A Story Depicting Human Emotions
सबने किसान हल्कू और झबरा कुत्ता की कहानी तो सुनी ही होगी यह कहानी मंकू और रामलाल की उससे भी गहरी मानवीय संवेदना को दर्शाती है। साथ ही इंसान और जानवर की सच्ची दोस्ती की झलक भी दिखाती है।
संवेदना
किसान रामलाल, आज सुबह जल्दी ही अपने बैलों को लेकर खेत में चला जाता है। आषाढ़ का सीजन है और खेतों की जुताई करनी है नहीं तो फसल पिछड़ जाएगी तो अच्छी पैदावार नहीं होगी। पिछली बार बीमारी के कारण रामलाल खेतों की जुताई, बुवाई समय से नहीं कर पाया था जिसकी वजह से फसल मे भारी नुकसान उठाना पड़ा था।
रामलाल जैसे ही खेल में पहुँचता है उसे उसके खेत में घायल अवस्था में पड़ा एक बन्दर मिलता है। वह कहता है आज क्या शुभ दिन है सुबह-सुबह हनुमान जी के दर्शन हो गये। वह उस बन्दर के पास नजदीक जाता है तो वह देखता है कि बंदर घायलावस्था में पड़ा कराह, रहा है। रामलाल उसे उठाकर डरते हुए सुरक्षित जगह पर लेटा देता है और उसके घाव को सहलाता है ताकि दर्द कम हो जाए। अपने प्रति ऐसी सहानुभूति देखकर बन्दर के मन में किसान के प्रति संवेदना का भाव जागृत होता है। किसान बन्दर को यह बोलकर अपने खेतों मे जुलाई करने लगता है कि महराज' आप यहीं आराम करें आपको भूख लगी होगी। मेरी पत्नी लक्ष्मीना अभी हमारे लिए खाना लेकर खेत पर आएगी तब आपको खाना खिलाऊंगा। हम दोनों खाएंगे तब तक आराम करें।
इधर खेत जोतते-जोतते दोपहर हो जाता है। और लक्ष्मीना घर पर अपने कामों को निपटा कर अपने बेटे पार्थ, शोभित और बेटी रीमा तीनों को तैयार करके स्कूल भेज देती है।भैंसों को चारा डालकर रामलाल के लिए खाना लेकर खेत पर चली जाती है ।दूर से ही रामलाल उसे देखकर आवाज देता है अरे ! लक्ष्मीना जल्दी आओ खाना लेकर इतना कहकर वह अपने बैलों को छाये में नीम के पेड़ के नीचे बाँध देता है और बन्दर के पास बैठ जाता है। बन्दर से कहता है, मन्कू महराज भूख लगी है खाना आ गया है खा लोगे तो दर्द भी थोड़ा कम हो जाएगा। घर जाकर हल्दी का लेप बनाकर लाऊँगा लगा दूंगा तो दर्द कम हो जाएगा परेशान न हो। बन्दर भी उनकी भावना को समझकर सर हिला देता है। लक्ष्मीना आ जाती है बन्दर को देखकर वह काफी डर जाती है।
रामलाल कहता है डरो नही वह बेचारा खुद हालात का मारा है। पहले से ही बहुत डरा है।
लक्ष्मी ना कहती है- आपको कहाँ मिला यह।
अरे यहीं अपने खेत में घायल पड़ा था बेचारा । उठाकर मै इसे मड़ई (किसानों का खेती पर रहने की कुटिया) में लाकर कर दिया है। अब जब घर जाऊँगा तो हल्दी का लेप लाकर लगा दूँगा। 'इसका घाव ठीक हो जाएगा।
आपने सच में बहुत बढ़िया काम किया है शोभित के बाबूजी। आखिर जानवर को भी तो इंसानों की तरह दर्द होता है। इनके जंगलों को छीनकर तो बड़े बड़े महल खडे हो गये। ये बेचारे भूखे प्यासे कहाँ जाएँ ? क्या खाएँ ? बड़ी - बड़ी ईमारतें खड़ी करने वाले मनुष्य शायद यह भूल चुके हैं कि प्रकृति में पशु-पक्षी जानवरों का भी अस्तित्व है। जानवर भी प्रकृति की गोद में ही पलता है।
अच्छा बातें ही करोगी कि खाना भी दोगी मन्कू भी भूखे हैं। इनको भी भूख लगी है क्यों मंकू । वह अपनी मायूसी भरे चेहरे से उन दोनों को देखने लगता है।
लक्ष्मीना अपने पति व बन्दर को खाना देकर मन ही मन सोचती है कि मनुष्य कितना निर्दयी हो गया है कि अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए जानवरों तक को भी नहीं छोड़ रहा है।उनका घर उजाड़कर अपना घर बना रहा है।
