काव्य सागर : निधि मानसिंह की कविताएं

Dr. Mulla Adam Ali
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काव्य सागर में निधि मानसिंह की 10 कविताएं संग्रहित है, आप इस कविताओं को पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया दें।

Kavya Sagar : Nidhi Maansingh Poetry Collection

Kavya Sagar Hindi Poetry

निधि मानसिंह की भावनाओं का सागर : कविता कोश में प्रस्तुत है कविता संग्रह काव्य सागर से संग्रहित 10 बेहतरीन निधि मानसिंह की कविताएं 1. अकेले ही 2. शब्दों की कविता 3. खुशियों के बीज 4. कैसे हो आप? 5. ओस की बूंदें 6. बिकने लगे हैं "पत्रकार" 7. उड़ता बादल 8. फैल गई बीमारी 9. चाहत है  10. पहले जूता सर पे।

Nidhi Maansingh Bhavnaon Ka Sagar

काव्य सागर / निधि मानसिंह

1. अकेले ही 

अकेले ही

अच्छा है सफर

इस दुनिया की

भीड़ से,


यहाँ भरोसा नही

हर रिश्ता पल में

बदल जाता है।


बड़ा शोर मचाते है

जो अपनेपन का

वक्त आते ही उनका

हर नकाब उतर

जाता है


2. शब्दों की कविता

सहेजकर रखे थे

कुछ शब्द तुम्हारे लिए

     मगर, जब तुम नहीं आये तो

    मैने उन शब्दों की कविता

बनाकर, माला मे पिरो लिया

और अपने ह्रदय से

      लगा लिया।

तुम नही तो तुम्हारा

प्रेम ही सही

       मेरे ह्रदय में सदैव

        धड़कता रहे।


3. खुशियों के बीज

भरी धूप मे नंगे पांव

सर पे बोझा ढोते 

बाबा। 


बच्चों की मुस्कान की खातिर 

खुद भीतर - भीतर

रोते बाबा।


बनकर छायादार दरख्त

खुशियों के बीज

बोते बाबा।


जीवन भर बस!

देते रहते हैं पर?

खुद के लिए ना कुछ

करते बाबा।

4. कैसे हो आप?

कैसे हो आप?

मै ठीक हूँ?

आप कैसे है? मै भी ठीक हूँ

बड़ी मशहूर हो गई

ये लाइनें आज के दौर में,

दर्द ही दर्द भरा है

इन शब्दों के हर छोर मे।

बस! उस दर्द को कोई

समझें तो जरा

यहाँ हर इंसान बस!

तन्हाई और गमों से है भरा।


5. ओस की बूंदें

रहती थी मै!

सुन्दर बगिया में

हिल-मिल अपने

मित्रों के संग।


मुस्काती थी

बलखाती थी

चढा था मुझे पे

यौवन का रंग।


धवल चांदनी मे

सोती थी

किरणें आकर

मुझे जगाती थी।


मोती बनकर

गिरती सुंदर

ओस की बूंदें

मुझे नहलाती थी


6. बिकने लगे हैं "पत्रकार"

अब लगने लगी है बोलियां

"खबरों की अखबारों की"

कोठी में बंद पड़ा है सच

ड्योढी पे घूसदारों की ।


बिकने लगे हैं "पत्रकार"

चंद सिक्कों की खनक से

होने लगा है नीलाम सच

फरेब के बीच बाजारों में।


7. उड़ता बादल 

उड़ता बादल

बहती नदियाँ। 


हंसती तितली

खिलती कलियाँ। 


चिडियों से चहके

जंगल की गलियाँ।


पेड़ों का श्रृंगार करे

आओ धरती माँ से

   प्यार करें।

8. फैल गई बीमारी

संविधान तो अब बस

किताब भर रह गया। 


देश में आडंबरों का ही

असर रह गया।


मजाक बन गई है

धाराएँ सारी।


भेद-भाव जात-पात की

फैल गई बीमारी।


9. चाहत है 

चाहता है

  तेरे लिए

  ढल जाऊँ

 मै! हर बार


तू ही सब

बोलता रहे

सुनकर

बदल जाऊँ

मै! हर बार


जीती जागती

रूह हूँ मै!

मेरा भी अपना

एक वजूद है।


मुमकिन नही ये

जो तू चाहें

वही कर जाऊँ

मै! हर बार


10. पहले जूता सर पे

पहले जूता सर पे

मारा जाता था

अब जूता मुंह पर

मारा जाता है।


लगने से पहले जूता

चमड़े से बदलकर

सोने का हो जाता है।


जूता खाने वाला

खुश होता है उसका

सम्मान भी बढ़ जाता है।


बड़ा करामाती है

सोने का जूता

जिसे हर कोई

खाना चाहता है।


- निधि "मानसिंह"

कैथल, हरियाणा

ये भी पढ़ें; Laghu Kavita Sangrah : कारवां - निधि मानसिंह

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