प्रेमचंद : एक अनुशीलन

Dr. Mulla Adam Ali
0

Premchand - A Study (Biography, Novels, Short Stories, & Facts)

Premchand - A New Study

Munshi Premchand : हिंदी और उर्दू में लिखने वाले महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जयंती पर विशेष आलेख, प्रेमचंद का जन्म लमही गांव में 31 जुलाई 1880 को हुआ, उनका बचपन का धनपत राय श्रीवास्तव, उर्दू में नवाबराय नाम से प्रसिद्ध है, उनके द्वारा लिखा गया सोजेवतन अंग्रेज सरकार ने जब्त किया था, उपन्यास सम्राट, कथा सम्राट नाम से मशहूर प्रेमचंद जी का निधन 1936 में हुआ। गोदान उनके महत्वपूर्ण उपन्यासों में से एक है, कफ़न, ठाकुर का कुआं, बड़े भाई साहब, दो बैलों की कथा आदि प्रमुख कहानियां हैं।

मुंशी प्रेमचन्द एक अनुशीलन

'प्रेमचन्द' एक ऐसे साहित्यकार है जो जीवन की उस पाठशाला से आए थे, जिसमें उन्होंने अपनी सूक्ष्म अन्तँदृष्टि से समाज की हर विशेषता विकृति, आस्था-अनास्था जय- पराजय भीरूता, अंधविश्वास आदि को देखा था। प्रेमचन्द एक युगद्रष्टा, कुशल स्रष्टा एवं क्रांतिद्रष्टा होने के कारण उन्होंने अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ा है, तो दूसरी ओर वर्तमान के वातायन से भविष्य की ओर भी झाँका है। प्रेमचन्द के पात्र कोरे वैयक्तिक न होकर, समष्टिगत है, क्योंकि उन्होंने जीवन, समाज और युगीन बोध को व्यवहारिकता के धरातल पर भोगा है। समाज से विच्छिन्न साहित्य की कल्पना उन्होंने कभी नहीं किया। प्रेमचन्द का कहना था कि "जिस साहित्य से हमारी सुरुचि जाग्रत न हो सके, आध्यत्मिक और मानसिक परितुष्टि न मिल सके, हममें सच्चा संकल्प और कठिनाइयों पर विजय पाने की दृढ़ता न उत्पन्न कर सके वह हमारे लिए बेकार है।'

उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द ने अपने कथानकों का आधार युग-जीवन की विराट समस्याओं को बनाया। उन्होंने बाह्य परिवेशों को ही नहीं वरन् जीवन के अच्छाई-बुराई, आशा-निराशा मध्यवर्गीय और ग्राम जीवन की मानवीय दुर्बलताओं जमींदारी शोषण, किसानों की दयनीय स्थिति को सशक्त रूप से व्यक्त किया है।

प्रेमचन्द की सफलता 'कथ्य' और 'शिल्प' दोनों दृष्टियों से है। 'शिल्प' के उलझाव में उन्होंने अपनी सहज अनुभूतियों को कहीं भी उलझने नहीं दिया है। और न भावों के आरोपण में 'कथ्य' के प्रति अत्यधिक आसक्ति दिखाई है। प्रेमचन्द की कहानियों में व्यक्ति और जीवन का विशाल फलक है, जिस पर सारा युगबोध, युगीन समस्याएँ, समाधान यथार्थ परिवेश में अपनी संपूर्ण आयामों के साथ उद्‌द्घाटित हैं। उनकी कहानियों में संपूर्ण समाज मूर्त हो उठा है। अनपढ़ पढ़े-लिखे किसान जमींदार बाल-वृद्ध, युवा सभी अपनी भाव-विचार, सबलता दुर्बलता के साथ मौजूद हैं। प्रेमचन्द वास्तव में एक यथार्थवादी कहानीकार है। उनकी आदर्शोन्मुख यथार्थ को व्यक्त करने वाली कहानियाँ हैं नमक का दारोगा, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी आदि। प्रेमचन्द ने मध्यम वर्गीय एवं निम्न वर्गीय समाज की मानवीय दुर्बलताओं, विकृत्ति, कुरूपता आदि को देखा और भोगा था। सामाजिक विषमताओं पर उन्होंने करारा व्यंग्य करते हुए मूल्य- स्थापन भी किया है। 'माता का हृदय', 'शतरंज के खिलाड़ी', सवा सेर गेहूँ', 'पूस की रात आदि ऐसी कहानियाँ है जिसमें यथार्थ और आदर्श का सुंदर समन्वय के साथ भोले-भाले मासूम किसान की श्रद्धा को सामर्थ्यवान जमींदार किस प्रकार दोहन करते हैं, दिखाया है। 'कफ़न', 'नशा' आदि ऐसी कहानियाँ है जिसमें यथार्थ को उसके अनगढ़ रूप में अभिव्यक्त किया है।

