देवेश ठाकुर के उपन्यासों में चित्रित स्त्री-पुरुष संबंध

Dr. Mulla Adam Ali
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Novels of Devesh Thakur

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देवेश ठाकुर के उपन्यासों में चित्रित स्त्री-पुरुष संबंध

देवेश ठाकुर के उपन्यासों में चित्रित समस्याएँ

प्रयोग धर्मा कथाकार तथा कृति आलोचक देवेश ठाकुर हिन्दी साहित्य के बहुचर्चित रचनाकार हैं। उन्होंने अपने उपन्यासों में महानगर जीवन के मध्य वर्ग संघर्ष तथा उसकी मानसिकता को अभिव्यक्त किया है।

डॉ. देवेश ठाकुर के समस्त उपन्यासों का रंगमंच महानगरी बम्बई है। इस महानगरी के संघर्षपूर्ण जीवन का अत्यन्त गहराई के साथ देवेश जी ने अवलोकन किया है। महानगरीय परिवेश में कदम-कदम पर असुरक्षितता, धोखा और अजनबीपन का भाव बढ़ता जा रहा है। डॉ. देवेश ठाकुर ने अपने उपन्यासों के कथ्य के साथ-साथ व्यक्ति के अन्तर्मन की अतुल गहराई तक जाने का प्रयत्न भी किया है। अपने उपन्यास साहित्य में महानगरीय स्त्री-पुरुष संबंधों की समस्या को चित्रित किया है।

'शून्य से शिखर तक' उपन्यास में वैशाली के माध्यम से नवयुग की नारी की नयी चेतना को वस्तुपरक भूमिका पर प्रतिष्ठित किया है। 'अंततः' उपन्यास में महानगरीय जीवन में स्त्री-पुरुष संबंधों का बहुत ही कलात्मक ढंग से चित्रण हुआ है। सामाजिक यथार्थ के साथ-साथ मानवीय संबंधों का विश्लेषण मनोवैज्ञानिक ढंग से किया है। वसुधा माडर्न नारी है। उसके मनोविज्ञान के विविध पहलुओं के चित्रण द्वारा नारी और पुरुष के जीवन समीकरण का पर्याय प्रस्तुत किया है। वसुधा-पसरीचा संबंध स्त्री-पुरुष समता का हल पेश करता है। मन और शरीर के समीकरण स्त्री-पुरुष संबंध की समस्या के सेक्स संबंधों के एक आयामी मनोविज्ञान तक सीमित है।

वसुधा संवेदनशील और आधुनिक मध्यवर्गीय महिला है। पति अतुल से संबंध विच्छेद होने पर पूर्व परिचित राघवन से वह नाता जोड़ती है जो उसकी मदद करता है। इन्दिरा प्रेस के संपादक पंकज पसरीचा से उसका परिचय होता है। वसुधा उसकी कर्त्तव्य निष्ठा और उदात्त विचारों से प्रभावित होकर उसके प्रति आकर्षित होती है। पंकज पसरीचा की पत्नी पद्मा उसे छोड़कर किसी दूसरे व्यक्ति के साथ भाग जाती है। अतः पसरीचा वसुधा से अपना मेल बनाने का प्रस्ताव रखता है। वसुधा पुरुष ज्वर से पीड़ित, संवेदनशील नारी है। उसके लिए पुरुष संबंध अनिवार्य बन जाता है। अतः राघवन और सुभाष को छोड़कर अन्त में वसुधा आत्मविश्वास से पंकज पसरीचा के साथ मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित करती है।

स्त्री-पुरुष संबंधों की सार्थकता को स्पष्ट करते हुए पंकज वसुधा से कहता है - 'प्यार और वासना में अन्तर होता है, वासना के कीचड़ में मैं कभी न फैसा। मेरे संस्कार ही ऐसे नहीं है। और प्यार, प्यार मेरे लिए एक निष्ठा है, पूजा है, सही संबंध है और यह सब नितान्त व्यक्तिगत है। और मैं मैं कहूँ, मैंने तुम्हें प्यार किया है। तुम कोई भी निर्णय लो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तक मैं हूँ, मेरे साथ मेरी भावनाओं में तुम भी हो, तुम भी रहोगी।' (डॉ. देवेश ठाकुर, अन्ततः पृ. सं. 127)

