नासिरा शर्मा के उपन्यासों में नारी संघर्ष

Dr. Mulla Adam Ali
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Women's struggle in Nasira Sharma's novels

Women's struggle in Nasira Sharma's novels

नासिरा शर्मा के उपन्यासों में नारी संघर्ष

समकालीन महिला हिंदी उपन्यासकारों में नासिरा शर्मा का महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने एक प्रगतिशील मानवधर्मी महिला कथाकार के रूप में अपनी विशिष्ठ स्थान बनाई। इनका जन्म सन् 1948 ई. में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थान, हिन्दुओं का परम पवित्र स्थल इलाहाबाद में हुआ। नासिरा शर्मा मुसलमान होते हुए भी इन्होंने हिन्दू परिवार में शादी की। इनकी औपन्यासिक कृतियों में सात नदियाँ एक समुंदर, शाल्मली, ठीकरे की मंगनी, जिन्दा मुहावरे, अक्षयवट और 'औरत के लिए औरत" प्रसिद्ध हैं।

भारतीय समाज में नारी ने संघर्ष के माध्यम से अपने बौद्धिक स्तर को बहुत ऊँचा उठाया है। आज की अधिकांश नारियाँ शिक्षित एवं कार्यालय में उच्च पदस्य भी हैं। लेकिन घर में उन्हें पत्नी के रूप में तिरस्कार, अपमान एवं शोषण का शिकार होना पडता है। ऐसी एक नारी है "शाल्मली" । वह अपने पति को तिरस्कार एवं शोषण की शिकार है। आजकी अधिकांश महिलाओं की स्थिति ऐसी है। पति या परिवारवालों से हुई पीड़ा को अकेले सहना उसकी नियति बन गयी है। लेकिन महिलाएँ इन सभी परिस्थितियों से मुक्ति लाने के लिए अलग-अलग मार्ग ढूँढ लेती है। शाल्मली बडे संयम के साथ समस्याओं को सुलझाकर इस परिस्थिति में परिवर्तन लाने में विश्वास रखती है। वह अपमान एवं तिरस्कार के विरुद्ध संघर्ष करती हैं लेकिन वह संघर्ष घर तोड़कर नहीं। तलाक का मार्ग अपनाकर विषमतापूर्ण परिस्थिति से माँगना वह नहीं चाहतीं, बल्कि अपने जीवन में परिवर्तन लाकर स्थितियों को कुछ हल्का बनाने में वह सफल होती है। शायद शाल्मली जैसा चरित्र गढ़न नासिरा जी के उपन्यासों में ही देख सकते हैं। उपन्यास ने शाल्मली के द्वारा भारतीय नारी की जीवन-व्यवस्था का यथार्थ चित्रण किया गया है।

आज की नारी विभिन्न समस्याओं से संघर्षरत है। विशेषतः मध्यवर्ग की नारी विभिन्न धरातलों पर कुचली जाती है। 'ठीकरे की मंगनी' की महरुख ने भी परिवार के अंधविश्वास के तहत लिए गए निर्णय के कारण आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय ले लिया। और अपना जीविकोपार्जन स्वयं ढूंढ लिया। इसके बीच उसको अनेक संघर्ष सहना पडा। महरूख मानसिक शोषण की शिकार है। परिवार के सदस्य, मंगेतर तथा आगे पुरुष प्रधान सहकर्मी उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में मानसिक शोषण करते रहते हैं। लेकिन महरूख इन सबका सहनशीलता से सामना कर अपना रास्ता चुनती है। अपने जीवन में आयी समस्याओं का साहस से सामना करते हुए अपने संघर्ष में सफलता प्राप्त करती है। वह अपने शोषण के विरोध में खामोश रहकर, विभिन्न चुनौतियों को स्वीकार कर, अपना स्वतंत्र अस्तित्व निर्माण कर, आत्मनिर्भर बनने के लिए संघर्ष करती है। इस उपन्यास में महरूख के अलावा, अमृता, रतना और सुलोचना जैसे नारी पात्र भी अपने अस्तित्व निर्माण के लिए संघर्ष करते हैं। "सात नदियाँ एक समुंदर" में सात सहेलियाँ अनेक प्रकार के अत्याचारों की शिकार होती हैं। इरान में इमाम खुमैनी के शासनकाल में धर्म के नाम पर हुए अत्याचार, पर स्त्रियों व बच्चों पर अत्याचार करना, जेल में स्त्रियों के साथ बलात्कार कर हत्या करना, रोजे के वक्त खाना खा लेने पर कैद कर लेना, अपने राजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए देश को इराक के विरुद्ध युद्ध में झोंक देना, छोटे बालकों को युद्ध करने भेजना, आदि अन्याय, शोषण और अत्याचार का वर्णन इस उपन्यास में मौजूद है। इरान की राजनीतिक, सांस्कृतिक क्रांति तथा उससे प्रभावित नागरिकों के संघर्ष के चित्रण के साथ इस अत्याचार के विरुद्ध 'तय्यबा' अपनी लेखनी के साथ संघर्ष करने का चित्रण भी है। जीवन की कोई भी पीड़ा हो, चाहे क्रांति हो, चाहे बँटवारे की पीड़ा हो या कोई अन्य, सबसे ज्यादा शोषण और उपेक्षा हरकाल और परिस्थिति में स्त्री पर होती आ रही है। "जिन्दा मुहावरे उपन्यास के सभी नारी पात्र अपने दिल में वेदना के लिए नजर आते हैं। अपना देश छोड़कर पाकिस्तान जाने के बाद निज़ाम के माँ-बाप, भाई- इमाम और उसकी मंगेतर सुगरा की मनःस्थिति का वर्णन नहीं किया जा सकता है। इसमें सुगरा के माध्यम से निम्नवर्गीय भारतीय नारी का दर्द व्यक्त हुआ है। निज़ाम की पत्नी सबीहा भी मानसिक पीड़ा झेलनेवाली नारी है, वह भी अपना वतन छोडकर पाकिस्तान गई है।"

