फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी रसप्रिया में नारी की अंतर्वेदना

Dr. Mulla Adam Ali
0
हिन्दी के प्रमुख आँचलिक कथाकार के रूप में प्रसिद्ध फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी "रसप्रिया" कहानी में नारी जीवन की समस्याओं, नारी जीवन संघर्ष को बताया गया है। रेणु जी का मैला आंचल उपन्यास हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ आँचलिक उपन्यास माना जाता है। रसप्रिया कहानी बाल विधवा रमपतिया' के चरित्र में नारी की अन्तर्वेदना पाठकों के हृदय को झकझोर देती है।

The inner pain of a woman in Phanishwar Nath Renu's story Ruspriya

Phanishwar Nath Renu's story Ruspriya

Table of Contents;

• फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी
• रसप्रिया कहानी का उद्देश्य
• रसप्रिया कहानी का सारांश
• रसप्रिया कहानी का निष्कर्ष
• FAQ (frequently asked questions)

ये भी पढ़ें;

फणीश्वरनाथ 'रेणु' के उपन्यास 'मैला आँचल' में आँचलिकता

उत्तरशती के हिंदी उपन्यासों में आँचलिक समस्याओं का चित्रण

हिन्दी साहित्य जगत में आँचलिक उपन्यास में प्रसिद्ध फणीश्वरनाथ रेणु जी द्वारा लिखी गई कहानी रसप्रिया के बारे में आज इस आर्टिकल में पढ़िए। बाल विधवा को आधार बनाकर नारी की अंतर्वेदना को लेकर लिखी यह कहानी पढ़नेवालों के दिल को झकझोर कर देती है।

नारी की मानसिक व्यथा को चित्रित करती फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी रसप्रिया

आँचलिक कथाकार रेणु का जन्म 4 मार्च, 1921 औराही हिंगना नामक गाँव, जिला पूर्णिया (बिहार) में हुआ था तथा मृत्यु 11 अप्रैल 1977 को हुई। रेणु के नाम की एक रोचक कथा है उन्हीं के शब्दों में- "जब मैं पैदा हुआ था तो घरवालों पर कुछ कर्ज/ऋण हो गया। दादी बोली अरे यह तो रिणुआ है घर पर ऋण हो गया। बाद में रिणुआ से रिणु और तत्पश्चात् रेणु हो गया। बड़ा हुआ तो पिताजी के एक मित्र ने कहा इसे रेणु कहो और मैं रेणु हो गया।"

रेणु मिट्टी के कण को कहते हैं। अपने अँचल के प्रति कुछ ऋण होता है, इस दायित्व बोध को वे हमेशा महसूस करते रहे। उनका समस्त जीवन एवं साहित्य इसका प्रमाण है इस अर्थ में उन्होंने रिनुआ नाम सार्थक कर दिया।

सन् 1954 में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास 'मैला आँचल' महत्वपूर्ण उपन्यास है। रसप्रिया, विघटन के क्षण, नैना जोगिन, पंचलाइट, एक अकहानी का सुपात्र, लाल पान की बेगम, आजाद परिदे, जड़ाऊ मुखड़ा, जैव, पुरानी कहानी नया पाठ, आत्मसाक्षी, एक आदिम रात्रि की महक, तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम आदि रेणु की प्रसिद्ध कहानियाँ है। रेणु की कहानियों में नारी के विभिन्न रूप उभर कर सामने आए हैं। नारी के दुःख-दर्द अदम्य साहस उसकी अन्तर्वेदना को मार्मिक रूप प्रदान किया है।

'रसप्रिया' कहानी में बाल विधवा 'रमपतिया' के चरित्र में नारी की अन्तर्वेदना पाठकों के हृदय को झकझोर देती है। रमपतिया के पिता वाद्य संगीत के गुरू थे जब रमपतिया बारहवें वर्ष की थी तब पंचकौड़ी नामक युवक अपनी जात छिपाए गुरूजी के पास आता है, रमपतिया पंचकौड़ी से सच्चा प्रेम करती है। गुरूजी को पता चला तो तुरंत उन्होंने पंचकौड़ी से रमपतिया के विवाह की बात चलायी पर पंचकौड़ी अपनी जात के भय से कायरों की भाँति प्रस्ताव ठुकरा कर गाँव छोड़कर भाग जाता है।

