Premchand, the author of the contradictory narratives of Gandhism and Socialism
Munshi Premchand Jayanti 31 July : मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में समाजवादी और गांधीवाद के अन्तर्विरोधिता के बारे में इस लेख के माध्यम से जानेंगे, मुंशी प्रेमचंद हिंदी के महान उपन्यासकार और कथाकार है। उनके जन्मदिन पर विशेष ये आलेख हिन्दी में पढ़े और शेयर करें।
प्रेमचंद : गाँधीवाद और समाजवाद के अन्तर्विरोधी कथाकार
प्रेमचन्द का साहित्य अपने युग का स्पष्ट प्रतिबिम्ब और साहित्य को नई दिशा प्रदान करने वाला पहला संकेत और आंदोलन है। उन्होंने अपने उपन्यासों में अपने युग को ठीक- ठीक चित्रित किया है। उन्होंने अपने उपन्यासों में ऐसे संकट कालीन युग में लाखों किसानों की मनःस्थिति और विचारों को साकार रूप दिया, जबकि पूँजीवादी सभ्यता प्राचीन ग्राम- व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर रही थी और किसानों का गला घोंट रही थी। प्रेमचन्द से पूर्व कभी भी सामान्य जनता-कृषक और श्रमिक-वर्ग को साहित्य का आलम्बन नहीं चुना गया था, उनके जीवन-व्यापार से साहित्य में सजीवता पैदा नहीं हुई थी। प्रेमचन्द ने ही पहली बार सामान्य जीवन से प्रेरणा लेकर सामान्य जनता और किसानों को साहित्य का आलम्बन बनाया। साहित्य को एक नया मोड़ दिया।
प्रेमचन्द के लेखकीय जीवन का आरंभ उर्दू उपन्यास कहानी संग्रह 'सोजेवतन' को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। इस जब्ती से कहानियों का मिलाज तथा प्रेमचन्द के भावी लेखन का स्वरूप जाना जा सकता है। इस संग्रह के जब्त होने के चाद उन्होंने अपना नाम नवाबराय से बदल कर प्रेमचन्द रख लिया।
प्रेमचन्द के उर्दू उपन्यासों का अनुवाद हिन्दी में हुआ और हिन्दी उपन्यासों का अनुवाद उर्दू में। इस तरह वे हिन्दी-उर्दू दोनों भाषाओं के अन्यतम कथाकार ठहरते हैं। उनका पहला महत्वपूर्ण उपन्यास 'सेवा सदन' उनके उर्दू उपन्यास 'बाजारे हुस्न' का हिन्दी अनुवाद है। 'काया कल्प' उनका पहला उपन्यास है जिसकी पांडुलिपि हिन्दी में मिलती है।
प्रेमचन्द ने अपने साहित्यिक जीवन में एक दर्जन उपन्यासों की रचना की जिनके नाम इस प्रकार हैं-रूठी रानी, वरदान, प्रतिज्ञा, सेवासदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, कायाकल्प, रंगभूमि, गवन, कर्मभूमि, गोदान, मंगल सूत्र।
रूठी रानी : एक मात्र ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसकी कथा-वस्तु पठानों और मुगलों में राजसत्ता के लिये चल रही होड़ और राजपूतों के पारस्परिक द्वेष-वैषम्य पर आधारित है।
वरदान : 1905-1906 के विश्व के आर्थिक संकट, जापान की क्रांति और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की पृष्ठभूमि में लिखे गये इस उपन्यास का मुख्य विषय देशभक्ति है।
प्रतिज्ञा : सन् 1906 में लिखा गया यह उपन्यास विषय-वस्तु की दृष्टि से प्रेमचन्द का पहला सामाजिक उपन्यास है, जिसमें समाज की सबसे पीड़ित विधवा नारी की समस्या को सामने रखा गया है।
सेवासदन : यह स्त्री की दीन समस्या को लेकर लिखा गया सामाजिक उपन्यास है जिसमें वेश्या समस्या पर प्रमुख रूप से प्रकाश डाला गया है। इस उपन्यास में प्रेमचन्द ने वेश्याओं की समस्या को अनेक पक्षों से प्रस्तुत किया है, मूलतः यह उपन्यास उर्दू में लिखा गया था, पर प्रकाशित हिन्दी में हुआ।
प्रेमाश्रम : 1922 में लिखित हिन्दी का पहला राजनीतिक उपन्यास है। इसमें प्रेमचन्द किसान आंदोलन से जुड़ जाते हैं। महात्मा गाँधी ने संपूर्ण देश में राष्ट्रीय चेतना की जो ज्योति जगाई यह निरन्तर जलती रही। गाँधी जी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य सामान्य जनता में इस विश्वास को दृढ़ करना था कि वह अंग्रेजी साम्राज्यवाद तथा उसके पोषक जमींदारों, देशी- राज्यों, पूँजीपतियों के विरुद्ध लड़ सकती है।
