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Abhay Pandey Poetry
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Pachhua aur Purvaiya Kavita in Hindi
पछुआ और पुरवैया
वो दक्षिण की रानी
मैं पश्चिम का राजा,
वो बहकती ही पुरवैय्या
मैं ठहरा विकल्प पछुआ।
वो घुमड़ - घुमड़ घूमती
कंचनमाला को ढूंढती,
पर्वत नदिया झील पठार
हर अंचल को चूमती।
तट हो चोटी कोई नजारा
पग-पग भीगा उपवन सारा,
मार्ग प्रशस्त ना मिला सहारा
मरूभूमि से किया किनारा।
कहीं अति तो कहीं अल्प
कहीं मंद तो कहीं बहार,
आकर्षण यदि उच्च प्रचुर
दिवस लगाती खूब बयार।
मैं भी चलता खूब चहकता
अपने द्रुत वेग से आता हूं,
टकराकर शीर्ष मुकुट से
दो भागों मे बंट जाता हूँ।
जब मिलने को उससे
प्रस्फोट बिंदु तक जाता हूं,
मास बीते कई गए हैं उसके
सुन क्रंदन करने लग जाता हूँ।
क्या मिलन हमारा सम्भव
घाटी तुमसे मैं पूछ रहा,
मिलने को आतुर इतना उनसे
अब शीत मे धरणी सींच रहा।
- अभय पाण्डेय
कानपुर
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