फणीश्वरनाथ रेणु की भाषा में भाव-भंगिमाओं का प्रयोग

Dr. Mulla Adam Ali
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स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य के महान उपन्यासकार-कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु की भाषा शैली, फणीश्वरनाथ रेणु हिन्दी के प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यासकार है। उनका मैला आंचल उपन्यास अत्यंत लोकप्रिय हैं। आज इस आर्टिकल में फणीश्वरनाथ रेणु की भाषा शैली के बारे में जानेंगे।

फणीश्वर नाथ रेणु की भाषा शैली

फणीश्वरनाथ रेणु की कथा साहित्यों में भाषा सौंदर्य

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फणीश्वरनाथ रेणु (जन्म 11 मार्च, 1921 - निधन 4 अप्रैल 1977) ने अपने उपन्यासों में जन-जीवन की प्रत्येक भाव- भंगिमा का सूक्ष्मतम रूप से रेखांकन किया है। ये भंगिमाएँ ही पात्र को पूरी तरह से रूपायित कर सकती हैं। ये अपने आपमें अंचल विशेष के जन-जीवन की सुन्दरता असुन्दरता, शिक्षा- अशिक्षा, नैतिकता-अनैतिकता, सम्पन्नता-निर्धनता, स्वस्थता- अस्वस्थता आदि को अपने भीतर समेटे हुए होती हैं। इनके उपन्यास 'मैला आँचल' तथा 'परतीः परिकथा' में भंगिमाओं के द्वारा जन-जीवन के विविध चेहरों तथा विविध गुण दोषों से युक्त जन- मानस की सारी की सारी स्थितियों को साकार रूप प्रदान किया है। इस चित्रण से भाषा में सहजता आती है, जो अपने भीतर स्वाभाविकता और सत्यता को लिए हुए होती है।

पात्र को अधिक व्यवहार कुशल दिखाने के लिए भी इन भंगिमाओं का प्रयोग किया गया है। भाव भंगिमाओं के माध्यम से ही लेखक पात्र का स्वभाव, चरित्र तथा शिष्टाचार को अंकित कर सकते हैं। रेणु ने पात्रों के मनोभावों के अनुरूप ही भंगिमाओं का वर्णन किया है। अतः रेणु के उपन्यास जनमानस की सच्ची तस्वीर है। जिस प्रकार भाषा, विचारों की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है उसी प्रकार भंगिमाएँ मनुष्य के शिष्टाचार की अभिव्यक्ति का माध्यम है, जिससे पात्र की मनःस्थिति दृष्टिगोचर होती है।

'मैला आंचल' में पात्रों ने अपनी प्रतिक्रिया तथा श्रद्धा के भाव आदि को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं का सहारा निम्न रूप से लिया है। 'सबने हाथ जोड़कर, गर्दन झुकाकर स्वीकार किया' परतीः परिकथा उपन्यास में यह जो हाथों की भंगिमा है उसका रूप कुछ और ही है। वह विनती के रूप में उपस्थित हुई है। यथा सुरपति ने दोनों हाथ जोड़कर माफी माँगी। और 'बाल गोबिन मोची ने हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहा।'

इस प्रकार पात्र की प्रतिक्रिया जो विनती के रूप में प्रस्तुत है, उसे रेणु ने भंगिमा के माध्यम से व्यक्त कर परिवेश को स्पष्ट किया है। यहाँ पर यह भंगिमा विविध प्रसंगों में प्रयुक्त हुई है, जैसे श्रद्धा से झुककर पांवलागी, की यहाँ पर जो भंगिमा 'झुककर' का वर्णन है वह श्रद्धापूर्वक ग्रहण की गई भंगिमा है, रेणु ने इस भंगिमा का प्रयोग कर ग्रामीणजन की श्रद्धा को उजागर किया है।

सेवक जब अपने मालिक से बात करता है तो उसकी मुद्रा का उल्लेख इस उदाहरण द्वारा और भी स्पष्ट होता है, जैसे 'मुशीजी ने गर्दन झुकाकर कहा हुजूर, तहबील में अब कुछ नहीं है। कर्ज भी आज कल लोग नहीं देंगे,' इस भंगिमा में मुंशीजी जितेन्द्र की बात का उत्तर देते समय 'गर्दन झुकाकर' अपना आदर भाव प्रकट करना चाहते हैं। इस भंगिमा से हमें इस बात का भी पता चलता है कि निम्न वर्ग जब उच्च वर्ग से बातचीत करता है तो उसका बर्ताव कैसा होता है। वह किस प्रकार अपने स्वामी के प्रति अपनी श्रद्धा उच्चारित रूप में नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप में भी प्रकट करता है। इसी भंगिमा का एक और रूप प्राकट्य है - 'हारमोनियम मास्टर ने झुककर हारमोनियम को नमस्कार किया तभी साजिन्दों ने अपने अपने सुर मिलाते हुए साज को नमस्कार करके उठा लिया'। संगीत मास्टर के लिए वाध्य यंत्र ही उनके ईश्वर होते हैं। अतः काम करने के पूर्व वे अपने इस यंत्र को नमस्कार करना नहीं भूलते जैसे नृत्य करते समय नृत्यांगना भूमि को नमस्कार करना नहीं भूलती। परस्पर आदर का भाव व्यंजित करने के लिए भी भंगिमा का प्रयोग हुआ है, जैसे मैला आंचल में डॉक्टर प्रशांत का सब गाँव आदर करता है। डॉक्टर को आता हुआ देखकर गाँव के सब लोग उनका आदर करते हुए हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं। और उनका भी आदर करता हुआ डॉक्टर प्रशांत मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ता है। रेणु ने पीछे मुड़कर देखने की भंगिमा का प्रयोग भी अपने उपन्यासों में किया है जैसे मैला आंचल के दो पात्र प्रशांत और कमली एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। कमली अपना संदेश प्रेम पत्र में लिखकर प्यारू के हाथ देती है और प्यारू ममता की नजर से उसे बचाता हुआ प्रशांत के हाथ पकड़ा देता है और गर्दन उलट-उलटकर डॉक्टर को पत्र पढ़ते हुए देखता है।

