शहरी जनसंख्या में तीव्र वृद्धि पर्यावरणीय चिन्ता का विषय

Dr. Mulla Adam Ali
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Rapid growth in urban population is a matter of environmental concern

शहरी जनसंख्या में तीव्र वृद्धि पर्यावरणीय चिन्ता का विषय

शहरी जनसंख्या में तीव्र वृद्धि पर्यावरणीय चिन्ता का विषय

देश की उन्नति के लिए आर्थिक विकास आवश्यक है किन्तु जनसंख्या वृद्धि और विकास पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। आर्थिक विकास का अभिप्राय है प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन का मतलब है पर्यावरण का क्षरण एवं प्रदूषण में बढ़ोत्तरी/ जनसंख्या के बढ़ने पर आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए औद्योगिक विकास करना होगा और विकास के फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषित होगा। भारत में विशेषतः शहरों में जनसंख्या में तीव्र गति से बढ़ रही है जिसका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में यह चिन्तन का विषय होना चाहिए कि किस प्रकार अत्याधिक बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाए और पर्यावरण-प्रदूषण में अधिक वृद्धि न हो। भारत की जनसंख्या गत् 2001-2011 के दशक में 17.6 प्रतिशत की दर से बढ़कर एक अरब इक्कीस करोड़ हो गई। यदि जनसंख्या वृद्धि दर इसी क्रम से चलती रही तो वर्ष 2030 में भारत सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होने के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। जहाँ जनसंख्या विस्फोट के कारण देश के आर्थिक विकास पर बडे घातक प्रभाव पड़ रहे हैं, वहाँ बुनियादी आवश्यकताओं का अभाव भी बढ़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक शहरीकरण पूर्वानुमान 2014 की संशोधित रिपोर्ट पर ध्यान देना आवश्यक :

इस रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक भारत की शहरी जनसंख्या सबसे अधिक बढ़ने की सम्भावना है जो चीन से अधिक होगी। दिल्ली 2030 तक विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन सकता है। इस दौरान यहाँ की आबादी तेज वृद्धि के साथ 3.6 करोड़ के स्तर तक पहुँच सकती है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र की 2014 में सर्वाधिक आबादी वाले शहरों की सूची में जापान की राजधानी टोकयो शीर्ष पर है जहाँ 3.80 करोड़ निवासी है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक आबादी वाले शहरों की सूची में मुंबई छठे स्थान पर है। इस समय मुंबई की आबादी 2.1 करोड़ है। टोकयो और दिल्ली के बाद शंघाई है जिसकी आबादी 2.3 करोड़ है। इस समय चीन की सबसे अधिक शहरी आबादी 75.8 करोड़ है। इस  समय दुनिया के लगभग 54 प्रतिशत लोग शहरी इलाकों में रहते हैं। जनसंख्या वर्ष 1911 में जहाँ भारत की जनसंख्या 25.2 करोड़ थी, वहाँ वर्ष 2011 में 1 अरब 21 करोड़ हो गई। भारत में जनसंख्या-वृद्धि की दर इतनी तेज है कि उसका प्रतिकूल असर पर्यावरण पर पड़ा। अब जनसंख्या में प्रति वर्ष 2 करोड़ की वृद्धि हो रही है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि का प्रभाव शहरीकरण और औद्योगीकरण पर पड़ा। जनसंख्या- विस्फोट के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन हुआ। जनसंख्या की तीव्र गति से बढने के फलस्वरूप बेरोजगारी बढ़ी और गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई। उल्लेखनीय है निर्धन व्यक्ति पर्यावरण की समस्याओं के प्रति अशिक्षा के कारण अपेक्षित रूप में सचेत नहीं रहे। आजकल बडे शहरों में आबादी तेजी से बढ़ रही है। बड़ी संख्या में बड़े शहरों की ओर छोटे गाँव और गाँव से पलायन इसलिए होता है क्योंकि वहाँ उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने का तरीका नहीं दिखाई पड़ता है। अतः इस समस्या के हल के लिए विक्रेन्द्रित विकास की राह पर चलने की जरूरत है जिससे कि शहरों पर आबादी का ज्यादा बोझ न पड़े और पर्यावरण संतुलित बना रहे।

शहरी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि :

भारत में विशेषकर शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। शहरी जनसंख्या सन् 1950 में लगभग 17 प्रतिशत थी जो अब बढकर 31 प्रतिशत हो गई है। फिलहाल शहरी जनसंख्या लगभग 41 करोड़ है और 2030 तक इसके 60 करोड़ और 2050 तक 81.4 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान लगाया गया है। शहरी जनसंख्या बढ़ने के फलस्वरूप सीवेज भी बढ़ा है, किन्तु नगर-नियोजन में उसके अनुरूप सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लांट नहीं लगे, जिसके कारण प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि हुई। वास्तव में सीवेज इंफ्रास्टक्चर के विस्तार का आधार न केवल वर्तमान आबादी हो, बल्कि भविष्य में होने वाली जनसंख्या वृद्धि को भी ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।