प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में 'गाँधीवाद' के हृदय परिवर्तन को बड़े ही सूक्ष्म रूप में चित्रित किया है। उन्होंने गाँधीवाद को सप्रयास आरोपित नहीं किया है, वरन् अपनी कहानियों के सहारे मनुष्य को प्रेम-भावना के लिए प्रेरित किया है। 'सुजान भगत', 'ईदगाह', पंच परमेश्वर आदि कहानी के प्रमुख पात्र उँचे उठते जाते हैं। 'पंच परमेश्वर' का अलगू, सवा सेर गेहूं का शंकर और 'पूस की रात' का हलकू सभी अपनी-अपनी अलग सलीबों में जकड़े हुए आदर्श से यथार्थ तक की भावभूमि पर अपने चरित्र-विचार को आरोपित करते हैं। 'अलगू' अच्छाईयों के कैनवास पर चित्रित हैं तो शंकर की दुनिया सपनों और सच्चाई के बीच की दुनिया है। 'पूस की रात' का 'शंकर' अपनी परिस्थितियों के साथ संघर्षरत है। उसकी दुनिया बड़ी निर्मम, तलवार की धार जैसी है, जहाँ क्रूर यथार्थ अपने नग्न रूप में है। प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में ग्रामीणों की संस्कार निष्ठा परंपरा पालन से उत्पन्न प्रवंचनाओं को अभिव्यक्त किया है। 'चोरी' कहानी में ग्रामीण परिवेश मूर्त हो उठा है। "यह कच्चा, टूटा घर, यह पुआल का बिछौना नंगे बदन नंगे पाँव खेतों में घूमना, आम के पेड़ों पर चढ़ना-सारी बात आँखों के सामने घूम रही है। चमरौधे का जूते पहनकर उस समय कितनी खुशी होती थी, अब फ्लेक्स के बूटों से भी नहीं होती।

प्रेमचन्द ने कहा है-"में उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालता और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।" प्रेमचन्द के उपन्यास-साहित्य का एक-एक शब्द कोटि-कोटि जन मानवीय संवेदना, भाव, विचार का प्रतिबिम्ब है। कथानकों में जीवन की विशद व्याख्या है, उनकी दृष्टि में व्यक्ति समाज का अविभाज्य अंग है। प्रेमचन्द के उपन्यास उनके युग की आवाज़ है। 'प्रतिज्ञा' उपन्यास में उन्होंने 'प्रेमा' जैसे चरित्र को चित्रित कर भारतीय विधवा जीवन की सारी दैन्यता, विवशता, कुरूपता को अभिव्यक्त कर दिया है। 'निर्मला' उपन्यास की युवा निर्मला वृद्ध पुरुष के साथ दहेज के अभाव में ब्याह दी जाती है। यह दहेज किस तरह सुख-शांति को समूल नष्ट कर त्रासदी भोगने पर मजबूर करता है इस कटु सत्य को 'निर्मला' के माध्यम से प्रेमचन्द ने चित्रित किया है। निर्मला अपनी संपूर्ण आंतरिक वेदना और अनंत अभिलाषा को लिए मृत्यु का वरण कर लेती है।

प्रेमचन्द को मनुष्य की सात्विक प्रवृत्तियों में पूर्ण विश्वास था, इसलिए किसी भी उपन्यास में उन्होंने मनुष्य को नहीं कर्म और परिस्थिती को दोषी ठहरया है। 'रंगभूमि' का सूरदास एक ऐसा पात्र है जो यह सोचता है- "खिलाड़ी कभी रोते नहीं, बाजी पर बाजी हारते हैं, चोट पर चोट खाते हैं धक्के सहते हैं, पर मैदान में डटे रहते हैं उनकी त्योरियों पर बल नहीं पड़ते।" प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में समस्याओं को ही केवल चित्रित नहीं किया है, वरन् सुधारात्मक निदानात्मक दृष्टिकोण भी अपनाया है। 'सेवासदन' की सुमन परिस्थिति एवं इंन्द्रिय-भोग की असक्ति के कारण पतन की गर्त में गिरती है। लेकिन बाद में सेवा के द्वारा आत्मोद्धार करता है।

जीवन की विराटता, विविधता, समग्रता का चित्रण मुखर रूप में प्रेमचन्द के उपन्यासों में हुआ है। 'गोदान' उपन्यास में ग्रमीण शहरी जीवन के सभी सुलझे अनसुलझे विचार विकृतियाँ, सवृत्तियाँ आदि अपनी पूरी समग्रता के साथ आई हैं। प्रेमचन्द ने ग्रामीण और कृषक जीवन की विडंबनाओं-विसंगतियों, शहरी जीवन के बनावटीपन, खोखलेपन को महसूस किया था। उसी अनुभूति के विविध पक्षों को उन्होंने 'गोदान' में उकेरा है।

भारतीय किसान के जीवन में जन्म-मृत्यु के उल्लास-विषाद का स्थान न होकर मजबूरियों-दुखों का विशाल साम्राज्य होता है। इसे बड़े ही सूक्ष्म अंर्तदृष्टि से प्रेमचन्द ने चित्रित किया है। 'गोदान' में होरी अपनी जीवन लीला समाप्त करता है, तो उसकी अंतिम साध गाय को आंगन में बाँधने की पूरी नहीं होती है। 'गोदान' के लिए न गाय है, न बछिया न पैसा।'

डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी जी का कथन "प्रेमचन्द पूर्णरूप से मानवतावादी थे। उनके उपन्यासों और लेखों में जड़-संपत्ति मोह-चाहे वह परंपरा प्राप्त सुविधा के रूप में हो, जमींदारी या महाजनीवृत्ति का परिणाम हो या उच्चस्तर के पेशों से उपलब्ध हो, मानव की स्वाभाविक सवृत्तियों को रुद्ध करता है। प्रेमचन्द ने सच्चाई और ईमानदारी को मनुष्य का सबसे बड़ा उन्नायक गुण समझा है। प्रेम उनकी दृष्टि में पावनकारी तत्व है। जब वह मनुष्य में उदित होता है, तो उसे त्याग और सच्चाई की ओर उन्मुख करता ह।" प्रेमचन्द को पूरी तरह रेखांकित करता है।

- श्रीमती अर्चना झा

ये भी पढ़ें; प्रेमचंद के उपन्यासों में कथा शिल्प

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top