बन्धों से प्रभावित हुई थी। सिमोन और सात्र बिना विवाह किए आजीवन अपने-अपने वैयक्तिक स्वतन्त्र विचारों के साथ लिव इन रिलेशनशिप में अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं, उनमें कहीं कुछ टकराव नहीं होता। प्रभाजी के अचेतन मन पर इस लिव इन रिलेशनशिप का प्रभाव पड़ा था, इसलिए उसे जैसे ही मौका मिला, वह मारवाड़ी संस्कृति और भारतीय रूढ़ि-परम्परा का विचार न करते हुए डॉक्टर को अपना दिल दे बैठती है और जीवन भर उनके साथ रहती है। पितृसत्ताक संस्था में पुरुष के आगे स्त्री का व्यक्तित्व बौना हो जाता है, इसलिए प्रभाजी ने विवाह संस्था का विरोध कर विवाह के प्रति एक नया दृष्टिकोण व्यक्त किया है।

प्रभाजी स्वावलंबी, आत्मनिर्भर और स्वतन्त्र जीवन जीना चाहती थी, इसलिए उन्होंने हर बंधन को - नकारा। डॉक्टर सर्राफ और उसके उम्र में अठारह साल का - बहुत बड़ा फासला था फिर भी प्रभा ने उनके साथ - सम्बन्ध रखने का साहस दिखाया। डॉक्टर साहब के बच्चे की शादी से पहले माँ होने के डर से उसे गर्भपात करवाना पड़ा। डॉक्टर सर्राफ गर्भपात करने के विरुद्ध थे क्योंकि गर्भपात कराने के कारण हो सकता था कि वे कभी माँ न बन सके, किन्तु प्रभा अपने निर्णय पर अड़िग रही। इस घटना के पश्चात् उसने डॉक्टर से सम्बन्ध तोड़ने का विचार किया, लेकिन उसे तोड़ नहीं पाई, क्योंकि वह डॉक्टर से देहिक नहीं बल्कि भावनात्मक स्तर पर प्रगाढ़ प्रेम करती थी। वह डॉक्टर के निजी जीवन में भी दखल नहीं देना चाहती, न उनपर या उनकी संपत्ति पर अपना अधिकार जमाना चाहती है और न परिवार को तोड़कर अपने लिए जगह बनाना चाहती है। बस वह इतना चाहती है कि डॉक्टर सर्राफ उन्हें पूरा सम्मान दें, उनकी अस्मिता को महत्व और समर्पण का प्रत्युत्तर समर्पण से दें ताकि समाज भी उनके रिश्ते को मान्यता देकर उन्हें हेय नज़रों से न देखें।

प्रभाजी एक अबला स्त्री का नहीं बल्कि सबला का जीवन जीना चाहती थी। लॉयन्स क्लब के यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत जब उसे अमेरिका जाने का मौका मिला तब उसके पास ना ही पैसे थे ना ही वह डॉक्टर से पैसे लेना चाहती है क्योंकि उसका प्यार बिकाऊ नहीं है। ना ही वह यह ताने सुनना चाहती है कि पैसों के लिए उसने डॉक्टर साहब को प्यार के जाल में फँसाया है। उसने खुद के गहने बेचकर अमेरिका जाने का प्रबंध किया। अमेरिका में उसने पैसे कमाकर आत्मनिर्भर बनने के लिए ब्यूटी थेरपी का डिप्लोमा किया। इस डिप्लोमा को पूरा करने के लिए आर्थिक कठिनाईयों को झेलते हुए दिन-रात मेहनत की। प्रभा ने अमेरिका में देखा कि वहाँ की स्त्री भी भारतीय स्त्रियों की तरह असहाय है। जिस आइलिन के पास वह रहती थी उसके तीन विवाह हो चुके थे लेकिन वह सभी को तलाक देकर अकेली रहती थी। मरील का पति किसी बीस साल की लड़की के साथ भाग गया है लेकिन वह कुछ नहीं कर पाती। मिसेज डी के डॉक्टर पति क्लारा ब्राऊन के चक्कर में फँसे हैं। मिसेज डी की बहन कैथी के घर में कोई सुखी नहीं है। समाज द्वारा शोषित स्त्रियों के दुःखों को प्रभाजी ने यहाँ उजागर किया है।