नगर नियोजन में स्वच्छ पर्यावरण के लिए सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लांट की स्थापना को प्राथमिकता :

शहरों में बढ़ती जनसंख्या के दबाव को दृष्टि में रखते हुए घरेलू जल-मल के शुद्धिकरण के लिए सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लांट की क्षमता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। नगर-नियोजन में सीवेज ट्रीटमेंन्ट प्लांट की स्थापना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए और इन संयंत्रों को चलाने के लिए 24 घण्टे बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए। सीवेज नियंत्रण के साथ-साथ औद्योगिक एवं घरेलू कचरे के निस्तारण पर भी ध्यान देना अपेक्षित है। शहरों में कूड़ा दिन प्रति दिन बड़ी समस्या बनता जा रहा है। शहरी जीवन में प्रति व्यक्ति कूड़े की मात्रा बढ़ती ही जा रही है। सड़कों पर पड़े कूड़े के ढेर हम में दुर्गन्ध फैलाते हैं। अतः शहरों में सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट जैसी परियोजनाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

गाँवों से शहरों में पलायन के कारण शहरों में जनसंख्या-वृद्धि और प्रदूषण की समस्या चिन्ताजनक :

गांवों में शहरों में जनसंख्या के पलायन और शहरों में बढ़ती भीड़ ने चिन्ताजनक स्थिति उत्पन्न कर दी है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है। देश में 88,000 शहर और 22,000 कस्बों की तुलना में साढ़े छह लाख गाँव है। खाली होते गाँव भविष्य में संतुलित विकास के अभाव में गहरा संकट बन सकते हैं। असंतुलित विकास नीति को ठीक करने के लिए यह आवश्यक है कि ग्रामों पर केन्द्रीत विकास मॉडल पर काम किया जाए ताकि शहरों में बढ़ती झुग्गी-झोपड़ी और गंदी बस्तियों और अनियोजित शहरीकरण पर रोक लग सके। झुग्गियों के निवासियों के कारण भी नदियों में जल प्रदूषित हो रहा है। इसके अतिरिक्त गाँवों में रोजगार न होने के कारण शहरों में जनसंख्या पलायन के कारण भूजल का स्तर गिरता जा रहा है और पेय जल संकट की समस्या बनी है।

जनसंख्या-वृद्धि का हरित क्षेत्र पर प्रभाव :

जनसंख्या-वृद्धि का हरित क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ा है। जनसंख्या और विकास-प्रक्रिया के दबाव चलते देश के 33 प्रतिशत क्षेत्र को हरित बनाने का प्रयास अपेक्षित रूप में अभी प्राप्त होना सम्भव नहीं हो पा रहा है। औद्योगिक विकास और जनसंख्या के आवास की समस्या के कारण कम हुए हरित क्षेत्र को हरा भरा करना पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण चुनौती है।

शहरों की तुलना में ग्रामीण आबादी में धीमी वृद्धि :

संयुक्त राष्ट्र वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार 1950 से ग्रामीण जनसंख्या में धीमी वृद्धि हुई है। फिलहाल विश्वभर में लगभग 3.4 अरब लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। भारत में सबसे अधिक ग्रामीण आबादी 85.7 करोड़ है जबकि दूसरे नम्बर पर चीन की ग्रामीण आबादी 63.5 करोड़ है।

बढ़ती जनसंख्या को दृष्टि में रखते हुए पर्यावरण अनुकूल कृषि को बढ़ावा :

वर्ष 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.6 अरब तक पहुँचने की सम्भावना है। यह भी सम्भावना है कि वर्ष 2030 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न पूर्ति के लिए अनेक देशों द्वारा जीन क्रांति की तरफ रूख किया गया है। बीटी कपास इसका उदाहरण है जिसके कारण कपास का उत्पादन दूगुने से अधिक बढ़ा है किन्तु जीएम फसलों के जीवों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव के कारण अनिश्चितता के वातावरण में जीन परिवर्तित फसलों को स्वीकार करना उचित नहीं होगा और जीन परिवर्तित खाद्यान्नों के उत्पादन की बात आवश्यक प्रतीत नहीं होगी। टिकाऊ खेती के ऐसे तौर-तरीकों पर ध्यान देना होगा जिससे मृदा की गुणवत्ता में वृद्धि हो और पर्यावरण के अनुकूल जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जा सके। ऐसी तकनीक को अपनाना होगा जिससे जल-संरक्षण को बढ़ाया जा सके।

बढ़ती हुई जनसंख्या आर्थिक नियोजन के लिए चुनौती है। जनसंख्या की समस्या मात्र सरकार की समस्या नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक की समस्या है। जनसंख्या नियंत्रण मात्र सरकार ही दायित्व नहीं अपितु जनसाधारण को परिवार नियोजन हेतु परिवार कल्याण कार्यक्रम से जुड़ना होगा। विद्यालयों में जनसंख्या- शिक्षा के माध्यम से नव युवकों को भावी परेशानियों से अवगत कराना होगा और भावी समस्या के प्रति सचेत करना होगा।

- डॉ. नरेश कुमार

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