कठगुलाब का सच : मृदुला गर्ग का उपन्यास की समीक्षा

Dr. Mulla Adam Ali
0

'कठगुलाब' प्रसिद्ध उपन्यास प्रतिष्ठित हिंदी कलाकार मृदुला गर्ग का है, यह उपन्यास भारतीय ज्ञानपीठ से 1996 में प्रकाशित किया गया है। कठगुलाब की सच्चाई नारी मुक्ति का मार्ग तलाशती है। इसमें नारी जीवन के तत्व, पूर्व एवं पश्चिम दोनों का जायजा लेते हुए नारी स्वतंत्रता का दृष्टिकोण प्रस्तुत हुआ है।

Kathgulab Hindi Novel by Mridula Garg

Kathgulab Hindi Novel by Mridula Garg

कठगुलाब उपन्यास की समीक्षा

ये भी पढ़ें;

अन्या से अनन्या : भारतीय नारी की संघर्ष गाथा

समकालीन हिंदी साहित्य और स्त्री विमर्श

मृदुला गर्ग का उपन्यास "कठगुलाब" का सच :

प्रतिष्ठित हिन्दी कथाकार मृदुला गर्ग का प्रसिद्ध उपन्यास 'कठगुलाब' 1996 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित नारी विमर्श पर सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए व्यक्ति और समाज के बीच जीवन जीती ऐसे अनेक नारी चरित्रों का जायजा लेता हुआ जीवन के तमाम संगत-असंगत तत्व खोज लेता है, जिससे एक गतिशील समाज का निर्माण हो सके। इस उपन्यास में स्मिता, मारियान, नर्मदा एवं असीम प्रमुख नारी पात्र एवं विपिन एक मात्र पुरुष पात्र के द्वारा तत्कालीन सामाजिक समस्याओं को प्रस्तुत करते हुए नवीन जीवन मूल्यों का निर्माण करती हैं। कथा को विस्तार देने के लिए गौण रूप से अन्य पात्रों की उपस्थिति हुई है।

इस कथा साहित्य में जिस तरह से जीवन की उधेड़बुन से सभी पात्र असमंजस्य की स्थिति में दिखते हैं, उसी तरह से शीर्षक कठगुलाब भी एक ऐसे प्रतीक की सृष्टि करता है जिसके अर्थ की सार्थकता के लिए कई दृष्टिकोण सामने आते हैं। इस उपन्यास में कठगुलाब की चर्चा तीन या चार स्थानों पर हुई। प्रथम स्मिता के गार्डेन में रतनू द्वारा उगाया गया कठगुलाब और दूसरी बार जब स्मिता घर छोड़कर जाती है तो कठगुलाब के बीज को साथ ले जाती है। तीसरी बार गोधड़ में विपिन के साथ कठगुलाब के दर्शन करती है 'चालीस साल बाद कुछ ठहरा नहीं रहता पर सबकुछ बदलता भी तो नहीं। मैं समझती हूं मि. मजूमदार बूढ़ा सिर्फ शरीर होता है। मन तो कठगुलाब की तरह है सदाबहार। पर कितना नष्टप्रायः सूखता नहीं बढ़ाता नहीं पर जरा हाथ लगाने पर टूट कर बिखर जाने को तैयार रहता है।' (पृष्ठ 220) यहाँ कठगुलाब से आशय निकलता है, परम्परागत जड़ता तो सदियों से एक जैसी स्थिति में बनी हुई है। जड़ता से लेखिका का आशय नारीगत कमजोरियों से है, जिसमें वह बदलाव नहीं लाना चाहती।

इस उपन्यास में लेखिका का दो दृष्टिकोण परिलक्षित होता है जहाँ एक ओर वह नारी समस्याओं की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट कराती है वहीं दूसरी ओर उसके समाधान का तर्क भी प्रस्तुत करती है। विवाह के बंधन में बंधना और बच्चे को जन्म देना ऐसे दो प्रमुख परम्परागत कारक हैं, जिसमें बंधकर नारी अधिकारों से वंचित होती है। यह सामाजिक बंधन नारी मुक्ति में सबसे ज्यादा बाधक है।

नर्मदा जैसी ग्रामीण पात्र में भी इस तरह का जागरण देखने को मिलता है 'औरत को कमजोर बच्चे बनावे हैं। मेरे बच्चे होते तो मैं इस कमीने को कभी छोड़ न पाती' (पृष्ठ 178) नर्मदा ऐसा महसूस तो करती है परन्तु उसके मन से पति और बच्चे का मोह जा नहीं पाता। यह स्थिति असीमा को छोड़कर सभी नारी पात्रों में देखने को मिलती है। अर्थात वे समस्याओं को महसूस तो करती हैं लेकिन उससे निजात पाना नहीं चाहती है। लेखिका ने यह प्रभाव सीमोन बोवुआर से ग्रहण करती दिखती है। जहाँ के स्त्री के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं लिखती हैं 'मैं माताओं के खिलाफ नहीं हूँ, बल्कि उस विचारधारा के खिलाफ हूँ, उस आचार संहिता के खिलाफ हूँ जो हर औरत से माँ बनने की अपेक्षा करती है, मातृत्व को औरत के जीवन की महान अनिवार्यता के रूप में महिमा मंडित करती है और मैं उन परिस्थितियों के खिलाफ हूँ, जिनमें एक औरत बच्चा पैदा करने के लिए बाध्य होती है।' (पृष्ट 75)

