बढ़ती महंगाई गरीबों पर बोझ है, आज इसी महंगाई पर आधारित बद्री प्रसाद वर्मा अनजान की कविता आपके सामने प्रस्तुत है। badri prasad verma anjaan poetry...
Poem on Inflation in Hindi by Badri Prasad Verma
Mahangai Par Kavita : कविता कोश आज आपके समक्ष प्रस्तुत है महंगाई पर कविता बद्री प्रसाद वर्मा अनजान की। महंगाई के कारण एक सामान्य व्यक्ति अपने जरूरतों को पूरे नहीं कर पा रहा है, दिन ब दिन महंगाई बढ़ती ही जा रही है, साधारण व्यक्ति महंगाई के मारे अपना जीवन को गुजारना मुश्किल होते जा रहा है, आज इसी महंगाई को लेकर लिखी एक कविता प्रस्तुत है, पढ़े और साझा करें।
महंगाई के विषय पर कविता
हर गरीब को खाए जा रही महंगाई
रोज अपना रिकॉर्ड बना रही महंगाई
हर गरीब को खाए जा रही महंगाई।
घर का मालिक परेशान है
आफत ढाए जा रही महंगाई।
खाने पीने की सब चीजों पर
नजर लगा रही महंगाई।
थाली सूनी होती जा रही
रोटी चटनी की याद दिला रही महंगाई।
मुसीबत की घड़ी सर पर आ गई
आंखें दिखा रही है सबको महंगाई।
दाल चावल तेल मसाले
आंटे पर बढ़ गई महंगाई।
मंहगाई से जनता हाफ रही है
सब्जी में आकर बैठ गई मंहगाई।
क्या खाएंगे अब गरीब सब
सबका निवाला छिन रही मंहगाई।
- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
गोला बाजार गोरखपुर उ प्र
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