Bal Kahani in Hindi : आरिफ की ईदी

Dr. Mulla Adam Ali
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प्रेमचंद की कहानी ईदगाह को आपने पढ़ी होंगी, ईदगाह कहानी में बाल पात्र हामिद हम सबको याद होगा, ईदगाह कहानी की तरह आपको ये बाल कहानी भी हमेशा के लिए जरूर याद रखेंगे। दिल को छू लेने वाली बाल कहानी आरिफ की ईदी पढ़े और शेयर करें।

Bal Kahani in Hindi by Nidhi Maansingh

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Children Story in Hindi Arif Ki Eidi : बाल कहानी आरिफ की ईदी आज आपके लिए लेकर आए हैं, निधि मानसिंह द्वारा लिखी गई बच्चों की मनोवैज्ञानिकता पर आधारित हिन्दी बाल कहानी आरिफ की ईदी।

Heart touching Children Story in Hindi by Nidhi Maansingh

आरिफ की ईदी

आज आरिफ की खुशी को चार चाँद लगे थे क्योंकि? उसने पाँचवी कक्षा अव्वल नंबर से पास की है मास्टर जी ने भी आरिफ की बहुत प्रशंसा की। बस! अब तो आरिफ को जल्दी से जल्दी घर पहुंचकर ये खुशखबरी प्यारी अम्मी को सुनानी थी। स्कूल की छुट्टी हुई और आरिफ तो जैसे पंख लगाकर उड़ चला और घर पहुंचकर ही दम लिया। लेकिन! ये क्या? घर पहुंचते ही उसकी खुशी गायब हो गई, जब उसने चारपाई पर अम्मी को बेसुध लेटे देखा । आरिफ का दिल बहुत घबरा रहा था। तभी उसकी दादी अमीना ने उसे बताया कि उसकी अम्मी आज काम करते हुए सीढियों से गिर गई और उसके पैर में चोट लग गई। हकीम जी ने उसे काम ना करने और आराम करने के लिए बोला है।

      आरिफ के अबू असलम दो साल पहले काम करने के लिए दूसरे शहर गये थे लेकिन! तभी से उनकी कोई खबर नहीं इसी कारण घर चलाने के लिए आरिफ की अम्मी राबिया लोगों के घर मे काम करती है। एक घंटे के बाद राबिया को होश आया और आरिफ की जान मे जान आई। अम्मी को देखकर आरिफ जोर - जोर से रोने लगा। राबिया आरिफ के सिर को सहलाते हुए बोली - तू तो मेरा बहादुर बेटा है रोता क्यों है? आज तो तेरा पांचवी का नतीजा आया है। बताएगा नही अम्मी को। आरिफ ने आंसू पोछते हुए कहा - अम्मी मै अव्वल नंबर से पास हुआ और मास्टर जी ने भी मेरी बहुत तारिफ की।

राबिया ये सुनकर खुश भी हुई और उदास भी आरिफ ने कहा - अम्मी आपकों खुशी नही हुई।

अम्मी ने कहा - मेरे बच्चें मै बहुत खुश हूँ लेकिन! लेकिन क्या अम्मी?

      आरिफ ने बीच में टोकते हुए कहा - आरिफ मेरे बच्चें मै इसलिए उदास हूँ कि मै! अब तुम्हें आगे कैसे पढ़ाऊंगी? घर का खर्च कैसे चलेगा? और दो महीने के बाद ईद भी है। राबिया ये कहते - कहते रोने लगी। तभी आरिफ अम्मी का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला - आप ही कहती हैं ना मै आपका बहादुर बेटा हूँ फिर क्यों रोती हो? देखना अम्मी अल्लाह ने चाहा तो इस बार हमारी ईद बहुत अच्छी मनेगी और अबू की भी खबर जरूर आयेंगी। तभी दादी अमीना आरिफ के लिए खाना ले आई और बड़े प्यार से उसे खाना खिलाया।

     आरिफ 12 साल का था लेकिन! बहुत समझदार और होनहार था अब घर कैसे चलेगा? क्योंकि अबू के जाने के बाद अम्मी ही घर चलाती थी? लेकिन! अब तो अम्मी को ही चोट लग गई यही सब सोचते - सोचते अचानक आरिफ को पड़ोस मे रहने वाले गोपाल दादा की याद आई वह चाय की दुकान चलाते है। आरिफ दौड़ कर उनके पास गया और उन्हें सारी बात बताकर मदद करने की गुज़ारिश की। गोपाल दादा आरिफ के परिवार को बहुत सालों से जानते थे उसके पिता के जाने के बाद वह कभी-कभी उनकी मदद कर दिया करते थे। उन्होंने आरिफ से कहा - ठीक है मै! तुम्हारी मदद करूंगा मेरी दुकान पर काम करने वाला नौकर दो महीने के लिए गाँव गया है। तब तक तुम मेरी दुकान पर काम कर सकते हो।

    आरिफ बहुत खुश हुआ गोपाल दादा ने उसे रोज के 25 रूपये देने पर काम पर रख लिया। इस तरह दो महीने गुजर जाते हैं आरिफ ने बखूबी घर का खर्च और अम्मी की दवाईयों का खर्च उठाया। लेकिन! वह ईद के लिए केवल 80 रूपये ही बचा पाया। वह इसी चिंता मे था कि इतने कम रूपये मे वह ईद कैसे मनायेंगे।

ईद भी आ गई सभी नये-नये कपड़े पहनकर सज - धजकर ईदगाह पर लगे मेले मे दौड़े जा रहे थे। आरिफ ने दादी अमीना और छोटी बहन के लिए नयी ओढ़नी और चूड़ियां खरीदी। घर के लिए सिवायियां और मिठाईयाँ खरीदी। सब सामान लेकर आरिफ घर पहुंचकर अम्मी और दादी को ईद की मुबारकबाद देता है। राबिया और अमीना की आंखों में आंसू आ जाते हैं। आरिफ उन्हें हौंसला देकर अपनें दोस्तों के साथ ईदगाह में नमाज अदा करने के लिए निकल पड़ता है। रास्ते भर आरिफ के दोस्त ईद पर मिली ईदी के बारे में बात करते चलें जातें है। नमाज़ अदा करके आरिफ मायूस सा ईदगाह की सीढियों पर बैठ जाता है। उसे आज अपने अबू की बहुत याद आ रही थी उसके अबू ईद पर हमेशा उसकी पसंद की ईदी देते थे यही सब सोचकर उसकी आंखे भर आई। धीरे-धीरे शाम होने लगी आरिफ दुखी मन से उठा और घर की ओर चल दिया।

घर पहुंचकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा आज दो साल के बाद आरिफ के अबू घर लौटकर आए। आरिफ अबू से लिपटकर बहुत रोया असलम ने आरिफ को बड़े प्यार से चुप किया और उसके हाथों में बड़ा सा पैकेट देकर बोला ये तुम्हारी ईदी है। आरिफ खोलकर नही देखोगे? आरिफ ने खोलकर देखा तो उसमें उसकी छठी कक्षा की किताबें थी आरिफ के मन की मुराद पूरी हो गई। उसने अपने अबू को ईद की मुबारकबाद दी और कहा - अबू मै! इस ईद और ईदी को जीवन भर नहीं भूलूंगा।ये मेरे जीवन की सबसे खास और यादगार ईद रहेंगी।

- निधि मानसिंह

कैथल, हरियाणा

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