Premchand Par Kavitayen : 5 Hindi Poems on Munshi Premchand
प्रेमचंद पर पाँच कविताएँ : साहित्य को केवल मनोरंजन एवं विलास की वस्तु न मानकर उसे सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त साधन मानने वाले प्रेमचन्द एक युग प्रवर्तक साहित्यकार थे। उनकी दृष्टि में वही सत् साहित्य है जिसमें उच्च चिन्तन एवं स्वाधीनता का भाव परिलक्षित होता है तथा जो पाठकों के मन में गति, संघर्ष चेतना और बेचैनी उत्पन्न कर उन्हें जागृत करता है, जागरूक बनाता है। जनता जनार्दन के पक्षधर प्रेमचन्द भारत के मूर्धन्य साहित्यकारों में से एक थे। यथार्थवादी जीवन दृष्टि, मानवतावादी चिन्तन से समन्वित हो, जनतांत्रिक मूल्यों की परिरक्षण के लिए संघर्ष करने वाले प्रेमचन्द जनवादी संघर्ष के पक्षधर थे। शोषितों, दलितों, नारियों, किसानों के हितों की परिरक्षण को ही अपने समग्र लेखन का उद्देश्य माननेवाले प्रेमचन्द एक जनवादी साहित्यकार थे। इसीलिए वे रूढ़ियों, अंध-विश्वासों एवं कुप्रथाओं के विरोधी थे। प्रेमचन्द की परंपरा जीवित रहे!
31 जुलाई उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जयंती पर विशेष कविताएं, प्रेमचंद का जन्म काशी के समीप लमही गांव में हुआ, उनका बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। एक दर्जन उपन्यास और तीन सौ से अधिक कहानियां लिखी है प्रेमचंद ने, मानसरोवर नाम से इनकी सभी कहानियां आठ खंडों में प्रकाशित है। प्रेमचंद पहले उर्दू में लिखा करते थे, उन्होंने जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि हिन्दी और उर्दू पत्रिकाओं में लिखा है। हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन भी किया है, गोदान उनका अंतिम उपन्यास (सम्पूर्ण) और मंगलसूत्र अधूरा उपन्यास है। मुंशी प्रेमचंद का निधन 8 अक्टूबर 1936 को हुआ, आइए महान साहित्यकार को समर्पित कविताएं पढ़ते हैं। कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद पुण्यतिथि पर उनकी याद में कविताएँ, मुंशी प्रेमचंद पुण्यतिथि पर कविता।
कलम के जादूगर मुंशी प्रेमचंद पर हिन्दी कविताएँ
हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद पर कविताएं : प्रेमचंद पर हिन्दी कविता अमर प्रेमचन्द की गाथा है, डॉ. प्रतिभा गर्ग की हिन्दी कविता साहित्य सम्राट पर, अमर प्रेमचन्द की गाथा है कविता हिन्दी में, कविता कोश में आपके लिए प्रेमचंद जयंती पर उनको स्मरण करते हुए कविता, प्रेमचंद को समर्पित हिन्दी कविताएं, प्रेमचंद पुण्यतिथि पर विशेष कविता अमर प्रेमचन्द की गाथा है।
1. अमर प्रेमचन्द की गाथा है
अमर प्रेमचन्द की गाथा है।
