दिविक रमेश की दो कविताएं : 'सोचता हूँ' और 'एक बची हुई खुशी'

Dr. Mulla Adam Ali
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Divik Ramesh Poetry in Hindi : Kavita Kosh

Divik Ramesh Poetry in Hindi

दिविक रमेश की हिन्दी कविताएं : कविता कोश आज आपके लिए प्रस्तुत है भारत के प्रसिद्ध कवियों में से एक दिविक रमेश की कविताएं, बाल साहित्यकार डॉ. दिविक रमेश की चुनिंदा कविताएं 1. सोचता हूं 2. एक बची हुई खुशी।

Divik Ramesh Ki Kavitayein

सोचता हूँ / दिविक रमेश

1. सोचता हूँ

  --दिविक रमेश 

दरवाजा भेड़ते-भेड़ते

सोचता हूँ

और कब तक रखता इसे खुला ?


खुले दरवाजे में तो

लटका रहता है हर वक्त

एक पिंजरा प्रतीक्षाओं का

और पिंजरे की सलाखों में

कैद रहती हैं हर वक्त

ये आँख चिड़ियाँ।


पर सोचता यह भी हूँ

कि न रही होती ज़रूरत अगर

समय की

तो न भेड़ता कभी भी।

कि एक अन्तराल के बाद

फिर खोल दूँगा

भिड़े दरवाजे को

जिसे मैंने

कभी नहीं चाहा भेड़ना।


एक बची हुई खुशी / दिविक रमेश

2. एक बची हुई खुशी

 

एक बची खुची खुशी को थैले में डाल

जब लौटता है वह उसके सहारे

तो जिन्दगी का अगला दिन

पाट देता है उसकी रात रंगीन सपनों से

-सपने जो अधूरी आकांक्षाओं की पूर्ति ही नहीं

एक संकल्पित भविय भी हो सकते हैं।


समझौते पर विवश आदमी-सी

बस इतनी ही प्रार्थना है मेरी

कुछ बचे न बचे

पर बची रहे हर शाम उसके पास

एक थोड़ी-सी खुशी-उसका सहारा

जिसे थैले में डाल

लौट सके वह घर

उत्सुक डग भरता।


कि बचे रहें उसके पास भी कुछ सपने

कि बीते न उसकी रात सूनी आँखों में।

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