हिन्दी का कविता कोश में प्रस्तुत है बद्री प्रसाद वर्मा की चार कविताएं हिन्दी में, हिन्दी कविता संग्रह में आज आपके समक्ष चार बाल कविताएं।
Badri Prasad Verma Anjaan Ki Kavitayein in Hindi
बद्री प्रसाद वर्मा की हिन्दी बाल कविताएं : बाल कविता संग्रह में पेश है चार हिन्दी बाल कविताएं 1. बादल कब आओगे तुम 2. पकौड़ी की दुकान 3. जिद्द पर जब अड़ जाते बच्चे 4. कभी बोलती नहीं है। बादल कब आओगे तुम बाल कविता इन हिन्दी, बाल गीत पकौड़ी की दुकान, बाल गीत जिद्द पर जब अड़ जाते बच्चे, हिंदी कविता कभी बोलती नहीं है।
Badri Prasad Verma Poetry in Hindi
बाल कविता / बादल कब आओगे तुम
1. बादल कब आओगे तुम
बादल कब आओगे तुम
इतना तो बतला दो।
पानी कब बरसाओगे
इतना तो बतला दो।
धरती प्यासी खेत हैं प्यासे
इनकी प्यास बुझा दो।
बाग बगीचे प्यासे हैं
इनकी भी प्यास बुझा दो।
ताल पोखरे सब हैं सुखे
इनको तो फिर जीला दो।
नदियों में पानी की
धारा नया बहा दो।
मेढ़क झींगुर तिलचट्टे तेरी राह देख रहे
इनकी आश बंधा दो।
कोयल मोर पपीहा की
मन में आस जगा दो।
हर किसान परेशान बहुत है
उनके भी भाग्य जगा दो।
बादल तुम पानी बरसाकर
सबकी प्यास बुझा दो।
बाल गीत / पकौड़ी की दुकान
2. पकौड़ी की दुकान
पढ लिख कर बेटे ने
खोल ली पकौड़ी की दुकान।
नौकरी कहीं न मिली
धरा रह गया सब अरमान।
बेच बेच कर पकौड़ी
अपना धंधा खूब चमकाया।
एम ए वी एड पास पकौड़ी वाला
का एक बैनर लगवाया।
जो भी आता पढ़कर बैनर
मन ही मन मुस्काता।
बेरोजगारी से परेशान युवा
अपना निजी धंधा अपनाता।
कोई चाय बेचने वाला बन गया
कोई सब्जी फल वाला।
कोई ई रिक्शा चला रहा है
कोई बन गया ठेला वाला।
आज देश में बेरोजगारी
सर चढ़कर बोल रहा है।
बेरोजगारी से हर युवा
दुख के आंसू रो रहा है।
बाल कविता / जिद्द पर जब अड़ जाते बच्चे
3. जिद्द पर जब अड़ जाते बच्चे
जिद्द पर जब अड़ जाते बच्चे
रोने से बाज नहीं आते बच्चे।
बेकार में रो रो कर
आंसू खूब बहाते बच्चे ।
बहुत मनाओ बहुत समझाओ
मगर नहीं मानते बच्चे।
मम्मी पापा को हर दिन
परेशान करते हैं बच्चे।
कभी कभी जिद्द पर अपने
नाकों चने चबवाते बच्चे।
भोले दिखने में लगते हैं
गुस्सा खूब दिखाते बच्चे।
जबतक जिद्द पुरी न कर लेते
तब तक नहीं मानते बच्चे।
घर में आए दिन
भारी आफत ढाते बच्चे ।
हिंदी कविता / कभी बोलती नहीं है
4. कभी बोलती नहीं है
पत्थर की मूर्तियां
कभी बोलती नहीं हैं।
एक जगह से दूसरी जगह
कभी दौड़ती नहीं हैं।
चुपचाप पड़े रहते हैं
किसी से बोलते नहीं हैं।
कौन आया कौन गया
कभी देखते नहीं हैं।
कोई सर झुकाता है
कोई प्रसाद चढ़ाता है।
मूर्तियां कुछ खाती नहीं
मंदिर का पुजारी खा जाता है।
जो करते हैं दान दौलत की
भगवान के घर कुछ नहीं जाता है।
मंदिर का मठाधीश देखो
दौलत वाला बन जाता है।
मूर्तियों की पूजा करने से
कुछ मिल नहीं पाता है।
बंद करो मूर्ति पूजा अब
सच्चाई सब आंखों के सामने नजर आता है।
- बद्री प्रसाद वर्मा अनजान
गोरखपुर उ. प्र.
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