प्रतिनिधि बाल कविताएँ : डॉ. परशुराम शुक्ल

Dr. Mulla Adam Ali
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Pratinidhi Bal Kavitayein : Dr. Parshuram Shukla

Pratinidhi Bal Kavitayein Parshuram Shukla

प्रतिनिधि बाल कविताएँ : डॉ. परशुराम शुक्ल

अपनी बात

बच्चों के व्यक्तित्त्व के विकास में बाल कविता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बाल कविता सामान्य कविता से पूरी तरह भिन्न होती है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों का मनोरंजन है। इसके साथ ही इसके द्वारा बच्चों को नैतिक शिक्षा तथा विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ भी दी जा सकती है। बाल कविता के विषय बच्चों की रुचि के होते हैं, इसमें अत्यन्त सरल शब्दों का उपयोग किया जाता है, ये प्रायः चार पंक्तियों से लेकर बीस पंक्तियों तक की होती है तथा इनमें गेयता का गुण होता है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण बच्चों को बाल कविताएँ अच्छी लगती हैं। वे इन्हें बड़े ध्यान से पढ़ते हैं, सुनते हैं। कुछ बाल कविताएँ तो इतनी रोचक होती हैं कि बच्चे इन्हें जीवनभर भूल नहीं पाते हैं।

'आजकल ढाई-तीन वर्ष के बच्चे नर्सरी स्कूल जाने लगे हैं। यहाँ इन्हें खेल-खेल में सामान्य ज्ञान देने का प्रयास किया जाता है। प्रायः नर्सरी कक्षा के बच्चों को पहले एक-दो महीने पढ़ना-लिखना नहीं आता। इन्हें पढ़ने- लिखने में कोई रूचि भी नहीं होती। ऐसी स्थिति नर्सरी शिक्षक, जो प्रायः लड़कियाँ अथवा महिलाएँ हाती हैं, इन्हें रंग-बिरंगे पृष्ठों वाली शिशु गीतों की पुस्तक की छोटी-छोटी कविताएँ गाकर सुनाती हैं। इससे बच्चों में शिशु गीतों के साथ ही उस रंगीन चित्रोंवाली पुस्तक से भी लगाव उत्पन्न होता है, जिसमें ये गीत लिखे होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में बच्चों को अक्षर ज्ञान देने और उनमें पुस्तकों से लगाव उत्पन्न करने का प्राथमिक कार्य शिशुगीतों के माध्यम से किया जा रहा है।' (हिन्दी बाल साहित्य का सैद्धान्तिक विवेचना, पृष्ठ-197-198)

बाल कविता तीन प्रकार की होती है - 1. शिशु गीत 2. सामान्य बाल कविता 3. किशोर कविता। शिशु गीत को बाल कविता का सरलतम रूप कहा जा सकता है। मेरे विचार से शिशु गीतों को बाल कविता के ऐसे रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसका सृजन ढाई वर्ष से पाँच वर्ष तक की आयु के शिशुओं के लिए किया गया हो, जिसमें चार से लेकर आठ तक अत्यन्त सरल शब्दों से युक्त चरण हों, जिसका उद्देश्य विशुद्ध रूप से शिशु का स्वस्थ मनोरंजन हो, जिसे बच्चे सरलता से गा सकते हों तथा जिसकी भाषा और भावों में इतना आकर्षण हो कि शिशुओं के मस्तिष्क पर एक स्पष्ट चित्र उभर आता हो।' (हिन्दी बाल साहित्य का सैद्धान्तिक विवेचन, पृष्ठ- 198)

'शिशु गीत और किशोर कविता के बीच के आयु वर्ग अर्थात् पाँच वर्ष से अधिक और बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए भी इनकी आयु के अनुसार बाल कविताएँ लिखी जाती हैं। सामान्यतया इन्हें दो भागों में बाँटा गया है। पहले वर्ग में पाँच वर्ष से अधिक और आठ-नौ वर्ष तक के बच्चों की कविताओं को सम्मिलित किया जाता है और दूसरे वर्ग में आठ-नौ वर्ष से लेकर बारह वर्ष तक के बच्चों की बाल कविताओं को।' (हिन्दी बाल साहित्य का सैद्धान्तिक विवेचन, पृष्ठ-208)

किशोर कविता का सृजन 12 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों के लिये किया जाता है। इसमें इनके मनोविज्ञान का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। 'इस आयु के बच्चों में अपने निर्णय अपने आप लेने की क्षमता उत्पन्न होने लगती है। ये अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित करने लगते हैं। इनकी अपनी विचारधारा इनके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बन जाती है तथा ये अधिकांश समय एक विशेष प्रकार की उत्तेजना अनुभव करते रहते हैं। किशोर बच्चों के जीवन में आनेवाला सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यौन सम्बन्धी परिवर्तन है। किशोर बच्चे शारीरिक सम्बन्धों का अर्थ समझने लगते हैं, अतः किशोर और किशोरियों में एक-दूसरे के प्रति आकर्षण उत्पन्न होता है और निरन्तर बढ़ता रहता है। इसके साथ ही स्वास्थ्य और सौन्दर्य में इनकी रुचि बढ़ जाती है। किशोर अधिक स्वस्थ और किशोरियाँ अधिक सुन्दर दिखने के लिये प्रयास आरम्भ कर देती हैं। इनमें फैशन के प्रति आकर्षण बढ़ता दिखाई देता है। (हिन्दी बाल साहित्य का सैद्धान्तिक विवेचन, पृष्ठ-209)