इतना ही नहीं रेणु ने आँखों वाली भंगिमा द्वारा अपने पात्रों के मनोभावों को व्यक्त किया है जैसे परतीः परिकथा में पात्र कालीचरण के विरुद्ध पंचायत में एकतरफा बात चल रही थी और जब कालीचरण बात का विरोध करता है तो सभी पाँचों की निगाहें अचानक उसकी ओर मुड़ जाती हैं। यह देखने के लिए कि यह कौन साहसी पुरुष है जो पंचायत में खलल उत्पन्न कर रहा है।

जिस प्रकार मैला आंचल में प्यारू प्रेम का संदेश पहुँचाता है, वैसे ही परतीः परिकथा में भी आंख की भंगिमा के सहारे प्यार का संदेश पहुँचाता है और प्रेमिका के आने की सूचना गुप्त रूप में प्रेमी तक पहुँचाने के प्रयास हेतु भी इस भंगिमा का प्रयोग हुआ है। जैसे 'ताजमनी को देखते ही गोबिन्दों ने जितेन्द्रनाथ को आँख के इशारे से सूचित किया।' इस प्रकार रेणु ने केवल आंख के द्वारा जो भंगिमा प्रस्तुत की है वह विभिन्न पात्रों की प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए की है। अव्यक्त बात को स्पष्ट रूप से बयान करने के लिए रेणु ने इस प्रकार की भंगिमाओं का आश्रय लिया है, जो पात्रों की मनोदशा को भी व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार एक और उदाहरण द्रष्टव्य है, इस भंगिमा के द्वारा रेणु ने समाज में व्याप्त बुराई की ओर इशारा किया है जैसे - मर्दों की आदत तो जानती ही हो। लड़कियों को देखते ही बनबिलाऊ की तरह आंखें गोलकर इस तरह देखेगा।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि रेणु ने विविध पात्रों की मुद्राओं के शब्द चित्रों को उपस्थित करके विषय वस्तु को अधिक सम्प्रेषणीय और प्रस्तुति को अधिक नाटकीय रूप प्रदान किया है। हाथ जोड़ने वाली भंगिमा से भारतीय संस्कृति की छाप को अंकित किया है। संवेदनाओं को भाषा में मूर्त करना कठिन कार्य होता है। लेकिन फणीश्वरनाथ रेणु ने भंगिमाओं की सहायता से इसे अपने उपन्यासों में यत्र-तत्र प्रयोग कर भावनाओं को और भी प्रांजल बनाया है।

- डॉ. जी. प्रवीण

FAQ;

Q. फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध उपन्यास कौनसा है?

Ans. फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध उपन्यास "मैला आँचल"।

Q. फणीश्वर नाथ 'रेणु' को कौनसा पुरस्कार मिला?

Ans. भारत सरकार द्वारा फणीश्वर नाथ 'रेणु' को पद्मश्री पुरस्कार मिला।

Q. मैला आँचल के बाद फणीश्वर नाथ 'रेणु' का दूसरा उपन्यास कौनसा है?

Ans. परती परिकथा (1957) फणीश्वर नाथ 'रेणु' का दूसरा उपन्यास है मैला आँचल के बाद।

Q. फणीश्वर नाथ 'रेणु' की प्रसिद्ध कहानियां कौनसी है?

Ans. 'मारे गये गुलफाम' फणीश्वर नाथ 'रेणु'  की प्रसिद्ध कहानी है, इस कहानी के आधार पर हिन्दी में एक फिल्म तीसरी कसम बनाई गई है। एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, पंचलाइट, तबे एकला चलो रे, ठेस, संवदिया आदि उनकी अन्य कहानियां हैं।

Q. 'ठुमरी' कथा-संग्रह है रचयिता कौन है?

Ans. 'ठुमरी' कथा-संग्रह रचयिता फणीश्वर नाथ 'रेणु' जी है। एक आदिम रात्रि की महक, अग्निखोर, एक श्रावणी दोपहर की धूप, अच्छे आदमी आदि उनके अन्य कथा-संग्रह है।

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