कविता कोश में प्रस्तुत है बद्री प्रसाद वर्मा 'अनजान' की तीन कविताएं 1. जंगल में है बेरोजगारी 2. कब आओगे बादल तुम 3. मिट्टी खपड़े वाला घर (बाल कविता), पढ़े और साझा करें।
Badri Prasad Verma 'Anjaan' Poetry in Hindi
बद्री प्रसाद वर्मा 'अनजान' की कविताएं : बद्री प्रसाद वर्मा 'अनजान' की पहली कविता "जंगल में है बेरोजगारी" बहुत ही मार्मिक कविता है, भारत में बढ़ती बेरोजगारी और साम्प्रदायिकता को बया करती है, दूसरी कविता "कब आओगे बादल तुम" बढ़ती गर्मी को लेकर वर्षा ऋतु के आगमन पर बादलों के स्वागत में लिखी गई है, तीसरी "मिट्टी खपड़े वाला घर" बाल कविता है। हिन्दी कविता कोश, हिंदी कविताएं।
Hindi Poetry by Badri Prasad Verma 'Anjaan'
1. जंगल में है बेरोजगारी
जब से शेर बना है राजा
सबकी अकल गई है मारी।
जंगल में हर साल
बढ़ती जा रही है बेरोजगारी।
पढ़ लिखकर डिग्री लेकर
घुम रहे जानवर सारे।
मंहगाई की मार से
परेशान हैं सारे।
मंदिर मस्जिद और धर्म की
चक्कर में पड़ गए सारे ।
अंधभक्त बन कर शेर का
राजा बना रहे सारे।
रोजी रोजगार छिन गया
बेकार घुम रहे सारे।
अंधभक्ति का चश्मा आंख से
अब तो उतारो प्यारे।
जंगल में तरक्की की
कोई आसार नहीं है।
बना के राज फिर शेर को
जंगल की जनता रो रही है।
2. कब आओगे बादल तुम
सूरज सबको जला रहा है
कब आओगे बादल तुम।
सारी धरती जल रही है
कब आओगे बादल तुम।
सड़क जल रही पांव जल रही
कब आओगे बादल तुम ह
बदन धूप से सूख गया
कब आओगे बादल तुम।
खेतों में पड़ गई दरारे मिट्टी हो गई पत्थर
सबकी प्यास बुझाने कब आओगे बादल तुम।
ताल पोखरे सूख गए सब
कब आओगे बादल तुम।
पेड़ के पत्ते सूख रहे हैं
कब आओगे बादल तुम।
मेढ़क प्यासे घुम रहे हैं
कब आओगे बादल तुम।
सूरज की गर्मी शांत करने
कब आओगे बादल तुम ।
इस गर्मी से हमें बचाने
कब आओगे बादल तुम ।
3. मिट्टी खपड़े वाला घर
बहुत याद आ र हे आज
मिट्टी खपड़े वाला घर।
गर्मी के दिनों में यह घर लगता
ठंडा-ठंडा तरा तर।
दादी मेरी बिछा चटाई
दलान में सो जाती थी।
ना कोई पंखा ना कोई ए सी
ठंडी हवा खूब आती थी।
आईल टाईल्स कहीं नहीं थे
मिट्टी का होता हर कमरा घर।
दादी घर को गोबर से लीपा करती
साफ सफाई में सुन्दर लगता घर।
जहां मन करे सो जाओ
गर्मी कहीं न लगती।
खपडे़ वाला यह घर
हर मौसम में सुख देती।
- बद्री प्रसाद वर्मा 'अनजान'
गल्ला मंडी गोला बाजार 273408
गोरखपुर (उ प्र)
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