अमेरिका से भारत लौटने पर प्रभा ने कोलकत्ता में 'फिगरेट' नामक हेल्थ क्लब की स्थापना की। हेल्थ क्लब की स्थापना का उद्देश्य आर्थिक रूप से सम्पन्न होना था। प्रभाजी अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए रखकर स्वतन्त्र जीवन जीना चाहती थी। ये स्वतन्त्रता तभी मिल सकती थी जब वह आर्थिक रूप से सम्पन्न हो। इस हेल्थ क्लब के माध्यम से सन् 1970 के दशक में पच्चीस से तीस हजार रुपए प्रति माह कमाई होती थी, जो एक बहुत बड़ी आर्थिक उपलब्धि थी। प्रभाजी अपने पैरों पर खड़ी हुई। पढ़ाई की प्रबल इच्छा मन में होने के कारण इन्होंने ज्याँ पाल सार्त्र पर कलकत्ता विश्वविद्यालय से 'सार्ज का अस्तित्वाद' विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। व्यापारी परिवार में जन्म लेने के कारण प्रभा के मन में व्यापार का आकर्षण था। पहले हेल्थ क्लब और बाद में चमड़े के सिले-सिलायें वस्त्रों का निर्यात व्यापार वह करने लगी, इसकी कामयाबी के बदोलत इनका इंडिया टुडे में दस कामयाब महिलाओं के रूप में फोटो छपा।

डॉक्टर साहब का परिवार उसे अपनाए इसके लिए प्रभा ने भरसक प्रयास किए लेकिन ये कभी हो न सका। वह चाहती थी कि आजीवन वह अन्या न बनी रहें, उनके रिश्ते को मान्यता मिले। डॉक्टर साहब और उनका परिवार ना ही प्रभा को अपनाता है, और न ही परिवार में जगह देता है। प्रभा को एक बाहरी व्यक्ति या रखैल ही समझा जाता है। डॉक्टर साहब की ओर से इसके लिए कोई प्रयास न होने से प्रभा निराश हुई। उसकी त्रासदी यह थी कि न ही वह डॉक्टर से शादी कर सकती थी न उनसे अलग हो सकती थी। व्यापार में आने के पश्चात् वे अलग-अलग लोगों के सम्पर्क में आने लगी, जिसे देखकर डॉक्टर साहब प्रभा के चरित्र पर शक करने लगे। प्रभा अपने वफादारी या चरित्र की साक्ष्य देते-देते थक जाती, लेकिन डॉक्टर साहब उसे झूठ ही समझते। डॉक्टर प्रभा से जुड़ने के पश्चात् एक अन्य स्त्री से सम्बन्ध बना लेते हैं, जिसे प्रभा सहन नहीं कर पाती। वह सोचती है कि डॉक्टर साहब किसी और को खोज़ सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं खोज़ सकती ? ये सोचकर प्रतिकार की आग में एक जलती हुई अग्निशिखा में धधकती हुई खुद भी एक अन्य पुरुष से रिश्ता जोड़ती है। वे दोनों दो-तीन बार मिलते हैं, लेकिन प्रभा को यह सम्बन्ध महज़ एक निषेध लगने लगता है, इस कारण वे उस पुरुष से कभी नहीं मिली और बाद में डॉक्टर साहब के साथ ही रिश्ता बनाए रखा।