'शून्य से शिखर तक' उपन्यास में वैशील और विलास डॉ. देवेश जी के विचारों के संवाहक चरित्र हैं। इनके माध्यम से स्त्री-पुरुष के परस्पर संबध और उनके साहचर्य पर अपने विचार प्रकट किये हैं। वैशाली साहित्य की अध्यापिका है। उसके वैवाहिक जीवन के सपने पति दुष्यन्त के व्यवसायवादी, स्वार्थी व्यवहार से टूट जाते हैं। उसकी स्वतंत्र और स्वाभिमानी मानसिकता पर आघात पहुँचता है। अतः पाँच महीनों के अन्तसँघर्ष के बाद वह अपने पति को छोड़ देती है। वह एकाकी जीवन बिताती हुई शैक्षिक और सामाजिक कार्य करती है। विलास ट्रेड यूनियन का नेता है। वह विधुर और दो बच्चों का बाप है। विलास वैशाली को व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर अपनाना चाहता है। लेकिन वह शादि के जाल में फँसना नहीं चाहती है। क्योंकि उसकी सोच में शादी के बाद संबंध बदल जाते हैं। पुरुष में अधिकार की भावना आ जाती है। पत्नी उसके लिए एक भोग्य वस्तु मात्र रह जाती है।

वैशाली विलास के साथ आत्मीयतापूर्ण संबंध रखना - चाहती है, लेकिन अपने व्यक्तित्व की स्वतंत्रता को किसी भी - कीमत पर त्यागना नहीं चाहती। वैशाली के माध्यम से डॉ. देवेश जी ने स्त्री-पुरुष संबंधों के संदर्भ में एक नये दृष्टिकोण से = विचार प्रस्तुत किया है। वैशाली और विलास औपचारिकता । की सीमा लाँगकर एक-दूसरे से निकटतम संपर्क में आते हैं। उनमें संबंधों की घनिष्ठता बढ़ती जाती है। वैशाली विलास से आत्मीयता का भाव चाहती है। दोनों वैवाहिक सूत्र में न बंधते हुए भी ईमानदारी और समर्पण भाव से एक-दूसरे के जीवन के अभावों और सुख-दुःखों को बाँटते हैं। यह संबंध स्त्री-पुरुष संबंधों को एक नयी अर्थवत्ता प्रदान करता है। उन दोनों के संबंधों में आत्म समर्पण और एक-दूसरे के लिए निष्ठा भाव है। व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर वे आत्मीयता का भाव रखते हैं। डॉ. देवेश जी ने 'शून्य से शिखर तक' उपन्यास में वैशाली के माध्यम से नवयुग की आधुनिक नारी की नयी चेतना, स्वाभिमान की रक्षा के लिए नारी की जागरूकता और व्यक्तित्व निर्माण के लिए नयी दिशाओं की ओर अग्रसर होती नारी का यथार्थ चित्रण किया है।

'इसीलिए' उपन्यास का नारी पात्र प्राध्यापिका वर्षा पत्रकार रघुवंशी के साथ विवाह सूत्र में न बंधकर मित्रता का संबंध रखती है। वह किसी कॉलेज में इतिहास की प्राध्यापिका है। समाज सेवा का कार्य भी करती है। वह स्वतंत्र चेतना एवं आधुनिक सोच की व्यवस्था विद्रोही नारी है। वह एक कर्मशील नारी है। उसमें काम करने की अदम्य आकांक्षा और साहस है। बदनामी की परवाह न करते हुए हिम्मत और ईमानदारी से वह पत्रकार रघुवंशी से आत्मीयता संबंध कायम रखती है। 'जनगाथा' उपन्यास में प्रो. मानुषी पत्रकार जोशी से विवाह न करते हुए उसके साथ अपने आत्मीय संबंध, मित्रता का नाता कायम रखती है।

इस प्रकार डॉ. देवेश ने स्त्री-पुरुष संबंधों के विविध स्तरों को यथार्थ रूप में चित्रित किया है। महानगरीय नारी जीवन में रिश्तों का टूटन, स्वच्छन्द प्रेम की असफलता, अविवाहिता, प्रौढ़ा, पति-पत्नी संबंधों में शिथिलता, विवाह बाह्य संबंध, स्त्री-पुरुष संबंधों में मित्रता, संबंध विच्छेदन एवं आधुनिक वेश्यावृत्ति आदि समस्याओं ने उग्र रूप धारण किया है। अतः समकालीन महानगरीय नारी को अनेक यातानाओं, पीड़ाओं, तनाओं एवं संत्रासों से गुजरना पड़ रहा है। फलस्वरूप वर्तमान में नारी आज भी पीड़ित, शोषित, कुण्ठित एवं तनावग्रस्त है। देवेश की दृष्टि में नारी जीवन की समस्याओं का समाधान उनकी समन्वित मानववादी दर्शन से संभव है। इसलिए उनके अधिकांश नारी पात्र नवमूल्यों की स्थापना के लिए आवेगशील एवं आक्रामक मनःस्थितियाँ रखती हैं।

- डॉ. काकानि श्रीकृष्ण

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