बेटी घर की लक्ष्मी होती है, बेटियों को बचाना हमारा कर्तव्य है, उनको आसमान में उड़ने के लिए पंख देने की जिम्मेदारी हमारी है, हर बेरी पढ़े, हर बेटी बढ़े। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। आज विशेष बेटी दिवस, बालिका दिवस पर ये कविता सभी बेटियों के लिए समर्पित है।
Poem on International Girl Child Day
बालिका दिवस पर कविता : राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस, बेटी दिवस पर डॉ. परशुराम शुक्ल की कविता 'बेटी'। बेटियों की संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बालिका दिवस मनाया जाता है, प्रतिनिधि बाल कविताएं से संग्रहित बालिका दिवस पर बेहतरीन कविता आपके सामने प्रस्तुत है, पढ़े और शेयर करें।
Antarrashtriy Balika Divas Par Kavita
अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस पर विशेष कविता / डॉ. परशुराम शुक्ल
देखो मम्मी ! नन्ही बिटिया,
तुमको आज बताती ।
जब तुम रोतीं, रात-रात भर,
मुझको नींद न आती ।।
पापाजी अक्सर देते हैं,
शाम सवेरे ताने ।
बात-बात में तुम्हें डाँटते,
करके नये बहाने ।।
दादा-दादी को भी देखा,
मैंने उखड़ा उखड़ा।
रोज पड़ोसी से कहते हैं,
जा कर अपना दुखड़ा ।।
दोष तुम्हीं को सब देते हैं,
भीतर बाहर वाले ।
दोषी से हमदर्दी सबको,
कैसे खेल निराले ?
घबराती हो तानें सुन कर,
फिर भी तुम चुप रहतीं ।
मर जाती पैदा होते ही,
कभी-कभी तुम कहतीं ।।
हिम्मत करो और फिर देखो,
एक बात बतलाऊँ ।
बेटी नहीं किसी से कम हैं,
तुमको मैं समझाऊँ ।
माँ मेरी मुझको अवसर दो,
जग में कुछ करने का।
मेरे सर पर हाथ धरो तुम,
गया समय डरने का।।
पढ़ लिखकर मैं बनूँ डॉक्टर,
सबकी जान बचाऊँ ।
बनूँ इन्दिरा मैं भारत की
सत्ता पर छा जाऊँ ।
अगर कहो तो बन व्यापारी,
लाखों लाख कमाऊँ ।
बेटा कभी नहीं कर सकता,
वह कर के दिखलाऊँ ।।
इस बेटी को समझो मम्मी,
आज कसम यह खाती ।
साथ बुढ़ापे तक दूँगी मैं,
यह विश्वास दिलाती ।।
- डॉ. परशुराम शुक्ल
बाल साहित्यकार,
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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