प्रभाजी अठ्ठाईस साल तक डॉक्टर साहब के साथ रही, फिर भी वह न उनकी हुई और न उनके परिवार की। डॉक्टर साहब की कॅन्सर से मृत्यु होने के पश्चात् घर के सभी लोग उनके शव को फेरी देते हैं, किन्तु प्रभा को इसमें शामिल नहीं किया गया। डॉक्टर की मृत्यु से वह पूरी तरह बेचैन हो जाती है। डॉक्टर साहब के शोक सभाओं में उन्हें सच्चे समाजसेवी, सफल डॉक्टर के रूप में सम्बोधित करके याद किया गया, पत्नी और बच्चों का उल्लेख हुआ, लेकिन प्रभा नामक स्त्री का नाम किसी की जुबान पर नहीं आया। लेखिका को लगता है कि हमारे समाज में पुरुष चाहे जितना भी पाप करे, उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता, सब लोग स्त्री को ही दोषी ठहराते हैं। प्रभाजी ने जीवन में बहुत कुछ खोया, बहुत कुछ सहा लेकिन वे कभी रूकी नहीं, अपनी सफलता की ओर अग्रसर होती चली गई। वह कलकत्ता चेम्बर ऑफ कॉमर्स की पहली महिला अध्यक्षा बनी, उन्हें अनेक सम्मानों से नवाजा गया।

निष्कर्ष : 'अन्या से अनन्या' आत्मकथा सिर्फ प्रभा खेतान के जीवन संघर्ष का खुला दस्तावेज न होकर सम्पूर्ण भारतीय नारी के संघर्ष भरे जीवन का, उनकी दशा और दिशा का आईना है। प्रभा डॉक्टर साहब से एकनिष्ठ प्रेम करती है लेकिन वह कभी उनकी नहीं हो पाई। वह डॉक्टर साहब की अन्या थी और जीवन भर अन्या ही रही, एक दूसरी औरत ही बनी रही, कभी उसे पत्नी का दर्जा नहीं मिल सका। किन्तु वह अपने मेहनत और प्रयत्नों में 'अन्या' से अनन्या जरुर बन गई। 'अन्या से अनन्या' यह आत्मकथा को दिया गया शीर्षक सार्थक है। डॉ. प्रभा खेतान एक मजबूत इरादोंवाली, महत्वाकांक्षी, आत्मविश्वासी, दृढ़-निश्चयी, संघर्षशील महिला थी। इसलिए वह 'अन्या से अनन्या' बन पाई। उन्होंने साहित्य और व्यवसाय के क्षेत्र में एक विशेष कामयाबी हासिल की, देश-विदेश की यात्रा करके अपने व्यक्तित्व को विस्तारित करने का काम किया। इस आत्मकथा ने हिंदी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लिया है। लेखिका का जीवन संघर्ष समाज और महिलाओं के लिए प्रेरणादायी है।

संदर्भ-संकेत :

1. अन्या से अनन्या डॉ. प्रभा खेतान-राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली

2. प्रथम दशक के महिला लेखन में स्त्री-विमर्श- डॉ. मृदूला गर्ग-विद्या प्रकाशन, कानपुर

3. महिला-आत्मकथा लेखन में नारी- डॉ. रघुनाथ देसाई-ए.बी.एस. पब्लिकेशन, वाराणसी

- प्रा. डॉ. रणजीत जाधव

FAQ;

Q. 'अन्या से अनन्या' किसकी आत्मकथा है?

Ans. 'अन्या से अनन्या' आत्मकथा नारी जीवन संघर्ष का प्रामाणिक दस्तावेज है यह प्रभा खेतान जी की आत्मकथा है।

Q. अन्या से अनन्या का प्रकाशन वर्ष?

Ans. आत्मकथा अन्या से अनन्या प्रभा खेतान जी की सबसे पहले धारावाहिका के रूप में 'हंस' पत्रिका में छपी, फिर 2007 में जिसका पुस्तक रूप में प्रकाशन हुआ।

Q. अन्या से अनन्या का अर्थ?

Ans. अन्या से अनन्या का अर्थ : अन्या – कोई दूसरी, भिन्न। अनन्या का अर्थ – अन्य से सम्बन्ध न रखने वाली, एक ही में लीन, एकनिष्ठ।

Q. प्रभा खेतान को केंद्रीय हिंदी संस्थान से कौनसा पुरस्कार मिला?

Ans. केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का 'महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार' साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए मिला, राष्ट्रपति ने उन्हें अपने हाथों से प्रदान किया।

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