Women's consciousness in Maitreyi Pushpa's novels
मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में नारी चेतना
वर्तमान हिन्दी साहित्य में जिन नये साहित्यकारों ने आम आदमी के स्वर उसकी पीड़ा, उसकी त्रासदी को अपने साहित्य में उकेरा है उन में मैत्रेयी पुष्पा का नाम प्रमुख है। पिछले अढ़ाई दशकों में तेजी से उभर कर सामने आनेवाली महिला कथाकारों में मैत्रेयी पुष्पा के नाम को अग्रिम पंक्ति में रखा जा सकता है।
मैत्रेयी जी के उपन्यास उनके नारीवाद सरोकार के साक्ष्य हैं। खास तौर से उनके चार उपन्यास इदन्नमम्, 'चाक' 'बेतवा बहती रही' या 'अल्माकबूतरी' इन उपन्यास में नारी जीवन की सूक्ष्म दृष्टि का परिचय प्राप्त होता है। समकालीन मानव जीवन में स्त्री पुरुष संबंधों में हो रही उथल-पुथल को अपनी सूक्ष्म दृष्टि से पकड़ कर उन्होंने अपने कथा लेखन में मोहक तरीके से पेश किया है, वह काबिले तारीफ़ है। इसलिए कथा पारखियों ने उन्हें तीन-तीन पुरस्कारों से सम्मानित किया है। मनुष्य समाज रचना में स्त्री की अस्मिता, स्त्री की पहचान, स्त्री की शक्ति, स्त्री की लड़ाई और स्त्री से जुड़े हुए तमाम सवालों को लेकर वेआज भी हिन्दी साहित्य में सृजनरत हैं।
'इदन्नमम्' की कथा-भूमि के केन्द्र में 'बुंदेलखण्ड' का लोक जीवन का यथार्थ चित्रण किया गया है। इसउपन्यास में औरतों और वंचितों की संघर्षगाथा हैं। तीन-तीन पीढ़ियों से निरंतर सामंती समाज के हिंसक अत्याचारों को सहती, झेलती और जूझती अभिशप्त नारी की व्यथा-कथा का बयान इस उपन्यास में दृष्टिगत होता है। इसमें केवल उपन्यास की नायिका 'मंदा' के दुःख, निराशा, पीडा, और संघर्ष की कथा नहीं हैं, अपितु उसके माध्यम से शोषितों के उत्पीड़न, संघटन और संघर्ष की सशक्त कलात्मक अभिव्यक्ति है।
उपन्यास के प्रमुख पात्र-बऊ, मंदा, कुसुम अपने तरीके से विद्रोह करते हैं। ये स्त्रियाँ पुरुष प्रधान समाज से टक्कर लेती हैं। 'बऊ' महेन्द्र सिंह की हत्या के बाद लुटेरे रिश्तेदारों से बचने के लिए संघर्ष करती हैं। मंदाकिनी की अनेक आपदाओं का सामना करती हुई रक्षा करती हैं। समाज की दृष्टि में लांछिता प्रेमा, रतन यादव का हथियार बनने से साफ इनकार करती हैं। अंत में राक्षसों के चुंगल से मुक्त होती है। शोषक मनुष्य हंता प्रबल अभिलाख सुगुना पर बलात्कार करता है तो अंततः सुगुना उसकी हत्या कर देती है। कुसुमा और प्रेगा यौवन क्राँति करती है, नैतिकता की देहरी लाँघती हैं, फिर भी प्रेमा के लिए सुख मृगजल की तरह बन जाता है। मंदा इनका तिरस्कार नहीं करती, इनके प्रति उसके मन में पूरी सहानुभूति है। इस प्रकार ऐसा कहने में कोई संदेह नही है कि- इस उपन्यास के प्रत्येक नारी पात्र, मैत्रेयी पुष्पा जी के नारी - वादी सरोकार के साक्ष्य हैं।