जन जन के मन की भाषा है।
शोषक शोषित सम्बन्धों को
लेखन ने साकार बनाया;
वाणी मिली अभावों को भी
अँसुआया जीवन का साया।
मानो मौन वेदना विहंसी
एक अनोखी परिभाषा है।।
कौन भूल पायेगा, उनके
'धनियाँ' 'होरी' और 'बुधिया' को;
'रात पूस की' छू जाती है
अनबोले मन के तारों को।
सिसक उठा विश्वास, किन्तु
धुँधलायी सी फिर भी आशा है।
तुम्हीं 'मसीहा' हो उस युग के
तुमने ही नव-दीप जलाया;
संवेदना, सहानुभूति ने
कृषक वर्ग को धैर्य बंधाया।
हिन्द जगत के ध्रुव तारे हो
गगनांगन भी पुलकाया है।।
अमर प्रेमचन्द की गाथा है।
जन जन के मन की भाषा है ।।
- डॉ. प्रतिभा गर्ग
Poem on Munshi Premchand Jayanti
साहित्य सम्राट प्रेमचन्द के चरणों में कविता : प्रेमचंद में निहित राष्ट्रीय भावना के कारण उन्होंने ने अपने कथा साहित्य के द्वारा राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम का पूर्णतः समर्थन किया था। उनका प्रथम कहानी संग्रह 'सोजेवतन' एवं अंतिम कहानी संग्रह 'समर यात्रा' का ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया जाना उनकी देश भक्ति का सशक्त प्रमाण है। स्वतंत्र संग्राम के एक अंग के रूप में जब देश में हिन्दी प्रचार और प्रसार कार्य जोरों पर चल रहा था। तब राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भली-भांति समझकर प्रेमचन्द उर्दू से हिन्दी की ओर मुड़े। हिन्दी साहित्य को अपनी रचनाओं द्वारा समृद्ध करने का सशक्त प्रयास किया। डॉ. अहिल्या मिश्र की कविता साहित्य सम्राट प्रेमचन्द के चरणों में। डॉ. अहिल्या मिश्र की कविता साहित्य सम्राट प्रेमचन्द के चरणों में।
2. साहित्य सम्राट प्रेमचन्द के चरणों में
है कौन बौर जो करे विशाल साहित्य की परिभाषा
फिर मुझसे ही क्यूँ रखते हो यह विशिष्ट अभिलाषा
युगान्तकारी युग प्रवर्तक, युगस्रष्टा, युगद्रष्टा, युग समाधान
हे प्रेमचन्द साहित्य कंत, जनता के मनपसंद आयाम
गधालंकार को करती मेरी लेखनी बार-बार प्रणाम
थी मसी वहीं, थी कलम वही, कागज भी वहीं
किन्तु था समा बाँधने वाला ओजस्वी एक महान
जिसने दी मध्यमवर्गीय जीवन को नयी परिभाषा
है कौन जीर............................
जन मन को जागृत कर दलितों को किया उजागर
किसान, पटवारी, दरिख और मजदूर हुए अभिनेता
झोपड़ी की जर्जरता एवं निर्धनता के विषम मार्ग में
मानवता, धर्म, एकता निमित्त खोजी सामाजिकता
उदण्डता कर्तव्य पालन बीच समन्वय की आकांक्षा से
सजायी, शान्ति, समन्वय, मध्यस्थता व स्थिरता
हूं, हिन्दी और पारसी भाषाओं के सम्मिश्रण से
रच दी जिसने यथार्थवाद si नव साहित्य की भाषा
फिर मुझसे ही क्यूं करते............................