'अक्षयवट' उपन्यास में विविध स्त्री पात्रों द्वारा भारतीय स्त्री के संघर्ष को रेखांकित किया गया है। विषम आर्थिक परिस्थितियों में देह का व्यापार करने को विवश होनेवाली नारियों एवं अपने परिवार के पोषण हेतु संघर्ष करनेवाली औरतों का चित्रण भी इस उपन्यास में किया गया है। जहीर की दादी और माँ युवावस्था में विधवा हो जाने के कारण उन्हें वैधव्य जीवन जीना पड़ता है। हंगामा बेगम दारोगा प्रणाम सिंह की पुत्री थी। लेकिन मुस्लिम युवक से विवाह कर लेने के कारण हंगामा बेगम बन गई है। अचानक पति की हत्या हो जाने पर अपनी तीन पुत्रियों को लोगों से बचाने के लिए वह स्वयं वेश्या बन जाती है। 'अक्षयवट' उपन्यास की कथावस्तु जहीर और दोस्तों के इर्द-गिर्द ही चलती है। फिर भी इसमें अन्याय, भ्रष्टाचार और पुलिस के अत्याचारों का पर्दाफाश होने के कारण संघर्षपूर्ण जीवन जीने को विवश जहीर की दादी, सिपतुन, माँ, कलसुम तथा उसकी माँ बड़ा ही, हंगामा बेगम और उसकी बेटियाँ तथा गुजुनु की मौसी की लड़की आदि का चित्रण भी है।

नासिरा शर्मा एक ऐसी उपन्यासकार है, जिन्होंने मानवीय व्यक्तित्व की संपूर्णता के लिए अनेक जोखिमों को उठाया है और साथ ही उसके लिए संघर्ष भी किया है। नासिरा जी कहती है-कि- "आज सीता बनकर प्रतिरोध करने में फायदा है, दुर्गा कहलाना जल्दी पसंद नहीं किया जाता क्यों कि उसमें कहीं न कहीं भय की भावना सबल होती है। छिन्नमस्ता काली दुर्गा का ही रूप है जो अपनी आनेवाली पीढ़ी को भी छोड़ देती है। इसका तो सीधा अर्थ यही हुआ कि वह अपने ही खिलाफ खड़ी हो गई है। आज इसी से औरत को बचाना है। यदि सूरज निकलना छोड दें, पानी बरसना छोड दें तो इस प्रकृति का सृष्टिक्रम कैसे चलेगा ? यह नजरिया अधूरा और छठा विद्रोह का है। प्रकृति में बाढ़ को कभी नहीं पसंद किया गया, बारिश ही पसंद की गई। औरत को सदैव नकारात्मक रूप में ही समाज देखता है, उसकी शक्ति को भी वह समय-समय पर दबाने की कोशिश करता है, इसलिए औरतों का विद्रोह कभी-कभी असहज होता है क्यों कि पूरे समाज में कोई उससे सामान्य व्यवहार नहीं करता है। यहाँ तक कि उसके सौंदर्य को विकृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह सब कुछ मनोवैज्ञानिक रूप से औरत को तोडने, उसके मनोबल को गिराने का यत्न है। घर का पूरा माहौल ही शार्टकट अपनाता है, वह लड़कियों के बुनियादी रूप को समझाने के बजाय उसे दबा देता है या डाँटकर चुप करा देता है। आज समस्याओं को वर्तमान संदर्भ में देखना होगा। पुरानी बातों पर बहस करने की बजाय, नये सिरे से सोचना पड़ेगा कि सदियों पहले क्या हुआ ? आज क्या हो? भावी पीढ़ी को हम क्या देकर जाएँगे हमें इस पर बहस करनी चाहिए। विषम पारिवारिक परिवेश, पुरातन और धर्मान्ध लोगों के ताने सहते गुजरना तथा भारत विभाजन की असह्य-मानसिकता में नासिरा जी ने केवल मानवीय पीड़ा को माँगा है, अपितु उसे आत्म- सात भी किया है। संघर्ष के बिना सामाजिक जीवन में आमूल परिवर्तन असंभव है। इसलिए उनके उपन्यासों में संघर्ष का आह्वान ही होता है। इसी कारण से ही हिन्दी मुसलमान साहित्यकारों में नासिरा शर्मा जी की अलग पहचान बन पाई है।"

संदर्भ ग्रंथ :

1. शाल्मली - नासिरा शर्मा

2. ठीकरे की मांगनी - नासिरा शर्मा

3. सात नदियाँ एक समुंदर - नासिरा शर्मा

4. अक्षयवट - नासिरा शर्मा

5. जिंदा मुहावरे - नासिरा शर्मा

6. औरत के लिए औरत - नासिरा शर्मा

- तालिशेट्टी सुमति देवी

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