थोडी ही देर मे रामलाल खाना खाकर लक्ष्मीना को आवाज देता है और वह अपनी मड़ई में ही थोड़ी देर तक आराम करने लगता है। उसकी पत्नी काम खत्म करके वापस आती हैं और सारे बर्तन समेटकर घर जाने को तैयार होती है तभी बन्दर उसकी साड़ी पकड़कर अपना सिर पैरों पर रख देता है। उस दृश्य को देखकर ऐसा लगता है मानो अपने को आत्मसमर्पण करते हुए वह कह रहा है कि खाना देने के लिए धन्यवाद। लक्ष्मीना भी उसके सिर को प्यार से सहलाते हुए कहती है मंकू तुम "यही रहना जब तक ठीक न हो जाना मैं रोज तुम्हारे लिए खाना लेकर आऊँगी कहकर घर चली जाती है।
थोड़ी देर तक खेतों को जोतकर रामलाल भी बैलों को लेकर घर आ जाता है और बन्दर वहीं उनकी कुटिया में बैठा रह गया। घर पहुँचकर रामलाल ने अपने बैलों को घास चारा डालकर कुएँ से पानी लाकर उन्हें पिलाता है और फिर नहाकर घर में प्रवेश करता है। तब तक बच्चे भी स्कूल से आ गये रहते हैं। रामलाल अपने बच्चों के साथ बैठकर सुबह हुई बन्दर वाली घटना सुनाता है। बच्चे बहुत खुश हो जाते हैं और खेत पर बन्दर से मिलने जाने के लिए जिद करने लगते हैं। बच्चों की जिद के आगे रामलाल अपने घुटने टेक देता है और बच्चों की बात मान कर उन्हें खेत पर ले जाने के लिए राजी हो जाता है। वह कहता है बच्चों मैं खेत से थककर आ रहा हूँ खाना खाकर थोड़ा आराम करके फिर चलता हूँ। आखिर बच्चे तो बच्चे हैं अगर उन्हें चाँद चाहिए तो चाहिए आप कहीं से भी कुछ भी करके उन्हें चाँद दीजिए यही तो बालहठ है।
बाबू अगर आप देर से चलोगे तो बन्दर कहीं चला गया तो हम लोग नहीं मिल पाएंगे। नहीं बच्चों कहीं नहीं जाएगा उसे चोट लगी है। अपनी माँ से उसके लिए दवा बनवा लो और साथ ही थोड़ा खाना भी ले लो। मै भी खाकर चलता हूँ तब तक बैल भी चारा खाकर आराम कर चुकेंगे।
हाँ बाबू ! बच्चे दौड़कर अपनी माँ के पास जाते है बन्दर के लिए दवा और खाना लेकर तैयार हो जाते हैं।
उधर रामलाल भी भोजन कर चुकता है। वह अपने बच्चों के साथ बेल को लेकर खेतों की तरफ चला जाता है। बच्चे भी बन्दर से मिलने के लिए उत्साहित हैं। खेत पहुँचकर कर रामलाल कुटिया में देखता है तो बन्दर वहीं बैठा रहता है उसे देखकर बन्दर उसकी तरफ चला जाता है लेकिन जैसे ही वह बच्चों को देखता है डर सहम सा जाता है, लेकिन बाद में उसे भी बच्चों का प्यार समझ आ जाता है। रामलाल उसे दवा लगा देता है और बच्चे उसे खाना देकर उसके साथ खेलने लगते है। एक इंसान और जानवर की दोस्ती जीवन्त हो जाती है। इंसान और जानवर के बीच का लगाव व भाव देखते ही बन रहा था।
बच्चे भी बन्दर के साथ खेलते हुए मग्न हो जाते हैं। थोड़ी देर में सूरज ढल जाता है शाम होने को आ जाती है। रामलाल बच्चों को आवाज देता हैं। बच्चों अब घर चलो रात होने वाली है मंकू को परेशान न करो।
ठीक है बाबू ! इसको भी घर लिए चलें।
नहीं बच्चों इसको यहीं आराम करने दो ठीक हो जाएगा तब ले चलना।
चलो अब घर। ठीक है बाबू अब मंकू हम घर जाते है तुम आराम करो। कहकर बच्चे अपने बाबूजी के साथ घर चले जाते हैं। घर पर लक्ष्मीना सबका इन्तजार करती है। जैसे ही सब घर पहुँचते है वह कहती है कि बच्चों तुम लोग बस खेलकूद ही कर रहे थे या अपने बाबू जी की मदद भी। तीनों बच्चे एक ही स्वर में बोलते है नहीं अम्मा हम लोग मंकू के साथ खेल रहे थे बहुत मजा आया।
अच्छा चलो ठीक है सभी हाथ पाँव धोकर आ आजो गरम - गरम खाना खाने।सुबह तुम्हारे बाबू जी के साथ खेत मे बीज बोने जाना है।