जात पाँत तज अमीर, गरीब, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
भारत वासी सब के सब हैं आपस में भाई-भाई
फिर वह ऊँच-नीच की, ईर्ष्या जलन की इस परिवेश की
प्रचण्ड विद्रोहाग्नि कैसे और कहाँ से उमड़ आई
इसे मिटा सामाजिकता और आदर्श का पाठ पढ़ायें
भर होरी के चित्रांकन में दी कथा को सरल भाषा
मानीनी के रंग रूप को मान सम्मान से सजाया
विषय विषाद् की लड़ियों से अन्तर्मुखी मन भर आया
सहज आह्लाद प्रसाद के कड़ियों से नारी का परिरक्षण
इसकी विविधताओं से सामयिक प्रतिमान उभर आया
बाँध अमरता को साहित्य वृक्ष से सब मन लहराया
कथा विधि में भर दी जन-जन के मन की भाषा
हे साहित्य पुंगव श्रद्धा महान वट तुमसे रहा
हमें सदा सद् साहित्य प्राप्ति की आशा
है कौन वीर जो करे विशाल साहित्य की परिभाषा
फिर मुझसे ही क्यूँ रखते हो यह विशिष्ट अभिलाषा।
- डॉ. अहिल्या मिश्र
Premchand Death Anniversary
हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद पर कविता "प्रेमचन्द" की धवल चाँदनी : अपने जीवन में स्वयं प्रेमचन्द ने दुःख एवं गरीबी को भोगा था। इसीलिए उन्होंने अपने उपन्यास एवं कहानियों में गरीबी की समस्याओं का यथार्थपरक अंकन किया था। गांधी जी की भांति प्रेमचन्द्र दलितों से प्रेम करते थे। उन्हें दिल से चाहते थे। इसीलिए इन्होंने ठाकुर का कुआँ, सद्गति, दूध का दाम आदि कहानियों तथा कर्मभूमि एवं अन्य उपन्यासों में दलितों की दुःस्थिति का यथार्थपरक चित्रण किया है। श्री भागवत पाण्डेय 'सुधांशु की कविता "प्रेमचन्द" की धवल चाँदनी।
3. "प्रेमचन्द" की धवल चाँदनी
हे मानव, तुम अपने घर को 'सेवासदन' बनाओ।
'कर्मभूमि' धरती पर रहकर कर्मपन्थ अपनाओ ।।
'रंग भूमि' यह दुनिया, इसमें अभिनय सफल दिखाओ।
प्रकृति 'निर्मला' बुला रही है, इससे दूर न जाओ ।।
'प्रेमाश्रम' में रहकर सुन्दर गीत प्रीत का गाओ।
'प्रतिज्ञा' कर तुम हरने की जगमग दीप जलाओं ।॥
पाने को 'बरदान' 'कृष्ण' से तुम साधक बन जाओ।
करो सदा 'गोदान' धरा पर पय की धार बहाओ ।।
'गबन' बहुत घातक पातक है, उसके पास न जाओ।
'मानसरोवर' में तुम गोता बारम्बार लगाओ ।।
विमल 'प्रेम की बेदी' पर तुम जन-जन को बैठाओ।
काशी, मगहर और 'कर्बला' तुम सबका गुन गाओ।॥
'प्रेमचन्द' की धवल चाँदनी में जग को नहलाओ ।
समराकुल भू के आँगन में शान्ति ध्वजा फहराओं ।।
मुझे अधिक कहना था, लेकिन थोड़ा ही कह पाया।
भूल चुक हो माफ, समझ में जो आया सो गाया ॥
- श्री भागवत पाण्डेय 'सुधांशु
Hindi Kavita on Munshi Premchand
प्रेमचन्द तुम प्रेमचन्द्र हो कविता : भारतीय समाज के स्वप्नों एवं संघर्षों को पहचानने वाले तथा युगीन सामाजिक समस्याओं को अच्छी तरह बनाने वाले प्रेमचन्द कृत रंगभूमि, सेवा सदन, निर्मला, गोदान, कर्मभूमि आदि उपन्यास, सवा सेर गेहूँ, नशा, ईदगाह, बूढ़ी काकी, मुक्ति मार्ग, अल्ग्योझा, घर जमाई, पूस की रण एवं कफन आदि कहानियाँ जनता के प्रति उनकी पक्षधरता के प्रतीक हैं। डॉ. किरण बाला अरोड़ा की कविता प्रेमचन्द तुम प्रेमचन्द्र हो।
4. प्रेमचन्द तुम प्रेमचन्द्र हो