मृदुला जी इस उपन्यास में घोर यथार्थवादी नजर आती है। जहाँ एक ओर वे पुरुषवादी समाज व्यवस्था को चुनौती देती हैं, वहीं औरत को ही औरत का दुश्मन भी मानती हैं। उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया है कि औरत कभी भी एक औरत का साथ नहीं देती। उपन्यास में असीम के द्वारा यह विचार प्रकट हुआ है 'यही तो मुसीबत है ये औरतें मरजानियां दूसरी औरत का साथ देने के बजाय जल्लाद मर्द को ही पल्लू में रमेटने लगती है' (पृष्ठ 138) आगे पुनः वे लिखती हैं 'इन औरतों से भगवान बचाए। मुर्दों को रोए बगैर इनका काम नहीं चलता। पैंट के दो पांयचे देखे नहीं कि शादी-शादी रटते पीछे लग लेंगी। मर्द से तिरस्कृत होना इनके खून में मिला है... पहले पीछे-पीछे भागकर अवहेलना, अत्याचार, अन्याय की कमाई करेंगी - फिर मर्द को शोषक शोषक कहकर सारी उम्र रोएंगी, - गरियाएँगी, प्रतिशोध की आग में जलेंगी। ऐसा कोप किस - काम का जो सहादत के मोह के नीचे दब जाय। या शायद - हर औरत इस उम्मीद से जीती है कि कहीं न कहीं ऐसा मर्द जरूर मौजूद है, जो उसके परिचित मर्दों से अलग है और उसका फर्ज है कि उसकी तलाश करें।' (पृष्ठ 173) इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि औरतों के मन में कहीं न कहीं कोई मर्द जरूर मौजूद है जिसके कारण वह कभी भी उससे उबर नहीं पाती।

उपन्यास में वैवाहिक व्यवस्था एवं संबंधों की चर्चा हुई है। लव मैरेज एवं अरेंज मैरेज के अस्थाईत्व पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाश डाला गया है। इसके परिणाम देखें तो स्मिता और मारियान दोनों के लव मैरेज को दिखाया गया है, लेकिन दोनों में स्थाईत्व नहीं है। असीमा की माँ का अरेंज मैरिज है उसे भी टूटते दिखाया गया है। लेखिका की निगाह में प्रेम और मोह एक मनोरोग है। इससे भावनात्मक तुष्टी जरूर मिल सकती है, परन्तु वह सच्चाई नहीं है। इसको स्पष्ट करते हुए वे लिखती हैं कि 'जब तुम लोग अच्छी तरह से जानते हो कि आदर्श और टिकाऊ प्रेम जैसी कोई चीज नहीं होती तो उसके पीछे भागने में अपनी जिन्दगी क्यों बर्बाद करते हो? इस क्यों का जवाब मेरे पास नहीं है स्मिता। तुम कहो तुम्हारे पास है? अपर्याप्त के पीछे भागना हमारा स्वभाव है।' (पृष्ठ 38)

नारी समस्या को स्पष्ट करते हुए लेखिका समस्त नारियों की एक ही समस्या को माना है कि उसमें प्रतिकार की क्षमता नहीं है। वे इसको स्पष्ट करते हुए लिखती हैं 'औरत में जुल्म उठाने की ऐसी महारथ देखी जा सकती है कि सोफिस्टिकेटेड से सोफिस्टिकेटेड औरत भी कहीं न कहीं एक मामूली किसान औरत की तरह कलपती पाईं जाती है।' (पृष्ठ 90) पुरुष नारी को देह से ज्यादा कुछ नहीं मानता है, वह उसका सदैव मालिक बनना चाहता है। औरत को काम करने पर पुरुषवादी समाज को कभी एतराज नहीं होता, लेकिन जब वह अच्छी तरह से कोई काम सीख कर मिस्त्री बनती है या निर्णय लेने की गुस्ताखी करती है तो हर परिवार या समाज की मर्यादा संकट में फँस जाती है। नारी समस्याओं के लिए ज्यादातर जिम्मेदार लेखिका नारी को ही मानती है क्योंकि वह सिलेक्टिव हियरिंग का शिकार है। अपराध बोध, कृतज्ञताबोध सिर्फ इन्हीं के लिए बना है जो मोहपाश के बंधन में जकड़ता हुआ कमजोर करता जा रहा है। सौन्दर्यबोध का उथला दृष्टिकोण औरतों को फेमिनिन कौशल की महारथ की ओर अग्रसर जरूर करता है लेकिन नारी स्वतंत्रता के आधार को कहीं न कहीं क्षीण भी कर रहा है। सौन्दर्य के इस मोह को लेखिका ने ऐलेना के माध्यम से प्रस्तुत किया है 'ऐलेना को सब कुछ बर्दाश्त था पर बदसूरती नहीं और कुछ नहीं तो तमाचे जड़कर ही वह अपने चेहरे को आरक्त कर लेती थी।' (पृष्ठ 77)