रात बीतती है। सुबह अरुणोदय होता है और फिर वही प्रक्रिया दोहराई जाती है। खेती का कार्य चलता रहता है।इधर अरहर और तिल की बुवाई हो चुकी है अब धान की रोपनी बाकी है। क्योंकि वर्षा नहीं हो रही है। धान की रोपनी तभी होती है जब इन्द्रदेव बारिश करते हैं क्योंकि अधिकांश किसानों की सिंचाई का साधन बरसात ही है। पम्पीसेट की सुविधा बड़े काश्तकारों के पास ही है। नहरों की सुविधा भी उपलब्ध नहीं जिसके कारण धान की खेती करने में असुविधा होती है। उधर थोडे दिनों बाद अच्छी बारिश होती है और खेतों में पानी भर जाता है। सभी किसानों के साथ ही रामलाल भी अपने खेत की रोपनी की तैयारी करता है।
रामलाल अपनी पत्नी से कहता है, कि "बारिश अच्छी हुई है और खेतों में धान रोपनी के लिए पानी भर गया है। मै हल बैलों को लेकर जाता हूँ तुम बच्चों को लेकर जल्दी आना कहकर वह चला जाता है। थोड़ी देर मे लक्ष्मीना अपने घर का सारा काम समेटकर बच्चों को लेकर खेत जाती है। बच्चे खेत में पहुँचकर पहले बन्दर को खाना देकर उसके साथ खेलते है। फिर वह खेतों मे अपने अम्मा - बाबूजी का हाथ बटाने जाते हैं।
रामलाल अपने बच्चों को खेत मे कूदने (जाने) से पहले उन्हें समझाता है कि बच्चों पहले खेत को प्रणाम करो। जैसे हम अन्न खाने से पहले अन्न को प्रणाम करते हैं।इंद्रदेव और धरती माँ से प्रार्थना करो इस बार बारिश अच्छी हो तथा अन्न उत्पादन बढ़िया हो। इन्हीं के रहमो कृपा से तो हमारा घर चलता है बच्चों!
बच्चे अपने बाबूजी की बातों का अनुसरण करते हैं और फिर खेतों मे काम करने लग जाते हैं।
थोड़े दिनों मे ही खेती का कार्य सम्पन्न हो जाता है। बन्दर भी रामलाल व उसके परिवार के बहुत निकट आ जाता है ऐसा लगता है वह भी इन्हीं के परिवार का सदस्य हो। जरूर उसने कोई पुण्य किया होगा जो उसे रामलाल जैसा व्यक्ति मिला। मंकू भी रामलाल के साथ खेत की देखभाल-करता किसी जानवर को देखकर वह चिल्लाता अपने मालिक को सचेत करता।
यही दिनचर्या चलती रहती है। मंकू को रामलाल के साथ खेत पर रहते हुए 4 साल साल पूर्ण हो जाते हैं। कभी 2 वह उसके घर भी चला जाता था। मंकू का सबसे अधिक लगाव रामलाल के साथ हो गया था क्यों कि उसके साथ उनका ज्यादा वक्त बीतता था। वे उसे ठंडी में उसके लिए गरम पुआल का बिस्तर बनाते थे और गरम कंबन भी ओढ़ाते थे।
धीरे- धीरे समय बीतता चला जाता है और एक दिन वह मनहूस घड़ी भी आती है जब रामलाल को कोई घातक बीमारी हो जाने के कारण उसकी मौत हो जाती है। उसकी मौत से बन्दर अनजान रहता है। रामलाल के एक दिन खेत न आने पर वह उसके घर पहुँच जाता है। जहाँ गाँव वालों की भीड़ इकट्ठा रहती है। वह बिना डरे भीड़ को चीरते हुए वहीं जा पहुँचता है जहाँ रामलाल का शव रखा था। वह कफन को हटाकर उससे लिपटकर रोने लगता है, तो कहीं ज़मीन मे लोटकर रोता है, उसके इस दृश्य को देखकर हर किसी की आँखें नम हो गयी। सभी निःशब्द रह गये।
बन्दर और एक इंसान की ऐसी दोस्ती को देखकर। जहाँ आज एक इंसान इंसान का नहीं है वहाँ जानवरों का ऐसा अनोखा प्रेम देखने को मिल रहा है। बन्दर और किसान की दोस्ती का किस्सा आसपास के गाँवो मे भी फैल जाता है। बन्दर रामलाल की अर्थी के साथ घाट जाता है और फिर वहाँ से लौटकर कहीं दूर जाता है। फिर वह तेरहवी के दिन भोजन करने आता है उसके बाद वह कभी नहीं आया। उसे अपने मालिक से बिछड़ने का दुःख बहुत था।
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