शुभ के वातायान से अवलोकित कर
फिर अनुभव सागर की गहराई छूकर
गद्याकाश के झुटपुट नभ पर
छाए तुम चान्द, चाँदनी बनकर
किया सार्थक था नाम अपना,
ओ प्रेमचन्द वाह क्या कहना ।।
परम्परा उपज नहीं थे तुम
अपनी स्वयं पहचान थे तुम
जैसा न रचा था तब तक कहीं
नव क्रान्ति की आवाज थे तुम
किया सार्थक था नाम अपना,
ओ प्रेमचन्द वाह क्या कहना ।।
कोरे यथार्थ की खुश्क काया
पर गंधी चन्दन की लेप थे तुम
आदर्श के ऊर्ध्व नजारों के
धरती पर की पहचान थे तुम
किया सार्थक था नाम अपना,
ओ प्रेमचन्द वाह क्या कहना ।।
रहेगा जहाँ संसार हिन्दी का
वहाँ की रहोगें गूंज तुम
सदा सदा आप्लावित करता
अमर हिन्दी की मुस्कान हो तुम
किया सार्थक था नाम अपना,
ओ प्रेमचन्द वाह क्या कहना।
- डॉ. किरण बाला अरोड़ा
Poetry on Munshi Premchand
कविता प्रासंगिकता प्रेमचन्द की : प्रेमचंद ने अपने कथा साहित्य द्वारा नारी की गरिमा की परिरक्षण करने वाले, उसकी मुक्ति को मनुष्यता की मुक्ति मानने वाले, जनता को अपने अधिकार दिलाने के लिए राजनैतिक एवं आर्थिक संघर्ष का नया रास्ता खोजने वाले, पराजय ही मानवीय विजय का प्रथम सोपान है-ऐसा विश्वास करने वाले, परतंत्र देश में जीने से मरना बेहतर है ऐसा कहने वाले प्रेमचन्द भारत के ही नहीं विश्व के श्रेष्ठ साहित्यकारों में से एक हैं। कृषकों में उत्पन्न नई चेतना के संवाहक वे एक असाधारण रचनाकार थे। नलिनीकान्त की कविता प्रासंगिकता प्रेमचन्द की।
5. प्रासंगिकता प्रेमचन्द की
प्रेमचन्द की
प्रासंगिकता हर
होरी धनिया।
देता उधार
न बनिया, करे क्या
भूखी धनिया ?
शोषण होता
रहेगा, प्रेमचन्द
जीता रहेगा।
धूप का कोट
पहन काँप रहा
होरी का बेटा।
प्रेमचन्द की
बोरसी हुई विदा
काँपता बूढ़ा।
'कर्मभूमि' भी
कम नहीं पार्थ के
कुरुक्षेत्र से।
गाय मार के
चर्म दान क्या यही
अरे 'गोदान'?
सुनो मदन
दिल्ली वाले बिसरे
'सेवा सदन'?
भारत माँ सी
'निर्मला' हट गई
पाठ्यक्रम से।
भटक रहा
'मान सरोवर' का
'हंस' दिल्ली में।
'लमही' गाँव
खड़ा है प्रतीक्षा में
कथाकार की।
स्मारक होना
क्या, 'लमही' गाँव तो
स्वयं स्मारक।
- नलिनीकान्त
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि प्रेमचन्द का साहित्य बीसवीं सदी की भारतीय पीड़ा, त्रासदी और प्रतिरोध का महान् दस्तावेज है। उन्होंने अपने कथा साहित्य द्वारा अग्रेज़ी राज, सामंतवाद, जमींदारी, महाजनी व्यवस्था आदि को चुनौती दी थी। भविष्य के लिए आशा ज्योति प्रेमचन्द कालजयी कथाकार ह। भारतीय समाज में आज जब विघटनकारी प्रवृत्तियों का बोलबाला है, जाति संघर्ष में वृद्धि हुई है, नारी मुक्ति आंदोलनों के बावजूद नारी उत्पीड़न में इजाफा हुआ है, पंचवर्षीय योजनाओं के कार्यान्वयन के बाद भी किसानों-खेतिहर मजदूरों की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है, संविधान के प्रावधानों के बावजूद अधिकांश दलितों की दुःख स्थिति बदली नहीं है-ऐसे समय प्रेमचन्द और उनका कथा साहित्य आज हमारे लिए और भी प्रासंगिक बन गये हैं।
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