कठगुलाब में जीवन की यथार्थता के बीच नारी मुक्ति के प्रश्न को सूक्ष्मता से लिया गया है। कामकाजी महिला ही अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ सकती है। यह तभी संभव है कि जब वह शिक्षित हो। अधिकारों की लड़ाई के लिए शिक्षा और रोजगार महती आवश्यकता है। नर्मदा के द्वारा इसका उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। नर्मदा अशिक्षित है, लेकिन वह सिलाई के गुर में दक्षता हासिल कर अपने अधिकारों के प्रति सचेत भी है। अगर वह रोजगार हासिल न करती होती तो शायद अपने अधिकारों की रक्षा इस तरह नहीं कर सकती थी। वैवाहिक संबंध नारी को गुलाम बनाता है इसलिए लेखिका का संकेत लिव इन रिलेशनशिप की ओर है। मारियान और गैरी के जीवन में यह रिलेशनशिप परिलक्षित होती है। दोनों एक दूसरे की स्वतंत्रता में कभी हस्तक्षेप नहीं करते हैं। पूरे उपन्यास में वैवाहिक संबंध क्षीण प्राय है। उपन्यास में हर पात्र इस बंधन से स्वतंत्र होना चाहते हैं। उपन्यास में स्पष्ट रूप से कहीं भी उल्लेख नहीं हुआ है लेकिन कुछ कथनों से समलैंगिक विवाह की झलक मिलती है 'अपना खालीपन भरने के लिए हम हमेशा पति और प्रेमी की खोज क्यों करती हैं। राजदारी के बाद लम्हें में दोनों सोच रही थीं। इसलिए न कि वह हमें बच्चा दे सकता है? इस मोह को छोड़ दें तो पाएँगे कि जिन्दगी की असल नेमत है औरत की दोस्ती। एक अच्छी औरत दोस्त। हाँ हम औरत ही ठीक हैं।' (पृष्ठ 107)

निष्कर्षतः कठगुलाब की सच्चाई नारी मुक्ति का मार्ग तलाशती है। इसमें नारी जीवन के तत्व, पूर्व एवं पश्चिम दोनों का जायजा लेते हुए नारी स्वतंत्रता का दृष्टिकोण प्रस्तुत हुआ है। ऐसे दृष्टिकोण से समाज एवं संस्कृति की दुहाई दी जा सकती है, परन्तु समाज और संस्कृति की मर्यादाओं की दुहाई दी जा सकती है परन्तु समाज और संस्कृति का जिम्मा सिर्फ महिलाओं पर ही क्यों ? अधिकार या दासता की लड़ाई में समाज एवं संस्कृति की मान्यताओं - का ध्यान नहीं रहता, सफलता के बाद नये मूल्यों का निर्माण होता है। परन्तु सफलता के लिए कठगुलाब पर विजय प्राप्त करना आवश्यक होगा।

- डॉ. अरुण कुमार वर्मा

FAQ;

Q. कठगुलाब किसका उपन्यास है। 

Ans. "कठगुलाब" मृदुला गर्ग का उपन्यास है।

Q. कठगुलाब उपन्यास का प्रकाशन वर्ष?

Ans. कठगुलाब 1996 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित मृदुला गर्ग का उपन्यास है।

Q. मृदुला गर्ग को साहित्य अकादमी पुरस्कार कब मिला?

Ans. साहित्य अकादमी पुरस्कार से 2013 में मृदुला गर्ग को सम्मानित किया गया।

Q. उसके हिस्स की धूप किसका उपन्यास है?

Ans. 'उसके हिस्स की धूप' उपन्यास मृदुला गर्ग द्वारा लिखा गया है। मिलजुल मान, चित्तकोबरा, वंशज आदि इनके अन्य उपन्यास है।

Q. मृदुला गर्ग का जन्म कब हुआ?

Ans. 1938 कलकत्ता में (बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत) मृदुला गर्ग का जन्म हुआ।

ये भी पढ़ें; आधुनिक समाज में नारी चेतना : कथा साहित्य के संदर्भ में

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top