निर्मला : करुण एवं गहन मानवीय संवेदनाओं से आप्लावित यह सर्जना प्रेमचन्द जी की अत्यधिक कलात्मक एवं प्रभावी रचना है। इसमें भारतीय जीवन में आज विद्यमान दहेज की ज्वलंत एवं दहेज पाने की असमर्थता की स्थिति में अनमेल विवाह की समस्या का जीवन्त चित्रण किया है।
कायाकल्प : 1926 के अलौकिक और अतिरंजना पूर्ण प्रसंग जैसे-बाबाजी के चमत्कार, पूर्वजन्म की स्मृतियाँ, वृद्धा को तरुणी में बदलना, प्रेमी युगल का नक्षत्र लोक का सैर-सपाटा, इसमें सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ जन्म-जन्मान्तर तक चलने वाले प्रेम की अद्भुत कहानी का समावेश भी किया गया है। अनेक अस्वाभाविक प्रसंगों का समावेश होने के कारण यह उपन्यास नीरस और कृत्रिम हो गया है।
रंगभूमि : 1926-28 में लिखी गई यह रचना वर्तमान समाज के सब स्तरों को उधेड़कर सामने रखती है। यथार्थवादी शैली में लिखा गया यह तत्कालीन समाज का चित्रण करता है। सामाजिक और राजनैतिक तत्वों के पूर्ण समन्वय के साथ-साथ त्याग, प्रेम और बलिदान का आदर्श भी प्रेमचन्द ने प्रस्तुत किया है।
गबन : यह मध्यमवर्ग के जीवन से संबंधित और नारी के आभूषण प्रेम की समस्या पर आधारित है। मध्यम वर्ग के जीवन और उसकी माना परिस्थितियों के यथार्थ चित्रण की दृष्टि से यह उपन्यास पूर्ण रूपेण सफल हुआ है। मध्यम वर्ग के दिखावे और आत्म प्रदर्शन का इस उपन्यास में सजीव चित्रण हुआ है।
कर्मभूमि : 1932 में लिखित यह उपन्यास सत्याग्रह आंदोलन से संबंधित है। इसमें अछूतोद्धार, सूदखोरी और चोरी के माल पर चलने वाले व्यापार, पिता-पुत्र और पति-पत्नी के एक-दूसरे को गुलाम बनाये रखने के संबंध, निकम्मी शिक्षा पद्धति, पढ़े-लिखे लोगों का स्वार्थ, सरकारी घूसखोरी और जमींदारों द्वारा किसानों के शोषण पर भी अच्छा प्रकाश डाला गया है।
गोदान : यह तो प्रेमचन्द जी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास और उनकी उपन्यास-कला कद चरम निदर्शन है। यह तमाम गरीब किसानों की विशेषताएँ लिये हुए है। गोदान में दोहरा कथानक है-एक गरीब किसान होरी का, दूसरा जमींदार राय साहब, मिल मालिक खन्ना, बीच के लोग प्रोफेसर मेहता और डॉक्टर मालती का कथानक। गोदान में प्रेमचन्द ने एक- साथ इन दोनों संसारों का चित्र खींचा है। जिसमें दो वर्गों का भेद बहुत स्पष्ट रूप में दिखाया गया है। प्रेमचन्द की यथार्थवादी कला का भी चरम विकास देखने को मिलता है। उन्होंने अनेक प्रकार से गाँवों को धीरे-धीरे उजड़ते और नगरों को आबाद होते देखा, किसानों को मजदूरों में परिणत होते देखा और इन सारी परिस्थितियों को 'गोदान' में होरी और गोबर की जीवन गाथा द्वारा चित्रित कर दिया है।
मंगलसूत्र : यह प्रेमचन्द का अधूरा उपन्यास है जिसके वे केवल चार ही परिच्छेद लिख पाये थे। यह उपन्यास जितना लिखा हुआ मिलता है उसमें मध्यम वर्ग का चित्रण मिलता है।
प्रेमचन्द के उपन्यासों में दो एक प्रारंभिक कृतियों को छोड़कर अन्य रचनाओं में उनकी उपन्यास-कला का सुन्दर विकास और उत्कर्ष तथा उनके व्यक्तित्त्व की उनके विचारों की पूर्वी अभिव्यक्ति मिलती है।
कुछ विद्वान उपन्यासकार प्रेमचन्द की तुलना में कहानीकार प्रेमचन्द का व्यक्तित्व अधिक प्रखर एवं सफल मानते हैं। प्रेमचन्द जी ने तीन सौ से भी अधिक कहानियाँ रचकर हिन्दी- कहानी-साहित्य को सफलता एवं समृद्धि के चरम शिखरों तक पहुँचा दिया। 'मानसरोवर' के आठ भागों में उनका समस्त कहानी-साहित्य प्रकाशित हुआ। प्रत्येक संग्रह की प्रत्येक कहानी मन को नहीं खींच पाती। उनकी कुछ कहानियाँ ही हैं, जिनका पाठक के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें 'शतरंज' के खिलाडी', 'कफन', 'पंच परमेश्वर' और 'मनोवृत्ति' प्रमुख है।
हिन्दी का कथा-साहित्य सचमुच बहुत गति शील है उसमें मानव मन के सुख-दुख के प्रकट-अप्रकट आच्छादनों को बड़े कौशल से इंगित किया जा रहा है मनुष्य को समझने का यह एक प्रबल साधन है।
- डॉ. बी. मोहिनी
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