हिन्दी भाषा 'मास' का इंग्लिश भाषा 'क्लास' का

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Day Special : Hindi Language For 'Mass', English Language For 'Class'...

Hindi Language For 'Mass', English Language For 'Class

हिन्दी भाषा 'मास' का इंग्लिश भाषा 'क्लास' का.. (हिन्दी दिवस पर विशेष)

हमारे देश के संविधान में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। देश की अधिकांश जनता भी हिन्दी बोलती और समझती है। लेकिन हमारे अंग्रेजीदाँ नौकरशाह, राजनेता, तकनीकीशाह (टेक्नोक्रेट्स) अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने और लेनेवाले लोगों की भाषा अंग्रेजी है। वे आपस में अंग्रेजी भाषा मे बात करते हैं और अंग्रेजी में ही सरकारी एवं व्यक्तिगत कामकाज तथा मीटिंग आदि निपटाते हैं। ऐसा नहीं है कि वे हिन्दी या प्रान्तीय भाषा नहीं जानते। वे इन्हें जानते हैं और आगन्तुकों से इन्हीं भाषाओं में बात भी करते हैं, लेकिन वे तरजीह अंग्रेजी भाषा को ही देते हैं। उनकी ऐसी मानसिकता के मनोवैज्ञानिक कारण क्या है? मेरी समझ में इसका कारण हैं अंग्रेजी को क्लास की भाषा समझना। अंग्रेजीदाँ लोग अंग्रेजी भाषा को क्लास की भाषा-उच्च, श्रेष्ठ या सभ्य वर्ग के लोगों की भाषा समझते हैं। तात्पर्य यह कि अंग्रेजी बोलने वाला, अंग्रेजी में लिखने-पढ़ने वाला, मीटिंग या अन्य कार्यक्रम अंग्रेजी में संचालित करनेवाला व्यक्ति स्वयं को अभिजात्य वर्ग कर पुरुष मानता है और अन्य भाषा भाषियों को सामान्य व्यक्ति समझता है। यह मानसिकता वैसी ही है, जैसी अंग्रेजों की गुलाम भारतवासियों के प्रति थी। यह मानसिकता इन्हें अंग्रेजों से विरासत में मिली है, जिसने इनमें अंग्रेजी भाषा के प्रति यह - अंधभक्ति और अहंभाव जगाया है। इस मानसिकता और - अहंभाव को बनाये रखने के लिए वे शिक्षा, न्याय, बातचीत और कामकाज का माध्यम अंग्रेजी बनाये रखना चाहते हैं।

शासन, प्रशासन और अध्यापन के सर्वोच्च पदों पर आरूढ़ होने तथा 'परम स्वतंत्र न सिर पर कोई की कहावत को चरितार्थ करने में समर्थ होने के कारण ये अपनी मर्जी जनता पर थोपते तथा आत्महित के लिए जनहित की उपेक्षा करने में भी समर्थ हो जाते हैं। अंग्रेजी भाषा के प्रति उनके असीम मोह का एक कारण यह भी है कि वे और उनका परिवार अंग्रेजी भाषा में इतने रच-पच गये हैं कि उसका मोह छोड़ने में वे असहज महसूस कर रहे हैं। उनमें वह राष्ट्रीयता की भावना भी नहीं है, जिसने हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को यह कहने के लिए प्रेरित किया था। "सारे संसार को बता दो कि गाँधी अंग्रेजी भूल गया।"

दूसरा कारण हिन्दी को मास की भाषा समझना है। हिन्दी को वे मास की भाषा यानी साधारण व्यक्तियों की भाषा मानते हैं। इसीलिए वे हिन्दी को महत्व देना, अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। कारण स्पष्ट है हिन्दी को महत्व देने, उसे शिक्षा, न्याय, बातचीत, और कामकाज का माध्यम बनाने का अर्थ है स्वयं को साधारण दर्जे का आदमी बनाना। फलतः हिन्दी के प्रति उनका उपेक्षाभाव बना रहता है। जबकि यह सर्वविदित है कि जनता की भाषा ही वास्तव में राष्ट्रभाषा होती है। इस दृष्टि से हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। हमारे संविधान ने उसे राजभाषा घोषित किया है। ऐसी दशा में उनकी उपेक्षा वस्तुतः भारत की जनता की उपेक्षा है, भारत के संविधान की उपेक्षा है, हमारी राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा की उपेक्षा है और सबसे बड़ी बात हमारी राष्ट्रीयता की भावना की उपेक्षा है। वह भी देश की आजादी के 68 साल बाद तक। यह एक ऐसा दुष्कृत्य है जिसके लिए देश के किसी नागरिक को माफ नहीं म किया जा सकता।

प्रत्येक भाषा अपनी संस्कृति की प्रबल वाहिका होती है। अंग्रेजीदां लोगों की अंग्रेजी मानसिकता ने उन्हें पाश्चात्य संस्कृति का गुलाम बना दिया है। यह बात तकनीकी शिक्षा के लिए नहीं है, क्योंकि हमारे देश में तकनीकी शिक्षा केवल अंग्रेजी माध्यम से ही दी जाती है। शेष शिक्षा हिन्दी या प्रान्तीय भाषा में दी जाती है। ये लोग अंग्रेजी भाषा भली भाँति जानते हैं, क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन एक भाषा के रूप में किया है। वे अंग्रेजी भाषा का आदर भी करते हैं, पर वे उसके गुलाम नहीं हैं। मैंने भी अंग्रेजी में एम.ए. की उपाधि अर्जित की है तथा मैं अंग्रेजी भाषा से प्यार करता हूँ, उसका आदर करता हूँ। लेकिन उसका गुलाम नहीं हूँ। उसे देश के सरकारी कार्यालयों/ सचिवालयों/ दूतावासों में कामकाज की भाषा बनाये जाने उच्च और तकनीकी शिक्षा का माध्यम बनाये जाने, हमारे उच्च/ उच्चतम न्यायालयों में बहस और निर्णय की भाषा बनाये जाने के सख्त खिलाफ हूँ, क्योंकि इससे हम न केवल अंग्रेजी भाषा के वरन पश्चिमी सभ्यता/संस्कृति के भी गुलाम बन जाते हैं। हमारे देश में आज पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण की जो होड़ लगी है वह हमारे इसी भूल का प्रतिफल है। कारण स्पष्ट है भारतीय संस्कृति जहाँ आध्यात्मवादी होने से मूल्यपरक है वहाँ पश्चिमी संस्कृति भौतिकवादी होने से भोगपरक है। इसीलिए अधिकाधिक सम्पत्ति संग्रह और भोग पश्चिमी सभ्यता का मूल मंत्र है। इसने ही हमारे देश में सम्पत्ति संग्रह, भ्रष्टाचार, शराबखोरी, नशीली दवाओं का सेवन, हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती जैसी जघन्य अपराधों के ग्राफ को ऊँचा उठाया है। देश की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम यथा शीघ्र अंग्रेजी भाषा की गुलामी को छोड़ें और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाकर देश का गूंगापन खत्म करें, जिससे जघन्य अपराधों के चंगुल से छूटकर सुसंस्कारों के स्वर्ग बन सकें।

- गार्गीशरण मिश्र 'मराल'

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