पिता की मृत्यु के बाद रमपतिया पंचकौड़ी से मिलती है। पंचकौड़ी भी रमपतिया को पसंद करता था पर जाति के भय से वह रमपतिया से विवाह नहीं कर सकता था। रमपतिया से पीछा छुड़ाने के लिए उस पर अनैतिक संबंधों का झूठा आरोप लगाकर उसे अस्वीकार कर देता है। रमपतिया असहनीय पीड़ा से चिल्लाती है 'पाँचू ! चुप रहे।'

उसी रात आवेश में आकर पंचकौड़ी मृदंग को इतनी जोर से बजाता है कि उँगली फूट कर रक्त बहने लगता है और उँगली टेढ़ी हो जाती है उँगली टेढ़ी होने की खबर सुनकर वह दौड़ी आती है, घंटो उँगली पकड़ कर रोती रहती है। वह कहती है- 'हे दिनकर किसने इतनी बड़ी दुश्मनी की, उसका बुरा हो। मेरी बात लौटा दो भगवान, गुस्से में कही हुई बातें। नहीं, नहीं पाँचू मैंने कुछ भी नहीं किया।'

इस घटना को बीते कई वर्ष बीत जाते है अब रमपतिया बूढ़े अजोधादास की विधवा पत्नी थी उसका 12 वर्षीय बेटा मोहना है। मोहना भी संगीतप्रिय है वह दिन भर गायों को चराता है। रमपतिया पंचकौड़ी को भुला नहीं पायी थी वह मोहना को पंचकौड़ी के स्वभाव के बारे बताया करती थी। आज पुनः पंचकौड़ी 15 वर्षों बाद गाँव लौट आया है। मोहना को देखते ही उसके सुंदर रूप पर मोहित हो जाता है। मोहना को बेटा कहने का साहस करता है पर उसे गाँव के निष्ठुर समाज की याद आती है जहाँ जाति भेद की धारा प्रवाहित थी। एक ब्राह्मण के लड़के को उसने प्यार से 'बेटा' कहा था अतः सारे गाँव के लड़कों ने उसे घेरकर मारपीट की तैयारी की थी-उसे चेतावनी दी जाती है कि वह कभी किसी ब्राह्मण को बेटा नही कहेगा। मिरदेगिया पंचकौड़ी ने हँसकर कहा अच्छा सरकार माफ कर दो। अब से आप लोगों को बाप ही कहूँगा। धीरे-धीरे मोहना व पंचकौड़ी में आत्मीयता बढ़ जाती है। पंचकौड़ी को जब पता चलता है वह मोहना और कोई उसकी प्रेयसी रमपतिया का बेटा है तो उसे अपने किये पर पछतावा होता है। वह रमपतिया को देखने खेत पहुँचता है। दूर से मृदंग की ध्वनि सुनकर रमपतिया भाँप जाती है कि वह और कोई नहीं पंचकौड़ी है। मृदंग की आवाज आई-धा-तिंग, धा - तिंग।

रमपतिया खेत की उबड़-खाबड़ मेड़ पर चल रही थी। ठोकर खाकर गिरते-गिरते बची। घास का बोझ गिरकर खुल गया। मोहना पीछे-पीछे मुँह लटकाकर जा रहा था, बोला माँ क्या हुआ, माँ ?

"कुछ नही।" धा-तिंग, धा तिग

रमपतिया खेत की मेड़ पर बैठ जाती है मृदंग की ध्वनि के साथ उसके मन में छिपी अन्तर्वेदना उमड़-उमड़ पड़ती है। अपने मन की वेदना को छिपाते हुए मोहना को पंचकौड़ी से न मिलने को कहती है।

निष्कर्ष; अपनी कहानियां और उपन्यासों के माध्यम से फणीश्वरनाथ रेणु ने लोक जीवन को संजोने का कार्य किया है। प्रेमकथा की कहानी रसप्रिया में राग-द्वेष देखने को मिलता है।

- डॉ. पार्वती

FAQ;

Q. रसप्रिया कहानी के कहानीकार कौन है?

Ans. रसप्रिया कहानी के कहानीकार फणीश्वरनाथ रेणु जी है।

Q. फणीश्वर नाथ रेणु की मुख्य विशेषता क्या है?

Ans. आंचलिक उपन्यास और नई कहानी दौर के विशिष्ट कथाकार हैं फणीश्वरनाथ रेणु।

Q. ठुमरी के लेखक कौन है?

Ans. एक कथा-संग्रह ठुमरी, जिसके लेखक फणीश्वर नाथ रेणु हैं।

ये भी पढ़ें; समकालीन कहानियों में विवाह और तलाक की समस्या

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top