मैत्रेयी जी का एक और उपन्यास 'बेतवा बहती रही' में भी बुंदेलखण्ड की उर्वशी नामक किसान नारी की त्रासद जीवन कथा प्रस्तुत हुई है। नाम के अनुरूप अप्रितम सौंदर्य की स्वामिनी उर्वशी के लिए, लावण्य वरदान के बदले अभिशाप साबित होता है। 'इदन्नमम्' की तरह इसके नारीचरित्र किसी न किसी दृष्टि से विशिष्ठ है। मीरा, उर्वशी, जीजी, नानी शेरा की साहसी पत्नी, ये सभी अविस्मरणीय मात्र हैं। लड़कियों को बचपन से ही चुप रहना सिखाया जाता है। परिणाम स्वरूप अपने ऊपर हो रहे अमानुषिक अत्याचारों को सहना ही उर्वशी की नियति बन जाती है। स्वार्थांध भाई अजित, ससुराल की पवित्रता और सौतेली नवोढ़ा बहू के मंगल के लिए अपना जीवन विसर्जित कर देती है। इसी परंपरा में मैत्रेयी जी का 'चाक' उपन्यास भी चर्चा के केन्द्र में है। ब्रज के आँचल में यह उपन्यास उकेरा गया है। उपन्यास में जाट समाज की पारंपरिक जड़ता को तोड़ने का गुरुतर दायित्व नायिका 'सारंग' के कंधों पर अनायास आ पड़ता है। समय का पहिया घुमाव दर घुमाव उसे बदल जाता है। वह उसे अपनी नियति मान तदनुसार ढ़लती जाती है। सारंग का नियति के अनुरूप ढ़लना स्त्री जीवन की त्रासदी का लेखा-जोखा है। लेकिन सारंग अपने भाग्य पर आँसू न बहाकर इस उत्पीड़न के विरोध में संघर्षरत रहती हैं।
'अल्मा कबूतरी' यायावार कबूतरा आदिवासी जीवन को केन्द्र में रखकर लिखा गया "मैत्रेयी पुष्पा" का सशक्त उपन्यास है। शीर्षक के अनुरूप 'अल्मा कबूतरी' उपन्यास की नायिका है। अल्मा कबूतरी आदिवासी रामसिंह की बेटी है, जो आदिवासी समाज के उत्कर्ष की परिधि के केन्द्र में है। पिताजी की मृत्यु होने के बाद अल्मा को दर-दर की ठोकरें खानी पडती हैं। गुजरते वक्त ने अल्मा को प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री जी की रखैल के रूप में देखा। वह पढ़ी-लिखी, संस्कारी लडकी थी। वह मंत्री जी के भाषण तैयार करती। आज जो भी हो, जहाँ भी हो, वह हरेक समय कबूतर बस्ती के लिए सपने देखती है। अपने माने हुए पतिदेव की देखभाल भी करती है। अल्मा का रखैल होना वक्त की माँग थी। मंत्री जी की हत्या के बाद अल्मा विधवा बन जाती है। एक पत्नी की भाँति सारे रीति रस्मों को निभाती है।
उपन्यास का अंत स्थानीय अखबारों के मुख पृष्ठ पर छपी दो विशेष खबरों से होता है, जिसमें एक थी प्रदेश के समाज के कल्याण मंत्री श्रीराम शास्त्री का अंतिम संस्कार ओरछा नगर के कंचना धार पर संपन्न हुआ। मुखाग्नि उनकी पत्नी अल्मा ने दी थी। तथा दूसरी सूचना थी, सत्तारूढ पार्टी की ओर से यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि श्रीराम शास्त्री के निधन के कारण बबीना विधान सभा की जो सीट खाली हुई है, उसके लिए प्रत्याशी श्रीमती अल्मा शास्त्री होंगी।
इस प्रकार मैत्रेय पुष्पा जी अपने उपन्यास साहित्य के माध्यम से नारी वर्ग को यह बताना चाहती है कि भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान कितना ऊँचा है। लेकिन आज नारी ने अपना स्वत्व बोध खो दिया है। मैत्रेयी जी नारी वर्ग को उसका स्वत्व बोध कराना चाहती हैं। वे नारी में नारीत्व को जगाना चाहती हैं। केवल नारी जीवन पर लिखना ही नहीं, जीवन की समस्त संवेदनाओं को रूपायित करना ही उनके उपन्यासों की विशेषता है। नारी की कलम से नारी के विषय में जो कुछ लिखा गया है, वह अत्यंत सार्थक और प्रशंसनीय हैं।
संदर्भ ग्रंथ :
1. इदन्नमम्-मैत्रेय पुष्पा
2. चाक-मैत्रेय पुष्पा
3. बेतवा बहती रही-मैत्रेय पुष्पा
4. अल्माकबूतरी-मैत्रेय पुष्पा
- यन. नीरजा
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