मैंने तीनों प्रकार की बाल कविताओं का सृजन किया है तथा वर्ष 2015 तक मेरे 42 बाल कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं-

1. कामना, 2. एकता की शक्ति, 3. बालवन्दन, 4. तितली, 5. उठो सवेरे, 6. छुक-छुक रेल, 7. आओ गुनगुनाओ, 8. पुरस्कृत बालगीत (तीन खण्ड), 9. मोटूराम, 10. राष्ट्रीय पुष्प और राज्य पुष्प, 11. राष्ट्रीय वृक्ष और राज्य वृक्ष, 12. राष्ट्रीय पशु और राज्य पशु, 13. राष्ट्रीय पक्षी और राज्य पक्षी, 14. मंगल ग्रह जाएँगे, 15. आओ बच्चो गाओ बच्चो, 16. चारो खाने चित्त, 17. तिरंगा, 18. हमारे प्राकृतिक प्रतीक, 19. कलरव 20. नंदनवन, 21. सूरज पाना है, 22. मेरा रोबो बड़ा निराला, 23. चिड़िया नीड़ बनाती, 24. बाल सतसई, 25. विजय पर्व, 26. खिलौने वाला, 27. हँसीघर, 28. बच्चों की सरकार, 29. ऐसी कहो कहानी, 30. बच्चों की रेल, 31. बच्चे हँसते गाते हैं, 32. सर्कस का हाथी, 33. कलरव (संक्षिप्त), 34. नंदनवन (संक्षिप्त), 35. आओ बच्चो गाओ बच्चो (संक्षिप्त), 36. देश का मान, 37. मेरी गुड़िया, 38. खेलो कूदो मौज उड़ाओ, 39. जंगल की होली, 40. टीचर जी का डन्डा, 41. हमारे राजकीय पशु और पक्षी तथा, 42. हमारे राजकीय वृक्ष और पुष्प।

उपरोक्त पुस्तकों में 12 पुस्तकों को मेरे 'शिशु गीत एवं बाल कविता समग्र' के रूप में समझा जा सकता है। में हैं-1. कलरव, 2. नंदनवन, 3. आओ बच्चो गाओ बच्चो, 4. मंगलग्रह जाएँगे, 5. चारो खाने चित्त, 6. हमारे प्राकृतिक प्रतीक, 7. तिरंगा, 8. सूरज पाना है, 9. चिड़िया नीड़ बनाती, 10. मेरा रोबो बड़ा निराला, 11. विजय पर्व और 12. बाल सतसई। इनमें बाल सतसई को छोड़कर शेष सभी पुस्तकों का प्रकाशन 'जनवाणी प्रकाशन', दिल्ली से हुआ है। बाल सतसई का प्रकाशन 'नमन प्रकाशन' नई दिल्ली से किया गया है। इन 12 पुस्तकों के पहले प्रकाशित तथा इनके बाद प्रकाशित सभी पुस्तकों के सभी शिशु गीतों और बाल कविताओं को इन 12 पुस्तकों में देखा जा सकता है।

मैंने चार-चार पंक्तियों के शिशु गीतों से लेकर चालीस पंक्तियों तक की बाल कविताओं का सृजन किया है। 'कलरव', 'नंदनवन', और आओ बच्चो गाओ बच्चों, में शिशु गीत हैं, तो 'मंगल ग्रह जाएँगे', 'तिरंगा', 'चारो खाने चित्त', 'चिड़िया नीड़ बनाती', 'विजय पर्व' में बाल कविताएँ हैं। 'विजय पर्व' की सभी बाल कविताएँ चालीस-चालीस पंक्तियों की हैं। 'हमारे राजकीय प्राकृतिक प्रतीक' पूरी तरह विज्ञान कविताओं की पुस्तक है एवं 'मेरा रोबो बड़ा निराला में' नन्हीं गजले हैं। 'बाल सतसई' जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, अभिभावकों और बच्चे के उपयोग की दोहों की पुस्तक है। 'सूरज पाना है' में किशोर गीत हैं। इसमें कुछ बालगीत भी हैं।

'प्रतिनिधि बाल कविताएँ' में मैनें उपरोक्त सभी प्रकार की बाल कविताओं को स्थान देने का प्रयास किया है। अपनी ही कविताओं में प्रतिनिधि कविताओं को चुनना एक कठिन कार्य होता है। कम से कम मेरे लिए तो यह एक कठिन कार्य था। इस कार्य को डॉ. विभा शुक्ला, प्राचार्य, शासकीय विज्ञान एवं वाणिज्य महाविद्यालय, बेनजीर, भोपाल के सहयोग से पूरा किया गया है। वास्तव में इस पुस्तक की रूपरेखा डॉ. विभा शुक्ला ने ही बनाई थी तथा रचनाओं के चयन से लेकर पूर्णाहुति तक का कार्य इन्होंने ही किया है। भोपाल में आयोजित होने वाले विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर प्रकाशित यह पुस्तक आपको पसन्द आएगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

- डॉ. परशुराम शुक्ल

ये भी पढ़ें; बाल साहित्य: अर्थ, परिभाषा और स्वरूप - डॉ. परशुराम शुक्ल

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